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    भारत चीन सम्बन्ध

    भारत और चीन विश्व को दो सबसे बड़ी उभरती शक्तियां हैं। जहां चीन पिछले दो दशकों में भारी विकास के दम पर विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, वहीँ आने वाले दो दशक भारत के माने जा रहे हैं। भारत का विकास दर वर्तमान में चीन से काफी आगे है।

    जहाँ दोनों देश विकास के छेत्र में आगे निकलने के लिए अग्रसित हैं, वहीँ अन्य कई मामलों में दोनों के पक्ष सामान और असमान भी हैं। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद सदियों से चला आ रहा है। इसके अलावा दोनों देश एशिया की सबसे बड़ी शक्ति बनने का भी सपना देख रहे हैं।

    चीन वन बेल्ट वन रोड जैसी बड़ी योजनाओं के दम पर अपना दम-खम दिखा रहा है, वहीँ भारत अमेरिका और जापान जैसे देशों की सहायता से वैश्विक मुद्दों पर अपनी भूमिका बढ़ा रहा है।

    इतिहास

    भारत और चीन के बीच व्यापारिक और राजनीतिक संबंध प्राचीन काल से रहे है। वर्ष 1949 में चीन की स्थापना के अगले वर्ष भारत ने चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए और 1950 के दशक में चीन और भारत के संबंध इतिहास के सबसे अच्छे दौर में थे। दोनों देश के नेताओं ने एक दूसरे के यहां अनेक दौरे किए और दोनों देशों के बीच घनिष्ठ राजनीतिक संबंध भी थे।

    लेकिन 1960 के दशक में चीन व भारत के संबंध शीतकाल के दौर में प्रवेश कर गए। यह शीतकाल, ऐतिहासिक विचारधारा की लड़ाई में बडी लहर की तरह भारत और चीन के संबंधों को प्रभावित करता रहा।

    1954 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तथा तत्कालीन चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई द्वारा सह-अस्तित्व के लिए प्रतिपादित पंचशील सिद्धांत दोनों देशों के बीच सहयोग सम्मान हेतु स्थापित किया गया। पंचशील के पांच सिद्धांतों में एक दूसरे की अखंडता, संप्रभुता का सम्मान, आक्रमण, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप ना करना शामिल था।

    इसी बीच चीन नें तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया और तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा नें भारत में शरण ले ली। भारत नें भी दलाई लामा का स्वागत किया। चीन को यह बात पसंद नहीं आई। इसके अलावा इसी समय भारत चीन सीमा पर भी सीमा विवाद को लेकर कई झडपे हुई।

    पंचशील सिद्धांत को दरकिनार करते हुए चीन ने 1962 के युद्ध के दौरान पूर्वी क्षेत्रों के एक बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया। हालाँकि युद्ध विराम के बाद वह पहले वाली स्थिति पर तो चला गया लेकिन उसने प्रदेश में लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर की संपूर्ण क्षेत्र पर अपने दावे की गुहार लगाई।

    भारत चीन युद्ध के बाद दोनों देशों के रिश्ते काफी समय के लिए खट्टे हो गए थे।

    व्यापार

    भारत चीन व्यापार के क्षेत्र में एशिया की सबसे बड़ी दो महशक्तियां है। 21 वीं सदी में चीन व भारत एक दूसरे के प्रतिद्वंदी और मित्र दोनो है। कई अंतर्राष्ट्रीय मामलों में दोनों ने व्यापक सहमति जताई है। आंकड़े बताते हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ में विभिन्न सवालों पर हुए मतदान में अधिकांश समय भारत और चीन का पक्ष समान है। इसलिए दोनों को आपसी सहयोग की आवश्यकता है। अपने क्षेत्र में दोनों एक दूसरे से सीख सकते हैं।

    भारत चीन व्यापार सम्बन्ध

    भारत-चीन व्यापार संबंध एक नए युग में प्रवेश कर रहा है। यह व्यापारिक और आर्थिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। समसामयिक भारत में चीन ने विकास और संसाधन के क्षेत्र में 5 अरब डॉलर के निवेश की इच्छा व्यक्त की है।

    भारत और चीन दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग की योजना तय करने पर भी सहमति हुई है। सड़क व्यापार हेतु सिक्किम आने के लिए चीन ने नाथूला दर्रा खोलने पर भी स्वीकृति दे दिया है।

    सिक्किम के ‘छांगू’ में चीन का व्यापारिक केंद्र तथा तिब्बत के ‘रेनिगगौग’ में भारतीय व्यापारी चौकी स्थापित करने की सहमति दी है।

    दुनिया की 40% आबादी वाले दोनों देशों के बीच बाजार में व्यापार की संभावनाएं इतनी विशाल है कि आगामी कुछ वर्षों में साझा बाजार स्थापित हो सकता है। लेकिन इस व्यापार को साझा बाजार के रूप में विकसित करने के लिए संयुक्त रुप से समझदारी व संयम के साथ काम करने की आवश्यकता है।

    सीमा विवाद

    चीन के साथ भारत का सीमा विवाद प्राचीन काल से ही रहा है। जिसका उपचार किसी भी सूरत में तुरंत संभव नहीं है। कई बार किए गए प्रयासों के सीमा विवाद समाप्त करने के संदर्भ में कोई सार्थक व स्पष्ट नीति अभी तक नहीं बन पाई है।

    तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा भारत में रहते हैं और दोनों के बीच तनाव का एक वजह यह भी है मौजूदा तनाव हाल में दलाई लामा के अरुणाचल दौरे के तीखे विरोध के बाद सामने आया चीन की सीमा से सटा अरुणाचल प्रदेश भारत का राज्य और चीन पर भी इस पर अपना दावा करता है।

    भारत चीन सीमा

    चीन ने पाकिस्तान, नेपाल, म्यंनमार से अपनी सीमा विवाद समाप्त कर लिया है और रूस कजाकिस्तान, वियतनाम से भूमि  विवादों को विराम दे दिया है। एक मात्र भारत ही है जिसके साथ चीन का सीमा विवाद अभी भी चल रहा है।  हालांकि चीन का सीमा विवाद दक्षिण चीन सागर को लेकर वियतनाम, मलेशिया, जापान सहित अन्य कई देशों से चल रहा है। भारत और चीन के बीच सीमा जो लगभग 4056 किलोमीटर है। तीन क्षेत्रों पूर्वी अरुणाचल प्रदेश से लेकर लिपुलेख दर्रा तक तथा पश्चिमी क्षेत्र जम्मू-कश्मीर में लद्दाख से कराकोरम दर्रा तक फैला हुआ है

    वर्तमान स्थिति

    डोकलाम इलाके में भारत और चीन की सेना कुछ समय पहले आमने-सामने खड़े हो गए थे। दोनों में से कोई भी सेना पीछे हटने की जल्दी में नहीं था जिस इलाके को चीन प्राचीन काल से अपना बता कर सड़क बनाने की बात कर रहा है और भारत को पीछे हटने के लिए कह रहा था।

    भारत लगातार उसे भूटान का क्षेत्र बताते हुए चीन को पीछे हटने को कह रहा था। भूटान की जमीन पर भारत का रुख इसलिए है क्योंकि भूटान से उसके राजनैतिक और सामरिक समझौता है। जिसके तहत भूटान को सैन्य मदद मिलती आ रही है। डोकलाम विवाद पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को कूटनीतिक जीत मिली और चीन को अपनी सेना पीछे हटानी पड़ी।

    डोकलाम के अलावा चीन अरुणाचल प्रदेश पर भी अपना दावा जताता है। चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है। अरुणाचल में भारत के किसी भी कदम का चीन विरोध करता है।

    सीमा विवाद के अलावा व्यापार के क्षेत्र में दोनों देशों के सम्बन्ध मजबूत हैं। भारत सबसे ज्यादा आयात चीन से ही करता है। इसके अलावा कई चीनी कंपनियां भारत में व्यापार कर रही हैं। चीन की मोबाइल कंपनियां जैसे ओप्पो, विवो आदि के लिए भारत सबसे बड़ा बाजार है।

    पाकिस्तान

    चीन द्वारा पाकिस्तान को दिए जा रहे आधुनिक हथियारों को लेकर उपजी सुरक्षा चिंता भारत के लिए असली समस्या है। ‘वन बेल्ट वन रूट’ के अंतर्गत पाकिस्तान में चीन ना केवल काराकोरम राजमार्ग का निर्माण कर के अपनी सेना के लिए अरब सागर तक मार्ग बनाया है। बल्कि इसके साथ ही नेपाल सीमा को राज मार्ग से जोड़ने का एक अनूठा प्रयास भी किया है। जो भारत के लिए सैन्य दृष्टि से बहुत ही घातक है। और चिंता का विषय माना जा रहा है।

    चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा

    चीन की राजनीतिक गतिविधियां भारत को निरंतर सतर्क रहने के लिए स्पष्ट संकेत देती है। क्योंकि चीन भारत को चारो तरफ से घेरने का सतत प्रयास कर रहा है। कुछ भी हो भारत और चीन के बीच सीमा संबंधी विवाद हाल ही में सुलझाना होगा और उन्हें सह अस्तित्व के लिए शर्तों पर सहमत होना ही होगा।

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