Fri. Apr 26th, 2024
    आगामी विधानसभा चुनाव 2018

    देश में पिछले काफी समय से यह बहस चल रही है कि क्या लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं? इस बात की अटकलें लगाई जा रही थी कि सत्ताधारी मोदी सरकार आगामी वर्ष के आखिर तक चुनावी रण में कूद सकती है। मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत के बयान ने इन अटकलों को और बल दे दिया है। एक कार्यक्रम में शामिल होने मध्य प्रदेश पहुँचे देश के मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने बुधवार को यह कहकर सियासी महकमों में हलचल ला दी कि सितम्बर, 2018 से पहले देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराना संभव नहीं होगा। उन्होंने कहा कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए कुल 40 लाख वोटिंग मशीनों की जरुरत होगी जो अगले वर्ष सितम्बर तक ही उपलब्ध हो सकेंगी।

    मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने बताया कि केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग से एक साथ चुनाव कराने के विषय में जानकारी मांगी थी। चुनाव आयोग से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर केंद्र सरकार ने आवश्यक धनराशि मुहैया करा दी है। चुनाव आयोग को ईवीएम मशीनों के लिए 12,000 करोड़ एवं वीवीपीएटी मशीनों के लिए 3,400 करोड़ रुपए की धनराशि उपलब्ध कराई गई हैं। मशीनों के निर्माण के लिए चुनाव आयोग ने सरकारी क्षेत्र की दो कंपनियों को आर्डर दिया है। सितम्बर, 2018 तक सभी 40,00,000 मशीनें चुनाव आयोग को मिल जाएंगी। उसके बाद चुनाव आयोग जब चाहे देशभर में एक साथ चुनाव करवा सकता है। देश का संविधान इसकी इजाजत देता है और चुनाव आयोग अपनी सुविधानुसार “समय पूर्व” चुनाव करा सकता है।

    एक साथ चुनाव कराने के पक्षधर हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने की वकालत कर चुके हैं। उन्होंने कहा था कि बार-बार चुनाव कराने से सरकारी कार्यतंत्र पर असर पड़ता है और विकास कार्यों में भी बाधा पड़ती है। उन्होंने कहा था कि देश में लगातार होने वाले विधानसभा चुनावों से सरकारों की कार्यप्रणाली पर प्रतिकूल असर पड़ता है और सरकारी खजाने पर आर्थिक भार भी पड़ता है। देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी देशभर में चुनावों को एक साथ कराए जाने के पक्षधर थे। इस वर्ष गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को जारी सम्बोधन में उन्होंने भारतीय चुनाव प्रणाली में सुधारों का जिक्र किया था। एक साथ चुनाव करने की वकालत करते हुए उन्होंने चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों से बात-विचार कर इस सम्बन्ध में आगे बढ़ने को कहा था।

    मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक बनेगा “समय पूर्व” चुनाव

    भारत के संविधान में भी यह बात विदित है कि चुनाव आयोग अपनी सुविधा के लिए “समय पूर्व” चुनाव करा सकता है। चुनावों में सरकारी मशीनरी और सैन्य बल की जरुरत होती है और मौजूदा हालातों के मद्देनजर बार-बार सेना को चुनावों के लिए बुलाना उचित प्रतीत नहीं होता। चुनाव कराने में काफी खर्चा भी होता है और हर राज्य में अलग-अलग चुनाव होने की स्थिति में यह खर्च कई गुना बढ़ जाता है। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कई बार इस बात का जिक्र कर चुके हैं। आगामी वर्ष के आखिर तक देश के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम राज्य शामिल हैं। अगर सभी राजनीतिक दल एकमत हो तो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली मोदी सरकार ‘समय पूर्व’ चुनावों के लिए चुनाव आयोग जा सकती है।

    अगर अगले वर्ष के प्रस्तावित विधानसभा चुनावों वाले राज्यों पर नजर डालें तो स्पष्ट नजर आता है कि वहाँ भाजपा का वर्चस्व कायम है। 4 चुनावी राज्यों में से 3 बड़े राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है वहीं मिजोरम में कांग्रेस की सरकार है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान इन 4 राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन शानदार रहा था और उसने यहाँ की 66 में से 63 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया था वहीं मध्य प्रदेश में कांग्रेस के हाथ महज 2 सीटें लगी थी। मिजोरम की 1 सीट कांग्रेस के खाते में गई थी। ऐसे में मोदी सरकार इन राज्यों में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के साथ “समय पूर्व” चुनावों में उतर कर फायदा उठा सकती है और इसे अपना मास्टर स्ट्रोक साबित कर सकती है।

    मोदी सरकार के लिए आसान होगी सत्ता वापसी

    विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ होने की स्थिति में सत्ताधारी दल भाजपा को फायदा मिलना तय है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर राज्य में भाजपा का चेहरा बनेंगे और उनकी राष्ट्रव्यापी लोकप्रियता से किसी को इंकार नहीं है। कुछ ऐसी ही स्थिति 2014 लोकसभा चुनावों के वक्त हुई थी जब भाजपा को उड़ीसा और तेलगु देशम पार्टी को आंध्र प्रदेश में नरेंद्र मोदी की छवि का जबरदस्त फायदा मिला था। भाजपा का उड़ीसा में खाता खुला था और जनाधार बढ़ा था वहीं आंध्र प्रदेश में तेलगू देशम पार्टी सत्ता में आई थी। अगर सभी राजनीतिक दल इस बिंदु पर एक होते हैं और चुनाव आयोग की समय पूर्व चुनाव की बात सुनते हैं तो मोदी सरकार के लिए सत्ता वापसी की राह आसान हो जाएगी।

    भगवामय होगा हिन्दुस्तान का दिल

    अगर आगामी विधानसभा चुनाव 2018 के साथ लोकसभा चुनाव भी होते हैं तो निश्चित रूप से भाजपा को इसका फायदा मिलेगा। हिन्दुस्तान का दिल कहे जाने वाले मध्य प्रदेश और पूर्व में उसका हिस्सा रहे छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। इसके अलावा साल 2018 में राजस्थान विधानसभा चुनाव भी होनें हैं। इन राज्यों में भाजपा की सरकार है। फिलहाल इन दोनों जगहों पर कोई भी दल भाजपा के सामने टिकता नजर नहीं आ रहा है। दोनों राज्यों में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस अन्तर्कलह से परेशान है। कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाने वाला छत्तीसगढ़ अब भाजपा का गढ़ बन चुका है। पनामा पेपर्स में बेटे का नाम आने और आदिवासियों के लगातार बढ़ते रोष से मुख्यमंत्री रमन सिंह की लोकप्रियता में कमी जरूर आई है पर सामने कोई मजबूत चेहरा ना होने से उनकी जीत तय मानी जा रही है। 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने यहाँ क्लीन स्वीप किया था।

    शिवराज सिंह चौहान, अमित शाह
    भगवामय होगा हिन्दुस्तान का दिल

    मध्य प्रदेश में पिछले 3 बार से सत्ता पर काबिज मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता पर भी किसी को संदेह नहीं है। हालाँकि व्यापम घोटाले से शिवराज सरकार की बड़ी किरकिरी हुई है पर विपक्षी दल कांग्रेस इसका फायदा उठाने में नाकाम रही है। राज्य में कांग्रेस के दो धड़े हैं, एक का नेतृत्व ज्योतिरादित्य सिंधिया करते हैं वहीं दूसरे धड़े का नेतृत्व दिग्विजय सिंह करते हैं। हालाँकि बीते दिनों वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कमलनाथ ने स्पष्ट किया था कि सिंधिया ही मध्य प्रदेश में कांग्रेस का चेहरा होंगे। 2014 के लोकसभा चुनावों में मध्य प्रदेश में कांग्रेस को मिली 2 सीटों में से एक सीट ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जीती थी जबकि दूसरी कमलनाथ को मिली थी। पिछले कुछ वक्त में सिंधिया का प्रभाव प्रदेश कांग्रेस में बढ़ा है पर वह अभी भी शिवराज सिंह चौहान के मुकाबले कहीं खड़े नहीं होते।

    राजस्थान में किसी भी करवट बैठ सकता है ऊँट

    राजस्थान की राजनीति का स्वभाव उस ऊँट की तरह है जो किसी भी ओर करवट ले सकता है। यह बात यहाँ के नेताओं को भी पता है और अब तक कोई इसे बदलने में सफल नहीं रहा है। फिर चाहे वो कांग्रेसी दिग्गज और राजीव गाँधी के विश्वासपात्र रहे अशोक गहलोत हो या मौजूदा मुख्यमंत्री और भाजपाई दिग्गज वसुंधरा राजे। हालाँकि वसुंधरा राजे इससे पहले भी लगातार 2 बार राज्य की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं पर उनकी मौजूदा सरकार की लोकप्रियता कोई शुभ संकेत नहीं दे रही है। आरक्षण की मांग के चलते हुए जाट-गुर्जर आन्दोलन, युवाओं में बढ़ रही बेरोजगारी वसुंधरा सरकार की प्रमुख कमजोरियां रही हैं।

    वसुंधरा राजे
    राजस्थान में किसी भी करवट बैठ सकता है ऊँट

    कांग्रेस के मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष और राहुल गाँधी के विश्वासपात्र सचिन पायलट राजस्थान के युवाओं में लोकप्रिय हैं और गुर्जर बिरादरी का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालाँकि वह अजमेर से अपनी लोकसभा सीट 2014 के चुनावों में हार गए थे पर इससे उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। हार के बावजूद उन्हें 2009 के चुनावों के मुकाबले ज्यादा मत मिले थे और उनकी हार का कारण मोदी लहर रही थी। 2014 लोकसभा चुनावों में भाजपा ने राजस्थान में क्लीन स्वीप किया था।

    इस साल 2018 में हुए अजमेर और अलवर के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बड़ी जीत मिली है। सभी सीटों पर बीजेपी की हार हुई है। ऐसे में यह चुनाव राजस्थान के आगामी विधानसभा चुनावों का रुख मोड़ सकते हैं।

    सचिन पायलट विधानसभा चुनाव 2018
    भाजपा के हाथ से निकल सकता है अजमेर

    पूर्वोत्तर के सियासी पटल पर छा रहा है भगवा रंग

    हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के बाद पूर्वोत्तर के कई राज्यों में भाजपा को जीत हासिल हुई है। पूर्वोत्तर के दो सबसे बड़े राज्यों असम और अरुणाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार है और मणिपुर में भी भाजपा सत्ता पर काबिज है। सिक्किम में भाजपा समर्थित सरकार है। कांग्रेस शासित मिजोरम में अगले वर्ष चुनाव है और भाजपा को “समय पूर्व” होने वाले लोकसभा चुनावों का फायदा यहाँ मिल सकता है। कभी कांग्रेस और वामपंथी दलों के रंग में रंगा पूर्वोत्तर भारत का सियासी पटल आज भगवामय होता जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार पूर्वोत्तर राज्यों का दौरा करते रहते हैं और क्षेत्र के विकास की ओर उनका विशेष ध्यान है। माना जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनावों के वक्त तक पूर्वोत्तर भारत पूर्णतया भगवे रंग में रंगा नजर आएगा।

    निर्णायक भूमिका निभाएगी मोदी लहर

    जातीय गणित, सियासी समीकरण और सीटों के बंटवारों से परे जो बात सबसे अधिक महत्वपूर्ण है वह है “मोदी लहर”। 2014 में हुए लोकसभा चुनावों के वक्त देश में मोदी लहर का बोलबाला था और भाजपा की ऐसी आँधी चली कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक कमल खिल गया। भले ही विपक्ष इस तथ्य को आधारहीन मानता हो पर पिछले लोकसभा चुनावों में पूरे देश में प्रत्यक्ष रूप से इसका प्रभाव देखा गया। जाने कितने प्रत्याशी तो मोदी के नाम मात्र से जीत गए और पूरे देश ने प्रधानमन्त्री के चेहरे को देखकर वोट दिया। 2014 के बाद हुए हर विधानसभा चुनावों में मोदी लहर का स्पष्ट प्रभाव देखा गया है। ऐसे में एक बात तो तय है कि इन सभी राज्यों के विधानसभा चुनावों पर भी “मोदी लहर” का असर जरूर होगा और चुनावों का एक साथ होना भाजपा के लिए आगामी विधानसभा चुनावों में फायदेमंद साबित होगा।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।