प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजय रथ का पहिया हिंदी पट्टी के राज्यों में विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद थम सकता है। अभी चुनाव परिणाम नहीं आये हैं लेकिन चुनाव बाद आये विभिन्न चैनलों के एग्जिट पोल और सर्वे तो इसी ओर इशारा कर रहे हैं। किसान समस्या और बेरोजगारी के मारे किसान और युवा मतदाता मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने की राह में बाधा बन कर खड़े हो सकते हैं।
मंगलवार को 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम आ जायेंगे। एग्जिट पोल के अनुसार भाजपा शासित तीन महत्वपूर्ण राज्यों में से उसकी सत्ता जा सकती है। ये तीन राज्य लोकसभा की 65 सीटें आती है। 2014 में भाजपा ने इन 65 सीटों में से 61 सीटें हासिल की थी।
2014 के आम चुनावों में सत्ता में आने के बाद मोदी के हिंदू राष्ट्रवादियों के लिए यह नुकसान सबसे बड़ा होगा।2014 में सत्ता में आने के बाद हजारों नौकरियों के वादे और कृषि आय में दोगुना होने के वादे पर भारत के 29 राज्यों में से 22 राज्यों में सत्ता हासिल की।
हालाँकि राज्यों के चुनाव क्षेत्रीय मुद्दों पर होते हैं और लोकसभा के चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर लेकिन कुछ मुद्दे जैसे किसान समस्या, बेरोजगारी दोनों चुनावों में सामान महत्त्व के होते हैं। विधानसभा चुनाव भी इन्ही दो मुद्दों को आगे कर के लडे गए हैं। चुनाव परिणाम से ये पता चलेगा कि भाजपा का कोटर वोटर उससे कितना छिटका है?
एग्जिट पोल के अनुसार राजस्थान में भाजपा स्पष्ट रूप से जीतने वाली है जबकि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में काफी नजदीकी मूकाबला होने की उम्मीद है। मध्य प्रदेश और राजस्थान देश के बड़े राज्य हैं और यहाँ से लोकसभा के 54 सीटें आती है।
लोकसभा चुनाव में राहुल गाँधी के सामने नरेंद मोदी सबसे मजबूत दावेदार बने रहेंगे।
मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान के अलावा मेक इन इण्डिया का नारा दिया था इसके अलावा सकल घरेलू उत्पाद में छें से आगे निकलने की चुनौती थी लेकिन इनमे से कोई भी वादे पुरे हुए हो ऐसा लगता नहीं। गंगा अब भी मैली है। सकल घरेलु उत्पाद महज 17 फीसदी तक बढ़ पाया। मेक इन इण्डिया के जरिये भारत को उद्ध्योग का हब बनाने का वादा भी अधुरा रहा।
नोटबंदी, किसानो में गुस्से की लहर और लगातार होते आन्दोलन ग्रामीण मजदूरी में धीमी वृद्धि, छोटे उद्द्योगों को जीएसटी द्वारा हुआ नुकसान ये सब 2014 में मोदी के खिलाफ जा सकती है।
हिंदुत्व
राजनितिक विश्लेषकों का कहना है कि चुनाव के वक़्त अचानक से राम मंदिर मुद्दे का जोर पकड़ना महज एक संयोग नहीं है। पिछले 4 सालों में बुरे प्रदर्शन के कारण भाजपा को हिंदुत्व की तरफ बढ़ना पड़ा। हालाँकि ये काम भाजपा सीधे नहीं कर रही बल्कि संघ के जरिये करवा रही।
वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता कहते हैं कि भाजपा 2019 में राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और भ्रष्टाचार के मुद्दे के साथ चुनाव में उतरेगी। पिछले साधे 4 सालों में भ्रष्टाचार का एक भी दाग न लगना भाजपा के पक्ष में जाता दिख रहा।
हिन्दू इस देश की कुल आबादी का 80 फीसदी हैं जबकि मुसलमान 14 फीसदी हैं। 90 के दौर में जब मंदिर आन्दोलन चरम पर था उस समय लोगों में भावुकता का समावेश था लेकिन अब लोग समझ चुके हैं कि ये बस एक राजनितिक मुद्दा है और भाजपा भी समझ चुकी है सिर्फ राम के नाम पर अब चुनाव नहीं जीता जा सकता।
2014 में भाजपा को सत्ता तक पहुँचाने में युवा वर्ग का बहुत बड़ा योगदान था। रोजगार के बड़े बड़े वादे के साथ मोदी ने युवाओं को लुभाया था। अब ये युवा दोबारा मोदी और भाजपा पर भरोसा कर के वोट देते या नहीं ये तो आने वाला समय ही बताएगा।
अगर विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के पक्ष में रहे तो मोदी को चुनौती देने वाला कोई नहीं रहेगा और अगर नतीजे प्रतिकूल रहे तो मोदी को एक साथ कई मोर्चों पर लड़ना पड़ेगा। और कई मोर्चे खुलने से कोई भी कमजोर हो सकता है। मोदी जैसा ताकतवर भी।