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दहेज प्रथा पर निबंध

‘शादी’ शब्द सुनते ही एक नए से खुशनुमे माहौल का प्रबिम्ब हमारे मन में उभर जाता है। शादी को भारत में एक त्योहार की भांति मनाया जाता है। जीवन की नई शुरूआत के नाम से भी कई बार शादी के बंधन को जोड़ा जाता है। पर क्या यही वास्तविकता है? क्या सच में शादी इतनी खूबसूरत होती है?

जी नहीं, कई बार यह बहुत सुंदर अनुभव होता है और कई बार यह एक दर्दनाक एहसास की तरह उभर कर सामने आता है। भारत के इस रूढ़िवादी समाज में शादी दहेज प्रथा के बिना बिल्कुल अधूरी है। भारतीय महिलाओं के दृष्टिकोण से देखा जाए तो भारत में दहेज प्रथा का चलन एक कुरीति के रूप में है।

इक्कीसवीं सदी में हम अपने आप को विकसित तो कहते हैं परंतु आज भी हम सदियों पुराने रीति रिवाजों की बेड़ियों में फसे हैं। किसी न किसी प्रकार से हमारे समाज में आज भी दहेज लिया और दिया जाता है। दहेज प्रथा हमारे देश के पुरूष प्रधान समाज को दर्शाती है और यह बताती है कि आज भी भारत में महिलाओं को निम्न स्तर का दर्जो दिया जाता है और वह इस समाज का शक्तिहीन अंग है।

दहेज प्रथा क्या है?

दहेज शादी के समय में लड़की के परिवार द्वारा लड़के के घर वालो को दिया जाता है। दहेज के रूप में गाड़ी, सोने और चांदी के जेवर, पैसे और संपत्ति दी जाती है। यह प्रथा इसलिए शुरू हुई थी जिससे माता पिता अपनी बेटी को अच्छी तरह से स्थापित कर सकें। परंतु आज यह प्रथा शादी के लिए आवश्यक हो गई है।

इस समय माता पिता अपनी बेटी को दहेज इसलिए देते हैं जिससे की वो अपने पति के घर में सुरक्षित रह सके। सुरक्षित रह सके? जी हां क्योकि अगर दुल्हन शादी के बाद घर में दहेज नहीं लाई तो उसको मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान किया जाता है। इसी कारणवश माता पिता अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए दहेज देते हैं और दुल्हे के परिवार की सभी शर्तें भी पूरी करते हैं। माता पिता द्वारा दिए गए पैसे और गहनों को स्त्रीधन के नाम से बुलाया जाता है वैसे तो यह सब उस लड़की का होता है परंतु ससुराल में आने के पश्चात् यह सब कुछ और अन्य दहेज लड़के वालो का हो जाता है।

दहेज देने की कोई सीमा नहीं है। यह सब निर्भर करता है लड़के की नौकरी पर, उनके समाजिक स्तर पर और उनकी मांगो पर। दहेज प्रथा से यह भी बताया जाता है कि लड़की के गुणों और उसकी अच्छाइयों से बढ़कर दहेज होता है। लड़के के पालन पोषण और उसकी पढ़ाई के जीवन भर के खर्च के रूप में दहेज दिया जाता है।

भारत में एक बड़ी जनसंख्या है जो लोन लेकर और ज्यादा ब्याज पर उधार लेकर लड़की की शादी में मांगा गया दहेज देती है। दहेज प्रथा को खत्म करने के लिए कन्या भ्रुण हत्या का सहारा लिया जाता है कि अगर लड़की पैदा ही नहीं होगी तो दहेज देना ही नहीं पड़ेगा। आज भी भारत में एक बेटी के जन्म को दुख और शौक के साथ मनाया जाता है। वहीं अगर बेटे का जन्म हुआ तो स्थित बिल्कुल विपरीत होती है।

दहेज के कारण

1. लालच

दहेज की मांग इसलिए की जाती है जिससे लड़के के परिवार की सामाजिक इज्जत बची रहे। देख दिखावे के लिए भी दहेज दिया जाता है। लड़के को आर्थिक रूप से मजबूती देने के लिए दहेज का उपयोग होता है।

दहेज की मांग बिना किसी शर्म के मांगी जाती है और इन मांगो को शांतिपूर्वक पूरा किया जाता है। अगर दहेज नही दिया जाता तो रिश्ता तोड़ने की धमकी दी जाती है।

आज के जमाने में लड़के के घरवाले लालच में आकर मनचाही रकम दहेज़ के रूप में मांगते हैं।

2. समाजिक ढ़ांचा

मानसिक और शरीरिक दोनों रूपों से महिलाओं को निम्न माना जाता रहा है। भारत का समाज आज भी पुरूष प्रधान है। ऐसे समाज में महिलाओं को बोझ समझा जाता है।

पहले आर्थिक रूप से उन्हें अपने माता पिता पर बोझ कहा जाता है और शादी के बाद वह अपने पति पर बोझ कहलाती हैं। यह एक मात्र कारण है जिस की वजह से महिलाओं को दहेज़ देने के लिए दबाव दिया जाता है।

3. सामाजिक मुद्दा

धर्म के साथ साथ शादी से पहले दूसरे परिवार की आर्थिक व्यवस्था भी देखी जाती है। यह माना जाता है कि सबसे अच्छा जोड़ा वही है जो एक धर्म का हो पर उसका गोत्र अलग हो। इसके साथ ही साथ वह आर्थिक औहदे में बराबर हो या आपसे ज्यादा अमीर हो। आर्थिक रूप से अच्छे परिवार इसीलिए दहेज की मांग रखते हैं।

4. समाज में महिलाओं का दर्जा

हमारे देश में महिलाओं को कमजोर का दर्जा दिया जाता है। यह सोच भारत के लोगो में इस प्रकार बसी है कि वह महिलाओं को अपने से ज्यादा सफल देखना पसंद ही नहीं करते। शादी को महिलाओं के लिए एक मात्र उपलब्धि माना जाता है।

5. निरक्षरता

शिक्षित न होना भी कुरीतियों के प्रचलन में रहने का कारण है। हमारे देश की विडंबना तो देखिए यहां पर यह माना जाता है कि अगर किसी लड़की को शिक्षित किया जाएगा तो उसके अंदर से अच्छी पत्नी होने के गुण विलुप्त हो जाएंगे।

इसी कारण से लड़कियों को जीवन में आगे बढनें के लिए पति पर निर्भर रहना पड़ता है।

6. रीति रिवाजों का पालन करना

भारतीय धर्म में रीति रिवाजों को प्रश्न नहीं करते और उनका पालन करना एक अपना धर्म समझते है। धर्म के सभी कामों को भारतीय आंखे मुंद कर करते है और इसकी तरह आगे आने वाली पीढ़ियो को सौंपते हैं।

दहेज को भी लोगों नें आज एक रिवाज बना दिया है। इसे हटाने के लिए लोग बातें करना पसंद नहीं करते हैं।

7. दिखावा करना

दहेज को दिखावा करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। समाज में दहेज कितना दिया है उस हिसाब से शादी की सफलता मापी जाती है। सामाजिक स्तर को निभाने के लिए भारत में कई बार दहेज दिया जाता है।

लड़के के घर कितना दहेज दिया गया है यह लड़की और लड़के के परिवार की इज्जत तय करता है।

दहेज प्रथा का प्रभाव

  • लड़की के साथ अन्याय होता है। एक बेटी के जन्म से ही यह मान लिया जाता है कि वह एक बोझ है और पैसे बरबाद करने का एक स़्त्रोत। इस मानसिकता के कारण भ्रुण हत्या की शुरूआत हुई। पैसे को कम खर्च करने के लिए भी लड़को को शिक्षित नहीं किया जाता। एक लड़की को बचपन से यही सिखाया जाता है कि उसे घर का काम करना आना चाहिए और चूल्हा चौका ही उसका जीवन है। बाल विवाह की शुरूआत भी इसी कारण से हुई थी कि परिवार का खर्च बचेगा। पहले यह माना जाता था कि जितनी ज्यादा लड़की की उम्र होगी उतनी ही दहेज की संख्या बढ़ेगी।
  • महिलाओं के प्रति अत्याचार होता है। लड़की के परिवार के अनुसार एक बार दहेज देकर और शादी कर वह संतुष्ट हो जाते है कि उनकी बेटी खुश रहेगी। परंतु लड़के का परिवार यह मानता है कि अब उसके पास पैसो का एक स्त्रोत मौजूद है। वह लड़की का उत्पीड़न करते है और पैसो की मांग करते हैं। कई बार महिलाओं के साथ मारपीट की जाती है उन्हें मानसिक तनाव दिया जाता है और कई बार उनको मार भी दिया जाता है। दहेज के कारण महिला को जला कर मारने की खबरें देश में आम हैं।
  • भारत में भ्रुण हत्या के कारण महिला और पुरूषो का लिंग संतुलन खराब हो रहा है। यह भारत के लिए बेहद खतरनाक स्थित है। हरियाणा और राजस्थान में महिला भ्रुण हत्या के कारण लिंग अनुपात बहुत कम हो गया है। इन राज्यों में 1000 लड़को पर 830 लडकियां हैं। इसी वजह से महिलाओं के खिलाफ अपराधो में वृद्धि हुई है।
  • सदियों से ही महिलाओं को निचला दर्जा दिया गया है। इस कारण उनकी मानसिकता कुछ इस प्रकार हो गई है कि वह अपने आप को कमजोर समझने लगीं हैं। दहेज और कई अन्य रीतियों के कारण हमारे देश में महिला सशक्तिकरण की गति धीमी हो रही है।

दहेज प्रथा को खत्म करने के उपाय

1. सख्त कानून

दहेज जैसे अपराध को रोकने के लिए भारत में बहुत सारे कानून हैं। दहेज रोकने का एक कानून भारत में 20 मई 1961 को लागू हुआ। इस कानून को हमारे देश में लाने का कारण था, महिलाओं को समान अधिकार देना और दहेज को रोकना।

दहेज के लेने देन को ही जुर्म माना गया और इसके खिलाफ सजा भी बनाई गई। दहेज की मांग करने के लिए कम से कम पंद्रह हजार का जुर्माना है और पांच साल की जेल। धारा 498ए के अंर्तगत पति और पति के परिवार द्वारा किए हुए अत्याचार के खिलाफ सज़ा का बखान है। धारा 113 ‘ए’ के अंदर लड़की के परिवार वाले अपनी बेटी की मृत्यु के लिए लड़के के परिवार के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा सकतें हैं।

इन कानूनों के बावजूद भी दहेज़ प्रथा की समस्या समाज में कम नहीं हो रही है।

2. कानून का पालन होना

हमारे देश में कानून तो बहुत हैं परंतु उनका पालन नहीं होता। दहेज के अपराध को रोकने के लिए कड़ी सजा होनी चाहिए और सही तरीके से कानून का पालन होना चाहिए। हर मुकदमें में सही जांच होनी चाहिए और सजा मिलनी चाहिए। ऐसे मुकदमों में बरी करने का प्रावधान नहीं होना चाहिए।

3. सामाजिक जागरूकता

दहेज की जड़े उखाड़ फेकनें के लिए हमें समाज में जागरूकता फैलानी होगी। यह समझाना होगा कि लड़के और लड़कियों दोनों को समान अधिकार मिलने चाहिए। दोनों को शिक्षित होने का अधिकार है व लड़की किसी परिवार पर बोझ नहीं होती।

महिलाओं को हमें उनके अधिकारों के बारें में जागरूक करना होगा एवं उन्हें कानून के बारे में बताना होगा। हमें यह समझाना होगा कि महिलाएं किसी से कम नहीं हैं और वह वो सब काम कर सकती है जो पुरूष करते हैं।

4. शिक्षित करना और आत्मनिर्भर करना

शिक्षा एक ऐसा जरिया है जो किसी भी मनुष्य के जीवन में बदलाव ला सकती हैं। शिक्षित होने के पश्चात् मनुष्य आत्मनिर्भर हो जाता है। उसको दुनिया का ज्ञान प्राप्त होता है कि हमें अपने आप को कैसे सफल बनाना है। हमें स्वंय की मदद कैसे करनी है, यह सब हमें शिक्षा सिखाती है।

शिक्षा के द्वारा ही हम अपने अधिकारों के बारे में जागरूक होते हैं। अगर महिलाएं अपने अधिकारों के बारे में जागरूक हो जाएंगी तो वह अपने खिलाफ हो रहे अन्याय से लड़नें के काबिल बन जाएंगी।

5- मानसिकता

भारत की मानसिकता में धीरे धीरे सुधार आ रहा है। आज हमारे समाज को यह पता चल चुका है कि दोनों लिंग को बराबरी देने से ही देश प्रगति पर चलेगा। हमारी प्रकृति में महिलाओं और पुरूषों दोनों की आवश्यकता है।

संसार को आगे बढ़ाने के लिए जितना योगदान पुरूष का है उतना ही योगदान महिलाओं का भी है। अगर महिलाएं सशक्त होंगी तो वह किसी पर बोझ नहीं कहलांएगी।

हमें आशा है कि इस दहेज़ प्रथा पर निबंध से लोगों पर सकारात्मक असर पड़ेगा। आप अपने विचार नीचे कमेंट में शेयर कर सकते हैं।

2 thoughts on “दहेज प्रथा निबंध: अर्थ, प्रभाव और हल”
  1. 21वी शताब्दी में भी दहेज़ प्रथा एक गंभीर समस्या है. दहेज़ के कारण बहुत सी औरतों को प्रताड़ना झेलना पड़ता है. गाँवों में तो औरतों को मार भी दिया जाता है. हमें दहेज़ प्रथा के कारण जानते हुए दहेज़ प्रथा को रोकना चाहिए.

  2. दहेज़ प्रथा पर निबंध Essay on dowry system in india in hindi
    वर्तमान में हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, पर आज भी भारत बहुत से मामलों में पिछड़ा हुआ है। दहेज प्रथा (dowry system) जहां पर एक मुख्य कुरीति है। भारत में जब किसी परिवार में लड़की का जन्म होता है तो उसका पिता दहेज को लेकर चिंतित होता है, क्योंकि यहां पर आमतौर पर लड़की के विवाह होने पर उसके पिता को दहेज में 10 से 20 लाख रुपए खर्च करने होते हैं।
    दहेज़ प्रथा क्या है? what is dowry system
    दहेज की प्रथा को समझने के लिए भारत का इतिहास पढ़ना होगा। मनुस्मृति में मनु ने दहेज प्रथा के बारे में लिखा है। विवाह के समय लड़की के माता-पिता उसे कुछ उपहार अपनी इच्छा से देते थे जिसे दहेज कहते थे। धीरे-धीरे यह प्रथा आगे बढ़ती गई और अब ऐसा समय आ गया है कि लड़का पक्ष दहेज को अपना अधिकार मानते हैं। वर्तमान में लड़के वाले शादी में नगदी मोटरसाइकिल कार घर के सभी उपकरण जैसे रजाई गद्दा बेड टीवी फ्रिज कूलर सोने के गहने दहेज के रूप में मांगते हैं।
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