Fri. Apr 26th, 2024
    Guru Dutt Biography

    गुरु दत्त भारतीय फिल्मो के मशहूर अभिनेता हैं। उन्होंने अपने अभिनय की वजह से बहुत सारी लोकप्रिता प्राप्त की है। गुरु ने एक अभिनेता के रूप में काम करने से पहले एक असिस्टेंट डायरेक्टर का नाम किया था। उन्होंने अपनी पहचान निर्माता, निर्देशक, अभिनेता और कोरियोग्राफर के रूप में बनाई है।

    गुरु दत्त द्वारा अभिनय किए गए फिल्मो की बात करे तो उन्होंने ‘भरोसा’, ‘साहिब बीवी और गुलाम’, ‘चौध्वीन का चाँद’, ‘कागज़ के फूल’, ‘प्यासा’, ‘आर पार’, ‘बाज़’, ‘जाल’, ‘सैलाब’, ‘बाज़ी’, ‘हम एक हैं’, ‘लाख रानी’, ‘चाँद’ जैसी फिल्मो में अपने अभिनय को दर्शाया था।

    गुरु दत्त ने अपने अभिनय की वजह से लोकप्रियता तो बहुत हासिल की थी लेकिन उन्हें कभी किसी अवार्ड या किसी पद से सम्मानित नहीं किया जा पाया था। इसकी वजह शायद उनका जल्द ही सभी को अलविदा कह देना था।

    गुरु दत्त का प्रारंभिक जीवन

    गुरु दत्त का जन्म 9 जुलाई 1925 को पादुकोण, मद्रास, ब्रिटिश इंडिया में हुआ था जिसे अभी ‘उडुपी डिस्ट्रिक्ट’, भारत नाम से जाना जाता है। गुरु दत्त ने एक मद्रासी परिवार में जन्म लिया था। लेकिन बाद में वो बंगाल में रहने लगे थे। उनके पिता का नाम ‘शिवशंकर पादुकोण’ था और उनकी माँ का नाम ‘बसंती पादुकोण’ था।

    गुरु के एक भाई हैं जिनका नाम ‘आत्मा राम’ था। उनकी एक कज़न बहन हैं जिनका नाम ‘ललिता लाजमी’ था और पेशे से वह एक प्रसिद्ध पेंटर हैं। उनकी दूसरी कज़न बहन का नाम ‘कल्पना लाजमी’ है जो पेशे से एक फिल्म निर्माता, निर्देशक, कोरियोग्राफर और स्क्रिप्ट लेखिका है।

    गुरु दत्त का असली नाम ‘वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण’ था जिसे उन्होंने बाद में बदल कर ‘गुरु दत्त’ रखा था। गुरु पहले अपने माता पिता के साथ करवार में रहते थे और बाद उन्होंने वहां से जाने का फैसला लिया था। गुरु दत्त को बंगाली भाषा बहुत अच्छे से बोलनी आती है।

    10 अक्टूबर 1964 को बॉम्बे, महाराष्ट्र में गुरु दत्त का दिहांत हुआ था। उनके परिवार और डॉक्टर ने बताया था की गुरु ने शराब और नींद की गोलियां ज़्यादमात्रा में खाई थी जिसकी वजह से उसका शरीर बर्दाश नहीं कर पाया था और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए थे। हालांकि कुछ लोगो का कहना था की ऐसा गुरु ने जान बूझकर किया था क्योंकि इससे पहले भी दो बार उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश की थी जिसमे वो असफल हुए थे।

    गुरु दत्त के दिहांत के बाद उनके बेटे ने बताया था की सभी की तरफ उनके पिता भी नींद की गोलिया खाते थे लेकिन शराब की मात्रा ज़्यादा होने की वजह से और नींद की गोलियां भी अधिक मात्रा में खाने से ऐसा हुआ था। गुरु के दिहांत के समय पर उन्होंने दो फिल्मो में अभिनय करने के लिए हामी भरी थी।

    व्यवसाय जीवन

    गुरु दत्त का शुरुआती दौर

    गुरु दत्त ने अपने व्यवसाय जीवन की शुरुआत एक टेलीफोन की कंपनी में काम करने के साथ की थी। उन्होंने कलकत्ता के ‘लेवेर्स ब्रदर’ नाम की फैक्ट्री में फ़ोन ऑपरेटर का काम किया था। इस नौकरी को गुरु ज़्यादा पसंद नहीं करते थे और उन्होंने जल्द ही इस कंपनी को छोड़ दिया था।

    साल 1944 में गुरु ने अपने परिवार के साथ बॉम्बे में रहने का फैसला लिया था। उसी साल गुरु के अंकल ने उन्हें ‘प्रभात फिल्म कंपनी’ में तीन साल का कॉन्ट्रैक्ट साइन कराया था। यह कंपनी पुणे में थी। इसी कंपनी में दत्त की मुलाकात अभिनेता ‘रेहमान’ और ‘देव आनंद’ के साथ हुई थी। इन तीनो की दोस्ती बहुत लम्बे अरसे तक चली थी।

    गुरु दत्त का फिल्मो का शुरुआती दौर

    साल 1944 में ही गुरु ने फिल्म ‘चाँद’ में एक छोटा का किरदार अभिनय किया था जिसका नाम ‘श्री कृष्णा’ था। इसके बाद साल 1945 में गुरु ने फिल्म ‘लाख रानी’ में अभिनय किया था। इस फिल्म में गुरु ने असिस्टेंट डायरेक्टर के पद को भी सम्हाला था।

    साल 1946 में गुरु को फिल्म ‘हम एक हैं’ में देखा गया था। इस फिल्म में उन्होंने अभिनेता और असिस्टेंट डायरेक्टर के साथ साथ एक कोरियोग्राफर की भूमिका भी दर्शाई थी।

    साल 1947 में गुरु दत्त का कॉन्ट्रैक्ट उस कंपनी के साथ खत्म हो गया था। इसके बाद लगभग 10 महीने तक गुरु बेरोज़गार रहे थे। इसी दौरान गुरु ने अपनी अंग्रेजी को सुधारा था और ‘द इल्लस्ट्रेट वीकली ऑफ़ इंडिया’ में छोटो छोटी कहानियो को लिखना शुरू किया था।

    गुरु दत्त का असिस्टेंट डायरेक्टर, अभिनेता और कोरियोग्राफर का सफर

    जब गुरु ने ‘प्रभात फिल्म्स कंपनी’ में कॉन्ट्रैक्ट को साइन किया था तक उस कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक़ गुरु एक अभिनेता, एक कोरियोग्राफर और एक अस्सिटेंट डायरेक्टर के रूप में काम करने वाले थे। साल 1947 में कॉन्ट्रैक्ट के ख़त्म होने के बाद गुरु वापिस बॉम्बे चले गए थे।

    बॉम्बे जाने के बाद गुरु दत्त ने दो बड़े निर्देशकों के साथ उनकी फिल्म में असिस्टेंट डायरेक्टर का काम किया था। गुरु ने ‘अमिया चक्रबर्ती’ की फिल्म ‘गर्ल्स स्कूल’ और ‘ज्ञान मुख़र्जी’ की फिल्म ‘संग्राम’ में अस्सिस्टेंट डायरेक्टर की भूमिका निभाई थी।

    इसके बाद गुरु के मित्र देव आनंद ने गुरु को अपनी कंपनी में काम करने का प्रस्ताव दिया था। कंपनी का नाम ‘नवकेतन’ था। इस कंपनी के एक निर्देशक के रूप गुरु ने पहली फिल्म ‘बाज़ी’ को निर्देश किया था जो की साल 1951 में रिलीज़ हुई थी।

    गुरु और आनंद की मुलाक़ात के दौरान दोनों के बीच एक वादा हुआ था। इस वादे के मुताबिक़ यदि देव आनंद किसी फिल्म को निर्मित करेंगे तो उस फिल्म को गुरु निर्देश करेंगे और यदि गुरु किसी फिल्म को निर्देश करेंगे तो देव आनंद उस फिल्म के हीरो होंगे। इसी वादे के साथ गुरु और देव आनंद ने एक साथ अपने काम की शुरुआत की थी।

    गुरु दत्त के निर्देशक बनाने का सफर

    गुरु दत्त द्वारा निर्देश की गई फिल्म ‘बाज़ी’ को दर्शको ने बहुत पसंद किया था। इसी के साथ गुरु ने फिल्म ‘जाल’ को भी निर्देश किया था। गुरु की दोनों फिल्मो को बॉक्स ऑफिस में सुपरहिट फिल्म का दर्जा नहीं मिला था। इन दोनों फिल्मो में निर्देशक की भूमिका को निभाने के दौरान गुरु ने अपनी एक टीम तैयार की थी।

    साल 1954 में गुरु की किस्मत ने एक सफल मोड़ लिया था। उन्होंने फिल्म ‘आर पार’ में निर्देशक का काम किया था। इस फिल्म में मुख्य किरदारों को जॉनी वॉकर, श्यामा, जगदीप, और जगदीश सेठी ने मुख्य किरदारों को दर्शाया था। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस में बेहतरीन कमाई के साथ अपना नाम सफल फिल्मो की सूचि में दर्ज किया था।

    साल 1955 में गुरु ने फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेस 55’ को निर्देश किया था जो की एक और हिट फिल्म के रूप में गुरु की ज़िंदगी से जुडी थी। इसके बाद उन्होंने फिल्म ‘सी. आई. डी.’ में भी निर्देशक की भूमिका निभाई थी जो की एक और सुपरहिट फिल्म के रूप में शामिल हुई थी।

    साल 1956 की बात करे तो उस साल गुरु ने फिल्म ‘सैलाब’ को भी निर्देश किया था। यह फिल्म भी सुपरहिट फिल्मो की सूचि में दर्ज हुई थी। साल 1957 में भी दत्त ने सुपरहिट फिल्म ‘प्यासा’ में काम किया था जिसे दर्शको ने धीरे धीरे बहुत पसंद किया था।

    साल 1959 में गुरु की फिल्म ‘कागज के फूल’ को दर्शको ने बिलकुल पसंद नहीं किया था। इस फिल्म में दुरु ने एक निर्देशक के साथ साथ एक अभिनेता के किरदार को भी दर्शाया था और अभिनेत्री के रूप में मधुबाला ने मुख्य किरदार को दर्शाया था। इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस में फ्लॉप फिल्मो की सूचि में दर्ज किया गया था।

    बताया जाता है की गुरु ने फिल्म ‘कागज़ के फूल’ को बनाने में पूरी जी जान लगाई थी, लेकिन उस फिल्म के बॉक्स ऑफिस में अच्छा प्रदर्शन ना होने की वजह से वो बहुत परेशान रहने लगे थे और खुद पर से उनका भरोसा उठने लगा था। हलाकि उनके दिहांत के बाद साल 1970 और 1980 के दशक में फिल्म ‘कागज़ के फूल’ को बहुत लोकप्रियता मिली थी।

    साल 1960 की बात करे तो उस साल गुरु दत्त की फिल्म ‘चौदहवीं का चाँद’ रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म को दर्शको ने बहुत पसंद किया था। इस फिल्म में गुरु ने एक अभिनेता का काम भी किया था। उनके साथ मुख्य किरदारों को वहीदा रेहमान और रेहमान ने अभिनय किया था। इस फिल्म के गाने ‘चौदहवीं का चाँद हो’ में पहली और आखरी बार गुरु दत्त को कलर रूप में देखा गया था।

    गुरु दत्त का फिल्मो का आखरी दौर

    साल 1962 में गुरु दत्त ने फिल्म ‘साहिब बीवी और गुलाम’ में निर्माता की भूमिका निभाई थी। इस फिल्म को दर्शको ने बहुत पसंद किया था और इसी के साथ फिल्म ने अपना नाम सुपरहिट फिल्मो की सूचि में दर्ज किया था। इस फिल्म में गुरु ने अभिनय भी किया था और उनके साथ मुख्य किरदारों को मीना कुमारी, वहीदा रेहमान और रेहमान ने अभिनय किया था।

    साल 1964 में गुरु दत्त ने अपनी आखरी फिल्म में अभिनय किया था। इस फिल्म का नाम ‘साँझ और सवेरा’ था जिसमे उनके साथ मीना कुमारी और मेहमूद ने मुख्य किरदारों को दर्शाया था। इसी के साथ गुरु द्वारा निर्मित की गई आखरी फिल्म का नाम ‘बहारें फिर भी आएंगे’ था। इस फिल्म में पहले गुरु ने ही अभिनय करने का फैसला लिया था लेकिन उनके दिहांत के बाद उसकी जगह मुख्य किरदार को अभिनेता धर्मेंदर ने अभिनय किया था।

    साल 2002 में गुरु की दो फिल्म ‘प्यासा’ और ‘कागज़ के फूल’ को ‘आल टाइम टॉप 160 ग्रेटेस्ट फिल्म्स’ की लिस्ट में शामिल किया था। इसी के साथ गुरु को 73 पद पर एक सफल निर्देशक के रूप में शामिल किया गया था। दत्त ने बहुत सारी फिल्मो में अभिनय और निर्देश नहीं किया है लेकिन फिर भी उन्हें एक सफल इंसान के रूप में गिना जाता है। एक दौर था जब गुरु की एक के बाद एक हिट फिल्मो को सिनेमा घरो में देखा गया था।

    गुरु दत्त का निजी जीवन

    गुरु दत्त का नाम सबसे पहले गाइका ‘गीता रॉय चौधरी’ के साथ जुड़ा था। इन दोनों ने एक दूसरे से साल 1953 में ही शादी कर ली थी। गीता का देहांत भी साल 1972 में हुआ था क्योंकि गीता ने भी बहुत ज़्यादा मात्रा में शराब पीना शुरू कर दिया था जिसकी वजह से उनका लिवर ख़राब हो गया था।

    गीता और गुरु के दो बेटे और एक बेटी हैं। उनके बड़े बेटे का नाम ‘अरुण दत्त’ था जो की पेशे से एक फिल्म निर्देशक थे। अरुण का दिहांत 26 जुलाई 2014 को हुआ था। गुरु के छोटे बेटे का नाम ‘तरुण दत्त’ थे जो की पेशे से एक फिल्म निर्माता और निर्देशक थे। तरुण का दिहांत साल 1989 में हुआ था और उन्होंने आत्महत्या की थी। गुरु की बेटी का नाम ‘नैना दत्त’ है।

    गुरु दत्त की शादी के बाद भी उनका नाम अभिनेत्री ‘वहीदा रेहमान’ के साथ लम्बे समय तक जुड़ा रहा था। इसी के साथ गुरु का दिल एक बार अभिनेत्री मधुबाला पर भी आया था लेकिन दिल का दोहरा पढ़ने की वजह से मधुबाला की मौत हो गई थी। गुरु दत्त जितने सक्त अपने काम को लेकर थे उतने सक्त वो कभी अपनी निजी जीवन में नहीं रहते थे। उन्होंने शराब पीने की बहुत बुरी आदत थी जिसकी वजह से शादी के कुछ सालो के बाद ही वो अपनी बीवी से अलग हो गए थे। उन दोनों के अलग होने की एक और बड़ी वजह अभिनेत्री वहीदा रेहमान हो भी माना जाता है।

    गुरु दत्त के पसंदीदा चीज़ो की बात करे तो उन्हें खाने में बंगाली और साउथ इंडियन खाना बहुत पसंद है। गुरु के पसंदीदा अभिनेता देव आनंद, रेहमान और दिलीप कुमार हैं। अभिनेत्रियों में गुरु को वहीदा रेहमान, साधना, मीना कुमारी और माला सिन्हा पसंद थे। उनके पसंदीदा फिल्मो की बात करे तो उन्हें ‘कागज़ के फूल’, ‘बाज़ी’ ‘और प्यासा’ फिल्म बहुत पसंद थी।

    गुरु को नाचने का बहुत शौक था जिसकी वजह से उन्होंने अपनी 16 साल की उम्र में ही ‘पंडित उदय शंकर’ के पास जाकर नाचना सीखा था।

    आप अपने विचार और सुझाव नीचे कमेंट में लिख सकते हैं।

    [ratemypost]

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *