बिहार सरकार (Bihar Govt) ने हाल ही में शिक्षक नियुक्ति की नीतियों में परिवर्तन करते हुए आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों का बिहार के मूल निवासी (Domicile Of Bihar) होने की बाध्यता को खत्म करते हुए अब राज्य के बाहर के लोगों को भी आवेदन करने की छूट दे दी है।
ज्ञातव्य हो कि बिहार सरकार (Govt of Bihar) ने हाल ही में बड़ी संख्या में लगभग 1.78 लाख शिक्षकों के लिए आवेदन मांगा है। पहले आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों के लिए बिहार का मूल निवासी (Domicile of Bihar) होना अनिवार्य था परंतु बाद में सरकार ने नियमों में बदलाव कर इस बाध्यता को समाप्त कर के बाहरी राज्यों के लोगों के लिए भी आवेदन का रास्ता साफ किया।
बिहार (Bihar) में लगातार विरोध और प्रदर्शन
इस फैसले के पीछे की वजह यह बताई जा रही है कि कुछ विषय जैसे विज्ञान व गणित के लिए शायद उतने आवेदन राज्य के भीतर से न आ पाए जितना कि एक स्वस्थ प्रतियोगिता के जरिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की पूर्ति हो सके।
अब इसी तर्क को आधार मानकर बिहार में लगातार विरोध (Protest in Bihar) और प्रदर्शन हो रहे हैं जिसे राजनीति ने भी खूब हवा देने की कोशिश की है। विरोध करने वाले इसे बिहारी अस्मिता से जोड़कर सरकार के तर्क पर सवाल खड़ा कर रहे हैं।
#WATCH | Patna: Police detains BJP workers protesting against Bihar govt on issue of the posting of teachers in the state. pic.twitter.com/9WciSN1Kvd
— ANI (@ANI) July 13, 2023
हालांकि विरोध के गर्भ में मूल बात यह है कि अभ्यर्थी इसे अपने चयन की संभावना से जोड़कर देख रहे हैं। उन्हें डर सता रहा है कि बाहरी राज्यों के लोगों द्वारा आवेदन करने के कारण उनकी संभावना कहीं न कहीं कम होती है। मीडिया रिपोर्ट्स से हटाकर जमीन पर कार्यरत अभ्यर्थियों से बात करने पर यह बात स्पष्ट है कि विरोध का मूल वजह यही है।
कुल मिलाकर दोनों ही पक्षों के अपने अपने तर्क हैं; और अपने जगह पर माकूल भी लगते हैं। अब सवाल उठता है कि आखिर बिहार सरकार (Govt of Bihar) का यह फैसला क्या बिहार के हित में है या नहीं?
संवैधानिक रूप से दुरुस्त फैसला
संवैधानिक पहलुओं पर बात की जाए तो बिहार सरकार का यह फैसला अपनी जगह बिल्कुल दुरुस्त है। झारखंड (आदिवासी बाहुल्य) के अलग होने के बाद बिहार (Bihar) अब मूल रूप से अन्य हिंदी भाषी राज्यो के समकक्ष है।
ऐसे में इस बहाली को बिहार के अभ्यर्थियों तक ही सीमित रखना क्षेत्रवाद और संकीर्णवाद को बढ़ावा देने जैसा है। राज्य की सत्ता द्वारा क्षेत्रवाद (Regionalism) आदि का बढ़ावा देना संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ माना जायेगा।
बिहार (Bihar) में स्कूली शिक्षा के हालात दयनीय
बिहार (Bihar) की शिक्षा व्यवस्था कितनी लचर है, यह कोई छुपा रहस्य नहीं है। इस लचर व्यवस्था के पीछे की वजह वहाँ के प्रारंभिक विधायक से लेकर उच्च शिक्षा संस्थानों तक की दयनीय हालात के साथ साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की भारी कमी भी है।
बीते दो या तीन दशकों में भारत के प्रारंभिक शिक्षा का लचर होने का परिणाम आज सामने है कि वर्तमान में भारत की जिस युवा आबादी को देश की तरक्की के लिए वरदान होना चाहिए था, वह वैसा परिणाम नहीं दे पा रहा जैसा अपेक्षित था।
दूसरे शब्दों में कहें तो आज का भारत अपने ऊर्जावान युवाशक्ति का वैसा लाभ नहीं उठा पाया है जैसा कभी चीन या दूसरे देशों ने उठाये थे। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है भारत और अन्य देशों के बीच स्कूली शिक्षा के स्तर में भारी अंतर का होना जो एक या दो दशक पहले स्कूली छात्र रहे वर्तमान आबादी के कार्य-क्षमता को प्रभावित कर रही है।
प्रारंभिक शिक्षा के इन्हीं मापदंडों के ऊपर देखें तो भारत के भीतर भी बिहार (Bihar) उन राज्यों में शामिल हैं जहाँ स्कूली शिक्षा के हालात ज्यादा दयनीय है।
हाल ही में जारी ACER रिपोर्ट ने गहरी चिंता जताते हुए कहा है कि बिहार में कक्षा 3 से ऊपर के छात्रों में मूल-गणना और मूल-साक्षरता पर शीघ्रताशीघ्र प्रभावी तरीके से जोर देने की आवश्यकता है।”
इस रिपोर्ट ने यह भी बताया कि बिहार (Bihar) में प्रारंभिक शिक्षा वाले विद्यालयों में शिक्षकों की उपस्थिति (84%) भी राष्ट्रीय औसत (87.5%) की तुलना में कम है। शिक्षकों की अनुपस्थिति की सबसे बड़ी वजह है क्षेत्रीय स्तर पर या प्रखंड स्तर पर शिक्षकों की पूर्व में की गई बहाली।
ACER के इसी रिपोर्ट में एक और बड़ी बात का उल्लेख है जिसे दरकिनार नहीं किया जा सकता। रिपोर्ट के मुताबिक स्कूलों में अच्छे शिक्षकों कण होने के कारण बिहार (Bihar) के 71.7% प्रतिशत विद्यार्थियों को बाहर प्राइवेट ट्यूशन लेने पर मजबूर होना पड़ता है जो देश भर के राष्ट्रीय औसत (30.5%) के दुगने से भी ज्यादा है।
दूसरा एक और पहलू जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि बिहार (Bihar) न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया भर के सबसे ज्यादा जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों में से एक माना जाता है। बिहार में लगभग 1100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी की जनसंख्या घनत्व है जो राष्ट्रीय औसत का लगभग 3 गुना से भी ज्यादा है।
बिहार (Bihar) में शहरीकरण की दर मात्र 11% है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह औसत बिहार के 3 गुने से भी ज्यादा (34%) है। सीमित या छोटे कृषि जोत, थोड़े बहुत विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के प्राइवेट नौकरियों के अलावे बिहार (Bihar) के लोगों को रोजगार आदि के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करने की मजबूरी है।
एक आँकड़ें के मुताबिक यहाँ के 3 चौथाई घरों से कोई न कोई एक या दो कमाऊ सदस्य राज्य के बाहर रहता है। पलायन के कारण जितना लाभ उन राज्यों को मिला है जहाँ एक बिहारी अपनी सेवाएं देता है, उतना ही लाभ बिहार में रह रहे उस व्यक्ति के परिजन को मिलता है। परंतु गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी के कारण उसकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा ट्यूशन और प्राइवेट विद्यालयों की शुल्क पर खर्च होते हैं।
सरकार का यह फैसला बिहार के हित में
जाहिर है, बिहार के स्कूलों में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षण की कमी सबके सामने है। इसकी तमाम वजहें हो सकती है जिनमे एक प्रमुख वजह है, वहाँ के विद्यालयों में अच्छे शिक्षकों की घनघोर कमी। इसलिए, बिहार सरकार (Govt of Bihar) द्वारा शिक्षक बहाली में बिहार के बाहर के अभ्यर्थियों को भी मौका देने का यह निर्णय निश्चित ही स्वागतयोग्य फैसला है।
हालांकि, बिहार सरकार के इस फैसले की इसके राजनीतिक या बेरोजगारी के दृष्टिकोण से अलग व्याख्या हो सकती है। परंतु अगर स्कूली शिक्षा को ध्यान में रखते हुए तस्वीर को बड़े कैनवास पर रख कर देखा जाए तो बिहार सरकार के इस फैसले में एक दूरगामी सोच निहित है, जिसका स्वागत होना चाहिए।
परंतु, सरकार (Govt of Bihar) को भी इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि अच्छे शिक्षकों की नियुकि वह जादू की छड़ी है जिस से बिहार की शिक्षा व्यवस्था तुरंत पटरी पर लौट आएगा। इसके लिए विद्यालयों के संसाधनों, विभागों में जमीन से लेकर ऊपरी स्तर पर भीषण भ्रष्टाचार आदि पर भी ध्यान देना होगा।