FINLAND Joins NATO: एक तरफ़ जहाँ रूस और यूक्रेन के बीच एक साल से भी ज्यादा वक्त से जंग जारी है, वहीं दूसरी तरफ रूस का पड़ोसी देश फ़िनलैंड (Finland- A Nordic Country) को बीते मंगलवार (04 अप्रैल 2023) को नाटो (NATO) की सदस्यता दे दिया गया है। इस तरह NATO में अब कुल 31 देश शामिल हो गए हैं।
Tervetuloa Suomi — Welcome Finland!
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— NATO (@NATO) April 4, 2023
हालांकि NATO की इस सदस्यता के लिए फिनलैंड के साथ-साथ स्वीडन ने भी सदस्यता की मांग की थी; परंतु फिलहाल स्वीडन को सदस्यता देने के मामले पर NATO के सदस्यों के बीच सहमति नहीं बन सकी।
आपको बता दें, किसी नए देश को NATO की सदस्यता देने के लिए NATO के सभी सदस्य देशों को सहमति जरूरी है। स्वीडन के मामले में तुर्किये (Turkey) और हंगरी (Hungary) ने फ़िलहाल असहमति जाहिर की थी।
NATO : सोवियत संघ के प्रसार नीति को रोकने की कोशिश
NATO (North Atlantic Treaty Organization) एक सामूहिक सैन्य समझौता है जिसका गठन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तत्कालीन सोवियत संघ (USSR) के प्रसार को रोकने के लिए हुआ था। इसमें शामिल देशों ने एक सैन्य समझौता किया कि इसके किसी भी सदस्य देश पर हमला का मतलब होगा कि सभी सदस्य देशों पर हमला।
प्रारंभ में, NATO के स्थापना के समय 1949 में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, इटली, आइसलैंड, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, डेनमार्क, नीदरलैंड्स, नॉर्वे और पुर्तगाल- कुल 12 देश शामिल हुए। फिर 1952 में ग्रीस और तुर्कीय (Turkiye); 1955 में जर्मनी; 1982 में स्पेन; 1999 में चेक रिपब्लिक, हंगरी, और पोलैंड; 2004 में बुल्गारिया, एस्टोनिया, लाटविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया, और स्लोवेनिया; 2009 में अल्बानिया और क्रोएशिया; 2017 में मोंटेनेग्रो, 2020 मे उत्तरी मकदूनिया तथा अब 2023 में 31वें सदस्य के रूप में फ़िनलैंड जुड़ा है।
आख़िर Finland और Sweden को NATO की सदस्यता क्यों चाहिए?
रूस ने यूक्रेन पर लगातार दवाब इसी मक़सद से बनाया है कि यूक्रेन का NATO की तरफ़ झुकाव को रोका जा सके। सच यह भी है कि जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो सबको लगा था कि इतनी बडी महाशक्ति के आगे यूक्रेन ज्यादा दिन नहीं टिकेगा। लेकिन यह नाटो देशों का अप्रत्यक्ष समर्थन ही था जिसने यूक्रेन को रूस के सामने आज 1 साल से भी ज्यादा दिनों तक न सिर्फ टिकाए रखा है बल्कि रूस के दाँत भी खट्टे हुए हैं।
परंतु रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद रूस के आक्रमक रवैया को देखते हुए फिनलैंड, स्वीडन आदि जैसे छोटे देशों को अपनी सुरक्षा का खतरा महसूस होना स्वभाविक है। लिहाज़ा इन देशों ने NATO की सदस्यता लेना मुनासिब समझा। हालांकि स्वीडन को NATO की सदस्यता एभी हासिल नहीं हो सकी, लेकिन फिनलैंड NATO का 31वां सदस्य देश बन गया है।
Finland – Russia संबंध
जब तक सोवियत संघ एक महाशक्ति के रूप में रहा, फ़िनलैंड ने ऐसे कोई कदम नहीं उठाए जिस से रूस को कोई परेशानी हो। यहाँ तक कि जब सोवियत संघ का विघटन भी हो गया और रूस कमजोर पड़ने लगा तब भी फ़िनलैंड ने खुद को पश्चिमी देशों के साथ अच्छे संबंन्धों के बावजूद NATO से दूर रखा।
पिछले 70 सालों से जिसमें रूस और अमेरिका का शीत-युद्ध भी शामिल है, फिनलैंड ने तटस्थता (Neutrality) की नीति अपनाई जिसे विश्व-राजनीति की भाषा मे “फिनलैंडिजेसन (Finlandization)” की नीति कहा गया।
रूस ने अभी पिछले साल जब यूक्रेन पर आक्रमण किया तो यूक्रेन के आगे भी Finlandization की नीति को अपनाने का विकल्प रखा गया था। परंतु आज फ़िनलैंड ने खुद ही इस नीति से बाहर आते हुए NATO में शामिल होने का निर्णय लिया है।
Finland के इस कदम के मायने
फ़िनलैंड के इस कदम का ज़ाहिर सी बात है कि रूस के साथ उसके संबंन्धों पर असर पड़ेगा ही। फिनलैंड को इस कदम के बाद पर्यटन व रूस के साथ व्यापार को लेकर झटका लग सकता है।
दूसरी तरफ़ रूस के नजरिए से देखें तो फ़िनलैंड द्वारा NATO की सदस्यता लेने से यह सैन्य संगठन अब रूस के और करीब ठीक फ़िनलैंड सीमा पर मौजूद है। इस से रूस की बौखलाहट बढ़ सकती है। रूस ने इसी वजह से यूक्रेन पर हमला किया था ताकि NATO की सेना को वह अपनी सीमा से दूर रखे।
NATO के इस कदम से रूस की बौखलाहट और बढ़ सकती है जिसका एक परिणाम यह भी हो सकता है कि रूस यूक्रेन युद्ध की भयावहता और बढ़ सकती है। इसका असर समूचे विश्व पर पड़ना स्वाभाविक है।