Nobel Peace Prize 2023: ईरान में आम-लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली मानवधिकार कार्यकर्ता नरगिस मोहम्मदी (Narges Mohammadi) को ईरान में महिलाओं के उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष, मानवाधिकार और लोगों की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने के लिए वर्ष 2023 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुना गया है।
51 वर्षीय नरगिस मोहम्मदी (Narges Mohammadi) फ़िलहाल ईरान के एविन हाउस में नजरबंद किया गया है जहाँ वह 2015 से 16 साल के कैद की सजा काट रही हैं। उन्हें कुल 13 बार गिरफ्तार किया गया, 05 बार दोषी करार दिया गया और कुल 31 साल जेल तथा 154 कोड़ो की सजा सुनाई गई है।
नोबेल पुरस्कार समिति के अनुसार, “नरगिस मोहम्मदी (Narges Mohammadi) को यह पुरस्कार दिया जाना समिति के उस परंपरा का पालन करता है जिसमें समिति सामाजिक न्याय, मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए संघर्ष करने वालों को शांति पुरस्कार से सम्मानित करती है।”
समिति ने नरगिस (Narges Mohammadi) के लिए कहा है कि “उन्होंने युद्ध अपराधों, मानवाधिकार के हनन और सत्ता के दुरुपयोग का दस्तावेजीकरण करने का उत्कृष्ट कार्य किया है। वह शांति और लोकतंत्र के लिए नागरिक समाज के महत्व को प्रदर्शित करती हैं।”
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The Norwegian Nobel Committee has decided to award the 2023 #NobelPeacePrize to Narges Mohammadi for her fight against the oppression of women in Iran and her fight to promote human rights and freedom for all.#NobelPrize pic.twitter.com/2fyzoYkHyf— The Nobel Prize (@NobelPrize) October 6, 2023
लंबा रहा है नरगिस (Narges Mohammadi) का संघर्ष
सन 1972 में नरगिस मोहम्मदी का जन्म ईरान के एक ऐसे परिवार में जन्म ली जिसका राजनीतिक आंदोलनों में हिस्सा लेने का इतिहास रहा है। ईरानी क्रांति के लंबे संघर्ष के उपरांत 1979 में वहाँ पहलवी वंश का शासन के पतन के बाद ईरान एक मुस्लिम गणराज्य के रूप में खुद को स्थापित किया। इसके बाद ईरान की नई सत्ता ने नरगिस मोहम्मदी के परिवार को जेल में डाल दिया।
द न्यूयॉर्क टाइम्स को इसी साल दिए एक इंटरव्यू में नरगिस कहती हैं कि उनके बचपन की दो घटनाओं ने उन्हें मानवाधिकार की लड़ाई लड़ने वाली एक कार्यकर्ता बना दिया- पहला, माँ द्वारा जेल में बंद भाई से मिलने जाना और दूसरा, उन दिनों जिन कैदियों को फाँसी दिया जाता था, उसकी घोषणाओं को TV पर माँ का बेसब्री से देखना।
नरगिस मोहम्मदी (Narges Mohammadi) ने नाभिकीय विज्ञान में अभियांत्रिकी (Engineering) की पढ़ाई की है। इसी दौरान उनकी मुलाकात अपने जीवन साथी ताघि रहमानी (Taghi Rahmani) से हुई जो खुद भी एक एक्टिविस्ट हैं। ईरान में उन्हें भी 14 साल तक कैद में रहना पड़ा था और बाद में देशनिकाला के कारण फ्रांस में दो बच्चों के साथ रहते हैं।
नोबेल पुरस्कार समिति के वक्तव्य के अनुसार, नरगिस मोहम्मदी ने 1990 के दशक में अपने छात्र जीवन के दौरान ही खुद को समानता और महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली कार्यकर्ता के रूप में स्थापित करना शुरू कर दिया था।
नरगिस (Narges Mohammadi) ने अपने करियर की शुरुआत एक अभियंता के तौर पर किया था लेकिन इस दौरान भी विभिन्न समाचार पत्रों में लगातार कैदियों, महिलाओं और तमाम लोगों के मानव-अधिकारों के लिए लिखती रहीं।
2003 में नरगिस “डिफेंडर्स ऑफ ह्यूमन राइट्स (Defenders of Human Rights)” नामक संस्था से तेहरान स्थित शाखा से जुड़ीं। ज्ञातव्य हो कि, इस संस्था की स्थापना नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित होने वाली प्रथम महिला (2003) शिरीन एबदी (Shirin Ebadi) ने किया था।
महिलाओं और सज़ायाफ्ता कैदियों के अधिकारों की लड़ाई
नरगिस मोहम्मदी वैसे तो ईरान में लोगों के हर तरह के मानवाधिकार की लड़ाई लड़ती रहीं है, परंतु उन्होंने प्रमुखता से महिलाओं और सज़ायाफ्ता कैदियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ती रही हैं। वह कैदियों को दिए जाने वाले मृत्युदंड या अन्य कठोर सजा को लेकर भी लगातार आवाज उठाती रही हैं।
पिछले साल जब ईरान की सरकार के ख़िलाफ़ महिलाओं ने प्रदर्शन किया और उस दौरान पुलिस की बर्बरता के कारण एक प्रदर्शनकारी महिला अमिनी (Amini) की मृत्यु हो गई, तब भी नरगिस मोहम्मदी (Narges Mohammadi) ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया।
2022 में नरगिस द्वारा लिखी एक किताब “सफेद यातना (White Torture)” नामक किताब प्रकाशित हुई। इस किताब में ईरान के उन महिलाओं के अनुभवों और साक्षात्कारों को संग्रह किया गया है जिन्हें ईरान में अमानवीय सजा दी गई है।
2011 में पहली बार गिरफ्तार होने वाली नरगिस (Narges Mohammadi) को कुल 13 बार गिरफ्तार किया गया है जिसमें 05 बार सजा सुनाई गई है। इस दौरान नरगिस को कुल 31 साल की कैद और 154 कोड़ो की सजा सुनाई गई है।
नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize 2023) अन्य क्षेत्रों में दिए जाने वाले नोबेल पुरस्कार की तुलना में अपेक्षाकृत जल्दी दिया जाता है। कई बार इस पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति जो पुरस्कृत होने के बाद मानवाधिकार और शांति स्थापित करने के प्रयासों से मुकर जाते हैं और इस कारण नोबेल शांति पुरस्कार समिति को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है।
उदाहरण के लिए, 2019 का नोबेल शांति पुरस्कार इथियोपिया के प्रधनमंत्री अबिय अहमद को एरिट्रिया के साथ सीमा-विवाद को सुलझाने के प्रयासों के लिए दिया गया। लेकिन बाद में 2020 में जब उस क्षेत्र में हिंसा भड़की तो अबिय अहमद शांति स्थापित करने के प्रयासों में नाकाम रहे थे।
हालांकि, इस बार नरगिस मोहम्मदी (Narges Mohammadi) को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया है जो शायद इसकी असल हक़दार भी हैं। नोबेल शांति पुरस्कार समिति को भविष्य में कोई मलाल शायद न हो जैसा अबिय अहमद के मामले में हुआ था।
Kaafi aisi informations milti h jiske baare mai hum soch bhi ni sakte…so thanku so much