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    शिवाजी महाराज

    अगर आप कभी मुंबई जाएँ तो वहां की काफी कुछ चीजें आप को आकर्षित करती हैं। चाहे वो स्ट्रीट फूड हो, चाहे पर्यटन स्थल हो, या फिर चाहे मराठों की संस्कृति हो, वहां की एक एक चीज अपने आप में अनोखी लगती है। लेकिन अगर आप ध्यान देंगे तो एक चीज आपको बड़ा अचंभित करेगा और वो है, उनकी संस्कृत में शिवाजी का मेल-मिलाप।

    उनके पूजा करने से लेकर शादी तक में और गाड़ियों में लगने वाले स्टीकर से लेकर टी-शर्ट तक में, हर जगह शिवाजी रचे-बसे मिलेंगे। आप जरूर सोचेंगे कि एक राजा जो आज से लगभग 350 साल पहले राज करता था, वो आज भी इनके दिल में यूँ कहें कि इनके एक-एक धड़कन में कैसे बसे हैं? आखिर अपने शासनकाल में शिवाजी ने ऐसा क्या कर दिया था?

    शिवाजी का पूरा नाम शिवाजी राजे भोसले हैं और उन्होंने पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य का निर्माण किया था। उन्होंने आदिलशाही सल्तनत को खत्म किया था। इसके साथ ही उन्होंने कई बार मुगलों और अंग्रेजों से भी युद्ध लड़ा था।

    आधिकारिक तौर पर अपने 6 साल के शासन काल में उन्होंने अपनी प्रजा के लिए बहुत काम किया था। अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें कौन सी बड़ी बात है? इतना तो हर राजा करता है? बिल्कुल आपका सोंचना लाजमी हैं। शिवाजी को अच्छे से जानने के लिए आपको शिवाजी की पूरी जीवनी पढनी होगी।

    बचपन

    19 फरवरी 1630 में गोलकुंडा, अहमदनगर और बीजापुर के बीच समन्वय के लिए एक सेनापति के रूप में काम करने वाले शाहजी की पत्नी जीजाबाई को शिवनेरी के किले में एक पुत्र हुआ। पूना (पुणे) के जुन्नार शहर के समीप स्थित शिवनेरी के किले में शिवाजी की किलकारी खुशियाँ बाँटने लगी।

    उनके पिता शाहजी भोसले को पुणे के नजदीक एक छोटी सी जागीर मिली थी। वह वहाँ पर अपनी मां जीजा बाई के साथ रहते थे क्योंकि उनके पिता का ज्यादातर समय बीजापुर में ही बीतता था। शिवाजी जैसे-जैसे बड़े होते गये, उनकी मां ने उनमें एक निर्भय और आत्मविश्वासी व्यक्तित्व को उभारा। शिवाजी की पढ़ाई लिखाई के लिए छोटा सा मंत्रिमंडल होता था। जिसमें पेशवा, मजूमदार और अध्यापक जैसे कुछ गिने चुने पद थे। उनको मार्शल आर्ट और सेना की ट्रेनिंग के लिए कान्होजी जेहड़े और बाज़ी पासालकर को विशेष तौर पर नियुक्त किये गए थे।

    शिवाजी और जिजाबाई

    किशोरावस्था में ही उनके अंदर राज-व्यवस्था और राज्य के नेतृत्व में काफी रुचि थी। उनको महल के बाहर जनता के बीच समय बिताना अच्छा लगने लगा था। इस दौरान उन्होंने शिवनेरी किले के आस पास दूर तक फैले सह्याद्री पर्वत को अच्छे से जाना समझा।

    महज 15 साल की उम्र में ही उन्होंने मालवा क्षेत्र में अपना एक खुद का सैनिकों का गुट बना लिया था, और इसी गुट की मदद से 1645 के अंत तक शिवाजी ने अब तक बीजापुर सल्तनत के अधीन रहे चकण, कोंकण, तोरण, सिंहगढ़ और पुरंदर सहित पुणे के आसपास के तमाम क्षेत्रों को अपने कब्जे में ले लिया। शिवाजी का ऐसा करना आदिलशाह को चुनौती देन जैसा था।

    इससे गुस्साए आदिलशाह ने शिवाजी के पिता शाहजी को 1648 में जेल में बंद करने का हुक्म सुना दिया। अंत में अपने जीते हुए क्षेत्र लौटाने और आगे से ऐसा कोई काम न करने सहित तमाम कठोर शर्तों के बाद उनके पिता को छोड़ दिया गया। कुछ सालों तक शिवाजी अपने पिता की देखरेख में जुटे रहें। लेकिन 1655 में उनके पिताजी की मृत्यु हो गई।

    विजय-रथ

    पिताजी की मृत्यु के बाद एक बार फिर से शिवाजी का विजय रथ चल पड़ा और शुरुआत हुई जाबेरी घाटी से। ये घाटी आदिलशाही सल्तनत के अधीन होकर बीजापुर के एक जागीरदार चन्दरराव मोरे द्वारा शासित की जाती थी। उनके इस कदम से झल्लाये आदिलशाही सल्तनत के बादशाह मोहम्मद आदिलशाह ने अपने एक ऐसे सेनापति को शिवाजी को मारने भेजा जो कि बेहद विशालकाय था। शिवाजी तो उसके सामने एकदम बच्चे जैसे दिखते थे। जिसका नाम था, अफजल खान। चूंकि अफजल खान शिवाजी की बुद्धिमत्ता और पराक्रम से वाकिफ था। इसलिए उसने सीधे हमला करने के बजाय एक षड़यंत्र के जरिये शिवाजी को मारने की योजना बनाई।

    अफजल खान ने शिवाजी को अकेले में बिना किसी हथियार और सेना के बातचीत करने के बहाने मिलने बुलाया। उसने सोचा था कि वो जब शिवाजी से गले मिलेगा तो अपने हाथ में छुपाए खंजर से शिवाजी को मार देगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शिवाजी उससे भी चालाक निकले। दरअसल शिवाजी को अफजल खान की नीयत पर पहले से ही शक था। इसलिए उन्होंने मुलाक़ात के दिन पहले से ही एक रक्षा कवच पहन रखा था। उसी रक्षा कवच ने उनको बचा लिया। इतने में शिवाजी ने तुरंत पलटवार कर दिया। उस पलटवार में अफजल खान बुरी तरह से घायल हो गया।

    शिवाजी महाराज अहमद खान

    अब तक शिवाजी बहुत आगे निकल चुके थे। इस घटना के बाद तो शिवाजी ने बीजापुर पर हमला करने का आदेश दिया। इसके बाद प्रतापगढ़ में एक युद्ध हुआ जिसे शिवाजी ने आसानी से 3000 सैनिकों को मारते हुए जीत लिया। इसके बाद आदिलशाह ने एक बहुत बड़ी सेना को रुस्तम जामन के नेतृत्व में भेजा लेकिन शिवाजी की अपनी सूझबूझ और बुद्धिमत्ता की वजह से छोटी सेना होने के बावजूद रुस्तम जामन को जान बचाकर भागने पर मजबूर होना पड़ा। इस बीच कई सारे युद्ध हुए लेकिन आदिलशाह किसी युद्ध को जीत नही पाया। हालांकि 22 सितंबर 1670 को उसके एक सेनापति सिद्धि जौहर ने पन्हाला किले पर कब्जा कर लिया था लेकिन शिवाजी ने 1663 में इसे वापस जीत लिया।

    शिवाजी के लगातार बढ़ रहे विजय रथ को उस समय का मुगल शासक औरंगजेब भी लगातार देख रहा था। अब शिवाजी उसकी नजर में खटकने लगे थे। औरंगजेब को लगने लगा था कि ये मराठा साम्राज्य उसके विस्तारवादी नीति में एक बड़ा रोड़ा बनने वाला है। इसी बीच शिवाजी के सेनापतियों द्वारा अहमदनगर और जुन्नार के नजदीक वाली मुगल सरजमीन पर हमला कर वहां लूटपाट कर राजस्व खजाना को नुकसान पहुंचा दिया गया।

    इसके बाद तो औरंगजेब खुलकर शिवाजी के सामने आ गया। लेकिन इसके पहले कि वह शिवाजी से कोई युद्ध करता, बरसात का मौसम शुरू हो गया और उसे दिल्ली जाना पड़ गया। लेकिन जाते जाते उसने अपने मामा शाइस्ता खान को शिवाजी से बदला लेने के लिए कह गया। शाइस्ता खान डेक्कन का शासक हुआ करता था। इसलिये उसके पास काफी बड़ी सेना भी थी। उसने शिवाजी पर बुरी तरह से हमला कर दिया। इस हमले से उसने शिवाजी के कई किले जीत लिए, यहां तक कि शिवाजी की राजधानी पूना पर भी कब्जा कर लिया। प्रतिशोध के रूप में शिवाजी ने एक गुपचुप हमला किया जिसमें उनहोने शाइस्ता खान से पूना कप वापस जीत लिया।

    इस गोपनीय हमले से झल्लाकर शाइस्ता खान ने शिवाजी पर कई तरफ से हमला कर दिया। इस हमले के बाद कोंकण क्षेत्र पर से शिवाजी का कब्जा हट गया। कोंकण को तो शिवाजी नहीं बचा पाए लेकिन उन्होंने मुगलों के एक दूसरे महत्वपूर्ण क्षेत्र पर हमला कर दिया, वो क्षेत्र था- सूरत। सूरत इसलिए काफी महत्वपूर्ण था क्योंकि पश्चिम भारत का ज्यादातर व्यापार सूरत के ज़रिए ही हुआ करता था। शिवाजी ने हमला किया औऱ मुग़लों को लूट लिया।

    शिवाजी मुग़ल युद्ध

    दिल्ली में बैठकर इन सभी घटनाक्रमों को देखता औरंगजेब अब बुरी तरह से तिलमिला गया था। उसने अपने एक मुख्य सेनापति जयसिंह प्रथम को 150,000 सेना के साथ शिवाजी पर हमला करने के लिए भेज दिया। इतनी बड़ी सेना के सामने शिवाजी की सेना कुछ नहीं थी। मुगलों ने शिवाजी के कई सारे किलो और क्षेत्रों पर अपना अधिकार कर लिया।

    पल-पल मारे जाते सिपाहियों की हालत देखकर शिवाजी ने संधि करने का फैसला किया। 11 जून 1665 को शिवाजी और मुगलों की तरफ से जयसिंह प्रथम ने पुरंदर की संधि पर हस्ताक्षर किया। इसके अनुसार शिवाजी को 23 किलो सोने सहित 400000 की राशि जुर्माने के रुप में मुगलों को देनी पड़ी।

    अब तक औरंगजेब को यह बात समझ आ गई थी कि शिवाजी की सेना काफी पराक्रमी है। इसी का फायदा उठाने के लिए औरंगजेब ने शिवाजी को आगरा बुलाया। दरअसल वह शिवाजी की सेना को अफगानिस्तान में चलने वाले युद्ध में अपनी तरफ से भेजना चाहता था। शिवाजी खुद तो आए ही, साथ में अपने 8 साल के बेटे संभाजी को भी लाए थे। लेकिन औरंगजेब के व्यवहार से वह काफी नाराज हो गए। उसके बाद तो औरंगजेब ने उन्हें नजर बंद करने का हुक्म दे दिया। लेकिन शिवाजी अपनी बुद्धिमत्ता और पराक्रम से ना सिर्फ खुद को बल्कि अपने बेटे को भी उसका कारागार से बाहर निकालने में सफल रहे।

    17 अगस्त 1666 को वह आगरा से भाग निकले। इसके बाद 1670 तक मुगलों और मराठों के बीच शांति रही। लेकिन 1670 में ही शिवाजी ने मुगलों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। इस युद्ध में 4 महीने के अंदर ही उन्होंने अपना हारा हुआ लगभग पूरा साम्राज्य वापस पा लिया।
    इसी बीच अंग्रेजों का भारत में आगमन शुरू हो चुका था।

    शुरू में शिवाजी का अंग्रेजों के साथ संबंध ठीक था लेकिन जब अंग्रेज 1660 में बीजापुर सल्तनत को सहायता देने लगे तो शिवाजी का अंग्रजों से सम्बंध खराब होने लगे। राजपुर लूट काण्ड के बाद तो अंग्रेज और शिवाजी आमने-सामने आ गए। दरअसल अंग्रेजों ने मुगलों से लड़ाई में शिवाजी की सहायता नहीं की तो उन्होंने राजापुर में स्थित अंग्रेजों की हथियार फैक्ट्री पर हमला करवाकर उनके हथियार लूट लिए।

    अब जब वो थोड़े और मज़बूत हुए तो उन्होंने कई और दूसरे क्षेत्रों को भी मुगलों से वापस ले लिया। विशेष रूप से जो क्षेत्र पूना और कोंकण से जुड़े हुए थे। अब शिवाजी को महसूस हुआ कि एक राजा के रूप में उन्हें स्थापित होना चाहिए। इसीलिए 6 जून 1674 को वो राजा की उपाधि लेते हुए मराठा साम्राज्य के मुखिया बने।

    रायगढ़ में उनके राजतिलक के समय लगभग 50 हज़ार लोग इकठ्ठा हुए थे। राजतिलक के बाद उन्होंने खण्डेश, बीजापुर, कारवाड़, कोल्कापुर, जंजीरा, रामनगर और बेलगांव को अपने कब्जे में कर लिया। इसी के साथ ही आदिलशाही शासकों द्वारा अधिग्रहित वेल्लोर और गिंजी के किलों को भी अपने कब्जे में ले लिया। उन्होंने ने इन सभी क्षेत्रों को एक हिन्दू राष्ट्र की संप्रभुत्व का दर्जा दिया। क्योंकि अब तक ये सारे राज्य एक मुस्लिम राजा के अधीन हुआ करते थे।

    हालांकि शिवाजी एक सच्चे हिन्दू थे लेकिन उन्होंने अपने राज्य में गैर हिंदुओं को भी बराबर अधिकार दिया हुआ था। यही कारण है कि आज भी महाराष्ट्र में शिवाजी को हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के लोग इनको मानते हैं। वो जातिगत भेदभाव के खिलाफ थे इसीलिए उन्होंने अपने दरबार में सभी धर्मों और जातियों के लोगों को नौकरी दी थी। उन्होंने किसानों की स्थिति सुधारने के लिए किसानों और राज्य के राजस्व विभाग के बीच से बिचौलियों की भूमिका ही खत्म कर दी थी।

    अब सबकुछ ठीक-ठाक से चल रहा था लेकिन एकदिन अचानक उनकी सेहत खराब हो गई। दरअसल उनको पेचिश के दौरे आने लगे थे। इसी बीमारी की वजह से सिर्फ 52 वर्ष की उम्र में 3 अप्रैल 1680 को रायगढ़ किले में ही उनकी मृत्यू हो गयी।

    By मनीष कुमार साहू

    मनीष साहू, केंद्रीय विश्वविद्यालय इलाहाबाद से पत्रकारिता में स्नातक कर रहे हैं और इस समय अंतिम वर्ष में हैं। इस समय हमारे साथ एक ट्रेनी पत्रकार के रूप में इंटर्नशिप कर रहे हैं। इनकी रुचि कंटेंट राइटिंग के साथ-साथ फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी में भी है।

    2 thoughts on “वीर शिवाजी महाराज की वीरता की गाथा”
    1. बिना किसी रिसर्च के जो मन में आए वो लिख दिया है. शिवाजी राजे का निधन 1670 में लिख दिया गया है. उनका राज्याभिषेक की तिथि ही 6 जून 1674 की है..

      1. जानकारी को ठीक कर दिया गया है।

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