Fri. Apr 26th, 2024

    गुलाबी नगरी कहा जाने वाला जयपुर शहर विश्वभर में अपनी खूबसूरती और मेहमानवाजी के लिए प्रसिद्द है। राजस्थान की राजधानी जयपुर ने पिछले डेढ़ दशक में हर क्षेत्र में अभूतपूर्व तरक्की की है और शहर का बदला मिजाज इस बात का एहसास कराता है। देश के टियर-2 शहरों की सूची में जयपुर अग्रणी स्थान पर नजर आता है। विकास और आधुनिकीकरण के इस दौर में समाज का एक तबका ऐसा भी रहा जिसने इसकी भारी कीमत चुकाई। विकास के नाम पर भूमिपुत्र कहे जाने वाले किसानों की जमीनों का अधिग्रहण किया गया और उनका पेशा उनसे छीन लिया गया। सरकार ने मुआवजे के नाम पर जो धनराशि किसानों को दी वह उनकी जमीनों की तरह अचल नहीं थी। कुछ समय पश्चात किसान भूमिविहीन होने के साथ-साथ धनविहीन भी हो गए और हाशिए पर जीवन जीने को मजबूर हो गए।

    जमीन समाधि सत्याग्रह
    अन्न त्याग चुके हैं किसान

    जयपुर से तकरीबन 18 किलोमीटर दूर सीकर रोड पर स्थित नींदड़ गाँव में स्थानीय किसानों ने जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) द्वारा किए गए भूमि आवंटन के विरोध में मोर्चा खोल दिया है। किसानों ने अपना विरोध जाहिर करने के लिए अनोखा तरीका अपनाया है और भूमि समाधि ले ली है। गले की ऊँचाई तक किसान मिट्टी से ढंके हुए हैं। प्रदर्शनरत किसानों की कुल संख्या 33 हैं जिनमें 22 पुरुष और 11 महिलाएं शामिल हैं। इस आन्दोलन को किसानों ने “जमीन समाधि सत्याग्रह” का नाम दिया है। जमीन समाधि सत्याग्रह के संयोजक डॉ. नागेन्द्र सिंह शेखावत हैं और कैलाश बोहरा इसकी अध्यक्षता कर रहे हैं। सत्याग्रह के संयोजक डॉ. नागेन्द्र सिंह ने बताया कि प्रदर्शनरत किसानों ने शनिवार, 7 अक्टूबर से अन्न त्याग दिया है और प्रशासन द्वारा कोई सार्थक पहल ना करने तक वह सिर्फ जल के सहारे रहेंगे।

    गलत तथ्यों को आधार बना कराया सर्वेक्षण

    इस मामले की शुरुआत वर्ष 2009 में हुई जब अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार का शासन था। जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) ने अधिसूचना जारी की कि एक नई रिहायशी कॉलोनी के निर्माण के लिए नींदड़ गाँव की 1,350 बीघा जमीन का आवंटन किया जाएगा। अधिसूचना जारी होने के बाद से ही इस योजना का विरोध होने लगा था। जमीन समाधि सत्याग्रह के संयोजक डॉ. नागेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि जमीन आवंटन के लिए सरकार द्वारा कराया गया सर्वेक्षण गलत था। जमीन से जुड़े तथ्यों को गलत ढ़ंग से पेश किया गया और सच्चाई को छिपाया गया। जिन जमीनों को आवंटन के लिए चिन्हित किया गया था वह स्थानीय किसानों की जमीनें थी। इन जमीनों को यह कहकर आवंटित किया गया था कि यह बारानी (वर्षा ऋतु में खेती योग्य) जमीनें हैं जबकि जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल जुदा है।

    जेडीए द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में बारानी बताई गई पर यह जमीन बारहों महीने खेती के लिए उपयुक्त है। जेडीए द्वारा यह बताया गया था कि जमीन मालिकों के पास उपलब्ध जमीन न्यूनतम सीमा से काफी अधिक है लिहाजन इसका आवंटन उचित है। नींदड़ गाँव के अधिकतर परिवार संयुक्त परिवार के तौर पर रहते हैं और इस क्षेत्र का चलन यह है कि जमाबंदी में परिवार के मुखिया का नाम ही जमीन के मालिक के तौर पर अंकित होता है। इस लिहाजन अगर किसी परिवार के मुखिया के नाम 15 बीघे जमीन है तो सरकारी कागजों में वह उस जमीन का इकलौता मालिक नजर आता है। पर यही जमीन जब उसके बेटों और पोतों में बाँट दी जाए तो वह प्रति परिवार 1 बीघे से भी कम रह जाएगी। अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकार किसानों से उनकी न्यूनतम जमीन भी छीनना चाहती है?

    छिनेगा 1,500 परिवारों का रोजगार

    जेडीए द्वारा आवंटन के लिए चिन्हित की गई 1,350 बीघे की जमीन स्थानीय किसानों की है। आस-पास के इलाके में रहने वाले 20 ढ़ाणियों के तकरीबन 1,500 परिवार इस जमीन पर खेती और पशु-पालन कर अपना गुजर-बसर करते हैं। इस क्षेत्र के निवासियों की आय का मुख्य स्रोत मजदूरी, किसानी और पशु-पालन है। घर के पुरुष सदस्य मजदूरी करते हैं और किसानी में महिलाओं का हाथ बँटाते हैं। वहीं महिलाएं घरेलू कामकाज के अलावा किसानी और पशु-पालन करती हैं। आज एक तरफ केंद्र सरकार किसानों को सबल बनाने और पशु-पालन को लोकप्रिय बनाने के लिए तरह-तरह की योजनाएं बना रही है और ऋण बाँट रही है वहीं दूसरी ओर सरकार का उदासीन रवैया इन योजनाओं की जमीनी हकीकत बयाँ कर रहा है। अगर सरकार इन किसानों की जमीनें अधिग्रहित कर लेती है तो देश का पेट भरने वाले अन्नदाता दाने-दाने को मोहताज नजर आएंगे।

    जमीन समाधि सत्याग्रह
    अवैध घोषित हो चुकी हैं 18 कॉलोनियां

    जेडीए ने नींदड़ गाँव में नई रिहायशी कॉलोनी बसाने के लिए जिस जमीन को चिन्हित किया है वहाँ पहले से ही 18 कॉलोनियां बनी हुई हैं। इन 18 कॉलोनियों में तकरीबन 1,000 परिवार रहते हैं। जेडीए ने इन कॉलोनियों को अवैध घोषित कर दिया है। अब यहाँ रह रहे लोगों के सामने यह संकट उत्पन्न हो गया है कि वह नया ठिकाना कहाँ तलाशें। एक निम्न-मध्यम वर्ग से ताल्लुक रखने वाला इंसान अपनी जीवनभर की पूँजी और लाखों अरमानों को संजोकर अपने सपनों का आशियाना बनाता है। इसके बाद अगर उसे वहाँ से हटने को कहा जाए और यह आरोप लगाया जाए कि उसके सपनों का आशियाना “अवैध” है, तो उसके दिल पर गुजरने वाली पीड़ का दर्द सिर्फ वही समझ सकता है। प्रदर्शनरत लोगों का आरोप है कि सरकार जबरदस्ती उनकी जमीन हथियाना चाहती है इसके लिए वह तथ्यों के साथ हेर-फेर कर रही है।

    नए भूमि अधिग्रहण कानून के तहत हो आवंटन

    नींदड़ गाँव के किसान उनके साथ हो रहे इस अत्याचार के लिए जेडीए द्वारा कराए गए सर्वेक्षण को जिम्मेदार मानते हैं। उनका कहना है कि सर्वेक्षण के समय सच्चाई को छिपाया गया है और जमीन से जुड़े तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है। जमीन समाधि सत्याग्रह के संयोजक डॉ. नागेन्द्र सिंह शेखावत का कहना है कि वर्ष 2009 में हुए सर्वेक्षण में तय मानकों का पालन नहीं हुआ था। उन्होंने कहा कि आवंटन के लिए भूमि अधिग्रहण कानून, 1894 का इस्तेमाल हुआ था। यह कानून विवादित रहा है और इसका देशभर में काफी विरोध हुआ है। इसी वजह से वर्ष 2013 में नया भूमि अधिग्रहण कानून लागू किया गया। अब सवाल यह उठता है कि जब देश में नया भूमि अधिग्रहण कानून लागू है तो सरकार अंग्रेजी शासन द्वारा बनाए गए ‘दमनकारी’ और ‘निरंकुश’ भूमि अधिग्रहण कानून के आधार पर आवंटन क्यों कर रही है?

    नींदड़ की जनता करे पुकार, सर्वेक्षण दुबारा कराए सरकार

    अपनी जमीनों को बचाने के लिए भूमि समाधि ले चुके नींदड़ के भूमिपुत्र सरकार के रवैये से खफा हैं। उनका कहना है कि किसान हितैषी होने का ढ़ोल पीटने वाली सरकार के पास आज किसानों की बात सुनने का भी समय नहीं है। किसानों को सरकार अब तक यह कह कर टरकाती रही है कि वह हाई कोर्ट में इस जमीन के मामले का केस हार चुके हैं पर इसकी असलियत कुछ और ही है। हाई कोर्ट में केस हारने वाले वे लोग हैं जिन्होंने दिखावटी किसान बनने के लिए अपनी पूँजी लगाकर इस जमीन पर बड़े-बड़े फार्म हाउस बना रखे थे। ऐसे लोगों की संख्या 15-20 थी वहीं यहाँ तकरीबन 1500 किसानों की जमीनें हैं। सरकार का यह तर्क कहीं से भी तथ्यपरक नहीं लगता क्योंकि जो किसान और मजदूर दिन-रात मेहनत करके बमुश्किल दो जून की रोटी का इंतजाम कर रहे हैं वह केस लड़ने के लिए वकीलों की जेबें कैसे भर सकते हैं?

    जमीन समाधि सत्याग्रह
    जमीन से निकले हैं जमीन में दफन होंगे

    जमीन समाधि सत्याग्रह कर रहे किसानों का कहना है कि वह मिट्टी में ही पैदा हुए हैं और मिट्टी में हो दफन हो जाएंगे पर जीते जी अपनी जमीनें नहीं छोड़ेंगे। सत्याग्रह में किसानों की सहभागिता लगातार बढ़ती जा रही है और आज 8 अक्टूबर, रविवार तक 50 किसान भूमि समाधि ले चुके हैं। किसानों ने 16 सितम्बर को आन्दोलन की शुरुआत की थी और 15 दिन शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन किया था। सरकार द्वारा सुध ना लिए जाने पर गाँधी जयंती के दिन डॉ. नागेन्द्र सिंह शेखावत की अगुवाई में किसानों ने भूमि समाधि ली थी और मांगे पूरी ना होने तक अनिश्चितकालीन सत्याग्रह का ऐलान किया था। 7 अक्टूबर से किसानों ने अन्न त्याग कर दिया है ताकि सरकार उनके प्रदर्शन को गम्भीरतापूर्वक ले और उनकी मांगों को सुनें। सत्याग्रह के संयोजक डॉ. नागेन्द्र सिंह शेखावत ने सरकार के समक्ष किसानों की कुछ मांगे रखी जो नीचे वर्णित हैं –

    – किसान हर तरह से बातचीत पर राजी है पर सरकार को तत्काल भूमि आवंटन निरस्त करना होगा।
    – बातचीत में किसी तृतीय पक्ष को शामिल करने पर किसानों को कोई ऐतराज नहीं है।
    – सरकार रिहायशी कॉलोनियों को बसाने के लिए नए सिरे से सर्वेक्षण कराए।
    – आवंटन के भूमि अधिग्रहण कानून, 2013 को संज्ञान में लिए जाए।
    – सरकार किसानों से उनकी न्यूनतम जमीन ना छीने।
    – सरकार किसानों को उनकी जमीन के लिए वाजिब मुआवजा दे और फायदे में भागीदारी तय करे।

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    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।