अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने ताइवान के एयरस्पेस में चीन द्वारा जंगी जहाजों भेजने पर बीजिंग को फटकार लगाई है। ताइवान पर चीन अपने आधिपत्य का दावा करता हैं जबकि अमेरिका समर्थन के साथ ताइवान स्वतंत्र द्वीप होने का दावा करता है।
ट्वीटर पर जॉन बोल्टन ने लिखा कि “चीनी सेना का भड़काऊ कदम ताइवान का दिल या दिमान नहीं जीत सकते हैं। लेकिन वह हर जगह लोकतंत्र का सम्मान करने वाले लोगो के इरादों को मज़बूत करेंगे। ताइवान रिलेशन एक्ट और हमारी प्रतिबद्धताएं एक डीएम स्पष्ट है।”
रविवार को चीनी पीपल लिब्रेशन आर्मी के दो जंगी जहाज ताइवान के जलमार्ग से गुजरे और मेनलाइन को पार कर दिया, दो ताइवान और चीन को अलग करती है। ताइवान के जानकारों के मुताबिक यह अमेरिका के लिए चेतावनी थी कि वह तायपेई में युद्धपोत भेजना बंद करे। वांशिगटन के मुताबिक, उनके जहाज अंतर्राष्ट्रीय जल पर नौचालन की स्वतंत्रता के अभियान के तहत गए थे।
ताइवान के रक्षा मंत्रालय के मुताबिक सुबह 11 बजे के करीब जे-11 जहाजों ने द्वीप की दक्षिणी पश्चिम सीमा को पार किया था। ताइवान की सेना ने चीनी विमानों को धमकी देने के लिए अपने जंगी विमानों को भेजा। चीनी जहाज ताइवान में 185 किलोमीटर ऊपर तक उड़ते रहे और 10 मिनट तक ताइवान के एयरस्पेस में बरकरार रहे।
सोमवार को ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग वेन ने आदेश दिया कि चीनी जंगी जहाजों की ऐसी भड़काऊ हरकतों का जवाब बलपूर्वक दें। उन्होंने कहा कि “देश की सुरक्षा, लोकतंत्र, और सम्प्रभुता की रक्षा के लिए सेना दृढ संकल्पित है। हम अपनी सरजमीं का एक टुकड़ा भी कभी नहीं देंगे।”
अमेरिका के रक्षा और राज्य दोनों विभागों ने चीनी कार्रवाई को भड़काऊ और यथास्थिति में बदलाव करार दिया था। उन्होंने कहा कि “बीजिंग को ताइवान के खिलाफ जबरदस्ती बंद कर देनी चाहिए और बातचीत को बहाल करना चाहिए।”
अमेरिकी राज्य विभाग ने कहा कि ” बीजिंग के प्रयास खतरनाक हो सकते हैं और यह क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान नहीं देंगे। ताइवान रिलेशन एक्ट के साथ संगत रहे और अमेरिका ताइवान के भविष्य तय करने का शांतिपूर्ण बातचीत के आलावा कोई भी अन्य प्रयास वांशिगटन के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं।”
साल 2016 में त्साई के राष्ट्रपति बनने के बाद बीजिंग ने तायपेई के साथ आधिकारिक आदान-प्रदान बंद कर दिया था और उनकी सरकार एक-चीन सिद्धांत को मानने से इंकार करती है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ताइवान को मजब्बूत्त समर्थन देने की घोषणा के बाद चीन और तेपेई के बीच सम्बन्ध खट्टे हो गए।