आर्टिकल 35ए भारतीय संविधान का एक ऐसा कानून है, जो जम्मू कश्मीर की राज्य सरकार को यह अधिकार देता है कि वह राज्य में रह रहे लोगों को स्थायी नागरिकता दे। इसके अलावा इस कानून के जरिये जम्मू कश्मीर के नागरिकों को विशेष अधिकारों का भी प्रावधान है।
पिछले कुछ समय से इस बिल पर लगातार विवाद छिड़ा हुआ है। आरएसएस समेत देशभर के कई संगठन जम्मू कश्मीर से इस बिल को हटाने के पक्ष में हैं। इनका कहना है कि यह कानून यहाँ रह रही महिलाओं और देशभर के अन्य लोगों के मानवाधिकारों के खिलाफ है। यह विवाद फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए पड़ा हुआ है।
क्या है आर्टिकल 35ए में ?
आर्टिकल 35ए में मुताबिक :
- कोई भी व्यक्ति, जो जम्मू कश्मीर का स्थायी सदस्य नहीं है, वह राज्य में किसी तरह की प्रॉपर्टी या जमीन नहीं खरीद सकता है।
- कोई भी व्यक्ति, जो जम्मू कश्मीर का स्थायी सदस्य नहीं है, वह राज्य सरकार के अंतर्गत किसी भी पद पर कार्य नहीं कर सकता है।
- कोई भी व्यक्ति, जो जम्मू कश्मीर का स्थायी सदस्य नहीं है, राज्य में किसी भी सरकारी कॉलेज में दाखिला नहीं ले सकता है।
जम्मू कश्मीर का स्थायी नागरिक कौन है?
आर्टिकल 35 ए के मुताबिक जो भी व्यक्ति 17 नवंबर 1956 तक जम्मू कश्मीर राज्य का नागरिक था, या जिसने उस समय तक राज्य में 10 साल से ज्यादा बिताए हों, और कानूनन तरीके से राज्य में जमीन या अन्य संपत्ति खरीदी हो, वह जम्मू कश्मीर राज्य का स्थायी नागरिक होगा।
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जम्मू कश्मीर की सरकार हालाँकि इस क़ानून को बदल भी सकती है। इसे बदलने के लिए संसद में दो-तिहाई से ज्यादा बहुमत की जरूरत होगी।
इतिहास
1947 में देश की आजादी से पहले जम्मू कश्मीर एक राजकीय राज्य था, जिसपर वहां के राजा का राज था। चूंकि उस समय भारत पर अंग्रेजों का राज था, सीधे तौर पर जम्मू कश्मीर भी अंग्रेजों के अधीन था।
हालाँकि, राज्य को अंग्रेजों के अधीन करने से पहले जम्मू कश्मीर के राजा ने यह शर्त रखी थी, कि राज्य की स्थायी नागरिकता देने का हक राजा के पास ही रहे। ऐसा इसलिए, क्योंकि जम्मू कश्मीर का मौसम बहुत मनोरम था और ऐसे में राजा को डर था कि इस कारण से विदेशों से अमीर अंग्रेज आकर यहाँ संपत्ति खरीदकर रहने लग जाएंगे। अंग्रेजों ने राजा की इस शर्त को मान लिया था।
आजादी के बाद जब जम्मू कश्मीर के राजा हरी सिंह जी ने भारतीय सरकार के अधीन होने का फैसला किया था, तब भी उन्होंने यही शर्त रखी थी। भारतीय सरकार ने उनकी इस बात को मान लिया था।
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तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस कानून को लोक सभा में रखा और 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के आदेश के बाद इसे पारित कर दिया गया था।
वर्तमान परिस्थिति
पिछले काफी समय से आर्टिकल 35 ए के विरुद्ध देश में बहस छिड़ी है। दिल्ली के एक एनजीओ ‘वी दा सीटीजन’ ने एक याचिका दायर की थी, जिसमे आर्टिकल 35ए को हटाने की गयी थी। इस याचिका में लिखा गया था कि इस आर्टिकल की वजह से भारतीय नागरिकों में श्रेणियां बनी हुई हैं, अर्थात इसने लोगों को बाँट रखा है।
इसी सन्दर्भ में दक्षिण पंथ के कई संगठनों ने भी इसके विरुद्ध आवाज उठायी है। इन लोगों का मानना है कि जम्मू कश्मीर में हो रही हिंसा और दंगों का कारण यही आर्टिकल है। लोगों का कहना है कि आर्टिकल 35 ए हटाया जाए, जिससे की देश के अन्य नागरिक जम्मू कश्मीर में संपत्ति खरीद सकें।
इसके पीछे दक्षिण पंथ का यह भी तर्क है कि इस आर्टिकल के हटने से जम्मू कश्मीर में भारी मात्रा में मुस्लिमों की जनसँख्या को भी काबू में लिया जा सकेगा।
वहीँ जम्मू कश्मीर में मौजूद विभिन्न राजनैतिक पार्टियों का यह मानना है कि इसे नहीं हटाना चाहिए। जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ़्ती ने हाल ही में कहा था कि यदि राज्य से आर्टिकल 35 ए हटाया गया, तो यहाँ तिरंगा थामने के लिए कोई नहीं बचेगा।
कई लोगों का मानना है कि राजनैतिक पार्टियां ऐसा इसलिए कह रही है क्योंकि इसी आर्टिकल की वजह से उनकी कुर्सी बची हुई है।