उत्तर कोरिया की बढ़ती परमाणु शक्ति पुरे विश्व के लिए खतरा बनती जा रही है। ऐसे में चीन और रूस का किम जोंग के लिए समर्थन भी चिंताजनक है। इस बीच क्या यह सोचना सही होगा कि किम जोंग विश्व को तीसरे विश्व युद्ध की ओर ले जा रहा है?
1945 में दूसरे विश्व युद्ध के ख़तम होने के बाद संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की गयी थी। इसे स्थापित करने के पीछे यह मक़सद था कि भविष्य में इस स्तर का कोई और युद्ध ना हो यानी तीसरा विश्व युद्ध ना हो। इसके बाद पिछले 72 सालों में कई बार विश्व की हालत बिगड़ी, लेकिन कभी यह नहीं लगा कि तीसरा विश्व युद्ध छिड़ सकता है।
पिछले एक दशक में एक छोटा सा देश, पुरे विश्व के लिए परेशानी बनता नजर आ रहा है। दस साल पहले जिस देश के पास एक भी परमाणु हथियार नहीं था, वह आज विश्व के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता दिख रहा है। यहाँ उत्तर कोरिया की बात हो रही है।
2013 में उत्तर कोरिया का तानाशाह बनने के बाद से किम जोंग उन को जैसे परमाणु हथियारों से प्रेम हो गया हो। सूत्रों की माने तो गद्दी सँभालने के बाद किम जोंग उन को यह खतरा था कि कहीं उसके साथ वही ना हो जो सद्दाम हुसैन और गद्दाफी के साथ हुआ था? इस कारण से किम जोंग ने अपनी सुरक्षा के लिए आग के खिलौने जोड़ने शुरू कर दिए थे।
पिछले दो सालों में किम जोंग उन ने कई परमाणु परिक्षण किये हैं। हाल ही में उसने हाइड्रोजन बम का भी परिक्षण किया जिसे अभी तक का सबसे शक्तिशाली बम कहा जाता है। किम जोंग के हाइड्रोजन बम परिक्षण के बाद से विश्व को अगले बड़े युद्ध की चिंता सत्ता रही है।
अगर अगला यानी तीसरा विश्व युद्ध होता है, तो कौनसे देश इसका हिस्सा होंगे?
दरअसल वर्तमान परिस्थितियों में दो ही व्यक्ति तीसरा विश्व युद्ध छिड़ सकते हैं। किम जोंग उन और डोनाल्ड ट्रम्प। अगर अमेरिका की बात करें, तो जापान और दक्षिण कोरिया उसके स्थायी साथी हैं। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र का भी सहयोग अमेरिका के साथ रहेगा।
अगर संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के साथ होता है तो अप्रत्यक्ष तरीके से पूरा विश्व अमेरिका के साथ खड़ा हो जाएगा। हालाँकि कुछ ऐसी भी शक्तियां भी हैं, जो इस स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश करेंगी।
पिछले कुछ समय से विश्व की दो बड़ी शक्तियों ने अपना रुख साफ़ नहीं किया है; रूस और चीन। रूस और अमेरिका पिछली शताब्दी में दो बड़े प्रतिद्वंदी रहे थे। दोनों देशों के बीच कई दशकों तक शीत युद्ध चला था। इसके बावजूद जब अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार बनी थी, तब उनकी और रुसी राष्ट्रपति व्लादमीर पुतिन की दोस्ती की चर्चाएं चारों और थी।
इसके बावजूद पिछले कुछ समय में रूस ने कई बार आगे आकर उत्तर कोरिया का समर्थन किया है। इसके अलावा कई मौकों पर रूस ने अमेरिकी योजनाओं का विरोध किया है। इन कारणों से व्लादमीर पुतिन का रुख साफ़ तरीके से नहीं बताया जा सकता है।
इसके अलावा अगर हम चीन की बात करें, तो पिछले एक दशक में पूरब में चीन ने अमेरिका को चुनौत्ती देने की कोशिश की है। विकास, अर्थव्यवस्था के अलावा कई मुद्दों पर चीन ने अमेरिका का विरोध किया है। यह अमेरिका के खिलाफ जाने का चीन का सबसे बड़ा कारण है।
इसके अलावा चीन ने हमेशा से ही साम्यवादी सरकारों का पक्ष लिया है। जब 1950 में कोरिया का विभाजन हुआ था, तो चीन ने सीधे तरीके से उत्तर कोरिया की सरकार का साथ दिया था। इसके अलावा 80 के दशक में जब वियतनाम युद्ध चल रहा था, तब भी चीन ने उत्तर वियतनाम की सरकार का साथ दिया था।
दोनों मामलों में चीन का सीधा मुक़ाबला कोरिया या वियतनाम से नहीं बल्कि अमेरिका से था। इन सब कारणों से यह अनुमान लगाना सही होगा कि अगर युद्ध की परिस्थिति बनती है तो चीन अमेरिका के खिलाफ जा सकता है।
यह तो हुई देशों की बात, अब बात करते हैं उन लोगों की जो यह युद्ध शुरू कर सकते हैं।
सबसे पहले किम जोंग उन। किम जोंग उन को उनके पिता के विपरीत एक समझदार नेता कहा जाता है। किम को पता है कि अगर उसने अमेरिका पर पूरी शक्ति से युद्ध छेड़ा, तो वह इसकी प्रतिक्रिया छेल नहीं सकता है। उत्तर कोरिया की कुल अर्थव्यवस्था से ज्यादा अमेरिका का रक्षा बजट है।
इसके अलावा किम को यह भी पता है कि अगर उसने परमाणु हथियार का इस्तेमाल किया तो पूरा विश्व उसके खिलाफ खड़ा हो जाएगा। ऐसे में किम जोंग उन के साथ क्या होगा, इसका अहसास उनको अच्छे से है।
अब बात करते हैं, डोनाल्ड ट्रम्प की। ट्रम्प को इस समय विश्व का सबसे शक्तिशाली नेता माना जाता है। ट्रम्प शुरू से ही उत्तर कोरिया और किम जोंग का विरोध करते आये हैं। कई मर्तबा ट्रम्प ने सार्वजनिक मौकों पर भी किम जोंग को चेतावनी दी है।
लेकिन इन सबके बावजूद, कभी ऐसा नहीं लगा कि ट्रम्प ने किम जोंग को भड़काने की कोशिश की हो। ट्रम्प ने हमेशा किम जोंग को ही जवाब के तौर पर तीखे बयां दिए हैं। दरअसल ट्रम्प अपने सख्त बयानों से यह दर्शन चाहते हैं, कि वे उत्तर कोरिया का मुक़ाबला करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।
ट्रम्प ने कई बार किम जोंग उन को अपना रवैया बदलने को कहा है। इससे लगता है कि ट्रम्प अपनी और से युद्ध नहीं चाहते हैं। लेकिन अगर सामने वाला पहल करता है, तो ट्रम्प पूरी शक्ति से इसका मुक़ाबला करेंगे।
ट्रम्प ने हाल ही में दक्षिण कोरिया और जापान को शक्तिशाली बनने के लिए कई कदम उठाये हैं। ट्रम्प ने दक्षिण कोरिया में मिसाइल रोकने के लिए एंटी-मिसाइल लगाए हैं। इसके अलावा जापान को लड़ाकू हथियार बेचे हैं। इन सबके पीछे ट्रम्प का यही मक़सद है कि किसी तरह किम जोंग उन पर दबाव बनाया जाए और उसे परमाणु रहित बनने पर मजबूर किया जाए।
इसके अलावा दो और नेता ऐसे हैं जो इस युद्ध में अहम् भूमिका निभा सकते हैं, वे हैं व्लादमीर पुतिन और शी जिनपिंग। मतलब रूस और चीन। रूस और चीन से सीधे तौर पर विश्व को कोई खतरा नहीं है, लेकिन यदि वे युद्ध में शामिल होते हैं, तो युद्ध का पास पलटने का दम रखते हैं।
इन सब चर्चाओं के बाद हमें यही आशा करनी होगी कि किसी तरह किम जोंग के सर से परमाणु हथियार का भूत उतरे और वह शान्ति से समझौता करने के लिए तैयार हो जाए। यह उत्तर कोरिया के अलावा पुरे विश्व के लिए उचित होगा।
इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र को भी इसमें अहम् भूमिका निभानी चाहिए। अगर किम जोंग सीधे तरीके से ना माने, तो कूटनीति के जरिये उसपर दबाव बनाने की कोशिश की जानी चाहिए। हमें यही आशा करनी होगी, कि किम जोंग समझदारी का परिचय दे और किसी प्रकार की बेवकूफी से बचे।