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    bhupesh baghel

    भूपेश बघेल, ये वो नाम है जिसने छतीसगढ़ में मृत पड़ी कांग्रेस को अपने अथक मेहनत से फिर से राज्य की राजनीति में जीवित कर दिया। बधेल ने छत्तीसगढ़ में पिछले 15 सालों से देश की सबसे पुरानी पार्टी के हार के दलदल में धंसे रथ को खिंच कर विजय के पथ पर लायें।

    2013 के विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी हर के बाद कांग्रेस पस्त हो चुकी थी। उसके पास कोई ऐसा नेता नहीं था जो उनमे फिर से उठ खड़े होने का जज्बा जगा सके ऐसे में भूपेश बधेल को छत्तीसगढ़ की कमान सौंपी गई। राज्य में पार्टी की जिम्मेदारी सँभालने के बाद भूपेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी राज्य में कांग्रेस के संगठन को पुनर्जीवित करना और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और उनके समर्थकों के समूह से निपटना जिसके कारण राज्य में पार्टी में आपसी लड़ाई अपने चरम पर पहुँच गई थी।

    राज्य में पार्टी को पुनर्जीवित करने के क्रम में वो कड़े फैसले लेने से भी पीछे नहीं हटे। राज्य में अजीत जोगी परिवार के चंगुल में फंसे पार्टी को बचाने के लिए उन्होंने जोगी और उनके बेटे को पार्टी से बाहर निकाला।

    राज्य में मुख्यमंत्री रमन सिंह की छवि अच्छी बनी हुई थी लेकिन बघेल ने एक एक कर के राज्य में निचले स्तर तक फैले भ्रष्टाचार की पोल खोलनी शुरू की और रमन सिंह के खिलाफ खुलेआम लड़ाई का ऐलान कर दिया।

    छतीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है और किसानों के धान खरीद के मुद्दे पर जिस तरह वो किसनों के साथ खड़े हुए या फिर राशन कार्ड में कटौती के मुद्दे पर रमन सरकार का कड़ा विरोध किया उससे राज्य में ये सन्देश गया कि कोई है जो रमन सिंह सरकार की मनमानियों और ज्यादतियों के खिलाफ आवाज उठा सकता है। उससे पहले कांग्रेसी नेताओं के रमण सिंह के साथ मित्रवत सम्बन्ध थे और कोई उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं करता था लेकिन बघेल ने इस धारणा को बदला और सीधे मुख्यमंत्री पर हमले करने लगे।

    रमन सिंह सरकार से खुलेआम टकराव मोल लेने के कारण बघेल और उनके परिवार पर कई केस हुए लेकिन बघेल रमन सिंह के भ्रष्ट शासन के विकल्प के रूप में कांग्रेस को तैयार करने में लगे रहे।

    बधेल के कड़े और तीखे तेवरों का ही नतीजा था कि राज्य में मृत पड़ा कांग्रेस का संगठन रमन सिंह के खिलाफ सड़कों पर उतरा। ये रमन सिंह के लिए पहली बार सबसे बड़ी चुनौती थी। इससे पहले के उनके 2 कार्यकाल में उनके खिलाफ काफी किसी को खड़ा होते हुए नहीं देखा गया।

    भाजपा समझ चुकी थी कि इस बार रमन सिंह को टक्कर देने के लिए कोई मैदान में उतर चूका है इसलिए प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की तरफ से चुनाव प्रचार के दौरान बधेल पर सीधे हमले होने लगे।

    राज्य की जनता के सामने भी पिछले 15 वर्षों में कांग्रेस, भाजपा और रमन सिंह का विकल्प बन कर उभरी तो इसका श्रेय भूपेश की अथक मेहनत को जाता है।

    छतीसगढ़ में अभी कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद उम्मीदवार की घोषणा नहीं हुई है लेकिन संभावना यही है बघेल को उनकी म्हणत का परिणाम मिलेगा और राज्य के सत्ता की बागडोर उनके ही हाथों में जायेगी।

    By आदर्श कुमार

    आदर्श कुमार ने इंजीनियरिंग की पढाई की है। राजनीति में रूचि होने के कारण उन्होंने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया। उन्होंने कई वेबसाइट पर स्वतंत्र लेखक के रूप में काम किया है। द इन्डियन वायर पर वो राजनीति से जुड़े मुद्दों पर लिखते हैं।

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