“Indian Democracy is under pressure, is under attack, right. I’m an opposition leader in India and We are navigating that space. What’s happening, the institutional framework which is required for a democracy- Parliament, a Free press, the judiciary, just the idea of mobilization, just the idea of moving around, these are getting constrained. So we are facing an attack on the basic structure of Indian Democracy in the construction….…..”
उपर लिखे अंग्रेजी की पंक्तियाँ राहुल गांधी द्वारा दिये गए कैम्ब्रिज विश्विद्यालय के उस भाषण के अंश हैं जिसे लेकर पिछले हफ़्ते से अब तक संसद में कार्यवाही लगभग ठप्प है।
सत्तारूढ़ बीजेपी के सांसदों से लेकर कद्दावर मंत्री तक ने लगातार एक सुर में कह रखा है कि राहुल गाँधी सात समंदर पार विदेश के किसी विश्विद्यालय के समारोह में अतिथि-वक्ता के तौर पर दिए अपने व्यक्तव्य से देश को शर्मसार किया है और इसके लिए उन्हें भारत के संसद में जब तक माफ़ी नहीं मांगेंगे, बीजेपी के नेता और मंत्री तब तक सदन का कार्य बाधित करेंगे।
वहीं विपक्ष का कहना है कि राहुल गाँधी ने कुछ ऐसा कहा ही नहीं है कि जिसे लेकर देश को शर्मिंदा होने जैसी कोई बात है.…..फिर माफ़ी किस बात की? सरकार बस अडानी मामले से बचने के लिए सदन के पटल पर राजनीति कर रही है।
ये ड्रामा क्यों हो रहा है?
ये ड्रामा इसलिए हो रहा है क्योंकि राहुल गांधी जी प्रधानमंत्री मोदी के दोस्त के कारनामों पर प्रधानमंत्री से जवाब मांग रहे हैं।
और इस बात से घबराई भाजपा रोज ध्यान भटकाने का काम कर रही है।
: @Pawankhera जी pic.twitter.com/G2soKrUsiU
— Congress (@INCIndia) March 21, 2023
राहुल ने की थी Indian Democracy पर टिपण्णी
राहुल के पूरे व्यक्तव्य को राजनीतिक चश्मे से ना देखें तो राहुल ने लंदन में वही कहा है जो देश के भीतर किसी भी कोने के भारत जोड़ो यात्रा में या उस से अलग भी पिछले कई सालों से कह रहे हैं। राहुल ने मोटे तौर पर जो कहा,
“भारत मे लोकतंत्र (Indian Democracy) खतरे में है। विपक्ष की आवाज़ दबा ढ़ी जा रही है। संवैधानिक ढाँचे को बरबाद किया जा रहा है। केंद्रीय जांच एजेंसियां चुन चुनकर विपक्ष को टारगेट कर रहे हैं। भारत का लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यह चरमरा रहा है और अमेरिका, यूरोप आदि जो खुद को लोकतंत्र का चैंपियन मानते हैं, वे चुप हैं।”
हंगामा इसी बात पर है। सत्ता पक्ष कह रही है कि राहुल ने विदेशी मदद मांगी है। देश का अपमान किया है। केंद्र सरकार के 4 कैबिनेट मंत्रियों ने राहुल को आड़े हाँथ लिया कि वह देश से माफ़ी मांगे…. और यह सब बातें केंद्र के मंत्रियों ने संसद के पटल पर कहा।
लेकिन राहुल के उसी व्यक्तव्य का अगला हिस्सा स्पष्ट करता है कि राहुल ने ऐसी कोई मदद मांगी नहीं। बल्कि अव्वल तो यह कि बड़ी परिपक्वता दिखाते हुए उन्होंने कहा कि,
“…..यह भारत की आंतरिक समस्या है: और इसका निदान भी देश के भीतर से ही आएगा। भारत सक्षम है अपनी समस्याओं का हल निकालने में…”
मोटे तौर पर राहुल ने यही बातें की हैं जो देश का हर विपक्षी नेता बीजेपी पर आरोप लगाता रहा है। देश के भीतर भी एक बड़ा धड़ा यह मानता है कि विपक्ष के इन आरोप बिल्कुल निराधार नहीं है जैसा कि बीजेपी दावा करती है। ऐसे में राहुल ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि चूंकि उन पर आरोप सदन में लगे हैं, कैबिनेट स्तर के मंत्रियों ने लगाए हैं लिहाजा वह जवाब भी सदन में ही देंगे। लेकिन सदन चले तब तो…
ठप्प संसद, “म्यूट” आवाज़….. अमृतकाल में भारतीय लोकतंत्र की यही पहचान?
पिछले 7 दिन से तो सदन का सबसे महत्वपूर्ण सत्र जिसमें बजट पर चर्चा होनी थी, वह “राहुल गाँधी माफ़ी मांगो” गुट बनाम “अडानी पर JPC के गठन” वाले ग्रुप के बीच टकराव और हो हल्ला के बीच ठप्प रहा है।
राहुल ने लंदन में और विपक्ष के अन्य सांसदों ने आरोप लगाया कि जब विपक्ष अपनी बात रखता है तो उनके माइक “म्यूट (Mute)” यानी कि बंद कर दिया जाता है और उनकी आवाज़ दबा दी जाती है। सरकार इसे नकारती रही थी। लेकिन इस बार यह स्पष्ट तौर पर पूरे देश के सामने आया जब पिछले दिनों कांग्रेस के नेता मनीष तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के इंटेलीजेंस रिपोर्ट (असल मे सौरभ किरपाल के नियुक्ति को नकारने के मामले पर) बोल रहे थे।
इसी दौरान जब विपक्षी सांसदों ने अडानी मामले पर JPC (Joint Parliamentary Committee) गठित करने की मांग को लेकर आवाज़ बुलंद करने लगे। जैसे ही अडानी का नाम आया, सदन का ऑडियो माइक म्यूट (Mute) कर दिया गया। अब विपक्ष कह रहा है,
यही तो हम कह रहे हैं कि सदन में बोलने नहीं देते हैं। यही तो राहुल ने लंदन में कहा है कि भारत मे लोकतंत्र खतरे में है। सरकार विपक्ष की आवाज़ दबा रही है। आज तो पूरे देश ने यह देख लिया है।
संसद टीवी पर तस्वीरें तो चल रही थीं लेकिन अडानी के नाम आते हीं ऑडियो म्यूट हो गया।
पहले माइक ऑफ होता था, आज सदन की कार्यवाही ही म्यूट करा दी।
PM मोदी के मित्र के लिए सदन म्यूट है 🔇 pic.twitter.com/EcUpCnIR3E
— Congress (@INCIndia) March 17, 2023
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सच मे लोकतंत्र (Indian Democracy) ठीक वैसा ही रह गया है जैसा हमारे देश के पूर्वजों ने कल्पना की थी? क्या संसद अब भी लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत के तौर पर रह गई है जिसका काम देश के नागरिकों की समस्याओं को उठाना, हल निकालना और कानून आदि बनाना था? या संसद अब महज़ एक राजनीतिक अखाड़ा और लाइव प्रसारण के कारण अपने वोटरों को एक संदेश देने का माध्यम बनकर रह गया है?
एक नागरिक के तौर पर जरा सोचिए, जिस संसद को चलाने में प्रति घंटे ₹1.5 करोड़ खर्च होता है, वहाँ पूरा का पूरा सत्र हो हल्ला और हँगामेबाज़ी के भेंट चढ़ जाए, यह तो नागरिकों के टैक्स के पैसे को पानी मे बहाने जैसा ही है न।
जिन नेताओं को देश भर में घूम घूम कर भाषण देने की आज़ादी है, वे सदन के छोटे से अवधि को राजनीतिक अखाड़ा बना कर छोड़ देते हैं? अगली बार जब ये “माननीय” जनप्रतिनिधियों के आपने इलाके में चरण पडे तो पूछिये कि क्या सार्वजनिक मंचों पर अपनी राजनीतिक बातें नहीं रख पाते हैं जो सदन का समय बर्बाद करते हैं?
रही बात इस सरकार की तो उसे बहुमत का धौंस कहिए या राजनीतिक डर, पर विपक्ष को टारगेट करने के कोई मौका नहीं चूक रही है, यह कोई छुपा तथ्य नही है। फिर एक नागरिक के तौर पर यह अजीब नहीं लगता आपको कि सरकार ही सदन न चलने देना चाहती हो? यह तो विपक्ष का हथकंडा हुआ करता था।
असल मे, मुझे व्यक्तिगत तौर पर तो अब यह लगने लगा है कि भारतीय लोकतंत्र (Indian Democracy) उस दौर में है जहाँ आगामी कुछ सालों तक सभी चुनावों में राजनीति के धुरंधरों यानी नेताजी लोग से ज्यादा एक नागरिक की बौद्धिकता और संवेन्दनशीलता की परीक्षा है।
फिलहाल एक बात और स्पष्ट कर दें, कि आजादी के बाद से इस देश मे किसी की हत्या की बातें सबसे ज्यादा हुई हैं तो वह लोकतंत्र (Indian Democracy) ही है। यह हर बार किसी ना किसी के व्यक्तव्य में मर जाता है, आहत होता है…… और हर बार उतनी ही मजबूती से खड़ा रहा है। इस बार भी यह (Indian Democracy) वापस अपने बूते ही अपना रास्ता खोजेगा।