गुजरात विधानसभा चुनावों को लेकर चुनाव आयोग ने कोई घोषणा नहीं की है पर सभी दल सियासी बिसात बिछाने में जुट गए हैं। गुजरात में तकरीबन 2 दशकों तक सत्ता में रहने के बाद भाजपा बैकफुट पर जाती दिख रही है। गुजरात के कई प्रमुख समुदाय भाजपा से नाराज चल रहे हैं और कांग्रेस उन्हें अपनी ओर मिलाने की हरसंभव कोशिश कर रही है। अगस्त में हुए राज्यसभा चुनावों में अहमद पटेल को मिली जीत के बाद गुजरात कांग्रेस आत्मविश्वास से लबरेज है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी गुजरात में राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं। उनके धुआँधार चुनाव प्रचारों का कांग्रेस को लाभ मिल रहा है और वह भाजपा को कड़ी टक्कर देती दिख रही है। खबर आ रही है कि गुजरात में भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस बिहार की तर्ज पर महागठबंधन कर सकती है।
कांग्रेस भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए जेडीयू (वासवा गुट), हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवानी के साथ मिलकर महागठबंधन बनाने की जुगत में है। जेडीयू (वासवा गुट) के अध्यक्ष छोटुभाई वासवा गुजरात में हैं और कांग्रेस से गठबंधन को लेकर उनकी बातचीत जारी है। सीट साझेदारी का फार्मूला निकालने के छोटुभाई वासवा गुजरात कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष भरत भाई सोलंकी और गुजरात विधानसभा में नेता विपक्ष शक्ति सिंह गोहिल से लगतार संपर्क में हैं। वरिष्ठ जेडीयू नेता शरद यादव दिल्ली में रहकर पूरे घटनाक्रम पर अपनी पैनी नजर जमाए हुए हैं। इस सम्बन्ध में एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने कहा, “हाँ, बातचीत चल रही है और हम देख रहे हैं कि किस तरह से गठबंधन बन सकता है। इसका निश्चित रूप से सीटों के बंटवारे पर भी असर होगा।”
घर में मोदी-शाह की अग्निपरीक्षा
तकरीबन 2 दशकों से भाजपा गुजरात की सत्ता पर काबिज है। इस दौरान नरेंद्र मोदी 4 बार गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और करिश्माई नेतृत्व गुजरात में भाजपा की सफलता की कुंजी रहा है। गुजरात में भाजपा को फर्श से अर्श तक पहुँचाने के जिस सपने की शुरुआत केशुभाई पटेल ने की थी, नरेंद्र मोदी ने उसे असली जामा पहनाया है। हालाँकि पिछले चुनावों की तरह इस बार भाजपा की राह आसान नजर नहीं आ रही है। भाजपा के सामने जातीय आन्दोलन के अलावा और भी कई सारी कठिनाइयां हैं। भाजपा के पास मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी जैसा लोकप्रिय और सशक्त चेहरा नहीं है। कांग्रेस गुजरात में अपना सियासी वनवास ख़त्म करने की हर संभव कोशिश कर रही है। अहमद पटेल की जीत से मिली संजीवनी ने गुजरात कांग्रेस के बगावत के जख्मों पर मरहम का काम किया है।
कांग्रेस गुजरात में लगातार आक्रामक तेवर अपने हुए है वहीं भाजपा रक्षात्मक मुद्रा में नजर आ रही है। बीते 1 महीने के भीतर नरेंद्र मोदी 4 बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं और दीवाली बाद उनके फिर गुजरात आने के आसार हैं। भाजपा के लिए गुजरात बचाना इसलिए भी जरुरी है क्योंकि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का भी गृह राज्य है। भाजपा पिछले 19 सालों से यहाँ सत्ता में है और देश में गुजरात को भाजपा का गढ़ माना जाता है। भाजपा ने देशभर में अपनी जड़ें जमाने के लिए विकास के बहुचर्चित ‘गुजरात मॉडल’ सहारा लिया है और किसी भी हालत में वह गुजरात को हाथ से नहीं जाने दे सकता। गुजरात में भाजपा को होने वाला नुकसान सीधे तौर पर लोकसभा चुनावों पर असर डालेगा, इसलिए भाजपा फूँक-फूँक कर कदम बढ़ा रही है।
भाजपा से कटा कोर वोटबैंक पाटीदार समाज
कभी गुजरात में भाजपा का परम्परागत वोटबैंक रहा पाटीदार समाज आज भाजपा के खिलाफ खड़ा है। भाजपा पाटीदारों को मनाने की हरसंभव कोशिश कर रही है पर पाटीदार आन्दोलन के मुखिया हार्दिक पटेल अपनी मांगों और अपने रुख से टस से मस नहीं हुए हैं। हार्दिक पटेल के नेतृत्व में गुजरात का पाटीदार समाज आरक्षण की मांग को लेकर सड़कों पर उतर गया था। तकरीबन 5 लाख लोगों की भीड़ ने कई दिनों तक गुजरात की रफ्तार ठप कर दी थी। आरक्षण की मांग को लेकर हुए इस पाटीदार आन्दोलन ने गुजरात की राजनीतिक दिशा को बदल कर रख दिया था और विपक्षी दलों को भाजपा के खिलाफ उम्मीद की एक रोशनी दिखी थी। राहुल गाँधी की सौराष्ट्र यात्रा के दौरान हार्दिक पटेल ने उनका स्वागत किया था और मुलाकात कर समर्थन देने की बात कह सियासी सरगर्मियां बढ़ा दी थी।
हार्दिक पटेल हर मंच से भाजपा सरकार के खिलाफ आग उगल रहे हैं। पाटीदार समाज भाजपा का परम्परागत वोटबैंक रहा है और उसके खिसकने का नुकसान निश्चित तौर पर भाजपा को होगा। भाजपा इस कमी की भरपाई करने के लिए अन्य जातीय समीकरणों को साधने में जुटी थी जो इतने आसान नजर नहीं आ रहे हैं। गुजरात विधानसभा की कुल 182 सीटों में से 70 सीटों पर पाटीदार समाज का प्रभुत्व है। गुजरात में कुल मतदाताओं की संख्या का पाँचवा हिस्सा पाटीदार समाज के वोटरों का है। पाटीदार समाज की नाराजगी का असर वर्ष 2015 में सौराष्ट्र में हुए जिला पंचायत चुनावों में भी देखने को मिला था जब भाजपा क्षेत्र की 11 में से 8 सीटों पर हार गई थी। गुजरात विधानसभा चुनावों से पूर्व भाजपा को पाटीदार समाज को अपनी तरफ मिलाना होगा नहीं तो कांग्रेस-पाटीदार समाज का गठजोड़ चुनावों में भाजपा की मुश्किलें और बढ़ा देगा।
ओबीसी आन्दोलन ने बढ़ाई भाजपा की मुश्किलें
गुजरात की सत्ताधारी भाजपा सरकार पाटीदार आन्दोलन का कोई हल निकाल पाती उससे पहले शुरू हुए ओबीसी आन्दोलन ने उसकी मुश्किलें और बढ़ा दी। अपने परम्परागत वोटबैंक रहे पाटीदारों के खिसकने के बाद भाजपा यह आस लगाए बैठी थी कि ओबीसी वर्ग उसका साथ देगा। पाटीदार समाज द्वारा आरक्षण की मांग को लेकर किए गए आन्दोलन के विरोध में गुजरात का ओबीसी समुदाय एकजुट हो गया है। युवा अल्पेश ठाकुर को ओबीसी समुदाय ने अपना नेता मान लिया है। अल्पेश ठाकुर ने पाटीदार आरक्षण आन्दोलन का विरोध किया था और कहा था कि यदि भाजपा शासित गुजरात सरकार अगर पाटीदार आन्दोलन के आगे घुटने टेकती है तो उसे सत्ता से उखाड़ फेंका जाएगा। अल्पेश ठाकुर गुजरात क्षत्रिय-ठाकुर सेना के अध्यक्ष हैं और ओबीसी एकता मंच के संयोजक की भूमिका में भी हैं। अल्पेश ठाकुर ने राज्य में ओबीसी समुदाय की 146 जातियों को एकजुट किया है।
अल्पेश ठाकुर सत्ताधारी गुजरात सरकार पर लगातार हमलावर रहे हैं और शराबबंदी और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को आधार बना रहे हैं। भाजपा और ओबीसी समुदाय की बातचीत के अभी तक कोई सार्थक परिणाम निकल कर सामने नहीं आए हैं। अल्पेश ठाकुर के साथ गुजरात का सबसे बड़ा मतदाता वर्ग खड़ा है। गुजरात में 40 फीसदी मतदाता ओबीसी समुदाय से आते हैं और 70 सीटों पर अपना प्रभाव रखते हैं। इससे स्पष्ट है कि गुजरात में ओबीसी समुदाय सत्ता तक पहुँचने में कितनी अहम भूमिका निभा सकता है। गुजरात सरकार द्वारा पाटीदार आरक्षण के लिए आयोग के गठन को मंजूरी देने का भी ओबीसी वर्ग ने विरोध किया था। अब सत्ताधारी दल भाजपा के समक्ष सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उसे पाटीदार और ओबीसी वर्ग में से किसी एक पक्ष को चुनना है जबकि दोनों ही समुदाय गुजरात की सत्ता तक पहुँचने की अहम कड़ी है।
भाजपा से नाराज हैं दलित-आदिवासी
लगातार हो रही हिंसक घटनाओं के कारण गुजरात का दलित समुदाय भाजपा से रुष्ट है। बीते दिनों सौराष्ट्र के उना में कथित गौरक्षकों ने दलितों की पिटाई कर दी थी। इस मामले ने आग में घी का काम किया और गुजरात का दलित समाज भाजपा के खिलाफ हो गया। पेशे से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता जिग्नेश मेवानी ने गुजरात में दलितों के इस आन्दोलन का नेतृत्व किया। उना में गौरक्षा के नाम पर हुई दलितों की पिटाई के खिलाफ जिग्नेश मेवानी ने आन्दोलन छेड़ा था। ‘आजादी कूच आन्दोलन’ के माध्यम से जिग्नेश मेवानी ने एक साथ 20,000 दलितों को मरे जानवर ना उठाने और मैला ना ढ़ोने की शपथ दिलाई। इस दलित आन्दोलन ने बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से गुजरात की भाजपा सरकार को करारा झटका दिया था। राज्य के 6 फीसदी मतदाता दलित हैं और 13 सीटों पर प्रभाव रखते हैं। इनकी नाराजगी भाजपा को भारी पड़ सकती है।
कांग्रेस मध्य गुजरात के आदिवासियों को भी अपने साथ मिलाने के लिए प्रयासरत है। नर्मदा विस्थापितों के पुनर्वासन के लिए भाजपा सरकार अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में कांग्रेस का प्रदर्शन पिछले चुनावों में काफी अच्छा रहा था। अपने मध्य गुजरात दौरे के दौरान राहुल गाँधी ने ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में जाकर कांग्रेस की जमीन तैयार करने की कोशिश की। राहुल गाँधी की यात्राओं को अच्छा-खासा जनसमर्थन मिल रहा है और आने वाले चुनावों के वक्त उनकी लोकप्रियता कांग्रेस को फायदा पहुँचाएगी। गुजरात के दलित और आदिवासी वोटर भाजपा से कट चुके हैं और कांग्रेस की तरफ उनका बढ़ता झुकाव भाजपा के सियासी समीकरणों को बिगाड़ सकता है।
मुस्लिम मतदाताओं को साध रही है कांग्रेस
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी अपने गुजरात दौरों के दौरान सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड खेलते नजर आए पर बूथ स्तर पर कांग्रेस कार्यकर्ता और स्थानीय नेता मतदाताओं को साधने में जुटे हुए हैं। मुस्लिम समुदाय लामबंद होकर मतदान करता है और कांग्रेस इसका फायदा उठाना चाहती है। मुस्लिम समुदाय को हमेशा से ही कांग्रेस का परम्परागत वोटबैंक माना जाता रहा है। भाजपा के हिंदुत्ववादी छवि की वजह से मुस्लिम मतदाता भाजपा से कटते रहे हैं। आज विकास का मुद्दा जाति-धर्म से ऊपर हो गया है फिर भी मुस्लिम मतदाताओं की पहली पसंद कांग्रेस ही है। गुजरात में मुस्लिम आबादी 9 फीसदी है और राज्य की 35 सीटों पर मुस्लिम मतदाता प्रभाव रखते हैं। ऐसे में मुस्लिम मतदाताओं का कांग्रेस के पक्ष में ध्रुवीकरण गुजरात की सत्ता तक पहुँचने की राह में भाजपा की मुश्किलें और बढ़ा देगा।
भाजपा के खिलाफ हो रहे हैं सियासी समीकरण
गुजरात भाजपा के सामने मुश्किलों का अम्बार लगा हुआ है। भाजपा के सत्ता तक पहुँचने की राह में कई मुश्किलें खड़ी नजर आ रही हैं। इनमें सबसे अहम है पाटीदारों का भाजपा के खिलाफ जाना। 2012 विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत का बड़ा कारण पाटीदारों का समर्थन था। 2012 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के मतों का अंतर महज 9 फीसदी था। भाजपा को 47 फीसदी मत मिले थे वहीं कांग्रेस को 38 फीसदी मत मिले थे। पर मौजूदा परिस्थितियां बिल्कुल उलट हैं। पाटीदारों के कटने से भाजपा का परम्परागत वोटबैंक भी उससे खिसक चुका है। ऐसे में गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा अधर में लटकी नजर आ रही है। पाटीदारों को मनाने की भाजपा की हर कोशिश नाकाम होती नजर आ रही है।
2012 विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो पाटीदारों की कड़वा बिरादरी के 82 फीसदी वोट भाजपा को मिले थे वहीं लेउवा बिरादरी के 63 फीसदी वोटरों ने भाजपा को चुना था। 80 के दशक से ही पाटीदार समाज के 80 फीसदी वोटर भाजपा के पक्ष में मतदान करते आए हैं। इसी वजह से पाटीदार समाज को भाजपा का पारम्परिक वोटबैंक कहा जाता रहा है। पाटीदार आन्दोलन के अगुआ हार्दिक पटेल कड़वा बिरादरी से आते हैं जिसकी पाटीदारों में 40 फीसदी हिस्सेदारी है। पाटीदार समाज के कुल वोटरों का मत प्रतिशत 20 है। पिछले चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच का मतान्तर 10 फीसदी से भी काम था। इस लिहाजन अगर 80 फीसदी पाटीदार भी कांग्रेस के साथ हो जाए और मुस्लिम, दलित एक होकर कांग्रेस का साथ दे दें तो भाजपा के लिए गुजरात बचाना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
क्या होगा महागठबंधन का प्रभाव
अगर कांग्रेस जेडीयू (वासवा गुट), पाटीदार, ओबीसी, दलित और मुस्लिम समुदाय को अपनी ओर मिलाकर महागठबंधन कर लेती है तो भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए यह काफी होगा। गुजरात विधानसभा की 182 में से 70 सीटों पर पाटीदारों का प्रभाव है। तकरीबन 70 सीटों पर ही ओबीसी समुदाय का प्रभाव है। मुस्लिम, दलित और आदिवासी समाज तकरीबन 30 सीटों पर अपना प्रभाव रखते हैं। ऐसे में यह सियासी गठजोड़ कांग्रेस के लिए फायदेमंद होगा और उसकी सत्ता तक पहुँचने की राह को आसान करेगा। पर इस महागठबंधन का होना इतना आसान नहीं दिख रहा। भाजपा लगातार पाटीदारों को मनाने में लगी हुई है और भाजपा नेता अल्पेश ठाकुर से भी बात कर रहे हैं। ओबीसी समुदाय और पाटीदार एक वक्त में एक खेमे में आ जाए यह असंभव सा लगता है। दोनी ही समुदाय एक दूसरे की मांगों के खिलाफ खड़े हैं।
अहमद पटेल की जीत में अहम भूमिका निभाने के बाद छोटुभाई वासवा का कद गुजरात में बढ़ा है और वह सीटों के बँटवारे को लेकर कांग्रेस नेताओं से बातचीत में जुटे हुए हैं। गुजरात कांग्रेस प्रभारी अशोक गहलोत और पार्टी प्रदेशाध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी महागठबंधन को अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं और उम्मीद है कि राहुल गाँधी के अगले दौरे के वक्त इसकी घोषणा की जाएगी। राहुल गाँधी नवंबर के पहले हफ्ते में दक्षिण गुजरात का दौरा करेंगे। पाटीदार या ओबीसी समुदाय में से किसी एक का भी समर्थन हासिल कर कांग्रेस गुजरात में लड़ाई में आ सकती है और भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस का यह महत्वाकांक्षी महागठबंधन भाजपा के अभेद्य दुर्ग गुजरात की दीवार गिराने के लिए पर्याप्त साबित होगा?