UPSC Civil Services Results 2021: कल यानि मंगलवार को सभी न्यूजपेपर और सोशल मीडिया पर संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) परीक्षा 2021 में सफल हुए छात्रों की सक्सेस स्टोरीज और उनको मिलने वाली बधाईयों का तांता लगा हुआ था।
ज्ञातव्य हो कि बीते सोमवार को संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने सिविल सर्विसेज परीक्षा (CSE) 2021 का परिणाम घोषित किया जिसमें कुल 761 छात्रों का चयन किया गया है।
UPSC declares the final result of Civil Services Examination, 2020. A total of 761 candidates have been recommended for appointment. pic.twitter.com/mSdYt4hWiU
— ANI (@ANI) September 24, 2021
संयोगवश इन दिनों मैं अपने गृह-राज्य बिहार में निजी कारणों से प्रवास पर हूँ। आदत के मुताबिक सुबह अखबारों से जूझते हुए हमने पाया कि तकरीबन हर न्यूज़पेपर में एक कॉमन ख़बर छपी थी :- “यूपीएससी (UPSC) परिणाम में बिहारियों की संख्या या इस से मिलती जुलती खबरें लगभग सभी अखबारों ने छापे थे।
उधर ट्विटर पर एक वीडियो वायरल हो रहा था जिसमे एक बिहारी छात्रा सत्ताधारी पार्टी जनता दल (यू) के एक नेता के कार्यालय में रोते हुए मगध यूनिवर्सिटी (बोध गया, बिहार) के शिक्षा व्यवस्था को लेकर शिकायत कर रही थी। छात्रा का कहना था, मगध विश्विद्यालय में 3 साल के कोर्स को पूरा करने में 6 साल तक लग जा रहे हैं जिस से कई प्रतियोगिता परीक्षाओं में बैठने की उम्र निकल जाती है।
उत्कर्ष सिंह नामक एक यूजर (जो पेशे से पत्रकार हैं) के वेरिफाइड अकाउंट से यह वीडियो पोस्ट किया गया है।
3 साल का कोर्स 6 साल में भी पूरा नहीं हो रहा. सेशन लेट होने के खिलाफ सड़क पर पुलिस की लाठियाँ खा रहे मगध यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स. दूसरे विश्वविद्यालयों का भी यही हाल.
आज JDU दफ़्तर में शिक्षा मंत्री के सामने रोने लगी छात्रा. pic.twitter.com/IFznKUR95S
— Utkarsh Singh (@UtkarshSingh_) May 31, 2022
अब इन दोनों दृश्यों को एक साथ समानांतर लाकर रख देने पर यह कहना कतई अनुचित नहीं होगा कि दोनों एक दूसरे के विरोधाभासी बातें है।
लचर व्यवस्था, लाचार छात्र… पर UPSC में जलवा
मैं खुद एक बिहारी होने के नाते यह जानता हूँ कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था कितनी लचर है। उपरोक्त वीडियो में जो दर्द एक छात्रा ने नेताजी के सामने बयां किया है , वह एक छात्र या छात्रा का दर्द नही बल्कि बिहार में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे लाखों छात्रों की समस्या है।
दूसरी बात, 3 साल के कोर्स को पूरा करने में 5-6 साल लगना किसी एक मगध विश्विद्यालय तक सीमित नहीं है, बल्कि समूचे बिहार के लगभग हर विश्विद्यालय का हाल यही है। बावजूद इसके हर साल लगभग 100 बिहारियों का चयन UPSC में होता है। फिर ऐसा क्या है कि इतनी घटिया व्यवस्था के बाद भी UPSC परीक्षा में बिहारियों का जलवा रहता है?
दरअसल UPSC जैसे कठिनतम परीक्षा में बिहारियों का जलवा होता है, यह एक तरह का अकाट्य सत्य है। बिहार के बाहर हम जैसे लाखों बिहारी दूसरे राज्यो के लोगों पर खूब सीना चौड़ा कर के रौब झाड़ते अक्सर ही मिल जाएंगे कि बिहारी और सिविल सेवा (IAS, IPS, IFS, IFoS etc) एक दूसरे के पूरक हैं।
लेकिन यह कहानी का महज एक पक्ष है। क्योंकि जब इसी रौब झाड़ रहे महानुभाव से पूछेंगे कि ऐसे सिविल सर्वेंट्स में से कितनों ने बिहार में पढ़ाई कर के परीक्षा में सफलता हासिल की है तो शायद यह संख्या उंगलियों पर गिनने से भी कम रहेगा।
यही सच्चाई भी है।
बिहार की शिक्षा व्यवस्था- खासकर उच्च शिक्षा- इस बदहाली में है कि अपवाद को छोड़ दें तो UPSC जैसे कठिनतम परीक्षा में सफ़ल होना दिवा-स्वप्न सरीखा है।
इस बात में कोई संदेह नहीं कि बिहारी छात्रों की मेहनत, जज़्बा और बौद्धिक क्षमता का जलवा UPSC क्या दुनियाभर के हर कठिन परीक्षाओं में दिखता है; पर इन छात्रों की सबसे कड़ी परीक्षा राज्य में “सिस्टम” नाम की चीज लेती है।
उच्च शिक्षा व्यवस्था- बिहार के “सुशासन” के दावे में काला धब्बा
सुशासन बाबू के नाम से जाने जाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यकाल में निःसंदेह शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा स्तर पर बहुत सुधार हुआ है।लेकिन ये सुधारें एक हद तक प्राथमिक शिक्षा तक ही सिमटी रही है।
पोशाक व साईकिल योजनाओं के कारण लड़कियों का ज्यादा संख्या में स्कूल जाना, मैट्रिक या इंटर के परीक्षा परिणाम के आधार पर आर्थिक मदद आदि जैसे कई छोटे बड़े योजनाओं/बदलाव इस सरकार की उपलब्धियां रही हैं।
उच्च शिक्षा में बिहार की व्यवस्था ज्यों की त्यों मालूम पड़ती है। नतीज़तन “ब्रेन ड्रेन” और “गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा के लिए “पलायन” आज भी बिहार की नियति में है।
बिहार के विश्विद्यालयों में या सम्बद्ध कॉलेजों में कुछेक को छोड़कर ज्यादातर में एक तो रेगुलर क्लासेज नहीं होती। ऐसे में यहाँ ज्यादातर छात्र “गेस पेपर (Guessed Papers/Sample Exam Modules) को कोर्स संबंधित परीक्षा तिथि की घोषणा के बाद आख़िरी दिनों में पढ़कर बस पास हो जाना चाहते हैं।
ऊपर से “सेसन डिले (Session Delay)” का आलम यह कि नियत व निर्धारित समय पर अगर कोई कोर्स पूरा हो जाये तो छात्र अपने आपको दुनिया के सबसे भाग्यशाली मानते है।
परिणामस्वरूप अगर छात्रों के माता-पिता सक्षम हैं तो वे अपने बेटे बेटियों को उच्च शिक्षा के लिए राज्य के बाहर भेज देते हैं और ज्यादातर यही छात्र UPSC जैसे परीक्षाओं में सफ़ल होते हैं।
फिर सुशासन बाबू की सरकार बधाई, इनाम और प्रीतिभोज जैसे तमाम कार्यक्रम में इन्हीं छात्रों को बुलाकर तस्वीरें खिंचवाती हैं। पर ना तो सरकार को न ही इन छात्रों को इस बात का जरा भी इल्म नहीं होता कि इन तस्वीरों में चेहरों पर बिखरी मुस्कान असल मे लाखों बिहारी छात्रों को मुंह चिढ़ा रही होती है जो “सिस्टम” के दोष तले सिसक रहे होते हैं।
प्रति वर्ष लगभग 100 बिहारी UPSC सिविल सेवा परीक्षा में सफल
बिहार के प्रमुख हिंदी अख़बार “हिंदुस्तान” के 31 मई को छपे ख़बर के मुताबिक पिछले चार साल से लगभग 100 छात्र UPSC परिणामों में जगह बना रहा हैं। अखबार के मुताबिक, संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) सिविल सेवा परिणाम में वर्ष 2020 में 123, 2019 में 180, 2018 में 173 व 2017 में 178 छात्र बिहार से सम्बद्ध थे। इस बार 2021 में भी कुल 685 में से लगभग 80 छात्र बिहार से संबंध रखते हैं।
आपको बता दें, वर्ष 2020 में बिहार के शुभम ने इस परीक्षा को टॉप किया था। 20 साल के लंबे अंतराल के बाद किसी बिहारी छात्र ने इस परीक्षा को टॉप किया था। साथ ही 2020 में टॉप 10 में तीन बिहारियों ने स्थान बनाया था।
UPSC CSE परिणाम: विरोधाभास या व्यवस्था को आइना…
एक तरफ़ राज्य के भीतर उच्च शिक्षा का ढीला सिस्टम और दूसरी तरफ़ बिहारियों का इतनी बड़ी संख्या में देश के सबसे कठिनतम माने जाने वाले परीक्षा UPSC Civil Services Exam (CSE) में सफल होना – आपस मे निश्चित ही विरोधाभास हैं।
साथ ही यह राज्य के विधाताओं और सत्तासीनों के लिए एक आईना है भी है कि अगर ये बिहारी छात्र राज्य के बाहर जाकर सफल हो सकते हैं तो राज्य के भीतर ही ऐसा माहौल पैदा हो कि इन छात्रों को बाहर जाने की जरूरत ना पड़े।
राज्य सरकार से गुजारिश भी है कि 3 साल का कोर्स 3 साल में ही पूरा करवाया जाये क्योंकि ये छात्र जितने जल्दी नौकरी या किसी बिज़नेस में आएंगे, राज्य की घरेलू उत्पाद व राज्य की कुल आय में योगदान देंगे। बिहार जैसे राज्य को इस वक़्त ज्यादा से ज्यादा आय की आवश्यकता है क्योंकि बिहार राज्य आर्थिक कमाई के लिए केंद्र से मिलने वाली मदद पर जरूरत से ज्यादा निर्भर है।
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