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    गुजरात विधानसभा चुनाव

    गुजरात में 22 सालों से सियासी वनवास झेल रही कांग्रेस सत्ता वापसी को बेहद आतुर दिख रही है। गुजरात में सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ चल रहे जातीय आन्दोलन की आड़ में कांग्रेस ने भाजपा के हिंदुत्व कार्ड के जवाब में जातीय कार्ड का दांव खेला है। अगर देश के सियासी इतिहास पर नजर डालें तो जिस-जिस जगह विपक्ष ने भाजपा के खिलाफ जातीय कार्ड खेला हैं, वहाँ भाजपा को शिकस्त हाथ लगी है। 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है जब जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस के ओबीसी-यादव-मुस्लिम समीकरण ने मोदी लहर को थाम लिया था। अब गुजरात में भी कुछ ऐसे ही आसार बनते नजर आ रहे हैं। गुजरात की सियासत के तीन महत्वपूर्ण स्तम्भ पाटीदार, ओबीसी और दलित भाजपा के खिलाफ खड़े हैं और कांग्रेस उन्हें साधने की पुरजोर कोशिश कर रही है।

    कांग्रेस के पुराने शागिर्द खोड़ाजी ठाकोर के पुत्र और ओबीसी आन्दोलन के अगुआ अल्पेश ठाकोर बकायदा कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं और कांग्रेस ने उन्हें चुनाव लड़वाने का मन भी बना लिया है। पाटीदार आन्दोलन के नेतृत्वकर्ता हार्दिक पटेल खुलकर सत्ताधारी भाजपा सरकार के खिलाफ आ चुके हैं और कह चुके हैं कि उनका लक्ष्य भाजपा को गुजरात की सत्ता से बेदखल करना है। ऊना में हुई दलितों की पिटाई के बाद हुए दलित आन्दोलन से सुर्खियों में आने वाले जिग्नेश मेवानी ने कांग्रेस में शामिल होने से इंकार कर दिया है पर वह हमेशा से ही भाजपा का विरोध करते रहे हैं। जातीय आन्दोलन से निकली यह युवा तिकड़ी गुजरात की सियासत का रुख बदलने का माद्दा रखती है और कांग्रेस इस मौके को भुनाने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है।

    हिंदुत्व बनाम जातीय कार्ड

    योगी आदित्यनाथ को गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान में उतारकर भाजपा ने अपने परंपरागत हिंदुत्व कार्ड का दांव खेला था। दरअसल योगी को चुनावी प्रचार में उतारना भाजपा की मजबूरी बन गया था क्योंकि जातीय आन्दोलनों के चलते सभी सियासी समीकरण भाजपा के खिलाफ होते जा रहे थे। कभी विकास के मुद्दे पर गुजरात में चुनाव लड़ने वाली भाजपा को कांग्रेस के जातीय कार्ड के आगे बेबस होकर हिंदुत्व का दांव चलना पड़ा था। इस जातीय असंतोष की लहर में भाजपा को सबसे अधिक नुकसान उसके परंपरागत वोटबैंक माने जाने वाले पाटीदार समाज के कटने से हुआ है। पाटीदार समाज गुजरात विधानसभा की एक तिहाई सीटों पर अपना प्रभाव रखता है। पाटीदारों के समर्थन के बगैर गुजरात में सरकार बना पाना एक कोरी कल्पना है और इस वजह से ही पाटीदारों को गुजरात का किंग मेकर कहा जाता है।

    गुजरात विधानसभा चुनाव
    हिंदुत्व बनाम जातीय कार्ड

    गुजरात एक हिन्दू आबादी बाहुल्य राज्य है। राज्य की तकरीबन 87 फीसदी आबादी हिन्दू है। ऐसे में हिंदुत्ववादी छवि वाले योगी आदित्यनाथ को चुनाव प्रचार में उतरना भाजपा के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है। पिछले कुछ वक्त से पाटीदार आन्दोलन गुजरात भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। कभी भाजपा के परंपरागत वोटबैंक रहे पाटीदार समाज ने वर्ष 2015 में आरक्षण की मांग को लेकर हार्दिक पटेल के नेतृत्व में आन्दोलन शुरू किया था। आन्दोलन शुरू होने के 26 महीनों बाद भी गुजरात सरकार नाराज पाटीदारों को मनाने में विफल रही है। हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवानी की तिकड़ी सत्ताधारी भाजपा सरकार की मुश्किलें बढ़ा रही है। ऐसे में योगी आदित्यनाथ को चुनाव प्रचार में शामिल कर भाजपा ने हिंदुत्व के मुद्दे को फिर से चुनावी एजेण्डा बनाया है।

    गुजरात का किंग मेकर है पाटीदार समाज

    गुजरात की सत्ता तक पहुँचने की अहम सीढ़ी माना जाने वाला पाटीदार समाज 80 के दशक के आखिर में भाजपा की ओर झुकने लगा था। इससे पूर्व पाटीदार कांग्रेस के समर्थक थे। पाटीदार समाज को भाजपा की तरफ मिलाने में वरिष्ठ भाजपा नेता और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने अहम भूमिका निभाई थी। 80 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के “गरीबी हटाओ” के नारे और गुजरात के जातिगत समीकरणों को को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने ‘खाम’ गठजोड़ (क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी, मुस्लिम) पर अपना ध्यान केन्द्रित कर लिया जिससे पाटीदार समाज नाराज हो गया। केशुभाई पटेल ने इन नाराज पाटीदारों को भाजपा की तरफ मिलाया। इसके बाद से पाटीदार समाज भाजपा का कोर वोटबैंक बन गया था और भाजपा की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा था।

    पाटीदार समाज सिर्फ मतदाताओं के आधार पर गुजरात में निर्णायक की भूमिका निभाते हैं यह कहना गलत होगा। गुजरात की मौजूदा भाजपा सरकार के 120 विधायकों में से 40 विधायक पाटीदार समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके अतिरिक्त गुजरात सरकार के 7 मंत्री, 6 सांसद भी पाटीदार समाज से हैं। 2015 में हार्दिक पटेल के नेतृत्व में आरक्षण की मांग को लेकर हुए पाटीदार आन्दोलन के बाद पाटीदार समाज भाजपा से नाराज चल रहा है। भाजपा नाराज पाटीदारों को मनाने का हरसंभव प्रयास कर रही है पर अब तक इसमें सफल नहीं हो पाई है। नरेंद्र मोदी के 2014 में गुजरात छोड़ने के बाद से पाटीदार समाज पर भाजपा की पकड़ ढ़ीली हो गई है। भाजपा के लाख प्रयत्न करने के बावजूद भी पाटीदार समाज के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।

    हार्दिक के 8 समर्थकों को टिकट देगी कांग्रेस

    गुजरात की सियासत में पाटीदार समाज के वर्चस्व की वजह से कांग्रेस किसी भी हालत में हार्दिक पटेल को अपने साथ रखने का प्रयत्न कर रही है। हार्दिक पटेल भले ही सक्रिय रूप से राजनीति में ना आए हो पर उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षाए किसी से छिपी नहीं है। गुजरात की सियासत में पाटीदारों का प्रभुत्व देखते हुए कांग्रेस ने पाटीदार आन्दोलन के अगुआ हार्दिक पटेल की शर्तों को मानते हुए 8 सीटों पर उनकी पसंद के उम्मीदवारों को टिकट देने का फैसला किया है। गुजरात विधानसभा की कुल 182 सीटों में से 70 सीटों पर पाटीदार समाज का प्रभुत्व है। गुजरात में कुल मतदाताओं की संख्या का पाँचवा हिस्सा पाटीदार समाज के वोटरों का है। पाटीदार समाज की नाराजगी का असर वर्ष 2015 में सौराष्ट्र में हुए जिला पंचायत चुनावों में भी देखने को मिला था जब भाजपा क्षेत्र की 11 में से 8 सीटों पर हार गई थी।

    गुजरात विधानसभा चुनाव
    हार्दिक के 8 समर्थकों को टिकट देगी कांग्रेस

    कांग्रेस के हुए अल्पेश

    जातीय आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे युवा नेताओं की तिकड़ी में से ओबीसी वर्ग के नेता अल्पेश ठाकोर ने सबसे पहले कांग्रेस का दामन थामा था। गुजरात कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी से कई मुलाकातों के बाद अल्पेश ठाकोर कांग्रेस में शामिल हुए थे। ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से अपने वफादारों के लिए 12-15 सीटें मांगी है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि अल्पेश ठाकुर के वफादारों को टिकट दिया जाएगा बशर्ते उनमें चुनाव जीतने का माद्दा हो। अल्पेश ठाकोर को संगठन में काम करने का लम्बा अनुभव है और उनकी सियासी सूझबूझ शक योग्य नहीं है। गुजरात विधानसभा की 182 में से 70 सीटों पर ओबीसी वर्ग का स्पष्ट प्रभाव है।

    गुजरात विधानसभा चुनाव
    कांग्रेस के हुए अल्पेश

    कभी शराबबंदी के लिए ‘जनता रेड’ डालने वाले अल्पेश ठाकोर आज सियासत के दांव-पेंच खेल रहे हैं। गुजरात के मतदाता वर्ग का 54 फीसदी हिस्सा ओबीसी वर्ग से आता है। अल्पेश ठाकोर गुजरात क्षत्रिय-ठाकोर सेना के अध्यक्ष हैं और ओबीसी एकता मंच के संयोजक की भूमिका में भी हैं। ओबीसी वर्ग में अल्पेश ठाकोर की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने राज्य में ओबीसी वर्ग की 146 जातियों को एकजुट किया है और उनका समर्थन हासिल किया है। चुनावों से पूर्व कांग्रेस में शामिल होकर अल्पेश ठाकोर ने भाजपा को करारा झटका दिया है और पाटीदारों के कटने से बैकफुट पर चल रही भाजपा की सियासी राह और मुश्किल कर दी है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अल्पेश ओबीसी आन्दोलन को सियासी रूप दे पाते हैं या नहीं।

    जिग्नेश परोक्ष रूप से कांग्रेस के साथ

    पाटीदार और ओबीसी नातों के छिटकने के बाद भाजपा दलित आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे जिग्नेश मेवानी की ओर देख रही थी। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी से मुलाकात के बाद जिग्नेश मेवानी ने कांग्रेस में शामिल होने से इंकार कर दिया था। हालाँकि जिग्नेश ने कहा था कि वह सत्ताधारी भाजपा सरकार की नीतियों के खिलाफ हैं और लोगों से भाजपा को वोट ना देने की अपील करेंगे। जिग्नेश मेवानी ने कहा है कि वह कांग्रेस का समर्थन करेंगे। उम्मीदवारों के चयन पर जिग्नेश ने कहा कि कांग्रेस को ऐसे उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारने चाहिए जिन्हे लेकर पाटीदार, ओबीसी और दलित समाज में सहमति हो। ऊना में हुए दलित आन्दोलन के बाद से गुजरात में जिग्नेश मेवानी की पहचान बनी है और दलित समाज उन्हें अपना नेता मान चुका है।

    गुजरात विधानसभा चुनाव
    जिग्नेश परोक्ष रूप से कांग्रेस के साथ

    लगातार हो रही हिंसक घटनाओं के कारण गुजरात का दलित समुदाय भाजपा से रुष्ट है। बीते दिनों सौराष्ट्र के ऊना में कथित गौरक्षकों ने दलितों की पिटाई कर दी थी। इस मामले ने आग में घी का काम किया और गुजरात का दलित समाज भाजपा के खिलाफ हो गया। पेशे से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता जिग्नेश मेवानी ने गुजरात में दलितों के इस आन्दोलन का नेतृत्व किया। उना में गौरक्षा के नाम पर हुई दलितों की पिटाई के खिलाफ जिग्नेश मेवानी ने आन्दोलन छेड़ा था। ‘आजादी कूच आन्दोलन’ के माध्यम से जिग्नेश मेवानी ने एक साथ 20,000 दलितों को मरे जानवर ना उठाने और मैला ना ढ़ोने की शपथ दिलाई। इस दलित आन्दोलन ने बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से गुजरात की भाजपा सरकार को करारा झटका दिया था। राज्य के 6 फीसदी मतदाता दलित हैं और 13 सीटों पर प्रभाव रखते हैं। इनकी नाराजगी भाजपा को भारी पड़ सकती है।

    भाजपा को भरी पड़ सकता है जातीय महागठबंधन

    इतिहास गवाह है कि भाजपा हमेशा से ही जातीय कार्ड के गणित में उलझ कर रह जाती है। भाजपा कभी भी जातिगत समीकरण से पार नहीं पा सकी है। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। गुजरात में कांग्रेस अगर पाटीदार, ओबीसी, दलित और मुस्लिम समुदाय को अपनी ओर मिलाकर महागठबंधन कर लेती है तो भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए यह काफी होगा। गुजरात विधानसभा की 182 में से 70 सीटों पर पाटीदारों का प्रभाव है। तकरीबन 70 सीटों पर ही ओबीसी समुदाय का प्रभाव है। मुस्लिम, दलित और आदिवासी समाज तकरीबन 30 सीटों पर अपना प्रभाव रखते हैं। ऐसे में यह सियासी गठजोड़ कांग्रेस के लिए फायदेमंद होगा और उसकी सत्ता तक पहुँचने की राह को आसान करेगा। कांग्रेस इसके काफी करीब पहुँच चुकी है और भाजपा की सियासी राह मुश्किल हो गई है।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।