10 वर्षों तक केंद्र की सत्ता से दूर रहने के बाद भाजपा ने 2014 में सत्ता वापसी की थी। भाजपा ने 282 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया था और बीते 2 दशक में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आने वाली पहली पार्टी बनी थी। देश के राजनीतिक इतिहास में यह पहला मौका था जब किसी गैर कांग्रेसी दल ने बहुमत के साथ केंद्र में सरकार बनाई थी। लोकसभा चुनावों में मिली ऐतिहासिक जीत के बाद से भाजपा देश के सियासी फलक पर छा सी गई। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनाने के बाद भाजपा की कमान उनके विश्वासपात्र अमित शाह के हाथों में आ गई और मोदी-शाह की करिश्माई जोड़ी ने भाजपा की जीत के ग्राफ को बढ़ा दिया। एक-एक कर भाजपा सभी राज्यों में सियासी फतह हासिल करने लगी और सभी विरोधी दल धराशायी होते गए।
कई राज्यों में भाजपा ने सरकार बनाने के लिए साम, दाम, दण्ड और भेद के सभी मुमकिन तरीके अपनाए। गोवा और मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी ना होने के बावजूद भाजपा ने सियासी दांव-पेंच लगाकर सरकार बना ली। आज देश के 30 राज्यों में से 18 राज्यों में भाजपा और सहयोगी दलों की सरकार है। देश को भगवामय करने का नरेंद्र मोदी का सपना सच होता दिख रहा है। 2014 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के भ्रष्टराज से आजिज आकर लोगों ने भाजपा को चुना था और नरेंद्र मोदी ने उन्हें साफ-सुथरी सरकार देने का वादा किया था। पर हालिया कुछ समय में भाजपा में जिस तरह से अन्य पार्टियों के भ्रष्ट छवि वाले नेता लगातार शामिल होते जा रहे हैं उसने भाजपा की विचारधारा पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं।
मुकुल रॉय ने थामा भाजपा का हाथ
पश्चिम बंगाल में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश में लगी भाजपा ने हालिया निकाय चुनावों में काफी अच्छा प्रदर्शन किया था। भाजपा सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के बाद राज्य का दूसरे सबसे बड़ा दल बनकर उभरी थी। इससे पूर्व 2014 लोकसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल में भाजपा के मत प्रतिशत में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी दर्ज की गई थी। भाजपा को हिंदी भाषी आबादी वाली आसनसोल संसदीय सीट पर जीत भी हाथ लगी थी। इसके बाद से ही भाजपा ने पश्चिम बंगाल में अपने पाँव पसारना शुरू किया था और आज वह राज्य का प्रमुख विपक्षी दल बन चुका है। भाजपा का लक्ष्य आगामी विधानसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल का प्रमुख विपक्षी दल बनना है। इसके लिए भाजपा कार्यकर्ता जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं और आलाकमान अन्य सियासी समीकरणों को साधने में लगा हुआ है।
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बीते दिनों तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मुकुल रॉय ने भाजपा का दामन थामा। ममता बनर्जी के विश्वासपात्र रहे मुकुल रॉय एक वक्त में तृणमूल कांग्रेस में नंबर-2 की हैसियत रखते थे। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में मुकुल रॉय रेल मंत्री का पद सुशोभित कर चुके हैं। ममता बनर्जी जब दिल्ली में केंद्र की राजनीति छोड़कर पश्चिम बंगाल की सत्ता सँभालने जा रही थी तो उन्होंने अपने विश्वासपात्र मुकुल रॉय को रेल मंत्रालय का कार्यभार सौंपा था। बीते कुछ समय से मुकुल रॉय और ममता बनर्जी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा था। मुकुल रॉय ने नवरात्रि के दौरान ही तृणमूल कांग्रेस छोड़ने की घोषण कर दी थी जिसके कुछ घंटे बाद ही उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। मुकुल रॉय की छवि एक साफ-सुथरे नेता की नहीं है और उनपर भ्रष्टाचार के कई मामलों में लिप्तता का अंदेशा है।
शारदा चिट फण्ड के मामले में सीबीआई मुकुल रॉय से पूछताछ कर चुकी है और नारदा स्टिंग मामले में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज है। ऐसे में यह बात समझ से परे है कि पश्चिम बंगाल में जाकर शारदा चिट फण्ड के नाम पर तृणमूल सरकार पर तंज कसने वाले भाजपा नेताओं ने मुकुल रॉय से हाथ मिलाने के बारे में सोच कैसे लिया। मुकुल रॉय बीते काफी समय से पश्चिम बंगाल की राजनीति में सक्रिय हैं और निश्चित तौर पर जनता में उनकी पकड़ का लाभ भाजपा को आगामी चुनावों में मिलेगा। पर क्या सत्ता के लालच में भाजपा अपने उसी सिद्धांत से समझौता कर लेगी जिसके दम पर वह पुनः सत्ता में आई है? या भगवा रंग ओढ़ते ही मुकुल रॉय के ऊपर लगे भ्रष्टाचार के काले दाग धूल गए हैं? भाजपा हमेशा से यह दावा करती आई है कि भ्रष्टाचार के मामले पर वह अन्य दलों से अलग है। तो क्या मुकुल रॉय को अपनाना ही भाजपा के इस दावे की हकीकत है?
हिमाचल में बने बिगड़े काम, भाजपा को मिले सुख’राम’
हिमाचल प्रदेश में चुनावों से ऐन पहले पूर्व कांग्रेसी दिग्गज सुखराम अपने बेटे अनिल शर्मा के साथ भाजपा में शामिल हो गए। अनिल शर्मा हिमाचल की मौजूदा वीरभद्र सिंह सरकार में शिक्षा मंत्री रह चुके हैं। अनिल शर्मा ने कांग्रेस आलाकमान पर आरोप लगाया था कि उनके पिता सुखराम और उनको कांग्रेस में वह भूमिका और सम्मान नहीं मिल रहा जिसके वो हकदार हैं। उन्होंने कांग्रेस पर राहुल गाँधी की मण्डी रैली के दौरान पिता सुखराम को सम्मान ना देने का आरोप लगाया। अगर अनिल शर्मा की बात करें तो उनकी छवि साफ-सुथरी है और हिमाचल प्रदेश के बदलते सियासी रुख को भांपकर उन्होंने भाजपा का दामन थामा है। उन्हें हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के आसार नजर नहीं आ रहे थे और ऐन वक्त में पाला बदलकर उन्होंने अपना भविष्य सुरक्षित कर लिया है।
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अब बात करते हैं सुखराम की। दिग्गज कांग्रेसी रहे सुखराम का मण्डी जिले ही नहीं वरन पूरे संसदीय क्षेत्र में दबदबा है। मण्डी हिमाचल प्रदेश की सियासत में अहम भूमिका निभाती है और क्षेत्र की तकरीबन 12-15 सीटों पर सुखराम का प्रभाव रहता है। इस वजह से सुखराम को कांग्रेस में हिमाचल का ‘किंग मेकर’ कहा जाता था। सुखराम कांग्रेस के लोकप्रिय नेता रहे हैं और केंद्रीय दूरसंचार मंत्री भी रह चुके हैं। उस वक्त केंद्र में नरसिम्हा राव के नेतृत्व की सरकार थी और कार्यकाल के दौरान सुखराम पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगा था। सुखराम से मंत्रालय छीनकर उन्हें तुरंत ही पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। हिमाचल चुनाव के वक्त भाजपा ने अपने दरवाजे उनके लिए खोलकर अपनी सियासी राह तो आसान कर ली पर भाजपा की विचारधारा एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई। क्या भाजपा सत्ता के मोह में इतनी अंधी हो चुकी है कि उसे अपनी राह दिखाई नहीं दे रही या फिर ये सुख’राम’ का प्रताप है?
महाराष्ट्र में राणे थाम सकते हैं दामन
पश्चिम बंगाल और हिमाचल प्रदेश की तरह महाराष्ट्र में भी भाजपा की ‘स्वच्छ छवि’ धूमिल होने की कगार पर है। खबर आ रही है कि हाल ही में महाराष्ट्र कांग्रेस से अलग हुए राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे भाजपा का दामन थाम सकते हैं। इस तरह की सियासी उछल-कूद मचाना राणे के लिए कोई नई बात नहीं है और इससे पूर्व भी वह शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में जा चुके हैं। राणे के आने से भाजपा को महारष्ट्र में कोंकण क्षेत्र में थोड़ी मजबूती मिलेगी। हालांकि राणे ने महाराष्ट्र स्वाभिमान पार्टी के नाम से अपना नया दाल शुरू किया है पर उनका रुख लगतार भाजपा की तरफ झुक रहा है। मुमकिन है आने वाले कुछ दिनों में राणे भाजपा के सहयोगी बन जाए या अपनी पार्टी का भाजपा में विलय कर दें।
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महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी शिवसेना सहयोगी कम विपक्ष की भूमिका ज्यादा निभाती नजर आई है। अरसों बाद महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना ने एक-दूसरे का आमना-सामना किया था जिसमें बाजी भाजपा के हाथ लगी थी। भाजपा को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुआ था और शिवसेना ने सरकार बनाने में भाजपा का साथ दिया था। बीते कुछ समय में भाजपा और शिवसेना में लगातार मतभेद उभरकर सामने आ रहे हैं और शिवसेना के नेता भाजपा की आलोचना करने में लगे हुए हैं। ऐसे में राणे का साथ भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकता है। महाराष्ट्र के कोंकण और तटीय क्षेत्रों में राणे की अच्छी पकड़ है जो भाजपा के लिए सियासी राह आसान बनाएगी। हालाँकि भाजपा को फायदे का सौदा नजर आ रहे राणे भी दूध के धुले नहीं है। राणे का नाम आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटालों में सामने आ चुका है जिसे लेकर महाराष्ट्र की सियासत काफी गरमा गई थी। ऐसे में उनके साथ आना भाजपा की छवि बिगाड़ सकता है।
भाजपा का हो रहा कांग्रेसीकरण
वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई इस मुद्दे को उठाते हुए लिखते हैं, “नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा की हालत आज वही है जो इंदिरा गाँधी के राज में कांग्रेस की थी। उस वक्त हर कोई कांग्रेस में शामिल हो रहा था और आज हर कोई भाजपा का दामन थाम रहा है। कई राज्यों में सबसे बड़ा दल ना होने के बावजूद भी भाजपा ने सियासी गठजोड़ कर सरकार बनाई। पश्चिम बंगाल पर भाजपा पैनी नजर गड़ाए हुए है और तमिलनाडु में भी पार्टी ने सारे विल्कल्प खुले रखे हैं। देश को भगवामय करने के लिए भाजपा अपने सत्ताधारी होने के रसूख का इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकिचाएगी। भाजपा भारत की राजनीति पर एकाधिकार करना चाहती है जैसा इंदिरा गाँधी के शासनकाल में कांग्रेस ने किया था। पार्टी में बाहरी व्यक्तियों की लगातार बढ़ रही संख्या से विचारधाराओं और हितों में टकराव की सम्भावना बढ़ जाती है। भाजपा का पारम्परिक वोटबैंक उससे कट रहा है।”
मंजिल तक कैसे पहुँचेगी भाजपा?
जब अरविन्द केजरीवाल का झाड़ू भ्रष्टाचार की सफाई करने में नाकाम रहा तो नरेंद्र मोदी ने दिल्ली से ‘स्वच्छ छवि’ एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाई। लोको पायलट अमित शाह का दावा था कि भाजपा के इस नॉन स्टॉप मिशन से देशभर के भ्रष्टाचारियों की शामत आ जाएगी। खुफिया सूत्रों से पता चला है कि उन्होंने भ्रष्टाचारियों को पिछले दरवाजे से टिकट लेकर अंदर आने की अनुमति भी दी थी। और अब हालत यह है कि भाजपा की यह नॉन स्टॉप ट्रेन हर चुनावी राज्य में रुक रही है और थोक के भाव से भ्रष्ट यात्री इसमें सवार होते जा रहे हैं। भाजपा अपनी विचारधारा से अलग पटरी पर जा रही है और उसका पारम्परिक वोटबैंक उससे कट रहा है। भ्रष्ट सवारियों से भरी भाजपा की यह गाड़ी अब बिना स्टेशन भी रुक रही है और बात-बेबात इसमें चेन पुलिंग भी हो रही है। ऐसे में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा देश को जिस मंजिल पर ले जाने का सपना संजोये थी पता नहीं हम वहाँ कितनी देर से पहुँचेंगे। ये भी मुमकिन है कि ‘टेक्निकल’ कारणों से भाजपा की इस ट्रेन का इंजन बीच रास्ते में ही फेल हो जाए।