संजय लीला भंसाली फिल्म जगत का एक बहुत बड़ा नाम है, और उनके नाम से भी बड़ी होती है उनकी फिल्में जो दर्शको के दिलों में एक छाप छोड़ जाती है। अब ऐसी ही एक फिल्म लेके आ रहे है भंसाली, जो दर्शको के दिल में कितनी छाप छोड़ेगी यह तो पता नहीं पर हां राजनीति में उसकी छाप अभी से दिखाई देने लगी है। भंसाली बाजीराव मस्तानी के बाद इस साल दिसंबर में पद्मावती लेके आ रहे जो रिलीज़ से पहले ही अपनी कहानी को लेकर चर्चा और विरोध का विषय बन चुकी है।
दरअसल, फिल्म पद्मावती मुग़ल शासक अलाउद्दीन खिलजी और राजपूत रानी पद्मावती की कहानी को बयां करती है। परन्तु महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार में एक मंत्री जयकुमार रावल ने फिल्म पर बैन लगाने की मांग की है। उनका कहना है कि फिल्म की कहानी को मनोरंजन के लिए तोड़मोड़ के पेश किया गया है, और साथ ही राजपूतना इतिहास के साथ भी छेड़-छाड़ की गयी है।
उधर, गुजरात बीजेपी प्रवक्ता और वरिष्ठ नेता आइके जडेजा ने पद्मावती के विरुद्ध मोर्चा खोला हुआ है। उनका कहना है कि तथ्यों को बदला गया है असल में रानी पद्मावती कभी अलाउद्दीन खिलजी से मिली ही नहीं थी। यहीं नहीं उन्होंने फिल्म को गुजरात चुनाव के बाद रिलीज़ करवाने के लिए सेंसर बोर्ड के साथ केंद्र सरकार, निर्वाचन आयोग को चिट्ठी भी लिखी है। उन्होंने यह भी कहा कि फिल्म की सहूलियत के लिए पहले यह कुछ चुने हुए राजपूत नेता को दिखाई जाए।
यह फिल्म शुरुवात से ही विवाद और हिंसा अपने साथ लेकर चली आ रही है। राजस्थान के जयपुर में शूटिंग के दौरान फिल्म के निर्देशक से करणी सेना के कार्येकर्ताओं के साथ हाथापाई होना और अब क्षत्रीय समाज से आने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और ताकतवर नेता शंकर सिंह वाघेला का धमकी भरे लहजे में कहना कि राजपूत समाज की स्क्रीनिंग के बिना फिल्म रिलीज होती है तो हिंसा भड़क सकती है, फिल्म की संवेदनशीलता को दर्शाता है ।