भारत की तीसरी सबसे बड़ी आबादी वाला शहर बेंगलुरू (Bengaluru) इन दिनों भीषण जल-संकट (Water Crisis) से गुज़र रहा है। अभी गर्मियों की महज़ शुरुआत ही हुई है लेकिन कर्नाटक की राजधानी में जल-संकट की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
लगातार बढ़ते इस संकट के मद्देनजर कर्नाटक जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड ने कार धोने, बागवानी, निर्माण, पानी के फव्वारे, सड़क निर्माण और रखरखाव आदि कार्यो में पानी के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। बोर्ड के आदेशानुसार उपरोक्त आदेश के उलंघन करने पर 5000₹/- का जुर्माना लगाया जाएगा।
बेंगलुरू (Bengaluru) में पेय-जल संकट का आलम यह है कि बृहत बेंगलुरू महानगर पालिका (BBMP) के अंतर्गत 30 स्थानों पर पेयजल की सप्लाई एक दिन छोड़कर (On Every Alternate Day) किया जा रहा है। ऐसे में सवाल यह उठने लगा है कि क्या बेंगलुरू भी दक्षिण अफ्रीकी शहर केपटाउन (Cape town) के तर्ज पर ‘डे-जीरो (Day Zero)’ की राह पर तो नहीं जा रहा है?
क्या Bengaluru ‘डे-जीरो (Day Zero)’ की राह पर है?
दक्षिण-अफ्रीकी शहर केपटाउन का इतिहास एक झीलों और तालाबों वाला जल-स्त्रोतों से भरा शहर जैसा रहा है। लेकिन 1990 के बाद वहाँ रियल एस्टेट के कारोबार ने जब रफ़्तार पकड़ी तो अचानक से सभी तालाबों और झीलों का गायब होने का दौर शुरू हुआ।
अगले 25 सालों में ही सभी तालाब, झील और अन्य जल-निकायों को भर दिया गया और अब यह शहर अपने जल-आपूर्ति के लिए केपटाउन से सैंकड़ो किलोमीटर दूर स्थित नदी पर निर्भर हो गया। हालिया दिनों में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) आदि कारणों से सूखा (Draught) और अकाल जैसी स्थिति बन गई है और साल-दर-साल नदियों और जलाशयों में जलस्तर तेज़ी से गिरने लगा।
2014 के बाद से लगातार 3-4 साल के सूखे (Draught) और बारिश में अभूतपूर्व कमी के कारण 2018 में केपटाउन शहर ने जल संकट (Water Crisis) का सबसे बुरा दौर देखा। एक तरफ़ जहाँ पानी की आपूर्ति का संकट गहरा होने लगा, वहीं दूसरी तरफ केपटाउन शहर में बढ़ती जनसंख्या के कारण पानी की मांग भी बढ़ने लगा। नतीज़तन, शहर के लगभग 75-80% हिस्से में नल से पानी की आपूर्ति रोक दी गई थी।
जल-संकट की ऐसी स्थिति जिसमें नल से घरों में जल आपूर्ति को रोक दी जाए, उसे दिवस शून्य या डे जीरो (Day Zero) कहा जाता है। इसके तहत स्थानीय प्रशासन न सिर्फ जल आपूर्ति को बंद कर देता है बल्कि यह नागरिकों द्वारा पानी के निजी इस्तेमाल पर भी तमाम तरह की पाबंदियां लगा दी जाती है।
केपटाउन में ‘डे ज़ीरो (Day Zero)’ के तहत सरकार ने यहां लोगों द्वारा पानी के निजी इस्तेमाल की सीमा भी 87 लीटर प्रतिदिन से घटाकर 50 ली प्रतिदिन कर दी थी। लोगों को सप्ताह में सिर्फ 2 बार नहाने और शौचालय में फ्लश के लिए टंकी के पानी का उपयोग करने पर भी रोक लगाया गया था।
2018 में केपटाउन शहर में क़रीब 200 जल-केंद्र बनाए गए थे जहाँ से लोगों को 25 लीटर पानी मिलता था और इन जगहों पर स्थानीय पुलिस और सेना के लोगों की तैनाती तक करनी पड़ी थी। सरकार ने तब शहर के नालियों के गंदे जल और समुद्र के खारे पानी को भी साफ़ (Recycling) करने की व्यवस्था करनी पड़ी।
यहाँ एक बात ध्यान देने वाली यह है कि बेंगलुरु (Bengaluru) और केपटाउन (Cape town) में जल-संकट की समस्या लगभग एक ही ढर्रे पर उत्पन्न हुई हैं। बेंगलुरु भी अतीत में तालाबों, झीलों और बगीचा का शहर के रूप में जाना जाता रहा है। साल 1961 तक बेंगलुरु में कुल 261 झील थे। एक आंकड़ें के अनुसार, बेंगलुरु वर्तमान में झीलों की संख्या महज़ 80 के क़रीब रह गया है।
स्पष्ट है कि बीते कुछ दशकों में बेंगलुरु (Bengaluru) में औद्योगिकी और शहरीकरण के कारण सभी स्थानीय जल-स्त्रोतों जैसे झील, तालाब आदि पाट दिए गए हैं जिसका परिणाम यह हुआ कि शहर के स्थानीय जल निकायों में बारिश के पानी का संचय नहीं हो सकता।
शहरीकरण के कारण जमीन का ज्यादातर हिस्से पर पक्के मकान, सड़कों और पक्के रास्ते बन गए हैं। इस से बारिश के पानी का जमीन के अंदर तक पहुंचने में भी कठिनाई होती है। इस से भूजल की उपलब्धता पर अभूतपूर्व कुप्रभाव पड़ा है।
बेंगलुरु का एक बड़े हिस्से को अपने पेयजल आपूर्ति के लिए कावेरी नदी पर निर्भर करता है। कावेरी नदी में पानी का स्तर ऐसे भी साल-दर साल कम होता जा रहा है। इसे लेकर कर्नाटक , तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी के बीच कावेरी जल विवाद भी अक्सर ही चर्चा में रहता है।
कुलमिलाकर बेंगलुरु में जो जलसंकट आज दिख रहा है, यह काफ़ी हद तक केपटाउन (Cape town) के तरह ही है। लिहाज़ा, यह कहना कतई भी अनुचित नहीं होगा कि बेंगलुरु आज केपटाउन के ही ‘डे ज़ीरो (Day Zero)’ की राह पर है।
जल-संकट की आहट….. कितने तैयार हैं हम?
केपटाउन (Cape Town) के जल-संकट की यही स्थिति दुनिया भर के कई शहरों में आज देखी जा रही है। भारत के भी कई शहर वर्तमान में बेंगलुरू (Bengaluru) के तरह ही जल-संकट (Water Crisis) से या तो जूझ रहे हैं या इसकी आहट महसूस कर रहे हैं।
आपको याद होगा कि कुछ साल पहले 2019 में चेन्नई में बेंगलुरू (Bengaluru) की तरह जल-संकट पैदा हुआ था। शिमला से लेकर मंगलौर तक हम इन हालातों की आहट देख चुके हैं। भारत के सभी राज्य और शहर पानी की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं। गर्मियां आ रही हैं और यह साल मानव इतिहास का सबसे गर्म साल हो सकता है।
जो लोग शहरों में आवासीय अपार्टमेंट में रहते हैं, उन्हें तुरंत कदम उठाने की ज़रूरत है। देर-सबेर पानी की समस्या हर किसी के दरवाजे तक पहुंचेगी। चूंकि शहरों में जनसंख्या घनी होती जा रही है और भूजल रिचार्ज दर पानी निकालने की रफ्तार से काफी कम है; इसलिए हम देश के किसी हिस्से में रहते हों, इस संकट (Water Crisis) से बच नहीं सकते। इसके लिए सामूहिक कार्रवाई और व्यक्तिगत प्रयास की आवश्यकता है लेकिन हमें तेजी से कार्य करने की आवश्यकता है।
प्रारंभिक कदम के रूप में, घरों बर्तन धोने के लिए कम पानी का उपयोग करें। हो सके तो खाना बनाते और खाते वक्त कम से कम बर्तन लगायें। हम अक्सर बर्तन धोते समय नल खुला छोड़ देते हैं और पानी बहता रहता है। इस आदत को बदलकर काफी पानी बचाया जा सकता है। नहाने के लिए शॉवर का इस्तेमाल करने की बजाय बाल्टी में पानी भरें और कम पानी से नहाने की आदत डालें। ऐसे ही कुछ छोटे कदम बड़े परिणाम ला सकते हैं।
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