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    Himachal Pradesh Disaster.

    Himachal Pradesh Disaster: कहते हैं कि जब प्रकृति अपने हिस्से की वसीयत वापस लेने पर आ जाये तो मानवीय विकास की तमाम गाथाएँ एक झटके में मानचित्र से मिट जाती हैं। बीते कुछ दिनों से हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के विभिन्न हिस्सों में बदल फटने (Cloud bursting) , अतिवृष्टि (Torrential Rain) और भूस्खलन (Land Slides) से मची तबाही की घटना प्रकृति की एक ऐसी ही चेतावनी है।

    पिछले 4-5 दिनो में भीषण बारिश और भूस्खलन के चलते पूरे राज्य में तबाही का मंजर देखने को मिल रहा है जिसमें कम से कम 50-60 लोगों की जान जा चुकी हैं। अभी राहत व बचाव कार्य जारी है, लिहाज़ा यह आँकड़ा बढ़ भी सकता है।

    ज्ञातव्य हो कि हिमाचल में इस साल के मॉनसून में ऐसी तबाही की यह घटना पहली नहीं है। हिमाचल प्रदेश आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (Himachal Pradesh Disaster Management Authority) के आंकड़ों की माने तो भीषण बारिश और उसके चलते मची तबाही ने पिछले महीने 24 जून से 22 जुलाई के बीच 150 से ज्यादा लोगों की जान ले ली थी।

    एक आंकलन के मुताबिक इस साल मॉनसून में सामान्य से काफ़ी ज्यादा बारिश हुई है जिसके कारण हिमाचल (Himachal Pradesh) में 200-250 लोगों की मौत के अलावे लगभग 10-15 हज़ार करोड़ का नुकसान भी राज्य को उठाना पड़ा है।

    Himachal Pradesh Disaster: महज़ प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदा?

    Himachal Pradesh Disaster
    Himachal Disaster: Natural or Man made? (Image Source: The Hindu)

    ऐसे में सवाल यह है कि क्या यह सब महज़ प्राकृतिक आपदा (Natural Disaster) या नियति का प्रकोप (Natural calamity) है या फिर हिमालय की गोद मे स्थित इन पहाड़ी राज्यो में विकास की अंधी दौड़ ने इस आपदा को निमंत्रण दिया है?

    दरअसल अतिवृष्टि, बाढ़, भूकंप, भूस्खलन आदि घटनाएं हिमालयी क्षेत्रों में कोई नई बात नहीं है। हिमालय एक युवा पर्वतमाला (Young Mountain Chain) है, लिहाज़ा इसके गोद मे बसे क्षेत्रों को भौगोलिक परिवर्तन की घटनाओं संवेदनशील हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से ऐसी घटनाओं की आवृत्ति बढ़ गई है।

    राज्य के आपदा प्रबंधन (Himachal Pradesh Disaster Management Authority)के आंकड़ों के मुताबिक़, हिमाचल प्रदेश में बीते कुछ सालों में भूस्खलन की घटनाओं में 6 गुना इज़ाफ़ा हुआ है। इसके पीछे की वजह जलवायु परिवर्तन और अतिवृष्टि की घटनाओं का बढ़ना है।

    यह सच है कि देश के अन्य हिस्सों के मुकाबले हिमालयी क्षेत्रो का औसत तापमान ज़्यादा तेज़ी से बढ़ रहा है। पिछले कुछ सालों से देश के अन्य हिस्सों के तरह हिमालयी क्षेत्रों में कम समय के लिए लेकिन काफ़ी तीक्ष्ण बारिश (Short but High Intensity Rains) की घटना बढ़ी है।

    जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के अलावे बीते 10 सालों में हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) और उत्तराखंड जैसे राज्यो में सड़कों का जाल काफ़ी तेजी से बढ़ा है। अकेले हिमाचल प्रदेश में 69 राष्ट्रीय राजमार्गों (National Highways) को हरी झंडी मिली है जिसमें 05 चार-लेन राजमार्ग हैं।

    इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि राज्य की आर्थिक तरक्की के लिए सड़कों का बेहतर होना अतिआवश्यक है। लेकिन जब बात हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) जैसे प्राकृतिक रूप से संवेदनशील राज्यो की हो तो इन सड़क मार्गो के निर्माण के दौरान पारिस्थितिकी बिंदुओं (Ecological Aspects) से समझौता नहीं किया जा सकता।

    पिछले साल हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ( Himachal Pradesh High Court) ने पहाड़ों में अनियोजित व अवैध निर्माण (Unplanned & Illegal Construction) और अवैज्ञानिक तरीके से हो रहे निर्माण कार्यों पर चिंता जाहिर की थी।

    एक और पहलू जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, वह है बेतहाशा पर्यटन की दौड़……. आज का हिमाचल SUVs में भर भर के आ रहे पर्यटकों की फ़ौज द्वारा फैलाये जाने वाले प्रदूषण आदि से भर गया है। साथ ही, बड़ी संख्या पर्यटकों के आने के कारण विगत कुछ सालों में होटल, अतिथि गृहों आदि का अवैज्ञानिक और अवैध निर्माण के आंकड़े तेजी से बढ़े हैं।

    कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह कि हिमाचल प्रदेश की यह तबाही  महज़ एक ‘प्राकृतिक आपदा’ नहीं वरन ‘तथाकथित विकास’ की आड़ में प्रकृति के संतुलन को छेड़ने की कीमत है। ऐसी घटनाओं के बाद इसे प्राकृतिक आपदा का जामा पहनाकर और कुछ राहत राशि का वितरण कर के इस पूरे मामले का निपटारा करने की कोशिशों ने ही आज यह हालात पैदा किये हैं।

    अब नहीं जागे…. तो हो जाएगी बहुत देर

    Tourists rushes towards Shimla
    (Image Source: India Today)

    आज हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) का शिमला,कुल्लू, मनाली, मंडी, कांगड़ा क्षेत्र आदि हो या फिर उत्तराखंड का जोशीमठ; ऐसा लगता है कि 2013 के केदारनाथ आपदा के बाद भी हम आज तक नहीं जागे हैं। सच तो यह भी है कि अगर अब नहीं जागे तो शायद बहुत देर हो जाएगी।

    भूवैज्ञानिकों और मौसम विज्ञान संबंधी संस्थाओं को भी अपने तौर तरीकों में अद्यतन की आवश्यकता है। नीति-निर्माताओं को भी विकास की रूपरेखा तय करने वक़्त हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) या उत्तराखंड जैसे राज्यों के भौगोलिक परिस्थितियों को नजरअंदाज करने से बचना होगा।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

    2 thoughts on “Himachal Pradesh Disaster: आपदाओं का हिमालय”
    1. Incredible. ….आज लोगो का पर्यावरण के प्रति जागरूक होना देश कि बहुत बड़ी जरूरत में से एक बन गया है।लोग आधुनिकता की होड़ में इस तरह लगे है कि वो पर्यावरण के प्रति अपने कर्तव्यों को भूल चुके है। आपका ये विचार और
      और आपके द्वारा बताये गये अचंभित कर देने वाला डाटा हर व्यक्ति को अपने पर्यावरण के प्रति कर्तव्य को पूरा करने के प्रति अग्रसर करने में सहायक होगा।।

    2. Highly informative content and eye opening. I appreciate your efforts and can see your content getting better day by day. 👏👏

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