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    Agnipath Recruitment Scheme: 14 जून को सरकार द्वारा सेना में भर्ती के लिए घोषित नई स्कीम “अग्निपथ (Agnipath)” का विरोध देश भर के विभिन्न हिस्सों से सामने आ रहा है। बिहार से शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान , उत्तराखंड आदि राज्यों तक पहुंच गया।

    आक्रोशित युवाओं ने जगह जगह धरना प्रदर्शन किए जबकि कुछ जगहों पर सड़को पर आगजनी व ट्रेनों में आग लगाने आदि जैसी उपद्रवी गतिविधियां भी सामने आई है।

    अग्निपथ भर्ती योजना का विरोध
    “अग्निपथ” के विरोध में बिहार में प्रदर्शनकारियों ने ट्रेनों में आग लगा दिया। (तस्वीर: News Jani)

    सबसे ज्यादा उग्र प्रदर्शन बिहार के विभिन्न हिस्सों से सामने आए हैं जहाँ छपरा, भभुआ (कैमूर), सहरसा, आरा आदि जगहों पर ट्रेनों को निशाना बनाया गया। वहीं अन्य हिस्सों में भी सड़कों पर आगजनी की खबर सामने आई है।

    बिहार से सटे उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में भी प्रदर्शन हुए हैं और “अग्निपथ” के विरोध की आग धीरे धीरे उन्नाव बुलंदशहर आदि जगहों पर भी दिखा जहाँ युवा इस योजना के विरोध में सड़कों पर उतर आए।

    अब इन प्रदर्शनों के बीच दो ही वजह हो सकती हैं। पहला, केंद्र सरकार की ओर से शायद संवाद की कमी रह गई जिसके कारण युवाओं को इस योजना के लाभ नहीं समझा पा रही है। दूसरा, देश के युवा “अग्निपथ स्कीम” को समझ चुके हैं और इसके दूरगामी परिणाम को लेकर आशंकित हैं और सरकार के आश्वासनों पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं।

    “अग्निपथ” का विरोध : संवाद की कमी?

    14 जून को केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने तीनों सेनाओं के प्रमुखों की उपस्थिति में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस योजना की घोषणा करते हैं। (विस्तृत जानकारी के लिए The Indian Wire Hindi के रिपोर्ट देख सकते हैं)

    फिर पूरा रक्षा विभाग और मंत्री से लेकर विधायक तक- यानि सरकारी महकमा इस “अग्निपथ” योजना के लाभ को समझाने में जुट जाता है। रक्षा मंत्रालय द्वारा कई ग्राफिक्स और सेना के अधिकारियों के बयान का उपयोग इसके फायदे गिनाने के लिए किया जाता है।

    मीडिया का एक तंत्र भी शिवलिंग या फव्वारा, औरंगजेब या पृथ्वीराज, अल्लाह का अपमान या शिव की अराधना… दाढ़ी या तिलक… आदि जैसे फालतू के मुद्दों को डस्टबिन में डालकर अग्निपथ और अग्निवीरों के भविष्य को उज्ज्वल बताने में लग जाता है।

    आपको बता दें इन मीडिया संस्थानों को युवाओं की यह समस्या, तब समस्या नहीं लगी जब नागपुर से चला युवाओं का जत्था पूर्व में हुई सेना के बहाली को पूरा करने की मांग को लेकर पैदल ही दिल्ली तक कूच करता रहा।  लेकिन जैसे ही सरकार ने “अग्निपथ” की घोषणा की, यही मीडिया संस्थान बढ़ चढ़कर इसे मास्टरस्ट्रोक साबित करने में लग गया।

    लगे हाँथ कई राज्यों के मुख्यमंत्री व गृह मंत्रालय ने अग्निवीरों को भविष्य में राज्यों के भीतर आने वाली बहालियों में रियायतें देने की घोषणा कर देती है। अव्वल ये कि उन्हें खुद नहीं पता कि जब अग्निवीरों की पहली फ़ौज 4 साल की सेवा के बाद समाज में वापस आएगी तो उनकी  सरकार रहेगी या जाएगी।

    पर इन सब का परिणाम हुआ- वही ढाक के तीन पात ! सारी जद्दोजहद के बाद आर्मी में जाने का ख्वाब पाल रहे भारत के सुदूर इलाकों के युवाओं को सरकार और उनके नुमाइंदों के संवाद और बताए फायदे समझ नही आये।

    नतीजतन, ये युवा सड़कों पर उतरकर इस स्कीम का विरोध कर रहे हैं। कई जगहों पर यह भीड़ उग्र आंदोलन कर रही है, कहीं शांति से लोकतांत्रिक तरीके से धरना प्रदर्शन कर रहे हैं।

    “अग्निपथ” योजना का विरोध: भरोसे की भी कमी?

    जरा सोचकर देखिये ये युवाओं को अचानक क्या हो गया कि जो सेना-भर्ती के लिए आंदोलन कर रहे थे वही अब सरकार द्वारा सेना-भर्ती से जुड़ी “अग्निपथ स्कीम” का विरोध करने लगे?

    दूसरी बात, आखिर इस मोदी2.0 की सरकार में ऐसा क्या है कि CAA, NRC, Farm Laws, या अभी का अग्निपथ… तमाम ऐसे बिलों या योजनाओं का विरोध हो रहा है?

    दरअसल कहीं ना कहीं इस सरकार पर और इसके तौर तरीकों पर जनता के बीच के एक बड़े तबके में भरोसे की कमी है। इसके पीछे की वजह है विरोध की आवाज को तरजीह ना दिया जाना। इसे कभी धर्म का जामा पहना दिया जाता है चाहे असामाजिक तत्व और देशद्रोही खालिस्तानी जैसे उपमा-उपमेय से नवाजा जाता है।

    यह भी एक बड़ी वजह है कि इस सरकार (मोदी2.0) के हर फैसले पर यकीन करने वालों की संख्या लगातार घटती जा रही है।
    अभी अग्निपथ के विरोध की बात करें तो सीधी बात यह है कि देश इस वक़्त बेरोजगारी के बुरे दौर से गुजर रहा है।

    भारत के माध्यम वर्गीय परिवार में सेना की बहाली बहुत मायने रखती है। खासकर ग्रामीण इलाकों मे किसान या अन्य मध्यम वर्गीय परिवार के बेटों के लिए सेना-भर्ती जीविका और सोशल स्टेटस के साथ पूरे परिवार के अच्छे जीवन-यापन के लिए बड़ी उम्मीद होती है।

    पिछले लगभग 2 साल से सैन्य-भर्तीयां हुई नहीं थी। इस से युवाओं की एक बड़ी संख्या गाँव के सड़को पर शारीरिक तैयारी करते करते ही बूढ़ी हो गयी। अब जब भर्ती की नई प्रणाली लेकर सरकार आयी भी तो देर आये दुरुस्त आये की उम्मीद थी; लेकिन इन युवाओं को 4 साल के कॉन्ट्रैक्ट वाला फार्मूला हज़म नहीं हुआ।

    अब इसके पक्ष या विपक्ष में तर्क हो।सकते हैं पर युवाओं के मन मे जो गुस्सा है, वह इन्हीं बातों का नतीजा है। सरकार लाख समझाने की कोशिश कर रही है कि 4 साल बाद 75% युवाओं के भविष्य का रोडमैप तैयार है लेकिन सवाल है कि भरोसा हो तब ना कोई माने…

    कहीं किसान कानून न बन जाये ‘अग्निपथ” प्रणाली

    अगर कृषि कानून और अग्निपथ प्रणाली की घोषणा और विरोध को समानांतर रखी जाए तो एक पैटर्न झलकता है। पहले सरकार इनकी घोषणा करती है फिर उसका मुखर विरोध होता है। सरकार और उनका पूरा तंत्र भांति भांति के तौर तरीकों से जनता को यह बात समझाने की कोशिश करती है। आंदोलन दिन व दिन तेज होता है… अंत में सरकार को झुकना पड़ता है और कानूनों को वापिस लेना पड़ा।

    हालांकि अभी अग्निपथ प्रणाली की शुरुआत मात्र है। इसलिए यह कहना अनुचित होगा कि इसे भी किसान कानून के तरह उस हद्द तक चुनौती मिलेगी कि सरकार को आंदोलनकारियों के आगे झुकना पड़े और कानून वापिस लेना पड़े।  लेकिन एक समरूपता तो जाहिर तौर पर दृषिगत है।

    क्या पुरानी गलती दुहरा रही है मोदी2.0 सरकार?

    "अग्निपथ" स्कीम की घोषणा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व तीनों सेना प्रमुख
    “अग्निपथ” स्कीम की घोषणा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व तीनों सेना प्रमुख (Image: Twitter)

    मेरी नज़र में अग्निपथ प्रणाली को लेकर अभी तक के लिहाज़ से मोदी2.0 सरकार पुरानी गलती दुहरा रही है। पुरानी गलती इस अर्थ में कि क्या इस प्रणाली को लागू करने के पहले जिन लोगों के लिए यह प्रणाली लागू है उनसे वास्तविक संवाद किया गया है?

    अगर हाँ तो किसने किया है? क्या कोई कमिटी बनाई गई थी? उसके क्या सुझाव थे? सरकार को या रक्षा मंत्री को यह सब सार्वजनिक करना चाहिए। और अगर यह सब नहीं किया गया तो किसान बिल बनाने से लेकर आंदोलन और फिर कानूनों को वापिस लेने के अनुभव से कोई सीख क्यों नहीं ली गई?

    यह सरकार शायद यहीं गलती करती है कि प्रणाली की घोषणा के बाद संवाद करती है, जबकि उसे यह सब पहले करना चाहिए फिर उसके आधार पर कानून या कोई सुधार करने वाली घोषणा करे।

    यह सच है कि इतने बड़े देश मे हर फैसले जनता के मिज़ाज पूछकर लेना संभव नहीं है पर जब बात युवाओं या किसानों से या किसी भी बड़े वर्ग से जुड़ी हो तो एक पब्लिक सर्वे ज्यादा बेहतर विकल्प हो सकता है। इस से सरकार बेहतर योजना भी बना पाएगी और बाद के फजीहत से भी बच सकेगी।

    फ़िलहाल, इस योजना से जुड़े कई सवाल या भ्रम आने वाले दिनों में दूर होंगे लेकिन सबसे जरूरी ये कि सड़कों पर उतरे युवाओं की आवाज़ को सरकार सुने और सही संवाद स्थापित करे। साथ ही इन भविष्य के अग्निवीरों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि प्रदर्शन उग्र ना होकर शांतिप्रिय हो।

    ध्यान रहे यह गांधी के देश है जहाँ सत्याग्रह से अंग्रेजी हुकूमत जैसे निरंकुश तंत्र को भी झुकना पड़ता है। फिर यह सरकार तो देश की जनता की ही चुनी हुई सरकार है। किसी ट्रेन में लगी आग की लपटें हमारे आपके टैक्स के पैसे ही जलाती हैं, किसी सरकार में बैठे लोगों की निजी पैसे नहीं।

    यह भी पढ़ें: https://hindi.theindianwire.com/agnipath-recruitment-scheme-240356/

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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