तनाव-ग्रस्त भारत: हाल ही में महाराष्ट्र के पुणे स्थित अर्न्स्ट एंड यंग नामक कंपनी की 26 वर्षीया चार्टर्ड अकाउंटेंट की मृत्यु ने सोशल मीडिया से लेकर मुख्य मीडिया में छाया रहा। दरअसल, इस मौत की वजह अत्यधिक कार्य भार (Excess Work Load) और विषाक्त कार्य संस्कृति (Toxic Work Culture) के कारण हुए तनाव (Stress) को माना जा रहा है।
इस खबर के बाद सोशल मीडिया पर अनेकों ऐसी खबरें सामने आईं जिसमें कार्य-क्षेत्र पर लोगों को अत्यधिक कार्य करने के लिए मज़बूर किया जाता है। कार्यक्षेत्र में कैसे हर भारतीय को तनाव से से दो-चार होना पड़ता है, इस से जुड़े अनेकों खबर सामने आई।
“किसी को भी हफ्ते में 5 दिन और 8 घंटे से ज्यादा काम नहीं करना चाहिए”
◆ 26 साल की CA एना सेबेस्टियन की मौत पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा
Anna Sebastian | #AnnaSebastian | @ShashiTharoor pic.twitter.com/IQI1SgUDMo
— News24 (@news24tvchannel) September 21, 2024
बिहार के सासाराम से एक निजी बैंक में मैनेजर द्वारा रात के 11 बजे बैंक के भीतर अपने कर्मचारियों से काम करवाने और टारगेट पूरा न होने पर उनको गालियाँ देने और दुर्व्यवहार करने की ख़बर वायरल हुई।
प्राइवेट कंपनी में लोगों के साथ अतिरिक्त कार्य और टारगेट के नाम पर कैसे लोगों का शोषण किया जाता है, यह कोई छुपी बात नहीं है। लेकिन सवाल यह है कि क्या तनाव सिर्फ जीवन के इसी आयाम में शामिल है या अन्य आयामों पर भी इसका असर पड़ रहा है? और क्या हम इसे माप सकते हैं?
तनाव: भारतीय समाज की सच्चाई
दरअसल, तनाव (Stress) अब भारतीय समाज की एक ऐसी सच्चाई है जिससे हर कोई जूझ रहा है। इसके कई कारण हो सकते हैं- जैसे प्रोफेशनल लाइफ, पर्सनल लाइफ, पढ़ाई व करियर की चिंता, अतिरिक्त कार्य-भार, रिलेशनशिप, सामाजिक या वित्तीय हालात आदि आदि। दिमाग मे लगातार हावी रहने वाला तनाव कई दफा इंसान को ऐसे कदम उठाने पर मज़बूर कर देता है जहाँ से वापसी का कोई रास्ता नही बचता।
ICICI Lombard के द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन India Wellness Index 2023 के मुताबिक, वर्तमान में भारत की नई पीढ़ी (Gen Z) पर तनाव का खतरा पुराने पीढ़ी की तुलना में कहीं ज्यादा मंडरा रहा है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 77% भारतीयों में तनाव का कम से कम एक लक्षण अवश्य दिखाई दिया और तीसरा भारतीय तनाव व चिंता की समस्या से जूझ रहा है।
सबसे अव्वल तो यह कि भारतीय समाज मे तनाव को तब तक समस्या नहीं मानते जब तक पीड़ित व्यक्ति को पूरा पागल न घोषित कर दिया जाए। नतीज़तन समाज मे लोग खुद को तनावग्रस्त बताने में भी झिझकते हैं और अपने तनाव को छुपाने के लिए एक अलग तनाव का शिकार हो जाते हैं।
NCRB के आंकड़े में आत्महत्या का बढ़ता ग्राफ भी यही बताता है कि कहीं ना कहीं भारतीय अपने जीवन में खुशहाल नहीं है। NCRB के अनुसार, 2017 में प्रति 1 लाख जनसंख्या पर आत्महत्या की दर 9.9 थी; जो साल 2022 में बढ़कर 12.4 प्रति 1 लाख आबादी हो गया है जो बीते 56 सालों में अधिकतम है।
भारतीयों के जीवन में तनाव और चिंता का सबब इस क़दर है कि विश्व खुशहाली सूचकांक 2024 में 143 देशों में भारत का स्थान 126वां है। स्पष्ट है कि भारत वर्तमान में दुनिया के सबसे कम खुशहाल देशों में शुमार है। यहाँ तक कि भारत के पड़ोसी मुल्क नेपाल (93), पाकिस्तान (108 वां) और म्यांमार (118) भी भारत से ज्यादा खुशहाल हैं.
महिलाओं में पुरुषों की तुलना में तनाव लेने की प्रवृत्ति ज्यादा
तनाव किसी को भी है, दिल और दिमाग को चोट तो पहुंचाता ही है। परंतु यह देखा गया है कि महिलाओं में पुरुषों की तुलना में तनाव लेने की प्रवृत्ति ज्यादा होती है। इसके पीछे की वजह उनका जीवन के प्रति नजरिया है।
दरअसल महिलाएं किसी भी समस्या की जड़ तक जाती हैं, उसमें उलझती हैं और उनका तनाव का स्तर बढ़ता जाता है। वे जीवन के हर आयाम पर परफेक्शनिस्ट होना चाहती है और किसी भी समस्या में पूरी ताक़त झोंक देती है। लिहाज़ा किसी समस्या के बारे में ज्यादा सोचने से और फिक्र करने से तनाव और चिंता उनके दिल-ओ-दिमाग पर कब हावी हो जाता है, पता नहीं चलता।
तनाव क्या है ? क्या इसे मापा जा सकता है?
आमतौर पर तनाव के दौरान शरीर के अंदर से कई तरह के हार्मोन जैसे एड्रीनलीन, कॉर्टिसोल और नोरेडरिनेलिन रिलीज़ होते हैं। ये हार्मोन शरीर मे कई तरह के हलचल मचा देते हैं।
जबकि तनाव एक अमूर्त चीज़ है और इसकी धारणा हर व्यक्ति में अलग-अलग होती है. इसे मापने का एकमात्र तरीका यह अध्ययन करना है कि शरीर इस पर कैसे प्रतिक्रिया करता है।
कोई भी परीक्षण इसे इस तरह नहीं माप सकता है, हालांकि स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा हृदय गति परिवर्तनशीलता (या दिल की धड़कन के बीच समय में अंतर), ईईजी (इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राफी) के माध्यम से मस्तिष्क तरंगों और अनियमित पैटर्न का अध्ययन और रक्त परीक्षण के माध्यम से उच्च कोर्टिसोल स्तर के परीक्षण का सुझाव दिया जाता है।
कुप्रभाव
क्रोनिक और लंबे समय तक तनाव से हृदय रोग, टाइप 2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप और उच्च लिपिड स्तर की शुरुआत हो सकती है। इससे बालों का झड़ना, मुंहासे, एलर्जी, अस्थमा, थायरॉइड विकार, मासिक धर्म संबंधी समस्याएं, ऑटो-इम्यून रोग या कम प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया भी हो सकती है।
दीर्घकालिक और दीर्घकालिक तनाव अवसाद, अभिघातजन्य तनाव विकार, खान-पान संबंधी विकार और यौन रोग जैसे मनोवैज्ञानिक विकारों को जन्म दे सकता है।
कैसे करें अवसाद का मुक़ाबला ?
यह कहना आसान है लेकिन करना आसान नहीं है। वास्तव में तनाव से लड़ाई में स्व-देखभाल बेहतर विकल्प है। कार्यों को प्रबंधनीय समय स्लॉट में विभाजित करने के लिए कार्य सूची या ऐप्स जैसे टूल का उपयोग करें। काम और व्यक्तिगत समय के बीच स्पष्ट सीमाएँ निर्धारित करें। काम को घर ले जाने या काम के घंटों के बाहर ईमेल का जवाब देने से बचें।
यदि आप पहले ही बर्नआउट को रोकने की अपनी पूरी क्षमता तक पहुँच चुके हैं तो अतिरिक्त कार्यों के लिए विनम्रता से ‘नहीं’ कहना सीखें। थोड़ी देर टहलने या किसी प्रकार की शारीरिक गतिविधि से एंडोर्फिन रिलीज करें, स्वच्छ भोजन करें, सोएं और गहरी सांस लेने के व्यायाम करें।
अंत में, उस पर ध्यान केंद्रित करें जिसे आप नियंत्रित कर सकते हैं और जिसे आप नियंत्रित नहीं कर सकते उसे भूल जाएं। एक स्वस्थ कार्य-जीवन संतुलन दूसरों का उपहार नहीं है, यह स्वयं के साथ सही व्यवहार करने के बारे में है।