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    शनि ग्रह के छल्ले rings of saturn in hindi

    विषय-सूचि


    क्रम के हिसाब से शनि सौर मंडल का छठा ग्रह है। यह ग्रह हमेशा प्रचलित रहता है क्योंकि इसके रिंग हैं। इसके जो रिंग हैं, उसने खगोल वैज्ञानिकों और आम लोगों – दोनों को सामान रूप से आकर्षित किया है।

    जबसे टेलिस्कोप की खोज हुई, तबसे वैज्ञानिक इसके अध्ययन में लग गए। गैलीलियो पहला वैज्ञानिक था जिसने 1610 में अपने टेलिस्कोप के द्वारा इन रिंग की खोज की थी।

    हालाँकि सूर्य की रौशनी पड़ने पर इन रिंग की चमक बढ़ जाती है, पर इन्हे खुली आँखों से देख पाना मुश्किल है।

    नासा का Pioneer 11 साल 1979 में शनि के रिंग के पास से निकलने वाला पहला यान था। अगले साल 1980 में ही voiger 1 एवं 2 भी इन रिंग से होकर गुजरे।

    साल 2004 में Cassini – Huygens मिशन शनि ग्रह की परिक्रमा करने वाला पहला यान था जिससे शनि ग्रह के बारे में और चीजें पता चल सका।

    रिंग की संरचना एवं भौतिक विशेषता (Structure & Composition of Saturn Rings in Hindi)

    सूर्य के चारों और अपने परिक्रमा पथ के हिसाब से शनि का equator भाग 27॰ के हिसाब से झुका हुआ है।

    जब शनि सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रहा होता है तब शनि का एक गोलार्ध सूर्य की तरफ झुकता है, फिर दूसरा गोलार्ध सूर्य की तरफ झुकता है, इस झुकाव के कारण शनि पर विभिन्न मौसम होता है।

    एक समय ऐसा आता है जब शनि के equator एवं रिंग सूर्य के साथ एक लाइन में रहते हैं। सूर्य की रौशनी जब रिंग पर सीधी पड़ती हैं, तब इनको देख पाना मुश्किल होता है।

    ये रिंग 273,000 किमी चौरे हैं लेकिन मोटाई सिर्फ 10 मीटर है।

    ये रिंग धूल एवं गैस के पदार्थों से बने हुए हैं। इन पदार्थों का आकार एक छोटे से चावल से लेकर एक पहाड़ के टुकड़े जितना बड़ा हो सकता है।

    इनके अंदर जमे हुए गैस भी मौजूद रहते हैं। इन रिंग से होकर हमेशा छोटे बड़े क्षुदग्रह, धूमकेतु आदि निकलते रहते हैं।

    अगर किसी टेलेस्कोप से देखा जाये तो ये रिंग एक साथ ठोस रूप में नजर आते हैं, हालाँकि वे कई भागों में विभाजित हैं। खोज के आधार पर अंग्रेजी alphabet के हिसाब से इनका नाम रखा गया है।

    शनि के मध्य से दूरी के आधार पर तीन रिंग हैं – A, B एवं C। A एवं B रिंग के बीच 4700 किमी की दूरी है जिसको Cassini Division कहा जाता है।

    जैसे जैसे टेलिस्कोप की तकनिकी में सुधार हुआ, कई हलके दिखने वाले रिंग को भी ढूंढा गया।

    मिशन Voiger 1 ने साल 1980 में एक अंदरूनी रिंग D की खोज की। रिंग F, A रिंग के बाहरी हिस्से से शुरू होता है।

    Voiger 1 मिशन जब रिंग F के पास से गुजर रहा था तो यह पाया गया कि इस रिंग के अंदर भी पतले पतले रिंग हैं।  रिंग G और E इससे भी ज्यादा दूर हैं।

    इन रिंग के बीच बहुत दूरी है और कई प्रकार की संरचनाएं भी पाई जाती है। कुछ संरचनाएं शनि के चंद्रमाओं के कारण बानी हुई है, दूसरों पर अभी वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं।

    सौर मंडल में सिर्फ शनि ही नहीं है जिसके रिंग हैं। बृहस्पति, यूरेनस एवं नेप्चून ग्रह के भी रिंग हैं जो बहुत हलके हैं।

    Voiger 1 मिशन के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह हिसाब निकाला कि इन रिंग का भार 3*1019 किलोग्राम होगा। ये रिंग शनि के equator से 7000 किमी कि दूरी पर शुरू होते हैं एवं 80,००० किमी दूर तक फैले हुए हैं।

    रिंग A और B के मध्य में जो दूरी है जिसको Cassini Division कहा जाता है, उस जगह के अध्ययन से यह मालूम पड़ा है कि इन रिंगों का अपना वायुमंडल भी है।

    वायुमंडल में आणविक ऑक्सीजन गैस पाया जाता है जो जमी हुई गैसों पर सूर्य कि किरणें पड़ने के दौरान बनते हैं। इसके अलावा हाइड्रोजन गैस भी मौजूद है जो ऑक्सीजन के साथ मिलकर हाइड्रोक्साइड (OH) आणविक का निर्माण करते हैं।

    भले ही रिंग का वायुमंडल बहुत पतले हैं, लेकिन चौकाने वाली बात यह है कि इनकी खोज hubble टेलेस्कोप के मदद से हुई थी।

    शनि के रिंग कैसे बने? (How were the rings of Saturn Formed in Hindi)

    ऐसा माना जाता है ये रिंग तभी बने जब शनि का निर्माण हुआ। ये कैसे बने – इसको लेकर कई  मत हैं। इनमे से कुछ इस प्रकार हैं:

    • कोई क्षुदग्रह या धूमकेतु शान ग्रह से टकराया होगा, जिसके कारण ये सब चूर चूर हो गए और इनका मलबा रिंग के रूप में जमा होकर शनि की परिक्रमा कर रहा है।
    • एक और सिद्धांत के अनुसार आज से कई बिलियन साल पहले शनि का एक चन्द्रमा तबाह हो गया। उसके मलबे आज रिंग के रूप में शनि के चारो ओर घूम रहे हैं।

    आप अपने सवाल एवं सुझाव नीचे कमेंट बॉक्स में व्यक्त कर सकते हैं।

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