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    रामनवमी हिंसा

    बीते रामनवमी के दिन पूरे देश भर से हिंसा और साम्प्रदायिक झगड़ो की ख़बर आती रहीं। धर्म के नाम पर उन्मादी भीड़ ने हिंसा, आगजनी, पथराव का जो नंगा नाच देशभर में दिखाया, इक्कीसवीं सदी का भारत को इसे आज़ादी दिलाने वाले महापुरुषों के सपनों से निश्चित ही कोसों दूर ले जा रहा है।

    पहले कर्नाटक, फिर राजस्थान (करौली) और उसके बाद गुजरात (हिम्मतनगर), मध्यप्रदेश (खरगौन), बिहार (मुजफ्फरपुर), झारखंड (लोहरदगा) सहित देश के अलग अलग हिस्सों में धर्म के नशे में चूर उन्मादी भीड़ ने भारत के एकता को खंडित करने का काम किया है।

    कई प्रदेशों में रामनवमी के मौके पर हुई हिंसा

    मध्य प्रदेश के खरगौन के अलग अलग हिस्सों में भड़की हिंसा में कई दूकानों, वाहनों सहित कम से कम 10 घरों को आग के हवाले कर दिया गया और 50 से ज्यादा लोग घायल हुए।

    गुजरात के हिम्मतनगर और खंभात में कई दुकानों और गाड़ियों को जला दिया गया तथा दोनों पक्षों से जमकर पत्थरबाज़ी हुई जिसमें कई लोगों के घायल होने की ख़बर है। भीड़ इतनी उन्मादी और जुनूनी थी कि उसे रोकने के लिए गुजरात पुलिस को आँसू गैस के गोले दागने पड़े।

    वहीं बिहार के मुजफ्फरपुर में 2 जगहों पर हिंसा भड़कने की ख़बर है। सोशल मीडिया पर वायरल एक तस्वीर में, जो कथित तौर पर मुजफ्फरपुर की है,  कुछ भगवाधारी युवा एक मस्जिद के ऊपर भगवा ध्वज फहराते दिखाई दे रहे हैं।

    रामनवमी हिंसा: Muzzaffarpur
    Image Source: News jani

    ऐसी ही खबरें झारखंड के लोहरदग्गा से सामने आई हैं जब दो समुदाय के लोग आमने-सामने हो गए और दोनों पक्षों के बीच यहाँ भी हिंसक झड़प की खबर सामने आई है।

    दिल्ली के जेएनयू (JNU) विश्वविद्यालय में भी नवरात्रि में।मीट खाने को लेकर हुई बहस में दो गुटों के बीच मारपीट की ख़बर आयी। देश के प्रतिष्ठित विश्विद्यालय में अगर “राइट टू फ़ूड” को लेकर नए युवा पीढ़ी के बीच इस तरह की झड़प “नए इंडिया” के साख पर दाग ही लगा रहे हैं, और कुछ नही।

    इस से पहले चैत्र नवरात्रि के शुरुआत में  राजस्थान के करौली में धार्मिक उन्माद के नशे में चूर लोगों के कारण हिंसात्मक झड़प, मारपीट, पत्थरबाज़ी और आगजनी की खबरें आई थी।

    लगभग सभी हिंसा में एक सा पैटर्न

    अब ऊपर के सभी हिंसात्मक घटनाओं में लगभग सभी केस में कथित तौर पर एक सा पैटर्न दिखा। हिन्दू युवाओं की भीड़ रामनवमी का जुलूस लेकर मुस्लिम बाहुल्य इलाकों से निकलते हैं। वहाँ धर्म के नाम पर भड़काऊ गाने DJ पर बजाए जाते हैं और हूटिंग की गई। दूसरे पक्ष के लोग भी उत्तेजित और उन्मादी होते हुए इन युवाओं पर पत्थर बाजी करते हैं और फिर हिंसा भड़काने की चिंगारी को एक हवा मिल जाती है।

    सोशल मीडिया पर देश के अलग अलग हिस्सों से आई  कई ऐसे वीडियो आपको मिल जाएंगे जिसमे साफ़ दिखाई दे रहा है कि किस तरह से एक धर्म के लोगों को दूसरे के ख़िलाफ़ भड़काया गया है।

    एक्शन-रिएक्शन के इस खेल में धर्म के नाम पर निकली जुलूस में शामिल लोग अब एक उन्मादी भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं और फिर शुरू हो जाता है हिंसा का खेल- कहीं आगज़नी, कहीं आगजनी, कहीं मस्जिदों पर झंडा फहराना तो कुछ और….कुल मिलाकर, मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्मदिन पर साम्प्रदायिक सद्भाव और धार्मिक मर्यादा की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं।

    सवाल कानून व्यवस्था पर भी…

    ऐसे में जब एक ही पैटर्न पर हिंसा भड़कायी जा रही है तो राजस्थान के करौली में एक निंदनीय घटना हो जाने के बाद अन्य राज्यों के पुलिस और कानून व्यवस्था के पास कोई दुरुस्त तरीका था?

    जब नवरात्र और रामनवमी के संदर्भ में मीट खाने और न खाने से लेकर मुस्लिम दुकानदारों को दुकान लगाने देने या न देने जैसे विषयों पर लगातार देश भर में मीडिया और सोशल मीडिया पर लिखा जा रहा था; तब भी किसी बड़े जिम्मेदार नेता या कानून के नुमाइंदों ने इसके लिए कोई अपील की ??

    संवेदनशील इलाकों में क्या अतिरिक्त पुलिस बल की व्यवस्था थी या क्या उनके पास रामनवमी के बडे जुलूस को लेकर कोई गाइडलाइंस और उसे पालन करवाने हेतू कानून कोई प्लान था?

    ऐसे तमाम सवाल हैं जो सरकार और कानून चलाने वाले जिम्मेदार पद पर बैठे लोगों से पूछा जाना चाहिए। उनसे पूछा जाना चाहिए कि आखिर उन्हें इन धार्मिक टकराव और आपसी सद्भाव को बिखेरे जाने का एक मूक जिम्मेदार क्यों ना माना जाए?

    सवाल न्याय व्यवस्था से भी हो…

    देश के किसी भी कोने में बैठे आम-आदमी को लोकतंत्र के 4 खंभों में सबसे ज्यादा उम्मीद तीसरे खंभे यानि देश की न्यायालयों से होती है।

    माना कि इन मामलों पर न्यायालय और न्यायाधीश महोदय सीधा हस्तक्षेप नहीं कर सकते लेकिन संविधान ने जो अधिकार “न्यायाधीश के कलम” को दिए हैं, उन अधिकारों को किसी “राजनैतिक बुलडोजर” तले कुचला जाये तो देश के न्याय प्रणाली को भी आत्मचिंतन की आवश्यकता है।

    अब मध्यप्रदेश के खरगौन में हुए हिंसा में न्याय की नई नजीर पेश की गई है और इसकी जितनी भर्त्सना की जाए वह कम है। धार्मिक उन्माद और हिंसा के बदले बिना कोई जाँच और रिपोर्ट्स के एक विशेष समुदाय के लोगों के घरों का बुल्डोजर तले कुचल देना भला कहाँ का न्याय है?

    Bulldozer on the houses in Khargaon
    Image Source: apnlive.com

    इस से तो यही साबित होता है जो फैसला जज की कुर्सी पर बैठे जिम्मेदार व्यक्ति को करनी चाहिए, वे फैसले राजनीति के गद्दी पर बैठे वोट के सौदागरों के द्वारा किया जा रहा है। ऐसे में इन हमलों के लिए ना सिर्फ धार्मिक कट्टरता बल्कि समाज और देश के कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए जिम्मेदार लोकतंत्र का हर आयाम जिम्मेदार है।

    “…पता नहीं ये धार्मिक दंगे कब भारतवर्ष का पीछा छोड़ेंगे?”

    खैर, इन सब के लिए कौन है जिम्मेदार, यह एक यक्ष प्रश्न है। आज से लगभग सौ साल पहले 1928 में लाहौर हिंसा पर वीर भगत सिंह ने एक लेख में लिखा था- “…पता नहीं ये धार्मिक दंगे कब भारतवर्ष का पीछा छोड़ेंगे?” उनका प्रश्न आज भी ज्यों का त्यों खड़ा है।

    देश का हर युवा भगत सिंह की जिंदगी को अपना आदर्श मानते हुए सोशल मीडिया पर तरह तरह के पोस्ट और सैंकड़ो लाइक और शेयर की लालसा रखता है। क्या यही युवा अपने आदर्श भगत सिंह के उस सवाल का जवाब दे पाएंगे कि “भारतवर्ष से धार्मिक हिंसा और हिन्दू-मुसलमान कब खत्म होगा?”

    यह भी पढ़ें:- साम्प्रदायिकता (Communalism): क्या यही है “नए भारत (New India)” के डीएनए में?

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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