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    BRICS Countries

    BRICS Summit 2022: अभी 2 दिन पहले सम्पन्न हुए 14वां ब्रिक्स (BRICS) सम्मेलन जिसकी अध्यक्षता इस बार चीन के हाँथो में थी, कई मायनों में खास रहा। इसमें मुख्यतः रूस-युक्रेन युद्ध, अफ़ग़ानिस्तान के राजनीतिक हालात, भविष्य में शीत युद्ध के बढ़ते खतरे तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर चर्चा हुई।

    इस सम्मेलन पर पूरी दुनिया की नजर थी। कारण यह कि यह बैठक ऐसे मुश्किल वक़्त में हुई है जब रूस लगातार युक्रेन पर हमलावर है तथा अमेरिका सहित यूरोपीय देश लगातार रूस को विश्व पटल पर अलग थलग करने में लगे हैं।

    ब्रिक्स (BRICS) देशों में चीन इस युद्ध के पहले ही दिन से रूस के समर्थन में खड़ा है और अमेरिका के निशाने पर है। वहीं भारत ने तटस्थता की नीति अपना रखी है जिसे लेकर अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के बैठकों स लेकर अन्य कई मंचो पर भी भारत- रूस संबंध के मद्देनजर दवाब बनाया था।

    इसीलिए इस सम्मेलन को लेकर इस बार अलग तरह की समीक्षा की जा रही है और विश्व के हर प्रमुख देशों की नजर इस पर बनी हुई थी।

    BRICS Summit 2022
    BRICS Summit 2022 (Through Video Conferencing) chaired by China (Image Source: CGTN)

    BRICS Summit 2022 की प्रमुख बातें:-

    इस बैठक में शुरुआत से लेकर अंत तक सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधियों द्वारा दिये गए वक्तव्य साझा बयान से स्पष्ट है कि तेजी से बदलती वैश्विक राजनीति और आपसी टकराव को लेकर हर कोई चिंतित है।

    14वें ब्रिक्स सम्मेलन BRICS Summit) के अध्यक्ष देश चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी विश्व को भविष्य में शीत युद्ध की संभावनाओं को लेकर आगाह किया। उन्होंने कहा कि दुनिया को शीत युद्ध की मानसिकता और देशों के गुटों के टकराव को छोड़ना ही होगा।

    राष्ट्रपति जिनपिंग की बात अपनी जगह एकदम ठीक भी है और इस समय की जरूरत भी…लेकिन कड़वी हकीकत यह भी है कि आज शीत युद्ध, या छद्म युद्ध या फिर किसी भी प्रकार कब युद्ध के लिए कोई ना कोई ताकतवर देश ही जिम्मेदार है।

    दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि सभी देशों ने साझा बयान में एक दूसरे की संप्रभुता और अखंडता का सम्मान करने की बात कही है।

    अब यह बात अमूमनतः ब्रिक्स (BRICS) जैसी हर बैठकों के साझा बयान में लिखा जाता है। परंतु इस वक़्त इसे भारत और चीन के सीमा विवाद तथा अरूणाचल और लद्दाख की सीमाओं पर चीन की हरकतों से जोड़ कर देखे जाने की जरूरत है।

    इसलिए चीन को साझा बयान से इतर अपने गिरेबान में भी झांकने की जरूरत है लेकिन भारत को इस संदर्भ में और कूटनीतिक तरीके से पेश आना होगा। फिर सिर्फ भारत के साथ सीमा विवाद ही क्यों, दक्षिण चीन सागर में चीन की विस्तारवादी नीतियाँ किसी से छुपी नहीं है।

    तीसरी बड़ी बात यह कि इस ब्रिक्स सम्मेलन को हाल ही सम्पन्न क्वाड (QUAD) से जोड़कर देखी जा रही है जिसमें भारत ने इस वक़्त पर रूस और चीन के धुर-विरोधी अमेरिका के साथ मंच साझा किया है।

    चीन को भारत और अमेरिका के सुदृढ हो रहे रिश्ते अक्सर ही खलते रहा है। हालांकि सार्वजनिक मंच जैसे कि ब्रिक्स सम्मेलन में चीन ने भारत को लेकर कहा है कि साझा मतभेदों से ज्यादा महत्वपूर्ण साझा हितों की रक्षा है।

    भारत का पक्ष:

    अभी हाल ही में सम्पन्न क्वाड (QUAD) सम्मेलन के ठीक बाद ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल होने पर भारत के सामने इस बार पश्चिम (QUAD) व पूरब (BRICS) के बीच एक सामंजस्य बनाये रखने की चुनौती थी।

    भारत के तरफ से PM मोदी ने इसमें भाग लिया तथा भारत का पक्ष रखते हुए उन्होंने कहा कि आज जब पूरा विश्व कोविड के बाद आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है तब ब्रिक्स की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने भारत के विकास दर को दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बताया।

    PM मोदी ने अपनी सरकार की उपलब्धियाँ गिनवाते हुए भारत के विकास को तकनीक-चालित (technology Driven) विकास बताया। उन्होंने तेजी से बढ़ते यूनिकॉर्न की संख्या को भी रेखांकित किया।

    कुल मिलाकर ब्रिक्स देशों ने जिस मुद्दे को सामरिक रूप से उठाया है, वह इस वक़्त पर काफी मायने रखता है। लेकिन इन्हीं मुद्दों पर ब्रिक्स देशों को भी आत्म-मंथन और आत्म-चिंतन करने की आवश्यकता है।

    रूस-युक्रेन युद्ध के इस मंजर में भारत ने अपने चिरपरिचित कूटनीति की तटस्थता वाली नीति अपनाई लेकिन फिर भी युद्ध मे शामिल सभी पक्षो से शांति की अपील करते हुए युद्ध का विरोध किया।

    वहीं चीन ने खुलकर रूस के समर्थन किया तथा रूस और यूरोपीय देशों और अमेरिका द्वारा लगाए गए तमाम प्रतिबंधों का विरोध किया, जबकि उसे खुलकर कहना चाहिए कि युक्रेन पर हमले बंद हों और शांति से मामले को सुलझा लिया जाए। ऐसे में चीन को यह अधिकार कैसे है कि वह दुनिया को युद्ध से बचने का प्रवचन दे?

    भारत के साथ सीमा विवाद को लेकर हर दूसरे दिन वह बातचीत को टालते रहा है तथा सैन्य टकराव की स्थिति पैदा करते रहे है। फिर आपसी टकराव को रोकने वाली बात कम से कम चीन के मुँह से तो बेईमानी लगती है।

    चीन सहित दुनिया को यह बात समझनी होगी कि वैश्वीकरण के कारण पूरी दुनिया एक सूत्र में बंधी है। दुनिया के किसी भी देश मे उत्पन्न हुई समस्या अन्य देशों को भी प्रभावित करती है। इसलिए अगर आपसी टकराव और भविष्य में किसी भी प्रकार के युद्ध से बचना है तो सबसे पहले चीन, अमेरिका आदि जैसे बड़ी शक्तियों को अपने दोहरे और छद्म रवैये को छोड़ना पड़ेगा।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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