सीपीईसी के कर्ज के बोझ के तले पाकिस्तान, लागत पर दोबारा करेगा विचार
चीन के ‘रेशम मार्ग’ परियोजना में कर्ज के दलदल में धंसते रहने के भय से पाकिस्तान ने सीपीईसी प्रोजेक्ट पर दोबारा विचार विमर्श करने का निर्णय लिया है। यह रेल…
चीन पाकिस्तान इकनोमिक कोरिडोर (सीपीईसी) मुख्य रूप से निर्माण कार्यों का एक समूह है, जो चीन पाकिस्तान में कर रहा है। सीपीईसी का पूरा खर्चा चीन उठा रहा है। इस योजना की कुल लागत लगभग 62 अरब डॉलर है।
चीन नें 2013 में पहली बार सीपीईसी योजना की घोषणा की थी। चीन का कहना है कि इस योजना से पाकिस्तान एक विकसित देश बनने की ओर अग्रसित हो सकेगा। इसके लिए चीन मुख्य रूप से निर्माण कार्य जैसे रोड, रेलवे, बंदरगाह, हवाई अड्डे आदि बना रहा है।
सीपीईसी का कार्य अधिकारिक रूप से 13 नवम्बर 2016 को आरम्भ हुआ था, जब चीनी कार्गो पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर पहली बार पहुंचा। तब से अब तक चीन नें ग्वादर बंदरगाह को पूरी तरह विकसित कर दिया है और अब इसका इस्तेमाल चीन युरोप और अफ्रीका में व्यापार करने के लिए कर रहा है।
पाकिस्तान की सरकार का कहना है कि सीपीईसी के तहत पुरे पाकिस्तान में निर्माण कार्य पूरा होगा। मुख्य रूप से पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में कार्य हो रहा है। इस निर्माण कार्य का मुख्य उद्देश्य चीन के जिनजियांग क्षेत्र को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह और कराची शहर से जोड़ना है।
निर्माण कार्य में मुख्य रूप से कराची और लाहौर के बीच बनने वाला एक विकसित हाईवे है। इसके अलावा पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर को चीन से जोड़ने वाले काराकोरम हाईवे पर भी काम चल रहा है, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है।
सीपीईसी में रेल मार्गों पर भी ध्यान दिया गया है। पाकिस्तान के रेल नेटवर्क को चीन के काश्गर से जोड़ा जा रहा है। सिर्फ इस रेल नेटवर्क के लिए करीबन 11 अरब डॉलर का खर्चा आ रहा है।
हाल ही में बलूचिस्तान में चीन नें सीपीईसी के जरिये एक नया एयरपोर्ट बनाने की बात कही थी। ग्वादर सिटी से 26 किलोमीटर दूर गुरन्दानी में 26 करोड़ डॉलर एयरपोर्ट प्रोजेक्ट चीन के सीपीईसी फंड से बनाया जायेगा। प्रधानमंत्री इमरान खान नें इसकी नीव रखी थी।
सीपीईसी की रुपरेखा दरअसल काफी समय पहले ही लिखी जा चुकी थी। 1950 के दशक में ही चीन से लेकर पाकिस्तान के ग्वादर को जोड़ने की प्रक्रिया शुरू हो गयी थी।
इस योजना में सबसे पहले काराकोरम हाईवे पर काम शुरू हुआ, जो 1959 में ही शुरू हो गया था। इसके बाद चीन नें 2002 में ग्वादर बंदरगाह पर काम करना शुरू किया, जो 2006 में पूरा हो गया था।
चीन के वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग नें अधिकारिक रूप से नवम्बर 2014 में चीन पाकिस्तान इकनोमिक कोरिडोर की घोषणा की और इसके लिए लागत करीबन 45.6 अरब डॉलर बतायी।
अप्रैल 2015 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग नें पाकिस्तान का दौरा किया। यहाँ आकर उन्होंने कहा, ‘यह पाकिस्तान का मेरा पहला दौरा है, लेकिन मुझे लगता है कि मैं अपने भाई के घर आया हूँ।’
20 अप्रैल 2015 को चीन और पाकिस्तान नें सीपीईसी के अधिकारिक कागजों पर हस्ताक्षर किये। सीपीईसी की कुल लागत शुरुआत में 46 अरब डॉलर बताई जा रही थी, जो पाकिस्तान की कुल अर्थव्यवस्था का लगभग 20 फीसदी है।
सीपीईसी के अंतर्गत होने वाला पूरा खर्चा चीन उठा रहा है, जो बाद में पाकिस्तान को चीन को मुनाफे के साथ लौटाना होगा।
सीपीईसी का मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान में एक ऐसा रोड और रेल नेटवर्क बनाना है, जिससे चीन को अरब सागर में सामान पहुंचाने में सहायता मिल सके।
इसके लिए चीन नें अपने देश के काश्गर से पाकिस्तान के रावलपिंडी को हाईवे से जोड़ा है, जिसे काराकोरम हाईवे कहा जाता है। यह हाईवे बहुत पुराना है, लेकिन इसे अब फिर से विनिर्माण किया जा रहा है।
इसके बाद रावलपिंडी को कराची और लाहौर से जोड़ा जा रहा है। इस तरह चीन पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक का रास्ता साफ़ कर रहा है।
सीपीईसी में बड़ी मात्रा में चीन के लोग कार्य कर रहे हैं, जिनका पाकिस्तान में रहने का खर्चा पाकिस्तान की सरकार उठा रही है।
चीन नें इस योजना के बारे में कहा था कि चीन पाकिस्तान में 33 अरब डॉलर की लागत की ऊर्जा संरचना कर रहा है, जिससे पाकिस्तान के विभिन्न इलाकों को ऊर्जा पहुंचाई जा सके। इसके लिए चीन सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि पर कार्य कर रहा है।
पाकिस्तान का मानना है कि सीपीईसी के जरिये पाकिस्तान में लगभग 20 लाख नयी नौकरियां बनेंगी। इसके अलावा इससे पाकिस्तान के सालाना जीडीपी में भी 2 से 2.5 अंकों की बढ़त मिलेगी।
पाकिस्तान के लिए सीपीईसी बहुत जरूरी इसलिए है, क्योंकि यह पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मजबूती दे सकती है।
इसके अलावा यह अहम् इसलिए है क्योंकि पाकिस्तान की आजादी के बाद से आज तक पाकिस्तान में इतनी बड़ी मात्रा में विदेशी निवेश नहीं हुआ है। इसके अलावा यह चीन के लिए भी खास इसलिए है क्योंकि यह चीन का किसी विदेशी जमीन पर सबसे बड़ा निवेश है।
पिछले कुछ समय से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लगातार नीचे गिरती दिख रही है। ऐसे में पाकिस्तानी सरकार और मीडिया का मानना है कि यह योजना पाकिस्तान के लिए किसी ‘गेम चेंजर’ से कम नहीं है।
दोनों देशों का मानना है कि सीपीईसी की मदद से पाकिस्तान दक्षिणी एशिया में एक मजबूत आर्थिक व्यवस्था बन सकता है।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री शौकत अजीज का मानना है कि सीपीईसी पाकिस्तान की बिगड़ती सूरत को सुधारने में मदद करेगा और पाकिस्तान की कमजोर आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाएगा।
इसके अलावा पाकिस्तानी सरकार का यह भी मानना है कि सीपीईसी पाकिस्तान में बढ़ते आतंकवाद और असुरक्षा को भी कम कर सकता है। इसके अलावा इससे दुसरे देशों को भी पाकिस्तान में निवेश करने का हौंसला बनेगा।
पाकिस्तानी अर्थशास्त्रों का मानना है कि आने वाले समय में सीपीईसी की मदद से पाकिस्तान का निर्यात 4-5 फीसदी तक बढ़ा सकता है। इसके अलावा इसकी मदद से पाकिस्तान को सालाना 40 से 50 करोड़ की कमाई होगी।
चीन के लिए सीपीईसी सबसे जरूरी इसलिए है, क्योंकि इसकी मदद से चीन अफ्रीका और यूरोपीय देशों के समीप पहुँच सकता है।
इससे पहले चीन को अफ्रीका और युरोप में सामान पहुंचाने के लिए भारतीय महासागर (इंडियन ओसियन) से गुजरना पड़ता था। यह चीन के लिए बहुत महंगा और लम्बा रास्ता था। अब चीन पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के जरिये सीधे व्यापार कर सकता है।
इसके अलावा चीन इसके जरिये विश्व में अपनी पैठ को मजबूत बनाना चाहता है।
जाहिर है अरब सागर में तेल सम्बन्धी व्यापार चीन के लिए बहुत जरूरी है। लेकिन यहाँ अमेरिकी सेना हर समय निगरानी करती है।
चीन ग्वादर के जरिये अरब सागर में उपस्थिति मजबूत बनाना चाहता है, जिससे अमेरिका की पैठ को कम किया जा सके।
इसके अलावा चीन वन बेल्ट वन रोड के अंतर्गत अफ्रीका में बड़ी मात्रा में पैसे निवेश कर रहा है।
अफ्रीका तक पहुँचने के लिए भी चीन को ग्वादर बंदरगाह की जरूरत पड़ेगी। अब हालाँकि अफ्रीका में व्यापार करना चीन के लिए बहुत आसान हो गया है।
वर्तमान में चीन को अफ्रीका तक पहुँचने के लिए लगभग 12000 किमी की दूरी तय करनी होती है, जो सीपीईसी की वजह से घटकर सिर्फ 3000 किमी रह गयी है।
चीन सीपीईसी के जरिये भारत पर भी नजर रखना चाहता है।
इस योजना के जरिये चीन अब पुरे उत्तर भारत के चारों और फैल गया है। चीन नें राजस्थान से सटे पाकिस्तानी बॉर्डर पर बड़ी मात्रा में चीनी सैनिक तैनात कर दिए हैं, जिससे भारत पर नजर रखी जा सके।
जाहिर है भारत नें ईरान की मदद से ईरान के चाबहार बंदरगाह को विकसित कर लिया है। इससे भारत मध्य यूरोप और रूस के साथ सीधा व्यापार कर रहा है।
सीपीईसी का सबसे बड़ा विरोध भारत कर रहा है। इसका कारण यह है कि इसके तहत बनने वाली काराकोरम हाईवे भारत के जम्मू कश्मीर से गुजरती है, जिसे पाकिस्तान अपना बताता है। इसके अलावा यह कश्मीर से उस हिस्से से भी गुजरती है, जिसपर चीन का अधिकार है।
2015 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नें चीन का दौरा किया था। इस दौरान यह कहा जाता है कि भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज नें चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को यह कहा था कि सीपीईसी का निर्माण गिलगित-बल्तिस्तान से होकर गुजरा रहा है, जो भारत को स्वीकार नहीं है।
इसके बाद साल 2016 में भी सुषमा स्वराज नें चीन के विदेश मंत्री वांग यी के समक्ष यह कहा था कि सीपीईसी का भारतीय जमीन से गुजरना भारत को स्वीकार नहीं है और भारत इसका विरोध जारी रखेगा।
इसके अलावा भारत नें भारतीय सीमा के आसपास चीनी सैनिकों की निगरानी पर भी विरोध जताया है। चीन इस बारे में कहता है कि ये सैनिक सिर्फ सीपीईसी की रक्षा कर रहे हैं।
सीपीईसी का विरोध दरअसल भारत हमेशा से नहीं कर रहा है। 2011 तक चीन नें इस योजना पर काफी काम किया था, जिसपर भारत नें कुछ नहीं कहा था।
हालाँकि 2011 में एक ऐसी घटना हुई, जिससे भारत अधिकारिक रूप से सीपीईसी का विरोध करने लगा था।
दरअसल 2011 में भारत और वियतनाम मिलकर दक्षिणी चीन सागर में तेल निकालने पर कुछ काम कर रहे थे, जिसका चीन नें कड़ा विरोध किया था।
इस घटना के तुरंत बाद भारत समक्ष रूप से सीपीईसी का विरोध करने लगा था। भारत नें कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सीपीईसी की निंदा की है।
पाकिस्तान के लोगों नें भी कई बार सीपीईसी का विरोध किया है।
दरअसल पाकिस्तान की सरकार नें बहुत समय तक पाकिस्तान के लोगों से इस योजना से जुड़ी जानकारी छुपाये रखी। सरकार नें लोगों को चीन से मिलने वाले कर्ज के बारे में नहीं बताया था।
साल 2016 में जब लोगों के सामने ये जानकारी आई, तब लोग इसके विरोध में सड़कों पर उतर आये थे।
इसके अलावा कई बार चीनी सैनिकों द्वारा पाकिस्तान के नागरिकों को मारने पीटने की घटनाएं भी सामने आई है, जिसपर लोगों नें विरोध जताया है।
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के लोगों नें भी इस योजना का यह कहकर विरोध किया है, कि सभी निर्माण कार्य सिर्फ पंजाब प्रान्त में हो रहे हैं, और सरकार बलूचिस्तान के लोगों पर ध्यान नहीं दे रही है।
इससे खिलाफ कई बार पाकिस्तान में लोगों नें प्रदर्शन किया है।
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