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    गुजरात विधानसभा चुनाव

    गुजरात विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राज्य में चुनाव प्रचार अपने चरम पर पहुँच चुका है। 2 चरणों में प्रस्तावित गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले दौर का मतदान 9 दिसंबर को होना तय हुआ है। भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने तरीकों से चुनाव प्रचार में जुटी हुई है और मतदाताओं को रिझाने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है। गुजरात के सियासी मैदान में कई उम्मीदवार ऐसे भी हैं जिनपर पूरे देश की नजरें लगी हुई हैं। दलित नेता जिग्नेश मेवानी का नाम भी इनमें शामिल है। सामाजिक कार्यकर्ता और पेशे से वकील जिग्नेश मेवानी बनासकांठा जिले की वडगाम विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। बीते 5 दिसंबर को चुनाव प्रचार पर निकले जिग्नेश के काफिले पर हमला हुआ था। जिग्नेश और उनके समर्थकों पर हुआ यह तीसरा हमला था। जिग्नेश ने इस हमले के लिए सत्ताधारी दल भाजपा को दोषी ठहराया है।

    दलित आन्दोलन से गुजरात की सियासत में अपनी पहचान बनाने वाले दलित मेवानी एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और पेशे से वकील हैं। गुजरात के ऊना में कथित गौरक्षकों द्वारा दलितों की पिटाई के जिग्नेश ने सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया था। दलितों पर अत्याचार के मामले में गुजरात का देश में दूसरा स्थान है। बहुत ही कम समय में जिग्नेश ने गुजरात में दलित समाज में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है और आज वह सूबे के प्रमुख दलित नेता बन चुके हैं। जिग्नेश मेवानी को दलित समाज, कांग्रेस के अतिरिक्त अन्य कई क्षेत्रीय दलों का भी समर्थन प्राप्त है। इसी का नतीजा है कि जब जिग्नेश ने बनासकांठा जिले की वडगाम विधानसभा सीट से चुनाव निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की तो कांग्रेस समेत कई अन्य दलों ने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया।

    जिग्नेश ने हमले के लिए भाजपा को जिम्मेदार बताया

    दलित नेता जिग्नेश मेवानी ने अपने काफिले पर हुए हालिया हमले के लिए गुजरात के सत्ताधारी दल भाजपा को जिम्मेदार ठहराया है। जिग्नेश ने कहा कि यह हमला भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया था। उन्होंने इस सम्बन्ध में ट्वीट करते हुए पीएम मोदी को भी टैग कर दिया। जिग्नेश मेवानी बीते कुछ समय में दलित समाज के अगुआ बनकर उभरे हैं और उनपर हुए हमलों का असर दलित प्रभुत्व वाली सीटों पर देखने को मिल सकता है। जिग्नेश के समर्थकों ने आरोप लगाया कि जिग्नेश का राजनीति में आना बहुत लोगों को रास नहीं आ रहा है और इस वजह से वे उसपर हमला करवा रहे हैं। लेकिन जिग्नेश इन हमलों से डरने वाला नहीं है और वह और मजबूत होकर उभरेगा। जिग्नेश ना केवल चुनाव लड़ रहा है बल्कि बोल भी रहा है और भाजपा उसकी आवाज को दबाना चाहती है।

    ग्रामीण क्षेत्रों में ढ़ीली है भाजपा की पकड़

    जिग्नेश मेवानी और उनके समर्थकों की मानें तो गुजरात के ग्रामीण इलाकों में भाजपा की हालत बहुत ही खराब है। जनता में सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ रोष व्याप्त है और आने वाले चुनाव में जनता भाजपा के खिलाफ मतदान करेगी। जिग्नेश समर्थकों ने आरोप लगाया कि गुजरात की सत्ता हाथ से फिसलती देख भाजपा कार्यकर्ता बौखला गए हैं और इस वजह से हिंसक रवैया अपना रहे हैं। इन कारस्तानियों से भाजपा को फायदा नहीं वरन और नुकसान ही होगा। जिग्नेश मेवानी ने लम्बे समय से सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर भी कार्य किया है और उनकी दलित समाज के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी अच्छी पकड़ है। भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है और जिग्नेश के समर्थन वाले दल को दलित और ग्रामीण वोटरों का साथ मिल सकता है।

    दलित बाहुल्य सीटों पर भाजपा को नुकसान

    जिग्नेश मेवानी और उनके समर्थकों पर हो रहे लगातार हमलों का असर गुजरात की दलित बाहुल्य सीटों पर पड़ सकता है। गुजरात के मतदाता वर्ग में 7 फीसदी आबादी दलित समाज की है और राज्य की 182 विधानसभा सीटों में से 13 सीटें दलित मतदाताओं के लिए आरक्षित हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव में गुजरात का दलित समाज भाजपा के साथ था और पार्टी को इसका लाभ भी मिला था। भाजपा ने दलितों के लिए आरक्षित 13 में से 10 सीटों पर जीत हासिल की थी। हालाँकि मौजूदा स्थिति को देखते हुए इस बार ऐसा असंभव होता दिख रहा है। कांग्रेस ने जिग्नेश मेवानी को समर्थन दिया है और जिग्नेश ने भी जनता से भाजपा के खिलाफ वोट देने की अपील की है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस जिग्नेश के सहारे दलित समाज के वोटरों में सेंधमारी कर पाती है या नहीं।

    भाजपा के खिलाफ एकजुट हुआ गुजरात का दलित समाज

    गुजरात का मॉडल पूरे देश में विकास का पर्याय बना हुआ था पर आज उसी गुजरात में राजनीति जातीय समीकरणों के ईद-गिर्द सिमट कर रह गई है। सालों में जिस तरह से गुजरात जातीय आन्दोलनों की चपेट में आया है ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया। पाटीदार, ओबीसी और दलित आन्दोलन ने गुजरात की सत्ताधारी भाजपा सरकार की जड़ें हिलाकर रख दी हैं। दलित नेता जिग्नेश मेवानी के काफिले पर हुए हमले का जिक्र करते हुए गुजरात केंद्रीय विश्विद्यालय के प्रोफेसर जय प्रकाश प्रधान कहते हैं कि अगर यह बात वाकई में सच है तो भाजपा के लिए गुजरात बचाना बहुत मुश्किल साबित होगा। गुजरात की राजनीति में ऐसी घटनाएं कभी नहीं हुई हैं और भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना होगा।। गुजरात का दलित समाज अब जिग्नेश मेवानी की समर्थक पार्टी कांग्रेस की ओर झुकेगा।

    बसपा को भी होगा नुकसान

    इस पूरे घटनाक्रम से जिस एक अन्य पार्टी का भी सियासी गणित बिगड़ेगा वह है बसपा। बसपा जातिगत राजनीति करने वाला दल है और दलित समाज बसपा का कोर वोटबैंक है। गुजरात के मतदाता वर्ग में दलित समाज के मतदाताओं की 7 फीसदी हिस्सेदारी है जो तकरीबन 13 सीटों पर अच्छा-खासा प्रभाव रखते हैं। अब तक यह दलित मतदाता बसपा, भाजपा, कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों में बँटकर रह जाते थे पर जिग्नेश के काफिले पर हुए हमले के बाद दलित समाज में जिग्नेश मेवानी के लिए स्पष्ट तौर पर सहानुभूति देखी जा सकती है। दलित समाज के वोटर अब एकजुट होकर जिग्नेश के समर्थन वाली पार्टी के पक्ष में मतदान करेंगे और बसपा, भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। बसपा गुजरात में दलित वोटरों की बड़ी आबादी के लिहाजन आस लगाए बैठी थी पर उसकी उम्मीदें धूमिल होनी तय है।

    जिग्नेश ने किया कांग्रेस का समर्थन

    पाटीदार और ओबीसी नातों के छिटकने के बाद भाजपा आशाभरी नजरों से दलित आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे जिग्नेश मेवानी की ओर देख रही थी। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी से मुलाकात के बाद जिग्नेश मेवानी ने कांग्रेस में शामिल होने से इंकार कर दिया था। हालाँकि जिग्नेश ने कहा था कि वह सत्ताधारी भाजपा सरकार की नीतियों के खिलाफ हैं और लोगों से भाजपा को वोट ना देने की अपील करेंगे। जिग्नेश मेवानी ने कहा था कि वह कांग्रेस का समर्थन करेंगे। उम्मीदवारों के चयन पर जिग्नेश ने कहा था कि कांग्रेस को ऐसे उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारने चाहिए जिन्हें लेकर पाटीदार, ओबीसी और दलित समाज में सहमति हो। ऊना में हुए दलित आन्दोलन के बाद से गुजरात में जिग्नेश मेवानी की पहचान बनी है और दलित समाज उन्हें अपना नेता मान चुका है।

    हिंसक घटनाओं के कारण गुजरात का दलित समुदाय भाजपा से रुष्ट है। बीते दिनों सौराष्ट्र के ऊना में कथित गौरक्षकों ने दलितों की पिटाई कर दी थी। इस मामले ने आग में घी का काम किया और गुजरात का दलित समाज भाजपा के खिलाफ हो गया। पेशे से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता जिग्नेश मेवानी ने गुजरात में दलितों के इस आन्दोलन का नेतृत्व किया। ऊना में गौरक्षा के नाम पर हुई दलितों की पिटाई के खिलाफ जिग्नेश मेवानी ने आन्दोलन छेड़ा था। ‘आजादी कूच आन्दोलन’ के माध्यम से जिग्नेश मेवानी ने एक साथ 20,000 दलितों को मरे जानवर ना उठाने और मैला ना ढ़ोने की शपथ दिलाई थी। इस दलित आन्दोलन ने बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से गुजरात की भाजपा सरकार को करारा झटका दिया था। राज्य के 7 फीसदी मतदाता दलित हैं और 13 सीटों पर प्रभाव रखते हैं। इनकी नाराजगी भाजपा को भारी पड़ सकती है।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।