राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने अपना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है। पार्टी अभी उम्मीदवारों के नाम की पहली लिस्ट तैयार कर रही है। सबकी नजरें एक सीट पर टिकी है और वो सीट है जोधपुर जिले की सरदारपुरा सीट जहाँ से अशोक गहलोत 1998 से चुने जाते आ रहे हैं। शायद इसी एक सीट पर इस सवाल का जवाब छुपा है कि गहलोत या पायलट?
हाल के महीनों में राहुल गांधी के लिए महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रबंधक के रूप में उभरने वाले गहलोत का विधानसभा चुनाव लड़ना कांग्रेस की जीत के बाद सरकार के गठन में उनकी भूमिका की ओर इशारा कर सकता है। या फिर कांग्रेस यहाँ भी मध्य प्रदेश वाला फॉर्मूला अपना सकती है जहाँ मुख्यमंत्री पद के दावेदारों ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह में से किसी को टिकट नहीं दिया गया।
दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके गहलोत को इस वक़्त अपने से जूनियर और राज्य कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट से कड़ी टक्कर मिल रही है। लेकिन मध्य प्रदेश से यहाँ हालत थोड़े से भिन्न इस मामले में है कि जहाँ मध्य प्रदेश में कमलनाथ और सिंधिया दोनों लोकसभा के सदस्य हैं वही राजस्थान में गहलोत 1998 से लगातार राजस्थान की राजनीति का हिस्सा रहे।
हालाँकि गहलोत ने 5 लोकसभा चुनाव लड़े और जीते हैं और इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिम्हा राव समेत तीन पीएम के अंदर मंत्री के रूप में काम किया है।
सचिन पायलट मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रह चुके हैं और 2014 लोकसभा चुनाव अजमेर से हार गए थे। हालाँकि सचिन पायलट का अजमेर सीट पर इस साल उपचुनाव न लड़ना ये इशारा करता है कि वो विधानसभा चुनाव लड़ेंगे।
जब कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा गया कि राजस्थान में मुख्यमंत्री कौन बनेगा तो सिंघवी ने कहा था कि ‘या तो गहलोत या पायलट राजस्थान के अगले मुख्यमंत्री बनेंगे।’
हालाँकि इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि राज्य में पार्टी दो कैम्प में बंटी हुई है। एक कैम्प गहलोत को मुख्यमंत्री बनते देखना चाहता है तो दूसरा कैम्प पायलट को। लेकिन पार्टी इन अफवाहों को भाजपा की साजिश बता कर खारिज करती रहती है।