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    Kangchenjunga Train Accident

    Kangchenjunga Train Accident, New Jalpaiguri: पश्चिम बंगाल के न्यू जलपाईगुड़ी से 30 KM की दूरी पर सोमवार (17 जून) को सिलचर से चलकर सियालदह जाने वाली कंचनजंघा एक्सप्रेस और मालगाड़ी की टक्कर हुई जिसमें कम से कम 15 लोगो की मौत और 60 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। ( हताहत की संख्या का स्रोत: PTI रिपोर्ट)

    इस घटना में मरने वाले लोगों में गुड्स ट्रेन के दो दोनों चालक (लोको-पायलट), और कंचनजंगा एक्सप्रेस के गार्ड भी शामिल हैं। केंद्रीय रेल मंत्री श्री अश्विनी वैष्णव घटनास्थल के दौरे पर हैं। साथ ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी घटना का जायजा लेने पहुँच सकती हैं।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति श्री धनखड़, गृह मंत्री अमित शाह, विपक्ष के नेता राहुल गांधी समेत तमाम नेताओं ने अपनी सहानुभूति व्यक्त की।

    कोरोमंडल Train Accident की आई याद

    Kangchenjunga Train Accidents: At least 15 dead, 60 Injured... Death Toll may rise, rescue operations going on. (Pic Source: X.com)
    Kangchenjunga Train Accidents: At least 15 dead, 60 Injured… Death Toll may rise, rescue operations going on. (Pic Source: X.com)

    रेलवे के आधिकारिक बयान के मुताबिक, लोकोमोटिव मालगाड़ी द्वारा नीचबारी और रंगपानी स्टेशन के बीच कंचनजंघा एक्सप्रेस में पीछे से टक्कर मारा गया जिससे एक्सप्रेस ट्रेन की 3 बोगियां हवा में उछलकर पटरी से उतर गई।

    घटनास्थल से आ रही तस्वीरों ने पिछले साल उड़ीसा में हुए कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन दुर्घटना (Coromandel Train Accident, 2023) की यादें ताज़ा कर दी जब एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनों के आ जाने से हुए भीषण टक्कर में लगभग 300 लोगों की मौत हुई थी।

    इस बार भी हादसे की प्राथमिक वजह एक ही ट्रैक पर दोनों ट्रेनों का परिचालन ही है। हालांकि इस घटना में अभी तक मृत लोगों की संख्या तुलनात्मक रूप से कम है; परंतु इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जैसे-जैसे राहत व बचाव कार्य तेज होगा, यह संख्या बढ़ भी सकती है।

    आखिर दो ट्रेन एक साथ एक ही ट्रैक पर कैसे आ जाती हैं ?

    Inter-Locking System of Trains

    अक्सर एक ही ट्रैक पर दो ट्रेन भिड़ने से होने वाले हादसों की वजह सिग्नल फॉल्ट या इंटरलॉकिंग चेंज में कोई गलती होती है। इस कारण एक ट्रैक पर दो ट्रेन स्पीड से आ जाती हैं कि फिर टक्कर (Train Accident) को रोकना या इमरजेंसी ब्रेक लगाना लगभग मुश्किल हो जाता है।

    दरअसल रेलवे में हर ट्रेन और उसके रूट के हिसाब से ऑटोमेटिक इंटरलॉकिंग प्रणाली सेट होता है जिसकी वजह से हर ट्रेन को एक निर्धारित ट्रैक पर परिचालित किया जाता है।रेलवे ट्रैक में इलेक्ट्रिक सर्किट लगे होते हैं और जैसे ही ट्रेन ट्रैक सेक्शन पर आती है, ट्रैक सर्किट इस जानकारी को आगे को कंट्रोल रूम तक प्रेषित करता है और EIC कंट्रोल सिग्नल प्रेषित करता है।

    आपने देखा होगा कि कई जगहों पर सीधी पटरी होती है लेकिन कई जगहों पर पटरियों का जाल होता है। पपटरियों का यह जाल किसी ट्रेन के ट्रैक को परिवर्तित करने के लिए होता है जिसे  कंट्रोल रूम के द्वारा प्रेषित संकेतों (सिग्नल) के जरिये नियंत्रित किया जाता है।

    दो अलग अलग रेल पटरियां एक स्विच के जरिये जुड़ी रहती हैं। ऐसे में जब ट्रेन के ट्रैक को बदलना होता है तो नियंत्रण कक्ष (कंट्रोल रूम) में बैठे कर्मचारी कमांड मिलने पर स्विच के माध्यम से पटरियों को बायीं या दाईं ओर मोड़कर ट्रैक को परिवर्तित किया करते हैं।

    इसी क्रम में कई बार मानवीय भूल या तकनीकी ख़राबी के कारण ट्रैक चेंज नहीं हो पाता और ट्रेन निर्धारित रूट के बजाय अलग ट्रैक पर चली जाती है जिसका नतीजा कई दफा भयंकर हादसे (Train Accident) के रूप में सामने आता है।

    विगत वर्ष हुए कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन दुर्घटना की वजह भी यही प्रणाली थी और अभी हुए कंचनजंघा एक्सप्रेस दुर्घटना (Kangchenjunga Train Accident) की प्राथमिक वजह भी कुछ ऐसा ही मालूम पड़ता है परंतु असली वजह तो तभी पता लग सकती है जब इस घटना की जाँच हो और उसका रिपोर्ट सार्वजनिक किया जाए।

    रेलवे के “सेफ्टी श्रेणी (Safety Category)” के पद खाली

    Train Accidents in railways.

    ताजा ट्रेन दुर्घटना कंचनजंघा एक्सप्रेस वाली हो या फिर पूर्व की कोरोमंडल एक्सप्रेस दुर्घटना जैसी अन्य घटनाएं, इन सब मे एक बात जो कॉमन है कि रेलवे में कर्मचारियों की भारी कमी है। एक RTI से हुए खुलासे के मुताबिक तकरीबन रेलवे में समूह स (Group C) श्रेणी में कुल 2,74, 580 पद रिक्त हैं।

    आईएनएस रिक्त पदों में 1,77,924 पद ऐसे हैं जो रेलवे के “सेफ्टी श्रेणी (Safety Category)” के पद माने जाते हैं। जाहिर है रेलवे में काम कर रहे कर्मचारियों पर दवाब ज्यादा है और ऐसे में मानवीय भूल का होना स्वाभाविक है जो कई बड़े हादसों की वजह बन जाती है।

    अतः स्पष्ट है कि कोरोमंडल एक्सप्रेस या कंचनजंघा एक्सप्रेस जैसी दुर्घटना के लिए प्राथमिक रूप से जरूर एक व्यक्ति या एक विभाग जिम्मेदार ठहराया जाएगा परंतु इस बात से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि यह एक सामूहिक विफलता भी है जिसमें रेल मंत्रालय से लेकर रेल बोर्ड में बैठे आला अधिकारियों की जिम्मेदारी बनती है।

    हादसा…मौत….खबर….थोड़ा मुआवजा……फिर चुप्पी…..अगले हादसे का इंतज़ार….यही हकीकत है, मानो यही नियति है। पिछले साल कोरोमंडल एक्सप्रेस दुर्घटना (Coromandel Train Accident) के बाद रेलवे ने क्या सबक लिया मालूम नहीं; परन्तु पश्चिम बंगाल में हुए एक और ट्रेन हादसे ने रेलवे की कलई खोल दी है।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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