Targeted Killings in J&K: कश्मीर में इन दिनों टार्गेटेड किलिंग (Targeted killing) एक बार फिर जारी है। अभी ताजा मामले में जम्मू-कश्मीर के कुलगाम क्षेत्र में कार्यरत बैंक मैनेजर की हत्या कर दी गई।
मृतक व्यक्ति राजस्थान के हनुमानगढ़ का निवासी हैं जो दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले के मोहनपुरा स्थित “इलाकाई देहाती बैंक” में बतौर मैनेजर कार्यरत थे।
#WATCH | J&K: Terrorist fires at bank manager at Ellaqie Dehati Bank at Areh Mohanpora in Kulgam district.
The bank manager later succumbed to his injuries.
(CCTV visuals) pic.twitter.com/uIxVS29KVI
— ANI (@ANI) June 2, 2022
इस साल अब तक कुल 16 Targeted Killings
2 दिन पहले आतंकियों ने कुलगाम जिले में ही गोपालपुरा इलाके में एक हिन्दू महिला शिक्षिका 36 वर्षीय रजनी बाला, की हत्या कर दी थी। मई के महीने में यह कुल 7वां लक्षित हत्या का मामला था। उसके कुछ दिन पहले एक कश्मीरी पंडित की हत्या उसके ऑफिस में घुसकर की गई थी।
थोड़ा और पीछे जाएं तो एक और कश्मीरी पंडित, जो दवा विक्रेता थे, उसकी हत्या हुई। उसके पहले कुछ प्रवासी मजदूरों की हत्या की गई थी जो बाहर के राज्यों जैसे बिहार से जाकर वहाँ रोजी रोटी कमा रहे थे।
कश्मीर घाटी में इस साल 2022 के शुरुआत से अब तक कुल 16 लक्षित हत्या (Targeted Killing) की घटना हो चुकी है जिसमें कश्मीर पुलिस में शामिल मुस्लिम युवक, हिन्दू सरकारी कर्मचारी, दवा विक्रेता, पुलिस अधिकारी, शिक्षक, अभिनेत्री इत्यादि शामिल है।
आखिर क्या मंसूबे हैं आतंकियों के?
इन लक्षित हत्या (Targeted Killing) के घटनाओं का सिलसिलेवार अध्ययन करने पर लगता है कि घाटी में आतंकी अब तालिबान के रास्ते पर चल रहे हैं।
एक स्कूल अध्यापिका की हत्या के पीछे सिर्फ यही मक़सद होगा कि वह आने वाली पीढ़ियों को वह सब ज्ञान देती होगी जो आतंकियों के बनाये नियम कानून पर सवाल करने व सोचने समझने की क्षमता विकसित कर सके।
ऐसा नहीं है कि लक्षित हत्या (Targeted Killing) के शिकार सिर्फ हिन्दू हैं। अभी थोडे दिन पहले एक मुस्लिम समुदाय की टीवी कलाकार महिला को भी निशाना बनाया गया था। उसका गुनाह सिर्फ यह कि वह अपने गानों को को सोशल मीडिया व सामाजिक मंचों पर साझा करती थीं।
अब इस घटना में भी तालिबानी स्टाइल की झलक है जिसमें महिलाओं की आजादी मजहबी आईने से तय की जाएगी। उसके कपड़े व जीवन शैली शायद आतंकियों के बनाये तथाकथित मज़हबी कायदे कानून के ख़िलाफ़ होंगे।
इन आतंकवादियों की कायरता का सबसे बड़ा प्रमाण तो यह कि प्रवासी मजदूरों व सरकारी कर्मचारियों की हत्या कर रहें हैं। भला उन मजदूरों ने सिर्फ यही किया होगा ना कि कश्मीर के क्षेत्रीय लोगों की तरक्की में मदद कर रहे होंगे।
जम्मू कश्मीर पुलिस में तैनात कई मुस्लिम और हिन्दू दोनों अधिकारियों की हत्या की गई। शायद ये अधिकारी कश्मीर कब युवाओं में सेना या पुलिस के लिए बंदूक उठाने का जोश ज्यादा अच्छे से भर रहे होंगे बनिस्मत कि आतंकवाद के लिए बंदूक उठाने के।
कुल मिलाकर आतंकियों के मंसूबे साफ हैं कि जो कोई भी सरकार के प्रयासों में साथ देगा, आतंकी उसे रास्ते से हटा रहे हैं। साथ ही दिल्ली में बैठी भारत सरकार को एक खुली चुनौती भी दी जा रही है।
यह सच है कि जबसे तालिबान ने अफगानिस्तान की गद्दी पर कब्जा किया है, कश्मीर के आतंकियों और अलगाववादियों को एक आभासी उर्जा मिली है लेकिन वे भूल रहे हैं कि यह कश्मीर है, काबुल नहीं।
कश्मीर के आवाम तरक्कीपसंद और अमन की वक़ालत करते रहे हैं। कश्मीर के युवाआज हर क्षेत्र में जंत नए आयाम गढ़ रहे हैं। कश्मीर का युवा अब “उमरान मालिक” बनना चाहते हैं, “यासीन मलिक” नहीं। कश्मीर के युवा IAS/ IPS/ क्रिकेटर/पायलट आदि आदि में जाना पसंद कर रहे हैं, न कि आतंक के रास्ते पर।
केंद्र सरकार की कश्मीर नीति पर भी सवाल
केंद्र की बीजेपी सरकार ने 2019 में अनुच्छेद 370 में परिवर्तन करते हुए , दावा किया था कि इस से कश्मीर में शांति बहाल होगी और 1 साल के अंदर कश्मीर में स्थिति सामान्य हो जाएगी। अब लगभग 3 साल होने वाले हैं लेकिन हालात नहीं बदले।
यह सच है कि कश्मीर में भारतीय सेना व कश्मीर की पुलिस अब आतंकियों का मुकाबला बिना राजनीतिक दवाब के कर रहे हैं लेकिन आतंकियों के मंसूबो व आतंकी वारदातों में कोई बड़ा बदलाव नही हुआ है। आज कश्मीर ज्यादा अशांत है। ना तो जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव करवाये जा सके है ना ही कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास हो सका है।
कुल मिलाकर सरकार व विपक्ष की पार्टियां राजनीतिक स्कोर जरूर कर ली हैं लेकिन कश्मीर के आवाम के जन जीवन मे वह बदलाव नहीं आ सका है जो अपेक्षित था या सरकार ने दावा किया था। ऊपर से जले पर नमक ये कि कोई कश्मीर फाइल्स जैसी फ़िल्म बना कर एक संवेदनशील मुद्दे को और हवा दे दी जाती है जिसमें सरकार के नुमाइंदे भी शामिल होते है।
कश्मीर समस्या: एक संवेदनशील मुद्दा
कश्मीर समस्या न सिर्फ एक राजनैतिक मुद्दा है बल्कि सोशल और विकास से जुड़ा एक संवेदनशील मुद्दा है जिसमें कश्मीरी हिंदुओं का दर्द और कश्मीरी मुसलमानों के अमन-पसंद भावनाएं समाहित है।
अगर ऐसे संवेदनशील मुद्दा कश्मीर को समझना है तो “The Kashmir Files” फ़िल्म नही बल्कि कल्हण के “राजतरंगिणी” और नेहरू के “डिस्कवरी ऑफ इंडिया” को पढ़िए। कश्मीर का अतीत वर्तमान से काफी भिन्न है।
कश्मीर घाटी महज कश्मीरी पंडितों और मुसलमानों के बीच जंग का मैदान नहीं है बल्कि यह वो घाटियां है जिसकी खूबसूरती देखकर मुगल बादशाह जहाँगीर भी अमीर खुसरो की पंक्तियां गुनगुनाते थे:
“गर फिरदौस बर रुये जमीं अस्त
हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त
(धरती पर कहीं स्वर्ग है तो,
यहीं है, यहीं है, यहीं है।)”
(बाद में इन पंक्तियों को 2016 में आयी बॉलीवुड फिल्म फितूर में गाने के तौर पर शामिल किया गया)
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