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    Flood in Assam

    मेघालय व असम में बाढ़ और भूस्खलन

    दृश्य 1: खूबसूरत पहाड़ो के बीच बनी वादियों में एक छोटी बस्ती… बस्ती में लकड़ी से बने कुछ कच्चे मकान हैं… उन्हीं में से एक मकान मे एक माँ अपने दो बच्चों के साथ है और घर के बाहर मूसलाधार बारिश हो रही है।

    बच्चों को भूख लगती है…माँ उन्हें बेडरूम में खेलने भेज देती है.. ताकि वह भूखे बच्चों के लिए रसोईघर में जाकर खाना बना सके…. बच्चे माँ के साथ-साथ खाने का इंतजार कर रहे हैं और इधर अचानक कुदरत अपना कहर बरपाता है…

    भारी बारिश और भूस्खलन के कारण इस घर का एक हिस्सा बह जाता है…यह हिस्सा उस घर के रसोई वाला भाग है जिसे बारिश के कारण तेज रफ्तार धारा अपने साथ बहा ले जाती है और मलवे के साथ बह जाती है वह माँ भी…

    मेघालय में भूस्खलन से तबाही
    मेघालय में भूस्खलन से तबाही का एक मंजर (तस्वीर साभार : India TV News)

    दृश्य2 : देश का सबसे बड़ा नेता प्रधानमंत्री मोदी जी इसी दिन अपनी माँ के साथ अपनी माता जी के 100 साल पूरे होने पर आशीर्वाद लेने जाते हैं। तस्वीरें खिंची जाती हैं और फिर समाचार चैनलों और सोशल मीडिया पर इसे खूब दिखाया जाता है। लोग बधाईयाँ देने के साथ-साथ बड़ी बड़ी लाइनें भी लिख रहे होते हैं।

    PM Modi With His Mother
    PM मोदी अपनी माता जी से उनके १००वें जन्मदिन पर आशीर्वाद लेते हुए (तस्वीर साभार : India TV News)

    उपरोक्त दृश्य 2 के इस आभा में दृश्य 1 कहीं गौण हो जाता है। भारत के किसी मेनस्ट्रीम मीडिया को दृश्य 1 की भनक तक नहीं है जो किसी रोमांटिक फिल्म के दर्द भरे हिस्से का दृश्य नहीं बल्कि मेघालय के पश्चिमी खासी पहाड़ी के तलहट्टी में हुए भूस्खलन की विभीषिका है। मेघालय में अंग्रेजी भाषा के प्रमुख दैनिक The Shillong Times इस घटना का जिक्र अपने एक संपादकीय लेख में किया है.

    असतत व अवैज्ञानिक विकास

    “विकास” इस देश की राजनीति के आसमां का वह सितारा है जिसके टूटने पर विपक्ष में बैठे लोग सत्ता में आने की दुआएं मांगने लगते हैं और सत्ता में बैठी सरकारें विकास का डमरू बजाते रहते हैं ताकि जनता उन्हें सत्ता से बेदखल ना करे।

    हमारे देश मे यह विकास भी तभी “विकास” माना जायेगा जब वह भौतिक रूप से दिखे; जैसे- सड़कें, पुल, बड़े बड़े भवन वरना एक चिरस्थायी सवाल हवा में तैरने लगता है – विकास हुआ है तो दिखता क्यों नहीं?

    अब इस विकास को दिखाने का ऐसा दवाब होता है कि हम हाइवे पुल आदि बनाने के चक्कर मे पर्यावरण का संतुलन ही बिगाड़ देते हैं। अभी असम या मेघालय में मचे तबाही में जितने लोग बाढ़ या बारिश के कारण नही मर रहे, उस से कहीं ज्यादा लोग भूस्खलन से मर रहे हैं।

    असम में पिछले महीने बारिश और भूस्खलन के कारण तबाह हुआ न्यू हॉफलोंग स्टेशन
    असम में पिछले महीने भरी बारिश और भूस्खलन के कारण तबाह हुआ न्यू हॉफलोंग स्टेशन (तस्वीर साभार: The News Mill)

    निःसंदेह नरेंद्र मोदी की सरकार ने उत्तर पूर्व के हिस्से को शेष भारत से जोड़ने में भरसक कोशिश किया है जिसकी मुखर शब्दों में तारीफ़ होनी चाहिए। लेकिन इन राज्यों में भ्रष्टाचार के कारण जो सड़के या हाइवे बनी हैं, उसके गुणवत्ता से समझौता किया गया।

    मेघालय के अंग्रेजी अखबार The Shillong Times ने 16 जून को छपे एक संपादकीय में लिखा है कि दशकों से इन राज्य का PWD विभाग भ्रष्टाचार में संलिप्त रहा है। जिसके कारण सड़क व हाइवे बनाने वाले कॉन्ट्रैक्टर के पास गुणवत्ता से समझौता करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है।

    साल भर हल्की बारिश से सड़को पर गड्ढे बनते रहते हैं। फिर जब इस मौसम में तेज बारिश हुई तो कमजोर पड़ी ये सड़के भूस्खलन के शिकार बन जाती हैं। इस वजह से ग्रामीण इलाकों का शहरी निकायों से सबंध टूट जाता है।

    अखबार ने अपने इसी लेख में लिखा है कि भूकंप और भूस्खलन मेघालय के आम जीवन का अहम हिस्सा हैं लेकिन फिर भी यहाँ निर्माण कार्य इस बिंदु को दरकिनार कर अवैज्ञानिक तरीके से किया गया है जो इन विभीषिका के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है।

    रेलवे या हाइवे के निर्माण के लिए पहाड़ो को इन इलाकों के भूसंरचना को ध्यान में न रखते हुए काटा गया है जिस से वहां के चट्टान कमजोर पड़ गए हैं और अब लोगों के ऊपर काल बनकर भूस्खलन के रूप में गिर रहे हैं।

    मिडिया की भूमिका

    पिछले कुछ दिनों से देश का एक हिस्सा “अग्निपथ” की आग में जल रहा हैं, वही दूसरी तरफ़ उत्तर पूर्व के दो महत्वपूर्ण राज्य- असम व मेघालय- पानी की मार झेल रहे हैं।

    असम मे बाढ़ और भारी बारिश के कारण हो रहे भूस्खलन की वजह से सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक कुल 62 लोगों की मौत हुई है जबकि 30 लाख से ज्यादा जिंदगियां प्रभावित हुई है। वहीं मेघालय में अंग्रेजी अखबार The Shillong Times के मुताबिक भूस्खलन व बाढ़ के कारण हुए मौतों की संख्या 14 है और यहाँ भी लाखों लोगों की जिंदगी इस से प्रभावित हुई है।

    क्या इन सभी स्थितियों के लिए जिम्मेदार कार्यपालिका से सवाल नहीं किया जाना चाहिए? लेकिन समस्या है कि कौन करेगा यह सवाल? मीडिया उत्तर पूर्व के इन बातों को तवज्जो क्यों दे अगर उसे इस खबर में TRP नहीं मिल रही तो..?

    प्रिंट मीडिया में से ज्यादातर ने कम से कम मौत का आंकड़ा बताने के लिए ही सही, लंबा लेख छापे हैं। लेकिन डिजिटल मीडिया ने इन खबरों को बस “100 मिनट में 100 खबरें” जैसे प्रोग्राम में ही खबर बनाये हैं।

    गैर-जिम्मेदार कार्यपालिका

    मेघालय और असम के बाद बिहार में भी बाढ़ की आहट
    पिछले साल बिहार में बाढ़ के दौरान पलायन करते लोग (तस्वीर साभार: India News TV )

    देश से लेकर इन राज्यों तक कार्यपालिका के भी तौर-तरीके गैर-जिम्मेदाराना हैं। जब मालूम है कि हर साल यह एक वार्षिक आपदा का आना तय है तो क्या वक़्त रहते इस से बचने हेतु पूरी तैयारी नहीं की जा सकती है?

    भारत मे कई शोध संस्थान हैं जो अपने आप में सक्षम है इस समस्या के समाधान खोजने में… क्या किसी राज्य सरकार ने इन संस्थाओं को यह जिम्मेदारी सौंपी है कि वे वैज्ञानिक तौर तरीकों से इसका समाधान ढूंढे? मैं बिहार का रहने वाला हूँ और मेरी नजर में तो ऐसे कोई ठोस कदम नहीं है जो राज्य सरकार ने उठाये हैं।

    दरअसल ये संस्थान अपने खर्चे पर एक व्यापक शोध (General Research) करते हैं। चूँकि हर राज्य की मिट्टी और भौगोलिक स्थिति भिन्न है इसलिए राज्य-विशेष (State Specific) के लिए कोई जरूरी नहीं है कि इनके व्यापक रिसर्च परिणाम हितकारी हों।

    इसलिए इन संस्थानों को राज्य सरकार अपने खर्चे पर बुलाये और शोध व वैज्ञानिक उपाय निकालने को कहे तभी पूर्ण समाधान निकाला जा सकता है या जान-माल का नुकसान कम किया जा सके।

    कार्यपालिका और सरकारों के डपोरशंखी और गैरजिम्मेदाराना रवैया को रेखांकित करते हुए  TheWirehindi  ने एक खबर में उल्लेख किया है कि बिहार में पिछले साल 17 जिलों में बाढ़ आई थी और करीब 1.71 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे तथा 514 लोगों के मौत का आँकड़ा सरकारी दस्तावेज में दर्ज है।

    इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इन लोगों को पिछले साल का मुआवजा अभी तक नहीं मिला है और फिर इस साल बाढ़ की आहट उत्तर बिहार के तमाम नदियों बूढ़ी गंडक, बागमती आदि का जलस्तर लगातार बढ़ने के कारण महसूस किया जा रहा है।

    ऐसा लगता है कि कुल मिलकर पुरे सिस्टम ने और हम सबने इसे नियति मान लिया है कि असम और बिहार में बाढ़ तो वैसे ही हैं जैसे साल में एक बार दशहरा और दीवाली आते हैं।

    अभी असम में बाढ़ ने तबाही मचा रखी है जबकि बिहार में जैसे जैसे मानसून आगे बढ़ रहा है, बाढ़ की आहट भी दिखाई देने लगी है। इसे खबरों और आपदा की श्रेणी से बाहर कर के एक वार्षिक अनुष्ठान मान लिया है जहाँ हर साल सैंकड़ो जिंदगियां मौत का शिकार हो जाती हैं और करोड़ो रूपये के जान-माल का प्रसाद चढ़ना तय है।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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