तमिलनाडु (Tamil Nadu) के राज्यपाल आर एन रवि (RN Ravi) इन दिनों सुर्खियों में है। वजह यह कि उन्होंने तमिलनाडु सरकार (Tamil Nadu Govt) के एक मंत्री सेंथिल बालाजी (Senthil Balaji) को बर्खास्त कर दिया। फिर जब उनके इस फैसले की किरकिरी होती है तो उसे वापस लेते हैं और कानूनी सलाह मांगा है।
दरअसल, तमिलनाडु सरकार (Tamil Nadu Govt) में विद्युत विभाग के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी (V. Senthil Balaji) को 14 जून को केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) द्वारा नौकरी के बदले पैसा लेने के मामले में गिरफ्तार किया था। बाद में उन्हें हृदय की समस्या के कारण चिकित्सा के लिए अस्पताल में भर्ती भी करवाया गया था।
इसी के मद्देनजर राज्य के राज्यपाल आर एन रवि (RN Ravi) ने मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ( MK Stalin) को चिट्ठी लिखकर उनके मंत्रिमंडल के मंत्री सेंथिल बालाजी को बर्खास्त करने की जानकारी दी।
Tamil Nadu Governor RN Ravi dismisses jailed V Senthil Balaji from the Council of Ministers with immediate effect. pic.twitter.com/fhDJdxUZxE
— ANI (@ANI) June 29, 2023
इसके बाद राज्यपाल के इस फैसले का संज्ञान लेते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री (CM, Tamil Nadu) एम के स्टालिन ने जब अदालत का दरवाजा खटखटाने की बात की तो मामले न तूल पकड़ा। इसे देखते हुए महामहिम ने फिर अपने फैसले को वापस लेते हुए कानूनी सलाह लेने की मंशा जताई लेकिन तब तक तो राजनीति ने अपना रुख अख्तियार कर लिया था।
Tamil Nadu | CM MK Stalin writes to Governor RN Ravi over the dismissal of V Senthil Balaji as a minister
“I reiterate that you have no power to dismiss my Ministers. That is the sole prerogative of an elected Chief Minister. Your unconstitutional communication dismissing my… pic.twitter.com/ark4fC7Xfu
— ANI (@ANI) June 30, 2023
कुल मिलाकर इस मामले ने एक बार फिर ज़ाहिर कर दिया है कि राज्यपालों को विपक्षी दलों की सरकार में हस्तक्षेप करने का कोई भी मौका जाने देना गवारा नहीं होता।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या राज्यपालों को अपने संवैधानिक अधिकारों का दायरा मालूम नहीं होता? तो इसका जवाब है, अपवादों को छोड़कर ज्यादातर ममलों में ऐसा नहीं है।
अभी हालिया तमिलनाडु (Tamil Nadu) के मामले को ही उदाहरण के लिए देखें तो यह बड़ी साधारण सी बात है कि सरकार के किसी भी मंत्री को राज्यपाल बिना मुख्यमंत्री के सलाह के नहीं हटा सकते हैं।
संविधान के अनुच्छेद 164 (1) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि राज्यपाल मुख्यमंत्री को बहाल करने करेगा। फिर मंत्रिमंडल के बाकी मंत्री भी मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल द्वारा ही नियुक्त किए जाएंगे। मुख्यमंत्री या मंत्री तभी तक अपने पद पर रहेंगे जब तक राज्यपाल को ठीक लगता रहे।
अब उपरोक्त अनुच्छेद को पढ़कर तो यही लगता है कि तमिलनाडु (Tamil Nadu) के राज्यपाल आर एन रवि (RN Ravi) ने मंत्री सेंथिल बालाजी को बर्खास्त करने के निर्णय बिल्कुल संविधान के अनुरूप लिया है। लेकिन ऐसा नहीं है। क्योंकि अनुच्छेदों के अलावे समय समय पर सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक पीठ ने अपने तमाम निर्णयों में राज्यपाल के दायरे को रेखांकित और परिभाषित किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक फैसले “शमशेर सिंह बनाम पंजाब (1974)” में कहा है कि गवर्नर अपनी संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल केवल और केवल मुख्यमंत्री की सलाह पर करेंगे। इस एक फैसले ने राज्यपालों के हाँथ बांध दिए हैं।
तमिलनाडु (Tamil Nadu) के राज्यपाल द्वारा स्टालिन (MK Stalin) सरकार के मंत्री का बगैर मुख्यमंत्री के सलाह के बर्खास्त किया जाना संवैधानिक पीठ के इसी फैसले के खिलाफ है जिसकी वजह से राज्यपाल को अपना फैसला वापस लेना पड़ा है। जाहिर है यह मामला यहीं थमने वाला नहीं है।
ऐसा नहीं है कि तमिलनाडु (Tamil Nadu) या किसी अन्य राज्य के राज्यपाल द्वारा राजभवन से सरकारों को नियंत्रित करने की या प्रभावित करने की कोशिश जैसी यह कोई पहली घटना है। बीते 9 वर्षों में देश मे महामहिमों की भूमिका पर पहले ही सवाल उठते रहे हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी बीते साल महाराष्ट्र में हुए तख्तापलट में राज्यपाल की भूमिका को लेकर तल्ख टिप्पणियाँ की थीं।
भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों और प्रावधानों के तहत न सिर्फ केंद्र और राज्य की शक्तियां आपस मे बंटी हुईं हैं बल्कि इन्हीं प्रावधानों और सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ द्वारा समय-समय पर दिए गए फैसलों के द्वारा राज्यपाल की शक्तियां भी निश्चित है। बावजूद इसके महामहिम (राज्यपाल) अक्सर ही राज्य की सत्ता में गैर-जरूरी हस्तक्षेप करने से बाज नहीं आते जैसा अभी तमिलनाडु (Tamil Nadu) में देखने को मिला है।
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