बेरोजगारी पर वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार का सन्देश
जब दाल नहीं गली तो खिचड़ी बेचने लगे। खिचड़ी बेरोज़गारों का व्यंजन पहले से है, नौकरी मिल नहीं रही है तो ज़ाहिर खिचड़ी ज़्यादा बन रही होगी। रोज़ कोसते हुए…
जब दाल नहीं गली तो खिचड़ी बेचने लगे। खिचड़ी बेरोज़गारों का व्यंजन पहले से है, नौकरी मिल नहीं रही है तो ज़ाहिर खिचड़ी ज़्यादा बन रही होगी। रोज़ कोसते हुए…