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    रमन सिंह

    छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव की तैयारियां अपने आखिरी चरण में पहुँच चुकी है। पहले चरण के लिए 12 नवम्बर को वोट डाले जाएंगे। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के साथ के द्विपक्षीय मुकाबले को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और जनता कांग्रेस (अजीत जोगी) का गठबंधन तीसरा कोण देने की कोशिश में है और इन सब के बीच कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इण्डिया (सीपीआई) अपनी जमीन को मजबूत करने की कोशिश में है।

    राज्य में चुनाव प्रचार के दौरान पार्टियों में नक्सल समस्या, भ्रष्टाचार, सड़कों की बुरी स्थिति और किसानो की दुर्दशा को खूब मुद्दा बनाया है।

    नक्सल समस्या

    राज्य दशकों से नक्सली समस्या से जूझ रहा है। ये समस्त तब भी इसी तरह थी जब छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था। भारत सरकार और माओवादियों के बीच लड़ाई की नींव 1960 के दशक में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव में पड़ी।

    नक्सली खुद को जनजातीय लोगों का रहनुमा होने का दावा करते हैं जो सालों से सरकार द्वारा अनदेखी के शिकार है। नक्सली ये दावा करते हैं कि उनका मुख्य उद्देश्य भूमिपतियों से जमीन लेकर भूमिहीन जनजातियों में बांटना है। लेकिन उनके इतिहास पर नज़र डाले तो पता चलता है कि उनका मुख्य उद्देश्य युद्ध के जरिये समाज में कम्युनिस्ट राज स्थापित करना बन गया है।

    2004 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के गठन के साथ नक्सलवाद का वर्तमान रूप शुरू हुआ। यह पीपुल्स वॉर ग्रुप (पीडब्लूजी) और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) के बीच विलय का नतीजा था।

    कई सालों से, माओवादियों ने सुरक्षा बलों पर हमला करना मुख्य उद्देश्य बना लिया है। 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नक्सलवाद को “हमारे देश द्वारा सामना की जाने वाली सबसे बड़ी आंतरिक सुरक्षा चुनौती” के रूप में परिभाषित किया। 2009 में, केंद्र ने गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत सीपीआई (माओवादियों) पर प्रतिबंध लगा दिया।

    छत्तीसगढ़ के पहाड़ी, जंगली राज्य के उनके बेहतर भौगोलिक ज्ञान के कारण, नक्सल विद्रोहियों ने अपने समूह को नए सिरे से बनाये रखा। उन्हें दवाब और धमकी की वजह से स्थानीय निवासियों का भी समर्थन प्राप्त होता है । ग्रामीण क्षेत्रों में खराब सड़क कनेक्टिविटी, मानव ढाल के रूप में आदिवासी नागरिकों का उपयोग, और विदेशी मदद भी उनके फैलने फूलने का कारण बन गया है।

    चौथी बार सरकार बनाने की कोशिश में लगे रमन सिंह ने अगस्त में कहा था कि छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद अपनी आखिरी साँसे गिन रहा है लेकिन नक्सलियों के हालिया हमले कुछ और ही हकीकत बयान करते हैं।

    बिजली समस्या

    1 नवम्बर 2000 को मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ एक अलग राज्य बना।

    छत्तीसगढ़ को अलग करने की मांग तब उतनी शुरू हुई जब ये कहा जाने लगा कि प्राकृतिक सम्पदा से भरे होने के बावजूद भोपाल इस क्षेत्र की उपेक्षा करता है। इण्डिया टुडे के 2001 में छपे एक आर्टिकल के मुताबिक़ छत्तीसगढ़ अविभाजित मध्य प्रदेश का 35.36 फ़ीसदी बिजली का उत्पादन करता है लेकिन सिर्फ 23.86 फीसदी बिजली का ही उपभोग कर पता है।

    फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 में भी बिजली की मांग में वृद्धि और कोयले की आपूर्ति की कमी ने बिजली संयंत्रों को बर्बादी की ओर धकेल दिया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 10,500 मेगावाट से अधिक बिजली पैदा करने वाले बिजली संयंत्रों ने कोयले की कमी का हवाला देते हुए अपने प्लांट्स को बंद कर दिया।

    इसके कारण सितंबर और अक्टूबर में 2,700 मेगावाट और 4,210 मेगावाट पैदा करने वाले प्लांटों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इनमें से अधिकतर प्लांट छत्तीसगढ़ में स्थित हैं। इसके अलावा, कोयले की खानों से बहुत दूर होने के कारण, यह मुद्दा राज्य में अपर्याप्त परिवहन के बुनियादी ढांचे को भी दर्शाता है।

    विपक्ष के बिजली की कमी के आरोपों के बीच भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराने के लिए रमन सिंह की तारीफ़ की थी।

    सड़क और बुनियादी सुविधाएँ

    फाइनेंशियल एक्सप्रेस के मुताबिक़ रमन सरकार नक्सल खतरे को कम करने के लिए सड़क निर्माण पर ध्यान केंद्रित कर रही है। पूरब में जगरगुंडा को दोरनापाल और पश्चिम में दंतेवाड़ा को किरांडुल से और उत्तर में बीजापुर को जोड़ने के लिए सड़क निर्माण कार्य प्रगति पर है।
    छत्तीसगढ़ में न्यू रीजनल कनेक्टिविटी स्कीम के तहत अब तक 410.42 किलोमीटर के 81 सड़कों का निर्माण किया गया है।

    किसान समस्या

    चुनाव प्रचार में कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ के किसानों की दुर्दशा पर ध्यान केंद्रित किया है। सत्तारूढ़ बीजेपी और विपक्षी दोनों किसानों को एक प्रमुख वोट बैंक के रूप में देखते हैं। छत्तीसगढ़ में, कुल जनसंख्या का लगभग 70 प्रतिशत कृषि और संबद्ध गतिविधियों में लगी हुई है।

    कांग्रेस ने राज्य में किसानों के संकट को लगातार उठाया है और राज्य सरकार पर अपने हमले को तेज कर दिया है। पार्टी ने पिछली कांग्रेस की अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का मुद्दा उठाया है, जो कि भाजपा की अगुवाई वाली सरकार के एमएसपी के खिलाफ है। कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में मौजूदा सरकार पर 2,100 एमएसपी और 300 रुपये वार्षिक बोनस के रूप में प्रदान करने के 2013 के वादे से मुकरने का आरोप लगाया है।

    रमन सिंह पिछले 15 सालों से छत्तीसगढ़ की सत्ता में है। इस बार कांग्रेस ने पूरा जोर लगा दिया है राज्य की सत्ता को रमन सिंह से छीनने के लिए लेकिन बसपा और अजीत सिंह की जुगलबंदी कांग्रेस की राह मुश्किल कर सकती है।

    By आदर्श कुमार

    आदर्श कुमार ने इंजीनियरिंग की पढाई की है। राजनीति में रूचि होने के कारण उन्होंने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया। उन्होंने कई वेबसाइट पर स्वतंत्र लेखक के रूप में काम किया है। द इन्डियन वायर पर वो राजनीति से जुड़े मुद्दों पर लिखते हैं।

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