Chhattisgarh Naxal Attack: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में IED ब्लास्ट में जिला रिज़र्व गार्ड (DRG) के 10 जवान शहीद हो गए जबकि एक निजी ड्राइवर की भी मौत हो गई।
Chhattisgarh: 11 DRG personnel killed in Naxal attack in Dantewada
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— ANI Digital (@ani_digital) April 26, 2023
प्राप्त जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले (Dantewada District) के अरनपुर के पास आज (26 अप्रैल) शाम लगभग 5 बजे DRG के जवानों को ले जा रहे एक वाहन पर IED हमला हुआ जिसे नक्सलियों ने प्लांट किया था।
#WATCH | Visuals from the spot in Dantewada where 10 DRG jawans and one civilian driver lost their lives in an IED attack by naxals. #Chhattisgarh pic.twitter.com/GD8JJIbEt2
— ANI (@ANI) April 26, 2023
दंतेवाड़ा (Chhattisgarh) में हुए इस नक्सली हमले पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि इस हमले को अंजाम देने वाले नक्सलियो को छोड़ा नहीं जायेगा।
#WATCH | Chhattisgarh CM says, “Dantewada incident is heart-rending. My condolences to their families. Their sacrifice won’t go to waste. Pressure is being created on naxals, so they did this cowardice. Naxalism will be uprooted. I spoke with HM Amit Shah & Mallikarjun Kharge” pic.twitter.com/EHdk0KSY8Z
— ANI (@ANI) April 26, 2023
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में गर्मियों में होते हैं ज्यादातर हमले
लगभग दो साल पहले अप्रैल 2021 में छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बीजापुर जिले में माओवादियों ने हमला किया था जिसमें लगभग 22 सुरक्षा जवानों की मृत्यु हुई थी। इस से, ठीक एक साल पहले 21 मार्च 2020 नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में एक बड़े हमले को अंजाम दिया था जिसमें 17 जवानों की मौत हुई थी।
तारीख | जगह व जिला | हताहत जवानो की संख्या |
06th अप्रैल 2010 | ताड़मेटला, सुकमा जिला | 76 |
25 मई 2013 | दरभा घाटी , सुकमा जिला | 32 |
11 मार्च 2014 | टहकवाड़ा , बस्तर जिला | 16 |
25 अप्रैल 2017 | बुरकापाल बेस कैंप, सुकमा जिला | 25 |
21 मार्च 2020 | चिंतागुफा , सुकमा जिला | 17 |
अगर संलग्न टेबल पर ध्यान दें तो स्पष्ट है कि, ज्यादातर नक्सली हमले मार्च से लेकर मई के महीनों में ही हुए हैं।
दरअसल मार्च से लेकर मई तक (मानसून के आने के पहले तक) का वक़्त नक्सलियों के लिए माकूल बैठता है जिसमें जंगल मे ऊंचे घास व झाड़ियां या तो सूख जाते हैं या फिर अपेक्षाकृत कम घने रहते हैं। इसलिए सीपीआई (Moaist) फरवरी से जून तक हर साल TCOC (Tactical Counter Offensive Campaign) के तहत रणनीतिक तरीके से सुरक्षा जवानों के ख़िलाफ़ हमले करती है।
मानसून के आहट के साथ ही घास व झाड़ियाँ ऊँची हो जाती हैं। इस से हमले पर दूर से नज़र बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। साथ ही, छोटे से लेकर बड़े सभी नदी नाले पानी से भर जाते हैं जिस कारण हमले को अंजाम देकर भागना भी मुश्किल हो जाता है। यही वजह है कि नक्सलियों द्वारा पुलिस या सुरक्षा दस्तों पर होने वाले हमले ज्यादातर गर्मियों के महीने में ही अंजाम दिए जाते हैं।
माओवाद की वर्तमान स्थिति
यह सत्य है कि देश मे नक्सलवाद काफ़ी हद तक सिमट गया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, 2010 के बाद से देश में माओवादी गतिविधियों में 77% कई गिरावट हुई है। नक्सल हमलों (Naxal Attacks) में हुई मौत की संख्या 2010 के 1,005 की तुलना में 2022 में महज़ 98 थी। प्रतिशत के हिसाब से यह गिरावट 90% के लगभग थी।
देश भर में वर्तमान में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 90 है। यह संख्या 2000 के दशक में लगभग 200 थी। आंध्रप्रदेश, बिहार, तेलंगाना, ओडिशा और झारखंड जहाँ एक वक्त पर माओवादियों के बेहद मजबूत गढ़ था, आज लगभग नक्सल मुक्त हो गए हैं।
परंतु बात अगर छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की हो, तो यहाँ हालात आज भी चिंताजनक है। सरकार द्वारा ही संसद में दिए आंकड़े के अनुसार ही, पिछले 5 सालों (2018-2022) में कुल 1,132 हिंसक घटनाएं हुईं है जिन्हें वामपंथी अतिवादियों (Maoist, Naxals) ने अंजाम दिया है। इन हमलों में सुरक्षाबलों के 168 जवान और 335 आम नागरिकों की मृत्यु हुई है।
दूसरी तरफ़, सुरक्षबलों द्वारा की गई 400 से भी ज्यादा कार्रवाई में कुल 328 माओवादियों की मृत्यु हुई है। परंतु छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में का मनोबल आज भी ऊँचा है।
साल | नक्सली हमलों की संख्या | हताहत हुए सुरक्षाबल के जवानो की संख्या |
2018 | 275 | 55 |
2019 | 182 | 22 |
2020 | 241 | 36 |
2021 | 188 | 45 |
2022 | 246 | 10 |
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में कहाँ हो रही चूक…?
सवाल यह है कि आखिर छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में नक्सलियों से निपटने में सरकार कहाँ चूक हो रही है? इसे समझने के लिए छत्तीसगढ़ राज्य और केंद्र की सरकारों को बिहार, आंध्र प्रदेश ओडिशा आदि राज्यों से सबक लेना होगा जहाँ नक्सलियों का दबदबा काफ़ी सिमटकर रह गया है।
दरअसल, इन राज्यों ने नक्सलवाद की समस्या से निपटने के लिए राज्य की स्थानीय सुरक्षाबलों की विशेष टीम बनाई और उन्हें खास प्रशिक्षण दिया गया। इन सुरक्षा दस्तों को नेतृत्व करने वाले अधिकारी भी स्थानीय थे। इसका फायदा यह मिला कि एक तो नक्सलियों से उनकी भाषा मे बातचीत करने में मदद मिली, साथ ही ख़ुफ़िया जानकारी के लिए भी स्थानीय सूत्रों की सहायता मिली।
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में माओवादियों से निपटने के लिए यह तरक़ीब देर से अपनाई गई। यहाँ शुरुआत में यह लड़ाई केंद्रीय सुरक्षा बलों के नेतृत्व में लड़ी जा रही थी। नतीजतन पड़ोसी राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, तेलंगाना या झारखंड से खदेड़े गए माओवादियों ने छत्तीसगढ़ में अपना डेरा डाल लिया।
बड़ी संख्या में बाहर से दाखिल हुए माओवादियों ने छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के स्थानीय आदिवासियों को प्रशिक्षण दिया जो अब सक्रिय हो गए हैं। बस्तर, दंतेवाड़ा, बीजापुर आदि की भौगोलिक परिस्थितियां इस लड़ाई को और मुश्किल बनाती हैं।
कुल-मिलाकर छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) को अगर माओवाद से निजात पाना है तो यहाँ की सरकार को यह लड़ाई खुद से लड़नी होगी। इस लड़ाई की कमान स्थानीय सुरक्षा बलों में हाँथ में देना होगा। साथ ही, माओवादियों से बातचीत का रास्ता भी खुला रख कर उन दुर्गम इलाकों में सड़क आदि की पहुंच बनाने की कोशिश करनी होगी।