Marital Rape: दिल्ली हाइकोर्ट के दो जजों की बेंच द्वारा वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को अपराध घोषित करने की मांग वाली याचिकाओं पर हाल ही में खंडित निर्णय दिए जाने के बाद मामला अब सुप्रीम कोर्ट के पाले में है।
दिल्ली हाईकोर्ट के 2 जजों जस्टिस आर. शंखधर और जस्टिस हरिशंकर की खंडपीठ तमाम वाद प्रतिवाद और ज़िरह को सुनने के बाद अपना फैसला सुनाया। न्यायाधीशों में एक का मानना था कि इसे अपराध घोषित कर देना चाहिए जबकि दूसरे न्यायाधीश का मानना था कि भारत जैसा देश अभी इसके लिए तैयार नहीं है।
A two judge bench of Delhi HC pronounced a split verdict on an issue relating to criminalizing marital rape. Justice Rajiv Shakdher ruled in favour of criminalising, while Justice Hari Shankar disagreed.
— ANI (@ANI) May 17, 2022
अतः अंतिम फैसला खंडित रहा और इसके साथ ही याचिकर्ताओं के लिए उच्चतम न्यायालय में जाने का रास्ता ही अंतिम विकल्प है।
वैवाहिक दुष्कर्म (Marital Rape) की वर्तमान कानूनी स्थिति
भारतीय दंड संहिता (IPC) के धारा 375 के तहत बलात्कार की परिभाषा के साथ साथ उसके लिए सजा का प्रावधान है। संक्षेप में बात करें तो किसी भी महिला से बिना उसकी सहमति के शारीरिक सबंध बनाना या इसकी कोशिश बलात्कार की श्रेणी में आता है।
परंतु इस धारा के सेक्शन 2 के तहत एक अपवाद है कि पति द्वारा 18 साल से ज्यादा उम्र की अपनी पत्नी के साथ बिना उसकी सहमति के बनाया गया संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं माना जायेगा।
इसी अपवाद को लेकर RIT फाउंडेशन, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेन्स एसोसिएशन (AIDWA), एक महिला खुशबू सैफ़ी (Marital Rape Survivor) तथा एक पुरुष के द्वारा (अपनी पत्नी के खिलाफ बिना सहमति के सेक्सुअल सम्बंध को लेकर) अदालत से मांग की गई थी कि इस अपवाद को अपराध के दायरे में लाया जाए।
मैरिटल रेप को लेकर सरकार का रवैया
दिल्ली हाईकोर्ट में यह मामला कोई नया नहीं है। सबसे पहले RIT फाउंडेशन ने 2015 में इसे लेकर याचिका दाखिल किया था।
फिर बाद में अन्य पक्षकार जुड़ने लगे। इसी सिलसिले में कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले पर अपना पक्ष रखने को कहा।
केंद्र की बीजेपी सरकार द्वारा 2016 में दाखिल एक एफिडेविट में यह कहा कि अगर वैवाहिक बलात्कार को अपराध के श्रेणी में लाया गया तो विवाह नाम की संस्था तबाह हो जाएगी।
हालांकि बाद में अभी दायर किये गए हलफनामें में केंद्र सरकार ने थोड़ा सकारात्मक रवैया अपनाते हुए कहा कि सरकार इसे अपराध घोषित करने को सोच सकती है पर इसके लिए सिर्फ कानूनी प्रक्रिया काफी नहीं है। सरकार मनोवैज्ञानिकों, समाजशास्त्रियों व विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों से चर्चा के बाद ही कोई निर्णय लेना चाहती है।
क्यों उठ रही है इसे ((Marital Rape) अपराध की श्रेणी में लाने की मांग?
अगर किसी को यह समझना है तो उनके लिए मेरा एक सुझाव है। आप हॉटस्टार (Hotstar) पर एक सीरीज़ है “क्रिमिनल जस्टिस”, उसे एक बार जरूर देखिये। इसकी पूरी कहानी इसी विषयवस्तु के इर्द गिर्द बुनी गयी है।
यह मामला असल मे घर-घर से जुड़ा हुआ है। अभी हाल ही में सरकार द्वारा जारी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार 18% महिलाओं ने यह माना कि वे अपने पति को सेक्स संबंध के लिए इच्छा न रहते हुए भी मना नहीं कर पाती।
संयुक्त राष्ट्र के रिपोर्ट के अनुसार हर 5 में से एक महिला को बेडरूम में सेक्सुअल संबंध के लिए प्रताड़ित होना पड़ता है। साथ ही कई अन्य वैज्ञानिक शोधों में यह माना गया है कि घरेलू हिंसा के पीछे शारीरिक सम्बंध से उत्पन्न विवाद एक बड़ी वजह है।
इन सब रिपोर्ट और अध्ययन को दरकिनार भी कर दें तो सबसे पहले यह पूरा मामला एक औरत की अस्मिता और उसकी व्यक्तिगत निजी स्वतंत्रता से जुड़ी है।
भारत का संविधान अनुच्छेद 14 के तहत हर नागरिक को बराबरी का अधिकार देता है। साथ ही अनुच्छेद 21 हर नागरिक को इज्जत व अस्मिता के साथ जीने का अधिकार देता है चाहे पुरुष हो या महिला या कोई तीसरा लिंग (Gender) हो।
दुनिया के 76 देशों में है इस से जुड़ा कानून
दुनिया के 76 देशों में मैरिटल रेप को अपराध मानते हुए उसके लिए सजा का प्रावधान है। जबकि 34 ऐसे देश हैं जहाँ इसे अपराध के श्रेणी में भी नहीं रखा गया है। भारत भी इन्हीं 34 देशों में से एक है।
वैसे तो भारत में हमलोग हर मुद्दे पर पश्चिमी देशों की नकल करते हैं लेकिन जब बात औरतों को दिए जाने वाले अधिकार की आती है तो हम अपनी पुरातन संस्कृति और इक्के-दुक्के उदाहरण देकर अतीत का सहारा लेते हैं। अभी वैवाहिक बलात्कर के मामले में भी भारतीय समाज का रवैया कुछ ऐसा ही है।
यह सच है कि यह एक संवेदनशील मामला है जिसे लेकर बहुत सोच-विचार करने की आवश्यकता है। अगर इसे अपराध घोषित करने का कानून बनाया गया तो कानून का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है पर यह तर्क तो हर कानून के बारे में लागू होता है। इसलिए यह जरूरी है कि ऐसे मामलों में पीड़ित या पीड़िता के पास एक कानूनी विकल्प तो मौजूद होना चाहिए।
शारीरिक शोषण व बलात्कार, चाहे पुरुष द्वारा किसी महिला का हो या इसके विपरीत.. चाहे बेडरूम के बिस्तर में हो या फिर सड़क या पार्क में.. चाहे किसी अनजान द्वारा किया गया हो या फिर अपने ही पति या पत्नी द्वारा… बलात्कर बलात्कर ही होता है। इसका शारीरिक व मानसिक दुष्परिणाम एक बराबर ही होता है। इसलिए इसे (Marital Rape) अपराध की श्रेणी में लाया जाना चाहिए।