Economy in 2022: साल 2022 अब अपने आखिरी मुकाम पर खड़ा है। बस एक शाम की बात है और कैलेंडर बदल जायेगा… ऐसे में यह जरूरी है कि बीते साल के संदर्भ में हम उन चीजों का अवलोकन जरूर करें जिनसे आने वाले साल और उसके भी आगे के भविष्य की योजनाएं प्रभावित होती हों।
साल 2022: Economy के लिहाज़ से Catch’22 की हालात
साल 2022 वह साल था जब भारत ने अपने आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया और साथ ही “अमृतकाल” में प्रवेश किया। इसे लेकर भारत ने आने वाले 25 सालों के लिए कई सपने संजोए हैं जो भारत को “विश्वगुरू” बनाने की राह में मील के पत्थर साबित होंगे।
परंतु साल 2022 इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि दुनिया कोरोना महामारी के तबाही से उबर रही थी। भारत भी तमाम V-W-K जिस भी तरह (Shape) की रिकवरी कहिए, उसके सहारे अपने अर्थव्यवस्था (Economy) की उखड़ती साँसों को तमाम आर्थिक नीतियों को लगाकर वापस सही अवस्था मे लाने की जुगाड़ करता रहा।
कोरोना के बाद दुनिया के सभी देश अपनी अर्थव्यवस्था (Economy) को सुदृढ़ करने की शुरुआत कर ही रहे थे कि रूस-युक्रेन युद्ध के कारण सप्लाई-चेन के बिखर जाने से तमाम संकटों का सामना करना पड़ा।
विश्व भर में कहीं खाद्य संकट तो कहीं सुरक्षा संकट देखे गए। इंग्लैंड सहित यूरोप के लगभग सभी देश जहाँ एक तरफ गहरे आर्थिक मंदी का सामना कर रहे हैं, वहीं अमेरिका जैसी आर्थिक महाशक्ति की अर्थव्यवस्था (Economy) भी हल्के मंदी के झटके खाता रहा।
दुनिया के मैन्युफैक्चरिंग हब कहे जाने वाले चीन की भी विकास की रफ्तार हौले हौले धीमी पड़ती रही और फिर बबची-खुची कसर साल के अंत मे वहाँ कोरोना महामारी की वापसी ने पूरी कर दी।
जाहिर है, ऐसे में भारत की अर्थव्यवस्था (Indian Economy) भी अछूता नहीं रहा। भारत दुनिया मे सबसे तेजी से रिकवर कर रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक जरूर रहा लेकिन विकास दर की वह रफ़्तार नहीं हासिल कर सका जिस से वित्तीय साल 2024 में 5 ट्रिलियन की इकॉनमी (Economy) बन सके।
महंगाई, बेरोजगारी, डॉलर के मुक़ाबले रुपये का कमजोर होना, घटता फॉरेक्स रिज़र्व, रेपो रेट में लगातार इज़ाफ़ा, चीन के साथ बढ़ता व्यापार-घाटा आदि कुछ कैसे मुद्दे रहे जो पूरे साल भारतीय अर्थव्यवस्था को चोट पहुँचाते रहे।
हालांकि, इन तमाम उठा-पटक के बीच अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से कुछ ऐसे भी मापदंड रहे जिनपर भारत ने अच्छा किया है। कुल निर्यात में अपेक्षाकृत इज़ाफ़ा, यूएई और ऑस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौता (FTA), शेयर मार्केट में वापस लौटा रौनक, RBI द्वारा लॉन्च किए गए e-₹ आदि ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए राहत की ख़बर रही।
GDP ग्रोथ रेट और Indian Economy की सेहत
बात अर्थव्यवस्था (Economy) की हो और जीडीपी (GDP)की बात ना हो, यह कैसे हो सकता है। हमारे देश मे अर्थव्यवस्था का ‘अ’ भी जिसे न मालूम हो, उसे भी जीडीपी और विकास दर की ख़बर रहती है। और ऐसा इसलिए क्योंकि इस देश की राजनीति ने जीडीपी की विकास दर को ही अर्थव्यवस्था की सेहत मापने के यंत्र बना दिया है।
भारत मे साल 2022 के चारों तिमाही में GDP के विकास दर को देखें तो यह क्रमशः 4.1% (Jan- Mar), 13.5% (Apr- Jun), 6.3% (Jul-Sep) तथा 4.4% (अनुमानित, Oct- Dec) रहीं।
अब इन आंकड़ों को सरकार के तरफ से पूरे साल कई बार इस तरह से पेश किया गया मानो भारत की GDP खरगोश की गति से बढ़ रही है।लेकिन यहाँ एक बात जो सरकार नहीं बताती, वह ये कि ये आंकड़े Y-O-Y हैं।
आसान शब्दों में इसे कहें तो ये आंकड़े पिछले साल के GDP की तुलना में इस साल उसी तिमाही के दौरान GDP की विकास के दर को बताते हैं। अब यह सर्वविदित है कि पिछले वित्तीय साल में कोरोना महामारी के कारण विकास दर बहुत कम या माइनस में था।
यानि इस साल का विकास दर अगर 13.5% भी है तो वह असल विकास दर, जिसे भारत 5 Trillion Economy बनने के लिए तलाश रहा था, उस से काफी कम हैं। इसलिए हमें इन आंकड़ों पर खुश होने के बजाए नए समाधान ढूंढने चाहिए।
पूरे साल परेशान करती रही महंगाई
महंगाई एक ऐसा मुद्दा रहा जिस से निपटने में इस साल (2022) सरकार और RBI की सांस फूल गई। कोरोना की मार से ऊबर रहे अर्थव्यवस्था पर रूस-युक्रेन युद्ध के कारण सप्लाई-चेन व्यवस्था में पैदा हुआ असंतुलन भारत के लिए दोहरा संकट बन गया।
लगभग पूरे (जनवरी से अक्टूबर तक) खुदरा महंगाई दर (Retail Inflation) 6% से ऊपर रही जो RBI के लक्षित मुद्रास्फीति (Targeted Inflation) के 4% (+/- 2%) के दायरे से बाहर रही। साल के अंत मे यानि नवंबर में पहली बार यह दर 6% से आंशिक तौर पर थोड़ा नीचे (5.88%) आई।
साल के शुरू और अंत के बीच की तुलना करें तो CNG कुल 27₹/ली. , LPG 200₹/सिलिंडर, दूध 9₹/ली. महंगा हुआ। अनाज, सब्जी और बाकी के रोजमर्रा के सामानों के दाम भी खूब बढ़े जिस से आम आदमी की थाली पर जबरदस्त असर पड़ा।
ईंधन की कीमतों के इज़ाफ़ा के कारण परिवहन का खर्च बढ़ जाने से बाजार में उपलब्ध हर समान की कीमत में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। Retail Analytics Platform Bizom के सिंतबर महीने की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत मे साल 2022 में जनवरी से लेकर सितंबर के बीच रोजमर्रा में उपयोग होने वाली लगभग हर वस्तु की कीमत में लगभग 5%-22% का इज़ाफ़ा हुआ है।
इस महंगाई को नियंत्रित करने के लिए RBI ने रेपो रेट को साल में धीरे धीरे कर के 4.40% से बढ़ाकर 6.25% तक कर दिया। इसका असर साल के अंत मे देखने को मिला जब खुदरा महंगाई दर 6% से नीचे आई।
लेकिन RBI के इस कदम का प्रतिकूल परिणाम यह हुआ कि आम आदमी के गाड़ी, मकान, या साधारण मोबाइल फोन आदि के EMI महंगे हो गए। यानि महंगाई कम होने के लिए भी आम जन का ही बटुआ हर महीने और हल्का होने लगा।
गिरता रुपया और घटता विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserve)
साल की शुरुआत में दुनिया भर में कच्चे तेल की कीमतों में काफी वृद्धि हुई। साथ ही अमेरिकी फेडरल बैंक की नीतियों के कारण डॉलर के मुक़ाबले दुनिया की सभी मुद्राओं की कीमतों का अवक्षरण हुआ।
साल 2022 में भारतीय मुद्रा रुपये की कीमत में अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के मुकाबले लगभग 10% की गिरावट देखने को मिला। एक वक्त पर तो 1 डॉलर की कीमत 82₹ से भी ज्यादा चला गया था जो बाद में थोड़ा कम भी हुआ।
नतीजा, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार यानि फॉरेक्स रिज़र्व 642 बिलियन अमेरिकी डॉलर (All Time High in Sep 2021) से घटकर लगभग 561 बिलियन डॉलर (Dec 2nd, 2022) रह गया। यह स्थिति भारत जैसी अर्थव्यवस्था जो निर्यात से ज्यादा आयात करता है, निश्चित ही प्रतिकूल है।
Shinning Economy लेकिन बेतहाशा बेरोजगारी
विश्व भर में जहाँ एक तरफ मंदी का आलम छाया हुआ है, वहीं भारत जैसी कुछ ही वृहत अर्थव्यवस्था हैं जहाँ विकास की रफ़्तार अपेक्षाकृत ठीक-ठाक रही हैं। लेकिन बेरोजगारी की समस्या पर सरकार को उनके ही वादों की याद दिलाकर लगातार घेरा गया ।
साल 2022 में इस देश ने कई छात्र आंदोलन देखे जिनमें से कुछ उग्र थे तो कुछ शांति से धरना-प्रदर्शन या पैदल मार्च जैसा। RRB NTPC के परीक्षा और उसके परिणाम को लेकर छात्रों का उग्र आंदोलन हुआ। SSC GD की परीक्षा के लिए महाराष्ट्र से छात्रों का एक समूह ने अपना विरोध जताने के लिये पैदल दिल्ली तक की यात्रा की, तो उसी दिल्ली में कोविड के दूसरे लहर के दौरान UPSC की परीक्षा में शामिल होने से वंचित रहे छात्र धरना-प्रदर्शन करते रहे।
कुल मिलाकर यह कि देश को जिस युवाशक्ति के हाँथो में काम देना था, उन युवाओं की जवानी रोजगार और नौकरी की मांग के लिए आंदोलन और धरना में खप रही है।
CMEI को माने तो साल 2022 में देश मे बेरोजगारी दर 7% से अधिक रही जो अत्यंत चिंता का विषय है। इसी CMEI के आंकड़ों के मुताबिक Nov 2022 में तो यह दर 8% से भी ऊपर है।
NCP सांसद दीपक बैज द्वारा पूछे एक लिखित सवाल के जवाब में वाणिज्य मंत्रालय के ओर से सदन में पेश आंकड़े में यह बताया गया कि सरकारी विभागों में 9.79 लाख से ज्यादा रिक्तियाँ हैं जिसमें सबसे ज्यादा रेलवे (2.93 लाख), डिफेंस (2.64 लाख) और गृह मंत्रालय के अंदर (1.43 लाख) प्रमुख हैं। इसके अलावे राज्य सरकारों के पास जो रिक्तियाँ हैं, उनका आंकड़ा राज्य-दर-राज्य भिन्न भिन्न है।
एक सच्चाई यह भी है कि हर किसी को सरकारी नौकरी नहीं मिक सकती। भारत मे कुल्य आबादी का मात्र 2% के लगभग लोग ही सरकारी क्षेत्र में नौकरी करते हैं।
सरकारी विभागों से बाहर देखें तो MSME सेक्टर जो भारत मे कुल रोजगार का 95%-97% अवसर उपलब्ध करवाते हैं। लेकिन अर्थव्यवस्था की रीढ़ कही जाने वाली यह MSME सेक्टर की हालत नोटबन्दी और GST के कारण पहले ही खराब थीं, कोरोना महामारी के बाद यह बेहद खराब दौर में चली गयी है।
ऐसे में जाहिर है बेरोजगारी बढ़ना स्वाभाविक है जो CMEI के आंकड़ों में स्पष्ट भी है। स्टार्ट अप और आत्मनिर्भर भारत जैसी योजनाएं भी कोई बड़ा परिवर्तन लाने में अभी तक टी नाकामयाब ही रही हैं लेकिन यह जरूर है कि इसमें भविष्य में जरूर बेहतर संभावना है।
5 Trillion Economy के लिए चाहिए दोगुनी रफ्तार
भारत अगर वाकई में 5 ट्रिलियन डॉलर वाला अर्थव्यवस्था बनना चाहता है तो इसे लगातार हार साल 9%-10% की विकास दर को बनाये रखना होगा। कोविड के बाद कुछ विशेषज्ञ तो यह भी मानते हैं कि इस से भी अधिक यानि करीब 12% की विकास दर हो तब जाकर भारत 2028-29 तक अपना लक्ष्य हासिल कर सकता है।
अर्थशास्त्र की तमाम मापदंडों और आंकड़ों के गुणा-गणित के बाद यह कहा जा सकता है कि भारत ने अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर बाकियों की तुलना में तो अच्छा ही किया है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि जिस 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था (5 Trillion Economy) का ख्वाब 2023-24 में पूरा करना था, वह अब काफी दूर दिखाई दे रहा है।