The Elephant Whispers- एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म ने , जिसे ऊटी के फोटोग्राफर से फिल्ममेकर बने कार्तिकी गोंसाल्वेस (Kartiki Gonsalves) ने वर्षों की कड़ी मेहनत से बनाया है, भारत का झंडा दुनिया के फिल्म-जगत के सबसे बड़े मंच पर गाड़ दिया है।
इस डॉक्यूमेंट्री (The Elephant Whispers) को ऑस्कर (Oscar) के मंच पर “बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शार्ट केटेगरी (Best Documentary Short category)” के ख़िताब से नवाजा गया है। यह ख़िताब पहली बार किसी भारतीय डॉक्यूमेंट्री को दिया गया है जो भारतीय भाषा में ही बनी है।
Whispers turn to roars!
THE ELEPHANT WHISPERERS JUST WON AN OSCAR 🥳🥳🥳 pic.twitter.com/ZeD0MhzbaL— Netflix India (@NetflixIndia) March 13, 2023
The Elephant Whispers: मानव-हाथी संबंध की एक नई इबादत
The Elephant Whispers डॉक्यूमेंट्री की कहानी “रघु” नामक नर हाथी और उसके 2 रक्षक बोम्मन और बेल्ली (Bomman & Bellie) – जो रघु को अपनी संतान के तरह पालते हैं- के बीच के संबंधों पर आधारित है। एक हाथी और उसके मानव ‘माता-पिता’ का यह परिवार तमिलनाडु के मुदुमलई टाइगर रिज़र्व (Mudumalai Tiger reserve, Tamilnadu) में रहता है।
पूरी फिल्म मानव, प्रकृति और जानवर के बीच सामंजस्य और प्रेम भाव के इर्द गिर्द घूमती है। एक बार जंगल में अकाल पड़ा तो हाथियों का एक झुंड खाने पीने की तलाश में गाँव की तरफ़ चला आया। रघु (हाथी) की माँ की मृत्यु बिजली के करंट लगने से हो जाता है। नन्हा रघु (हाथी) इसी दौरान अपने झुण्ड से बिछुड़ जाता है।
जब वन विभाग को रघु बहुत ही कमजोर और जख्मी हालात में मिलता है तो उसे थेप्पकडू हाथी कैंप (Theppakadu Elephant Camp) में देखभाल हेतु रखा जाता है। उसी गांव का निवासी बोम्मन का परिवार पीढ़ियों से हाथियों की देखभाल करता आ रहा है। लिहाज़ा रघु के देखभाल की जिम्मेदारी भी बोम्मन और उसके ही गांव की एक विधवा महिला बेल्ली को दी जाती है।
बेल्ली की कहानी भी इस डॉक्यूमेंट्री में मानव-जानवर संघर्ष की एक दास्तां बयां करती है। उसके पति को बाघ ने खा लिया था. बेल्ली कहती है,
जब मैं पहली बार रघु से मिली तो वह अपने मुंह में दबाकर मेरी साड़ी खींच रहा था… बिलकुल किसी छोटे बच्चे की तरह…मुझे उसका प्यार महसूस हुआ।
पति की मृत्यु के थोड़े ही दिन बाद उसकी बेटी की मौत हो जाती है। जब बेटी की मौत के बाद वह रो रही थी तो नन्हा रघु आकर उसके पास खड़ा हो गया और अपनी सूढ़ से उसके आंसू पोछने लगा।
फिल्म के एक दृश्य में जब बोम्मन और बेल्ली, रघु (Elephant) को खाना खिला रहे हैं; “रघु” उस वक़्त बिलकुल वैसी ही नखरे करता है जैसे कोई छोटा बच्चा करता हो। बेल्ली रघु(Elephant) को जौ के लड्डू खिलाना चाहती है तो रघु उसे फेंक देता है..क्योंकि उसे नारियल और गुड़ के लड्डू खाने हैं और वह उसे खाने की बाल्टी में देख लिया है।
कुल मिलाकर “रघु (Elephant)” और बोम्मन-बेल्ली के परिवार की कहानी मानव और हाथी के उस प्यार की पराकाष्ठा को दिखाता है जिसके लिए हाथी जाने जाते हैं। विज्ञान भी कहता है कि हाथी मानवों के तरह ही एक सामाजिक प्राणी है।
सोने पर सुहागा यह कि, फिल्म के निर्माता कार्तिकी गोंसाल्वेस ने मुदुमलाई के प्राकृतिक खूबसूरती का हृदय को छू लेने वाली कहानी के साथ बेहतरीन मिश्रण किया है। उनके इसी मेहनत का नतीजा है कि उन्हें दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित ऑस्कर अवार्ड के मंच पर न सिर्फ जगह मिली बल्कि अपनी केटेगरी का बेस्ट अवार्ड भी मिला।
मानव-हाथी संघर्ष: सिक्के का दूसरा पहलू
यह सच है कि हाथी बड़े ही सामाजिक प्राणी है। यह भी सच है कि हाथी मानवो के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। यह आकर्षण चाहे इसके विशालकाय शरीर के कारण हो या फिर मस्त मगन स्वाभाव के कारण- हाथी हमेशा ही मानवो के लिए कौतूहल का एक विषय रहा है।
इस देश में बच्चों द्वारा बचपन में पढ़ी जाने वाली किताबें भी “हाथी राजा.. कहाँ चले” जैसे कविताओं से भरा पड़ा रहता है। बावजूद इसके इस देश में हाथी-मानव संघर्ष (Elephant Human Conflict) की कहानी चिंताजनक है।
जब एक तरफ देश भर के अखबार The Elephant Whispers के ऑस्कर जीतने वाली खबर से रंगे पड़े थे, उसी वक़्त छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश का प्रमुख लोकल अख़बार नई दुनिया ने राज्य के बैकुंठपुर में हाथियों के उत्पात की ख़बर छपी थी। लोगों के मकान क्षत-विक्षत हो गए और फसलों का भारी नुकसान हुआ है।
छत्तीसगढ़ में ऐसी खबरें आम हैं खासकर कोरबा, पेंड्रा मरवाही, आदि इलाकों में जहाँ गौतम अडानी की कंपनी को कोयला खनन का जिम्मा दिया गया है। विशेषज्ञ बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर WII (Wildlife Institute of India) ने शोध के बाद कहा था कि हसदेव क्षेत्र में अगर एक भी कोयला खदान खुला तो मानव-हाथी संघर्ष (Human Elephant Conflict) को रोकना असंभव होगा। लेकिन अडानी के MDO वाली खदानों के लिए ऐसी चेतावनी को दरकिनार कर दिया गया।
लिहाज़ा इन इलाकों से हर दूसरे दिन गजराज के उत्पात जैसी ख़बरें सामने आती हैं जबकि सच्चाई यह है कि मानवों ने कोयले के लालच में गजराज (Elephant) के वन्य क्षेत्र में उत्पात मचाया है।
ऐसा नही है कि सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही यह समस्या है। मानव-हाथी संघर्ष (Human Elephant Conflict) की कहानी पुरे भारत में विद्यमान है। अगस्त 2022 में संसद के मानसून सत्र के दौरान पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने एक आंकड़ा देते हुए कहा कि देश भर में सालाना औसतन 500 व्यक्तियों और लगभग 100 हाथियों की मौत मानव-हाथी संगर्ष और बढ़ते प्रतिस्पर्धा के कारण होती है।
माननीय मंत्री ने बताया कि, पिछले 3 सालों में भारत में 1578 लोगों की मौत हाथियों द्वारा हमले की वजह से हुई। वही इस दौरान 222 हाथियों की मौत बिजली के करंट लगने से, 45 ट्रेन दुर्घटना के कारण, 29 तस्करी जैसे वजह से तथा 11 हाथी की मौत जहर खुरानी के कारण हुई है।
स्पष्ट है कि देश में मानव-हाथी संघर्ष की कहानी The Elephant Whispers की कहानी से 180 डिग्री भिन्न है। यह जरुर है कि इस फिल्म ने एक सन्देश दिया है कि सरकार, वन विभाग, NGOs और समाज को बोम्मन और बेल्ली जैसे जिम्मेदारी उठाने की आवश्यकता है।
आपको बता दें, दुनिया भर के कुल जंगली हाथियों (Wild Elephants) का 60 प्रतिशत से भी अधिक संख्या भारत में है जो निःसंदेह मानवीय क्रिया-कलापों के कारण एक वृहत खतरे का सामना कर रहे हैं।
Wow! What an angle to keep two stories together and making an insightful article.
It’s really different than all the other articles in other media circle based on The Elephant Whispers Documentary.
Now a days, animals are behaving as human and others side some humans are behaving as animals, like they are loosing human’s characteristics.
Really informative Article………… connecting two different datum having same characters. I think if we(human) want more “Raghu” then we have to become “Bomman & Bellie”.