Sun. Apr 28th, 2024
    किन्नर समाज

    लोकतंत्र शासन का वो तरीका माना जाता है, जहां सरकार जनता चुनती है। जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को ही शासन करने का अधिकार होता है। लेकिन तब क्या हो अगर आबादी का एक हिस्सा मत देने से ही वंचित रह जाए? तब क्या हो जब आबादी के एक हिस्से को मत देने का अधिकार ही ना मिले? उसके पसंद और न पसंद का ख्याल चुनाव में ना रखा जाए? तब क्या हो जब चुनाव के वादों और दावों में उनके मुद्दे तो दूर उनके नाम की भी चर्चा ना हो? कोई भी नेता या पार्टी उनके हकों की बात न करे?

    जी हां, हम बात कर रहे है किन्नर समाज की। समाज से अलग लेकिन समाज के ही अभिन्न अंग किन्नर इस विधानसभा चुनाव में मत डालने से वंचित रह जाएंगे। ऐसा इसलिए होगा क्यूंकि किन्नोरों के पास वोटर कार्ड नहीं हैं। यह मुद्दा इसलिए भी गंभीर है क्यूंकि अब तक किसी ने इनकी मदद करनी तो दूर इस मुद्दे को उठाना भी जरूरी नहीं समझा है।

    गौरतलब है कि वोटर कार्ड में किन्नरों का कोई अस्तित्व नहीं है। यहां पर जेंडर वाले कॉलम के अंतर्गत कार्ड पर सिर्फ पुरुष और महिला का विकल्प है, जिससे बड़ी संख्या में किन्नर आबादी मत देने के अधिकार से वंचित हो रहे है।

    सूरत में रहने वाले किन्नर पायल के अनुसार वो इस समाज से इकलौती है जिसे मत देने का अधिकार तो है, लेकिन खुद की पहचान को भुला कर। उन्होने बताया कि उनके कार्ड पर जेंडर वाले कॉलम में महिला लिखा हुआ है, जिससे उनको ऐतराज है।

    किन्नरों की यह समस्या सिर्फ वोटर कार्ड से संबंधित नहीं है, बल्कि यह बात उनके अपने अस्तित्व की पहचान की है। उल्लेखनीय है कि वोटर कार्ड सिर्फ मत देने के काम नहीं आता, बल्कि ये तमाम सरकारी और गैर सरकारी कामों, योजनाओं और परियोजनाओं में काम आता है। ऐसे में अगर वोटर कार्ड न होने पर यह आबादी तमाम सरकारी और गैर सरकारी योजनाओं से वंचित रह जाएगी तो सरकार भला किस प्रकार ‘सबका साथ सबका विकास’ के दावे करेगी?

    कोई भी सरकार अगर आबादी के एक हिस्से को मत देने के अधिकार से दरकिनार करके चुनी जाए तो क्या उसे लोकतंत्रिक सरकार कहा जा सकता है? किन्नर हमारे ही समाज के अंग है। समाज में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इनका प्रभाव देखने को मिलता है।

    भारत की महान संस्कृति और सभ्यता में किन्नरों का वर्णन मिलता है। इनका अस्तित्व भारत की प्राचीन इतिहास से लेकर अतीत के हर काल में रहा है उसके बावजूद इस समाज को अपने पहचान और अपने अधिकार के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। पुरे हिन्दुस्तान में 2012 के आंकड़ों के अनुसार 490,000 किन्नर है।