World Environment Day 2022: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के आह्वान पर 05 जून को पूरी दुनिया लगभग 50 सालों से विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) के रूप में मना रही है।
वर्ष 2022 में यह दिन इसलिए भी खास है कि स्टॉकहॉम सम्मेलन का 50वां साल मनाया जा रहा है। 1972 में स्वीडन के स्टॉकहॉम में आयोजित सम्मेलन में ही यह तय किया गया कि अगले वर्ष यानि 1973 से हर साल 05 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
“The movement that began in 1972, stands at a critical juncture today. It is now or never. Because we are one people and we have #OnlyOneEarth. We have only one home. And that is worth standing up for.” @andersen_inger on #WorldEnvironmentDaypic.twitter.com/hBVeeSY22p
— UN Environment Programme (@UNEP) June 5, 2022
“Only One Earth” है World Environment Day 2022 का नारा
इस वर्ष के विश्व पर्यावरण दिवस का नारा है – “केवल एक ही पृथ्वी (Only One Earth)”. आर्थिक विकास की अंधी दौड़, शहरीकरण व जलवायु परिवर्तन के कारण आज पृथ्वी पर जीवन के वजूद को ही खतरा पैदा हो गया है।
ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क के अनुसार, दुनिया भर के देशों के बीच की आर्थिक विकास की अंधी दौड़ ने हमें ऐसे मुक़ाम पर ला खड़ा किया है जहाँ अब नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधनों की मौजूदा मांगो को पूरा करने के लिए एक से ज्यादा (1.7) पृथ्वीओं की जरूरत पड़ेगी।
ऐसे में सवाल है कि कहाँ से लाएंगे हम दूसरी पृथ्वी ? सच्चाई यही है कि चांद, मंगल, बुध, सूरज सहित तमाम ब्रम्हांड में अपनी सारी ताक़त लगाकर खोजने के बावजूद अभी तक वैज्ञानिक दूसरी पृथ्वी नहीं खोज पाए हैं।
आज पृथ्वी भी मानव जनित पर्यावरणीय समस्याओं जैसे जलवायु परिवर्तन, कार्बन उत्सर्जन, आदि के कारण ऐसे मुक़ाम पर पहुँच गयी है जहाँ जीवन के अस्तित्व खतरा मंडरा रहा है। धरती का औसत तापमान 1.2 डिग्री सेल्सियस से बढ़ गया है। पर्यावरण में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है। कहीं अतिवृष्टि तो कहीं अल्पवृष्टि तो कहीं मानसून का पैटर्न बदल गया है।
शहरीकरण, फैक्ट्रीज व वाहनों से निकलती प्रदूषित गैसें और पार्टिकुलेट मैटर पर्यावरण के स्वास्थ को नुकसान पहुंचा रहे हैं। सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों से धरती को बचाने वाली ओज़ोन परत भी क्षरित हो रही है।
कुल मिलाकर सबकुछ इसी रफ्तार से होता रहा तो सदी के अंत तक पृथ्वी पर जीना बहुत मुश्किल हो जाएगा। इसलिए हमें अपनी जीवन शैली में भी यह ध्यान रखना होगा कि ब्रम्हांड में केवल एक ही पृथ्वी है, दूसरा नहीं।
विकास की दौड़ का बोझ ढोता पर्यावरण (Environment)
परिवर्तन व विकास वास्तव में प्रकृति का नियम है। यह सिद्धांत पर्यावरण के ऊपर भी लागू होता है। विकास के इसी धारा में एक-कोशकीय जीव से बौद्धिक तौर पर सबसे सक्षम जीव मानव तक का सफ़र तय किया है। इसीलिए मानव धरती को “माँ” की संज्ञा देता है। लेकिन आज का आधुनिक मानव विकास के नाम पर अपनी इस धरती माँ के वजूद से खेल रहा है।
शहरों में जमीन क्रंक्रीट के जंगल से आच्छादित हो गयी है, नतीजतन हरे पेड़ रह नहीं गए। फिर सड़कों के काले रंग ने सूर्य के किरणों का अवशोषण बढ़ा दिया है। ऊपर से बारिश के जल का भूगर्भ में जाना भी प्लास्टिक व अन्य कारकों की वजह से बाधित हो गया है। नतीजतन शहर “हीट आइलैंड” बन गए हैं।
इसका जीता-जागता उदाहरण भारत के कई शहरों ने इस साल देखा जब मार्च के महीने से ही “Heat Wave” का जबरदस्त प्रकोप अभी तक जारी है। आलम यह कि देश के कई हिस्सों के तापमान 50 डिग्री से भी ज्यादा पहुँच गया। इस से न सिर्फ आम जीवन-यापन बल्कि गेंहूँ व अन्य फसलों का उत्पादन, लोगों की आजीविका खासकर ठेले-खोमचे वाले लोग, वन्य जीव व पेड़ पौधों तक प्रभावित हुआ है।
सतत विकास और आम जीवन-परिपाटी
विकास के अंधी दौड़ के बजाय “सतत विकास” का सिद्धांत ही धरती के स्वास्थ्य के लिए सही रास्ता है। लेकिन इसे किताबों और प्रोफेसर साहब के लेक्चर्स से निकालकर आम जन जीवन से जोड़ना होगा।
भारत की पुरानी परंपराएं, जहाँ ऋग्वेद के ऋचाओं से लेकर तमाम पूजा-परिपाटी, पर्यावरण के विभिन्न आयामों को महत्व देता है। हमें आधुनिक विकास के परिपाटी को इस तरह से तय करना होगा कि आने वाली पीढ़ियों को एक माकूल धरती दे सकें।
धरती पर आने वाली सौर ऊर्जा को जीव ऊर्जा में बदलने की प्रक्रिया -प्रकाश संश्लेषण- को चरम पर ले जाने की आवश्यकता है। और इसके लिए अनिवार्य है कि पृथ्वी पर अधिकाधिक मात्रा में सघन हरियाली, स्वच्छ हवा और पानी को सुनिश्चित किया जाना है।
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