Cheetah Deaths in Kuno: मध्यप्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में चीतों (Cheetah) की मौत का आंकड़ा अब बढ़कर 09 हो गया है। बुधवार को धात्री नामक मादा चीता की मौत हो गई जिसे हाल ही में अफ्रीका के नामीबिया (Namibia) से लाया गया था।
ज्ञातव्य हो कि, पिछले साल सितंबर महीने में केंद्र सरकार के काफी महत्वाकांक्षी योजना प्रोजेक्ट चीता (Project Cheetah) के तहत 20 चीता को नामीबिया (08) और दक्षिण अफ्रीका(12) से लाकर मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में पुनर्वास करवाया गया था। मार्च 2022 मे यह ख़बर भी सामने आई कि इनमें से नामीबिया (Namibia) से लाये गए एक मादा चीता ने 04 बच्चों को जन्म दिया है।
परंतु, उसके बाद से लगातार चीतों की मौत की खबर गाहे-बगाहे आ रही है। अब तक कुल 09 चीतों की मौत हुई है जिसमें 06 वयस्क चीते जिन्हें अफ्रीका से लाया गया था, शामिल हैं; जबकि शेष 03 की संख्या उन शावकों की है जिन्होने भारत की धरती पर जन्म लिया है।
प्रोजेक्ट चीता (Project Cheetah) पर उठ रहे सवाल
चीतों की इन मौतों के बाद काफ़ी चर्चाओं और गाजे-बाजे के साथ शुरू हुए चीता-पुनर्वास (Cheeta Translocation) की महत्वाकांक्षी परियोजना प्रोजेक्ट चीता (Project Cheetah) पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
हालांकि, इस योजना के शुरू हुए अभी मात्र 11 महीने हुए हैं और अभी से इस योजना को विफल बताना या सवाल खड़े करना थोड़ी जल्दबाज़ी होगी। लेकिन यह सत्य है कि चीतों की मौत का यह उच्च मृत्यु-दर (High Mortality Rate) चिंता का एक सबब जरूर है।
दक्षिण अफ्रीका के चीता विशेषज्ञों ने- जो इन चीतों के स्थानांतरण और पुनर्वास से संबंधित स्टेयरिंग कमिटी के सदस्य भी हैं- भारत मे इस परियोजना (Project Cheetah) के क्रियान्वयन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक पत्र में चिंता जाहिर करते हुए कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए थे। उन्होंने दावा भी किया कि इन मौतों में से कुछ को बेहतर पशु-चिकित्सा तकनीक से बचाया जा सकता था।
इस पत्र में उन्होंने कहा है कि सरकार ने उन्हें चीतों के स्वास्थ को लेकर अंधेरे में रखा था। दक्षिण अफ्रीकी वैज्ञानिकों ने आरोप लगाया है कि वर्तमान चीता परियोजना प्रबंधन (Project Cheetah Management) के पास “बहुत कम या ना के बराबर विशेष वैज्ञानिक प्रशिक्षण (Specific Scientific Training)” है और विदेशी विशेषज्ञों को महज़ नाम मात्र के लिए शामिल किया गया है।
विशेषज्ञों के इस चिंता का संज्ञान लेते हुए देश की सर्वोच्च अदालत (Supreme Court of India) ने भी भारत सरकार को फटकार लगाते हुए कि एक साल से भी कम समय मे 40% से ज्यादा मृत्यु-दर कतई एक अच्छी तस्वीर पेश नहीं करती है।
भारत में चीतों- पुनर्वास का इतिहास
भारत मे आधिकारिक तौर पर 1952 मे ही चीता को विलुप्त (Extinct) घोषित कर दिया गया था। इसके बाद से ही भारत लगातार चीतों के पुनर्वास की योजना पर काम करता रहा है।
1970 के दशक में इन्दिरा गांधी की सरकार ने ईरान के साथ बातचीत की शुरुआत की थी जिसके तहत ईरान से पर्सियन चीता (Persian Cheetah) को भारत मे लाना था और उसके बाद भारत से एशियाई शेरो (Asiatic Lions) को ईरान में भेजना था। लेकिन कुछ वजहों से यह बातचीत असफल रही और चीतों का पुनर्वास की योजना ठंडे बस्ते में रही।
2009 मे मनमोहन सिंह की सरकार ने फिर से कोशिश की लेकिन इस से पहले की कोई ठोस कदम उठाए जाते; सर्वोच्च न्यायालय में मामला गया और सबसे बड़ी अदालत ने यह कहा कि चीता या किसी भी विदेशी जानवर का भारत मे पुनर्वास करने के लिए एक विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता है। इसके बाद एक बार फिर से यह योजना अधर में अटक गई और बात नहीं बनी।
2020 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही पुराने रुख में परिवर्तन करते हुए सरकार को प्रोजेक्ट चीता (Project Cheetah) के लिए मंजूरी दे दी लेकिन यह सख्त हिदायत दी गई कि इसके लिए विशेषज्ञ वैज्ञानिक की देखरेख जरूरी है।
परंतु बीते महीनों में चीतों की लगातार हुई मौतों और उसके बाद वैज्ञानिकों के हालिया आरोपो से यही लगता है कि भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस को खासा तवज्जो नहीं दी है।
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