Supreme Court on Demonetization: भारत की सर्वोच्च अदालत ने आज 02 जनवरी 2023 को आज से लगभग 06 साल पहले केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार के नोटबन्दी (Demonetization) के फैसले को सही बताया।
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने नोटबन्दी से जुड़े सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए 4-1 के बहुमत से अपना फैसला सुनाया। साथ ही इस से जुड़े सभी याचिकाओं को भी ख़ारिज कर दिया।
असल मे सुप्रीम कोर्ट ने नोटबन्दी (Demonetization) के फैसले को लेकर इस फैसले को लागू करने की प्रक्रिया को वैध व क़ानून-संगत बताया है, न कि इस फैसले के परिणाम को सही बताया है।
दूसरे शब्दों में थोड़ा और तकनीकी तौर पर कहें, तो सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर फैसला सुनाया है कि भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम (RBI Act) 1934 की धारा 26(2) को नोटबन्दी की घोषणा के पहले सही ढंग से लागू किया था या नहीं।
इसलिए, नोटबन्दी का फैसला सही था, यह कहना आधा सच बताने जैसा है। असल मे कोर्ट ने नोटबन्दी के निर्णय को लागू करने की प्रक्रिया को वैध बताया है। अब यह निर्णय सही था या नहीं, यह तो उस निर्णय के परिणाम से ही तय किया जाना चाहिए।
इधर कोर्ट का फैसला, उधर राजनीति शुरू
केंद्र की सत्ता में काबिज़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद ने भी मुख्य विपक्ष कांग्रेस पार्टी के सांसद राहुल गांधी पर हमला बोलते हुए पूछा कि क्या वे नोटबन्दी (Demonetization) के खिलाफ अपने बयानों के लिए देश से माफी मांगेगे?
Shri @rsprasad addresses a press conference at BJP headquarters in New Delhi. https://t.co/lv6mR3X2Ch
— BJP (@BJP4India) January 2, 2023
श्री प्रसाद ने नोटबन्दी को गरीबों की भलाई से जुड़ा निर्णय बताते हुआ कहा कि, सुप्रीम कोर्ट ने 2016 के सरकार के फैसले को सही मानते हुए सभी सवालों को ख़ारिज किया है।
हालांकि रविशंकर प्रसाद के इस व्यक्तव्य पर कांग्रेस पार्टी के मीडिया प्रभारी जयराम रमेश ने पलटवार करते हुए कहा कि, यह कहना कि सुप्रीम कोर्ट ने नोटबन्दी (Demonetization) को जायज़ ठहराया है, पूरी तरह से गुमराह करने वाली और गलत बात है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नोटबंदी का फ़ैसला केवल प्रक्रिया तक सीमित है, और नोटबंदी के परिणामों से इसका कोई संबंध नहीं है।
इस मामले पर मेरा वक्तव्य: pic.twitter.com/7NohQA3xat
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) January 2, 2023
…तो क्या Demonetization पर बहस खत्म हो जानी चाहिए?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सवाल यही उठता है कि क्या अब नोटबन्दी के फैसले पर बहस खत्म कर देनी चाहिए? क्या यह मान लेना चाहिए कि नोटबन्दी (Demonetization) का फैसला एकदम जायज़ था?
राजनीति से इतर यह तय करने के लिए कि अतीत में सरकार द्वारा लिया गया कोई भी निर्णय सही था या नहीं, सबसे बेहतर मापदंड उस फैसले के परिणाम ही होते हैं।
सरल शब्दों में कहें तो, अगर हमें यह तय करना है कि नोटबन्दी एक सही फैसला था या नहीं तो हमें यह देखना चाहिए कि क्या नोटबन्दी (demonetization) के कारण वह सभी मक़सद पूरे हुए जिसकी बुनियाद पर सरकार ने यह निर्णय लागू किया था?
अगर नोटबन्दी (Demonetization) की बात करें तो इसे लागू करने की वजह जो सरकार ने बताई थी, वह थे- कैशेलेस इकॉनमी (Cashless Economy), छिपे हुए काले धन का वापस लाना (Return of Black Money), टेरर फंडिंग (Terror Funding) और जाली मुद्राओं के प्रचलन पर रोक।
आज जबकि इस फैसले को 6 साल बाद भी पुनरीक्षण करें तो सच्चाई यही है कि नोटबन्दी (Demonetization) से उपरोक्त किसी भी एक अपेक्षित परिणाम को हासिल करने में सरकार कामयाब नहीं रही। दरअसल सरकार और RBI के आंकड़ें तो यही बताते हैं।
कैशलेस इकॉनमी की बात तो ऐसी कि नोटबन्दी (Demonetization) के बाद भारतीय बाजारों में नोटों की संख्या कम होने के बजाए, बढ़ी ही हैं।
RBI के अनुसार 2016 मे 16.4 लाख करोड़ कीमत की फिजिकल करेंसी प्रवाह में थीं, जो 2020 में 24.2 लाख करोड़ हो गई। नोटों की संख्या की बात करें तो 2016 में 9 लाख नोट प्रवाह में थे , जो 2020 में बढ़कर 11.6 लाख हो गए थे। यानि नोटबन्दी से कैशेलेस इकॉनमी का लक्ष्य महज़ एक कोर ख्वाब साबित हुआ है।
RBI ने दूसरे आंकड़ों में यह भी बताया है कि आज भी भारत के मुद्रा-प्रवाह में ₹10, ₹20, ₹50, ₹200, और ₹500 ले जाली नोट चलन में है। अव्वल तो यह कि जाली नोटों की संख्या में तो जबरदस्त उछाल देखने को मिला है। यानि इस मोर्चे पर भी नोटबन्दी का कोई फायदा नहीं हुआ।
फिर अगर बात काला धन की बात करें तो RBI ने नोटबन्दी के बाद यह बताया था कि नोटबन्दी के समय जितना भी धन प्रवाह में था, लगभग सभी (99% से भी ज्यादा) RBI को वापस प्राप्त हो गए थे।
यानि नोटबन्दी से जिस काला धन के उगाही की बात हो रही थी, वह काला धन भारतीय बाजार की मुद्रा-प्रवाह में था ही नहीं। फिर एक हालिया रिपोर्ट ने यह भी बताया कि स्विस बैंकों में जमा भारतीय काला-धन 150% से बढ़ गया है।
कुछ यही हाल टेरर फंडिंग को लेकर भी रहा। क्या इस से आतंकवादी घटनाएं रुक गई? क्या इस फैसले के बाद आतंक को पैसा पहुंचना बंद हो गया? जवाब है-नहीं।
स्पष्ट है कि नोटबन्दी (Demonetization) का फैसला सरकार द्वारा एक ऐसा फैसला था जिसने भारत की आम जनता को बेवजह परेशान करने वाला साबित हुआ। नोटबन्दी के फैसले से छोटे उद्योग धंधों को जो नुकसान पहुंचा ही, साथ ही इसे लागू करवाने में पूरे तंत्र को एक बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा।
यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि नोटबन्दी (Demonetization) एक ऐसा फैसला मालूम पड़ता है कि अचानक बिना कोई तैयारी और आर्थिक-परीक्षण के शयनकक्ष में लिया गया फैसला था। असल मे नोटबन्दी का फैसला एक “गलत” निर्णय था और इसके परिणाम काफ़ी कष्टकारी थे।
आज जो लोग भी BJP कब रविशंकर प्रसाद जैसे लोग नोटबन्दी को गरीबों की भलाई की योजना बता रहे हैं, उनसे एक सवाल यह तो बनता ही है कि, जब यह फैसला इतना ही सही था, तो भारतीय जनता पार्टी चुनावों में इसकी क्रेडिट ठीक वैसे ही क्यों नहीं लेती, जैसे अन्य योजनाओ को लेकर दम भरते हैं?
बहरहाल यह कहना कि, कोर्ट ने नोटबन्दी के फैसले को जायज ठहराया है, यह अधूरा सत्य है। ठीक वैसे ही जैसे महाभारत में एक रोचक प्रसंग है- “अश्वथामा मारा गया”।