Fri. Mar 29th, 2024
    राम माधव: सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर का मामला कही भी नहीं जा पा रहा, सरकार को विकल्प खोजने की जरुरत

    पूर्वी-पश्चिमी राज्यों और जम्मू और कश्मीर के भाजपा प्रभारी राम माधव ने लिज़ मैथियू से कई मुद्दों पर बात की जैसे विवादित नागरिकता संसोधन विधेयक, राम मंदिर, जम्मू और कश्मीर के चुनाव और दक्षिण भारत में भाजपा की संभावनाएं। बातचीत के अंश यहाँ मौजूद हैं-

    विधेयक को लोक सभा से पारित किया गया और राज्य सभा के सामने पेश किया गया। ये सच है कि हमारे कुछ सहयोगी विधेयक के ऊपर कुछ निराशा व्यक्त कर रहे हैं, हम उन सब से बात कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि हमें कोई बीच का रास्ता मिल जाएगा जिससे सभी संतुष्ट हो जाये।

    बीच का रास्ता क्या हो सकता है? 

    मैं अब आपको एक स्पष्ट जवाब नहीं दे सकता। हमारे नेतृत्व ये चर्चा कर रहे हैं कैसे इन चिंताओं पर ध्यान दिया जाये जिसे पूर्वोत्तर के अलग अलग वर्ग और अलग अलग गठबंधन साझीदारों ने व्यक्त किया है। इसी दौरान, हमें सताए हुए लोगों से किये वादे को पूरा करना है। मैं आशा करता हूँ कि राज्य सभा के विधेयक लेने से पहले, हम उन्हें मना पाए।

    आप सरकार और क्षेत्रीय पार्टियों के साथ कई सारी चर्चा आयोजित कर रहे हैं। क्या चुनावी शाम में इतना तनाव लेना इसके लायक है? विधेयक से भाजपा को क्या मिलेगा?

    हम चुनाव के कारण ये विधेयक नहीं लेकर आये। आसन्न एनआरसी पूरा होने के कारण आग्रह आया। ये प्रतिबद्धता है जो हमने लोगों को नियमित कांफ्रेंस, प्रतिज्ञा और यहाँ तक कि भाजपा के मैनिफेस्टो में भी दी है। हमने कहा था कि जो सताया हुआ इन्सान भारत में आएगा हम उसका ध्यान रखेंगे। और ये नया नहीं है। केरल का मामला ले लीजिये-जो पहले सताए हुए लोग भारत आये वो सीरिया से आये इसाई थे। उन्हें भारत में शरण मिली। यहूदी और पारसी भी आये, हमने उनका भी ख्याल रखा। हम उनकी तरफ पीठ कैसे फेर ले?

    रोहिंग्या मुसलमानों का क्या? 

    वो अलग मामला है। हम कह रहे हैं मेजबान देश-म्यांमार सारी जरूरतों को पूरा करे ताकी रोहिंग्या वापस जा सके। और तब तक हम उन्हें यहाँ सता नहीं रहे हैं।

    अन्य मामले में, वे भारत के विभाजन के रूप में कुछ साल पहले लिए गए एक राजनीतिक निर्णय के शिकार थे। भारत का कर्तव्य है कि वह भी पतन को संभालने के लिए बाध्य हो।

    क्या जम्मू और कश्मीर के चुनाव, लोक सभा चुनाव के साथ होंगे?

    ये चुनाव आयोग का फैसला होगा। जहाँ तक हमारी बात है, हम आयोग को बता चुके हैं कि हम तैयार हैं। एक पार्टी होने के नाते, हम चाहते हैं कि चुनाव साथ में हो मगर सुरक्षा बल जैसे चीजों की उपलब्धता को लेकर परेशानी है। ईसी उसी हिसाब से कार्यक्रम तय कर सकती है।

    क्या भाजपा जम्मू और कश्मीर में चुनाव लड़ने के लिए सहयोगी दलों को खोज रही है या आप चुनाव के बाद गठबंधन का विकल्प चुनेंगे? 

    अभी हम राज्य के तीन क्षेत्रों: जम्मू, लद्दाख और कश्मीर घाटी में अपने दम पर चुनाव लड़ने पर विचार कर रहे हैं। हम कम से कम विधानसभा चुनावों के लिए किसी गठबंधन की तलाश नहीं कर रहे हैं।

    राम मंदिर के मुद्दे पर, आप कहते रहे हैं कि सरकार को संतो की मांग पर ध्यान रखते हुए कुछ करना चाहिए। तो क्या सरकार के सुप्रीम कोर्ट से अधिग्रहित गैर-विवादित 67 एकड़ जमीन से यथास्थिति हटाते हुए उसके मालिकों को लौटाने की इजाजत मांगने से वो लोग संतुष्ट हो जाएँगे?

    हमने इस मामले पर स्थगन प्रक्रिया शुरू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की प्रतीक्षा की है। पहले पिछले साल 29 अक्टूबर को होने वाली थी मगर टाल दिया ये कहते हुए कि वे छुट्टियों के बाद लिया जाएगा। फिर जनवरी के पहले हफ्ते होने वाली थी। फिर उन्होंने कहा कि ये उनकी प्राथमिकता का मामला नहीं है। उन्होंने तारीख दी-29 जनवरी। उनके पास फिरसे टालने का बहाना था।

    और अब वे तारीख भी नहीं दे रहे हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट में मामला कही भी नहीं जा पा रहा है। और अब हमारी लोगों के लिए प्रतिबद्धता है। हमारी कानून का पालन करने वाली पार्टी है इसलिए हमारी सरकार ने इतने वक़्त तक इंतज़ार किया। जब उसने कोई फैसला नहीं लिया, तब हमारी सरकार ने करोड़ो लोगों को संतुष्ट करने के लिए उपाय सोचने शुरू किये।

    हालाँकि इस विशेष कदम का कल मुख्य मामले पर कोई सीधा असर नहीं पड़ा था – याद रखें ये दो अलग-अलग मुद्दे हैं – यह वह न्यूनतम है जो हम अभी कर सकते हैं। मैं अब वास्तव में कहूंगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है, सरकार को यह सोचना होगा कि अन्य विकल्प क्या उपलब्ध हैं।

    और इस फैसले में भी हमारे हाथ बंधे हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा यथास्थिति बनाए रखने का आदेश जारी किया गया था।

    दक्षिण भारत की बात करते हैं। क्यों भाजपा क्षेत्र में कोई बड़ा प्रभाव नहीं बना पा रही है? 

    हम कर्नाटक में एक जबरदस्त ताकत हैं। तमिल नाडू, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में हम साथ मिलकर अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए काम कर रहे हैं। हम सहयोगियों को भी खोज रहे हैं, अलग अलग पार्टियों से बातचीत चल रही है।

    कर्नाटक के अलावा दक्षिण में चुनावी ताकत के रूप में बढ़ने के लिए भाजपा को क्या रोक रहा है?

    हमें ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है। अब जब हम पश्चिम बंगाल और ओडिशा में ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, तो हमें वहा से ज्यादा सीटें मिलने की उम्मीद है। इसी तरह, हमें तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी ज्यादा ध्यान देगा होगा जहाँ अतीत में हमारी अच्छी मौजूदगी थी। यदि हम अधिक ध्यान, ऊर्जा और संसाधन लगाते हैं, तो मुझे यकीन है कि हम एक अच्छी सफलता प्राप्त करने में सक्षम होंगे।

    लेकिन अब हमारे हाथ बंधे हुए हैं, इसलिए हमने दूसरी पार्टियों के साथ समझौता किया है। हिंदी पट्टी में ऊंचाई हासिल करने के लिए, हमें अतिरिक्त सीटों के लिए दक्षिण और पूर्वी भारत की ओर देखना होगा।

    भाजपा के कार्यकाल शुरू होने से पहले, पीएम और पार्टी लगातार विकास के बारे में बात करती रही। लेकिन अब यह भावनात्मक मुद्दों पर आ गया है।

    ज़रुरी नहीं है। हमारा पूरा अभियान मुख्य रूप से लोगों के निर्विवाद नेता के रूप में प्रधान मंत्री पर केंद्रित होगा, वितरण हमारे अभियान के लिए केंद्रीय होगा।

    By साक्षी बंसल

    पत्रकारिता की छात्रा जिसे ख़बरों की दुनिया में रूचि है।

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