गुजरात विधानसभा चुनाव में चन्द दिन शेष रह गए हैं। सत्ताधारी दल भाजपा को गुजरात की सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्रेस हर मुमकिन कोशिश कर रही है। कांग्रेस ने भाजपा सरकार के खिलाफ आन्दोलनरत जातियों को साधकर अपनी ओर मिला लिया है। दशकों बाद कांग्रेस पहली बार गुजरात में मजबूत नजर आ रही है और मुकाबला बराबरी का लग रहा है।
इसके बावजूद भी किसी को यकीन नहीं है कि कांग्रेस भाजपा के दुर्ग गुजरात में सेंधमारी कर सकेगी। इसकी वजह है गुजरात की जनता का भाजपा में दशकों का अटूट भरोसा। यह भरोसा इतना मजबूत है कि इसे डिगा पाना कांग्रेस और जातीय आन्दोलन के बूते की बात नहीं लगती। ऐसे में गुजरात की आन्दोलनरत युवा तिकड़ी चुनावी परिणाम पर कितना असर डाल पाएगी यह आने वाल वक्त ही बताएगा।
किसी भी देश, प्रदेश या क्षेत्र की प्रगति का अंदाजा इस बात से लगाया जाता है कि वहाँ औद्योगिक ढांचों, मानवीय सूचकांक, कानून व्यवस्था, इंफ्रास्ट्रक्चर और मूलभूत सुविधाओं का क्या स्तर है। इन सभी बिंदुओं पर खरा उतरने वाला दल या नेता ही जनता का प्रिय होता है। अब अगर बात गुजरात की करें तो यह राज्य देशभर के अन्य राज्यों की तुलना में इन सभी बिंदुओं में अव्वल पायदान पर खड़ा है।
गुजरात की जनता भाजपा के कार्यकाल और उसके द्वारा किए गए विकास कार्यों से खुश है। कुछ छोटे-मोटे बिंदु हैं जहाँ जनता का रुख सरकार से अलग नजर आता है। हालाँकि ऐसे लोगों की आबादी भी 10-15 फीसदी ही हैं। इनमें अधिकतर वो लोग शामिल है जो किसी बिंदु विशेष पर गुजरात सरकार या भाजपा से अलग राय रखते हैं और शेष बिंदुओं पर सरकार का समर्थन करते हैं।
इन सब बिंदुओं पर गौर किए बगैर कांग्रेस गुजरात में सत्ता का ख्वाब संजोए बैठी है। कांग्रेस शायद यह भूल चुकी है कि गुजरात में संगठन शक्ति के मामले में भी वह भाजपा के आगे कहीं नहीं टिकती। हालाँकि बीते कुछ दिनों में राज्य की जनता में कांग्रेस की पकड़ बढ़ी है पर वह इतनी भी नहीं बढ़ी कि नरेंद्र मोदी का सामना कर सके। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी की सियासी समझ एक बार फिर सवालों के घेरे में हैं।
गुजरात में भाजपा सिर्फ एक मुद्दे पर पिछड़ रही है और वह है एक सशक्त चेहरा। मुख्यमंत्री विजय रुपाणी की तुलना नरेंद्र मोदी के कद से की जा रही है जो कदापि उचित नहीं है। गुजरात की जनता आज भी नरेंद्र मोदी के साथ खड़ी है। कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी गुजरात में विकास के पागल होने की बात कर रहे हैं। इसके बाद से ही यह सवाल उठने लगा है कि क्या कांग्रेस गुजरात विधानसभा चुनाव को गंभीरता से भी ले रही है?
अगर गुजरात के कानून व्यवस्था की बात करें तो यह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से भी कोसों आगे है। अहमदाबाद में कानून व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त तो है ही साथ ही सुदूर क्षेत्रों में भी मध्यरात्रि क्ले समय महिलाओं को स्कूटी चलाते और बाहर घूमते देखा जा सकता है। यह राज्य के लोगों का प्रशासन पर भरोसा दर्शाता है। गुजरात में माँ-बाप को अपने बच्चों के घर देर से लौटने पर चिंता नहीं होती क्योंकि उन्हें सूबे की कानून व्यवस्था पर भरोसा है। अब अगर बिहार, झारखण्ड, हरियाणा, दिल्ली जैसे राज्यों से तुलना करेंगे तो गुजरात के भाजपा राज को रामराज ही कहेंगे।
अगर कोई भाजपाई यह कहे कि गुजरात में गरीबी नहीं है तो यह गलत होगा। व्यवस्था और अव्यवस्था समाज का हिस्सा है और सफल सरकार वही होती है जो इनमें संतुलन स्थापित कर सके। नरेंद्र मोदी के बतौर मुख्यमंत्री 13 सालों के कार्यकाल के दौरान गुजरात में किसानों के हित में कई कार्य हुए हैं। इनमें सौराष्ट्र क्षेत्र के किसानों के हित के लिए सरदार सरोवर बाँध की ऊँचाई बढ़ाना भी शामिल है। नर्मदा नहर का निर्माण भाजपा सरकार की प्रमुख उपलब्धियों में से एक है।
आर्थिक रूप से पिछड़े किसानों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए भाजपा सरकार ने जमीनी स्तर पर काफी मेहनत की है और गुजरात में यह नजर भी आता है। अपने कार्यकाल के दौरान भाजपा सरकार ने बिजली, सिंचाई जैसी मूलभूत कृषि सुविधाएं किसानों को मुहैया कराने की हरसंभव कोशिश की है। गुजरात अक्सर बाढ़ और भूकंप जैसे प्राकृतिक आपदाओं से जूझता रहता है और यहाँ की जनता इनसे लड़कर जीना सीख रही है। व्यवस्था के बदलाव में वक्त लगता है और भाजपा सरकार इसकी शुरुआत कर चुकी है।
गुजरात में निवास करने वाला आदिवासी समाज कांग्रेस का पुराना साथी है। गुजरात में तकरीबन 26 सीटें आदिवासी बाहुल्य हैं और भाजपा के लिए यहाँ जीत हासिल करना हमेशा से ही मुश्किल रहा है। भाजपा आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों के विकास के लिए काफी कार्य कर रही है पर आदिवासी अपनी पारम्परिक जीवनशैली छोड़ने को तैयार नहीं है। इस वजह से इन क्षेत्रों में विकास की रफ्तार थोड़ी सुस्त है। इन्हें मुख्यधारा में लाने में थोड़ा वक्त लग सकता है जिसे कम करने के लिए भाजपा सरकार लगातार प्रयत्न कर रही है।
गुजरात में कांग्रेस सत्ताधारी दल भाजपा को घेरने के लिए विकास का मुद्दा उठा रही है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी समेत गुजरात कांग्रेस के सभी नेता अपनी चुनावी जनसभाओं में यह कहते फिर रहे हैं कि विकास पागल हो गया है। कांग्रेस के तुरुप के इक्के बने हार्दिक पटेल भी विकास को पागल बताकर खूब तालियां बटोर रहे हैं। इन सभी को शायद यह नहीं पता कि विकास के अमूमन हर पैमाने पर गुजरात आज भी देश के बाकी राज्यों से मीलों आगे हैं। ऐसे में उनका यह दांव उल्टा पड़ता नजर आ रहा है।
गुजरात में जो एक दांव कांग्रेस के लिए फिट बैठा था वह था उसका जातीय कार्ड। कांग्रेस शुरुआत से गुजरात में सियासत का आधार तलाश रही थी। राज्यसभ चुनावों में अहमद पटेल को मिली जीत के बाद गुजरात कांग्रेस के हौसले बुलंद हो गए और उसने भाजपा के परंपरागत वोटबैंक पाटीदार समाज को अपनी ओर मिलाना शुरू कर दिया। यह पाटीदार समाज कभी कांग्रेस का वफादार हुआ करता था लेकिन 80 के दशक में कांग्रेस के खाम समीकरण से नाराज होकर भाजपा से आ मिला था।
पाटीदार आन्दोलन के अगुआ 23 वर्षीय युवा हार्दिक पटेल हैं। हार्दिक पटेल की रैलियों में काफी भीड़ देखने को मिली है और पाटीदार समाज में उनकी लोकप्रियता से किसी को इंकार नहीं है। लेकिन आन्दोलन के लिए एकत्र भीड़ को मतदान स्थल तक लाना हर किसी के बूते की बात नहीं होती। अगर ऐसा होता तो शायद मेधा पाटेकर देश की सर्वाधिक मतों से जीतने वाली प्रत्याशी होती और वाराणसी से पीएम मोदी की जगह केजरीवाल सांसद होते। गुजरात की जमीनी हकीकत जाने बिना दिल्ली में बैठे-बैठे राजनीतिक विश्लेषक और सियासी पण्डित पाटीदार समाज के भाजपा के खिलाफ होने की बात कर रहे हैं।
हार्दिक और कांग्रेस शायद यह बात भूल रहे हैं कि 2012 में भी एक अनुभवी पाटीदार नेता और राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके सियासी दिग्गज केशुभाई पटेल ने पाटीदारों को भाजपा के खिलाफ करने की कोशिश की थी। नतीजन उनकी पार्टी महज 3 सीटों पर सिमट गई थी। केशुभाई गुजरात के जाने-माने पाटीदार नेता हैं और पाटीदार समाज को भाजपा की ओर मिलाने में उनकी मुख्य भूमिका रही थी। इसके बावजूद उनका हश्र सबने देखा और अब हार्दिक पटेल वही गलती दोहरा रहे हैं।
गुजरात का पाटीदार समाज पिछले 2 दशकों से भाजपा के साथ है। पाटीदारों को भाजपा की ओर मिलाने का श्रेय भले ही केशुभाई पटेल को जाता हो पर पाटीदारों को बाँध कर रखने का काम नरेन्द्र मोदी ने किया। अपने 13 वर्षों के मुख्यमंत्री कार्यकाल में नरेन्द्र मोदी ने पाटीदारों को गुजरात सरकार में अहम पदों पर रखा और पाटीदार समाज में भाजपा की पकड़ मजबूत की। पाटीदार समाज आज भी नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर भाजपा के साथ खड़ा नजर आएगा पर कांग्रेस और हार्दिक को यह नजर नहीं आ रहा है।
गुजरात में ओबीसी समाज सबसे बड़ा मतदाता वर्ग है और इसकी भागीदारी 54 फीसदी है। गुजरात विधानसभा की तकरीबन 70 सीटों पर ओबीसी मतदाताओं का बड़ा जनाधार मौजूद है जो चुनाव परिणाम पलटने का माद्दा रखता है। ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं और कांग्रेस इस वजह से काफी आशान्वित नजर आ रही है। यह बिल्कुल वैसी ही बात है जैसे रामू काका का बेटा छोटू घर का दरबान बन गया हो। अल्पेश ठाकोर के पिता खोड़ाजी ठाकोर कांग्रेस के पुराने शागिर्द रह चुके हैं और ऐसे में उनका कांग्रेस के साथ जाना स्वाभाविक है।
गुजरात का किंग मेकर होने का दावा करने वाले अल्पेश ठाकोर को ओबीसी वर्ग की 146 जातियों का समर्थन हासिल है। अल्पेश कांग्रेस के स्टार प्रचारक बन चुके हैं और चुनाव भी लड़ रहे हैं। आज के दौर में जब एक ही घर में 4 पार्टियों के प्रचारक और मतदाता मिल जाते हैं ऐसे में जातीय नेताओं के आह्वान का गुजरात की जनता पर कितना असर होगा, यह कहना जरा मुश्किल है।
दलित नेता जिग्नेश मेवानी ने कांग्रेस को प्रत्यक्ष रूप से समर्थन नहीं दिया है पर कांग्रेस उनका समर्थन कर रही है। जिग्नेश निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं और कांग्रेस ने उस सीट से अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है। गुजरात विधानसभा की 13 सीटों पर दलित मतदातों का जनाधार है। ऐसे में जिग्नेश मेवानी कितना फर्क डाल पाते हैं यह देखना दिलचस्प होगा।
गुजरात में भाजपा ने पिछले 22 सालों में अपना जनाधार इतना मजबूत कर लिया है कि उसमे सेंध लगा पाना कांग्रेस के लिए नामुमकिन सा नजर आ रहा है। कांग्रेस के लिए यही बेहतर होगा कि वह ख्वाबों से निकल कर हकीकत की दुनिया में आए और गुजरात की जमीनी हकीकत को समझे। गुजराती आदमी बहुत ही चालाक होता है और बिना जाँच-परख के वह कुछ नहीं लेता। नरेन्द्र मोदी की भाजपा को गुजरात ने पिछले 22 सालों से देखा है। गुजरात की जनता को यकीन है कि भाजपा राज्य में अपने विकास के एजेण्डे पर कायम रहेगी और गुजरात समृद्धि के पथ पर बढ़ता रहेगा।