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    पिछले कुछ महीनों के दौरान भारत में उपग्रह संचार के प्रति रुचि में अचानक वृद्धि हुई है। हाल ही में कुछ दूरसंचार कंपनियों ने 27.5 गीगाहर्ट्ज़ – 29.5 गीगाहर्ट्ज़ आवृत्ति में हिस्सा मांगा, इस आवृति को विश्व स्तर पर अंतरिक्ष संचार (स्पेसकॉम) के लिये निर्धारित किया गया है।

    अंतरिक्ष संचार एक इलेक्ट्रॉनिक संचार पैकेज है जिसे पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य संचार के क्षेत्र में अंतरिक्ष के माध्यम से पहल करना या सहायता करना है। इसने अंतर्राष्ट्रीय संचार के प्रतिरूप में एक बड़ा योगदान दिया है।

    वैश्विक कंपनियाँ व्यवसायों, सरकारों, स्कूलों और व्यक्तियों के लिये सस्ती हाई-स्पीड इंटरनेट सेवाएँ प्रदान करने हेतु सैकड़ों या हज़ारों उपग्रहों के माध्यम से एक “मेगा-नक्षत्र” बनाने और तैनात करने का प्रयास कर रही हैं।

    स्पेसकॉम की क्षमता को समझते हुए भारत सरकार ने स्पेसकॉम पॉलिसी 2020 का ड्राफ्ट जारी किया। हालाँकि अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की प्रभावशाली उपलब्धियों के बावजूद विकास अत्यंत धीमी गति से हो रहा है।

    स्पेसकॉम के लाभ

    उपग्रह के माध्यम से लगभग सभी भौगोलिक क्षेत्रों तक संचार संभव हो जाता है, मुख्य रूप से कम आबादी वाले क्षेत्रों तक। वायरलेस और मोबाइल संचार अनुप्रयोगों को उपग्रह संचार द्वारा आसानी से स्थापित किया जा सकता है।

    उपग्रह ब्रॉडबैंड तत्काल सेवा प्रदान करता है। घरों में मशीन-से-मशीन सहित व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में संकेत प्रेषित करने के लिये उपग्रह ब्रॉडबैंड के लिये केबल बिछाने की आवश्यकता नहीं होती है। स्पेस इंडिया 2.0 नामक एक रिपोर्ट के अनुसार, अंतरिक्ष में एक वर्ग किमी. को कवर करने की लागत $1.5 और $6 के बीच होती है, जबकि उतने ही क्षेत्र को कवर करने के लिये भूमिगत बुनियादी ढाँचे के लिये आवश्यक लागत $3,000 से $30,000 के बीच होती है। भूस्थैतिक कक्षा भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर पृथ्वी की सतह से 35,786 किमी. की ऊँचाई पर स्थित है। अधिकांश मौजूदा अंतरिक्ष-आधारित इंटरनेट सिस्टम भूस्थिर कक्षा में उपग्रहों का उपयोग करते हैं। इस कक्षा में उपग्रह लगभग 11,000 किमी. प्रतिघंटा की गति से चलते हैं, और पृथ्वी की एक परिक्रमा को उसी समय पूरा करते हैं जब पृथ्वी अपनी धुरी पर एक बार घूमती है। सतहों पर जाँच या परीक्षण के लिये भूस्थिर कक्षा में एक उपग्रह स्थिर होता है।

    इसका उपयोग वैश्विक मोबाइल संचार, निजी व्यापार नेटवर्क, लंबी दूरी के टेलीफोन प्रसारण, मौसम की भविष्यवाणी, रेडियो/टीवी सिग्नल प्रसारण, सेना में खुफिया जानकारी एकत्र करने, जहाज़ों और वायुयान के नेविगेशन, दूरदराज़ के क्षेत्रों को जोड़ने और वहाँ टेलीविज़न सिग्नल के वितरण आदि जैसे विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों में किया जाता है।

    आपदाग्रस्त परिस्थितियों के दौरान प्रत्येक अर्थ स्टेशन को किसी स्थान से अपेक्षाकृत तेज़ी से हटाया जा सकता है और पुनः कहीं अन्य स्थापित किया जा सकता है।

    सम्बंधित चुनौतियाँ

    दुनिया भर में उच्च प्रवाह क्षमता के उपग्रहों के प्रसार के बावजूद भारत अभी भी पारंपरिक उपग्रहों का उपयोग कर रहा है। भारत में पारंपरिक उपग्रह प्रौद्योगिकी का उपयोग उपग्रह ब्रॉडबैंड को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य नहीं बनाता है।
    ‘मेक इन इंडिया’ मिशन के बावजूद अंतरिक्ष बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये घरेलू भागीदारी की कमी है। इसरो अपने नियमित संचालन जैसे- उपग्रहों का प्रक्षेपण, प्रक्षेपण वाहनों का निर्माण आदि के भार से ग्रसित है जो नई परियोजनाओं में काम करने के लिये इसरो के रास्ते में बाधा बन रहे हैं।

    इसरो के अध्ययन के अनुसार, भारत के पास वर्तमान में $360 बिलियन के वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार में केवल 3 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। भारत में सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाएँ मुख्य रूप से बी2बी क्षेत्र के लिये बनी हैं, जिनका बाज़ार आकार लगभग 100 मिलियन डॉलर है।

    आगे की राह

    उन्नत अंतरिक्ष तकनीक वाले देशों ने मूल्य शृंखला में अधिकांश स्पेसकॉम ब्लॉकों का निजीकरण कर दिया है। स्पेसकॉम विशेषज्ञों का अनुमान है कि आगामी ‘ओपन स्पेस’ के साथ उपग्रह ब्रॉडबैंड सेवाओं का बाज़ार $500 मिलियन से अधिक का हो सकता है। इस प्रकार इन उद्योगों को पोषित करने और एक व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में मदद के लिये उपयुक्त सिस्टम बनाने की आवश्यकता है।

    इस क्षेत्र से जुड़ी चिंता यह सुनिश्चित करना है कि इस उच्च तकनीक को गलत हाथों में जाने से रोका जा सके। सरकार को अंतरिक्ष क्षेत्र के वाणिज्यिक और रणनीतिक दोनों क्षेत्रों में निजी खिलाड़ियों के संचालन के संबंध में कानून बनाना चाहिये ताकि प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग न हो सके।

    भारत के अंतरिक्ष संसाधनों का आवंटन यहाँ की जनता के मध्य उचित और गैर-मनमाने तरीके से किया जाना चाहिये तथा इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत विधि द्वारा तैयार किया जाना चाहिये। भारत को पर्याप्त स्पेक्ट्रम आवंटन, व्यापार करने में आसानी, आवश्यक क्षमता निर्माण आदि के साथ अनुकूल नियम और नीति की आवश्यकता है।

    इस क्षेत्र से संबंधित हितधारक मंत्रालयों की शक्तियों और कार्यों को एक ही निकाय में समेकित किये जाने की आवश्यकता है। यह स्पेसकॉम परिसंपत्तियों के परिनियोजन और संचालन के लिये सभी अनुप्रयोगों को अधिकृत करेगा तथा निष्पक्ष, गैर-मनमाना, पूर्वानुमेय व समयबद्ध निर्णय के लिये आश्वासन प्रदान करेगा।

    निष्कर्ष

    सही नीतिगत हस्तक्षेप के साथ स्पेसकॉम के पास सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में एक बड़े हिस्से का योगदान करने की जबरदस्त संभावना है। इसके अलावा यह अधिक नवाचार, अनुसंधान एवं विकास, रोज़गार, निवेश और कनेक्टिविटी के द्वार खोलने में भी सक्षम है।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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