बिहार की राजनीति में रोज नया अध्याय जुड़ रहा है। नीतीश कुमार ने पहले भाजपा से दशकों पुराना रिश्ता तोड़कर आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। पर अब वह महागठबंधन का साथ छोड़ पुनः एनडीए के पाले में लौट आये हैं और भाजपा के समर्थन से बिहार की सत्ता हासिल कर ली है। उनके इस कदम से भाजपा के खिलाफ एकजुट हो रहे विपक्ष को झटका लगा है वहीं सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होता दिख रहा है। महागठबंधन की वजह से कांग्रेस 20 सालों बाद साझेदार के रूप में ही सही बिहार की सत्ता में आई थी। लेकिन अचानक ही उसके हाथ से सत्ता सुख मुट्ठी में बंद रेत की तरह फिसल गया। खबर है कि सत्ता हाथ से निकलने से कांग्रेस के कई विधायक नाराज चल रहे हैं और वह बगावत कर सकते हैं।
कांग्रेस विधायक पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से खफा नजर आ रहे हैं। उनका मानना है कि पार्टी ने वक़्त रहते भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के सुपुत्र और राज्य के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर कोई फैसला नहीं लिया और इसी वजह से कांग्रेस के हाथ से सत्ता निकल गई। कांग्रेस कई दशकों बाद बिहार में सत्ता की भागीदार बनी थी और सत्ता से इस तरह विदाई उसके विधायकों को रास नहीं आ रही है। पार्टी विधायकों का मानना है कि केंद्रीय नेतृत्व को नीतीश कुमार के साथ रहने का फैसला करना चाहिए था। अगर ऐसा होता तो उन्हें ये दिन नहीं देखना पड़ता। नाराज विधायकों में सवर्ण विधायक भाजपा के साथ जाना चाहते हैं वहीं अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग के विधायक जेडीयू के साथ जाना चाहते हैं।
विधायक दल की बैठक में मिल गए थे बगावत के संकेत
महागठबंधन का हिस्सा बनकर कांग्रेस ने बिहार की 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे 27 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। पिछले 20 वर्षों में यह कांग्रेस पार्टी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। काफी अरसे बाद कांग्रेस ने बिहार में सत्ता का स्वाद चखा था फिर चाहे वो गठबंधन सरकार में ही क्यों ना हो। नीतीश कुमार के भाजपा के साथ जाकर सरकार बनाने के बाद बिहार कांग्रेस ने 11 अगस्त को पटना में विधायक दल की बैठक बुलाई थी। इस बैठक में पार्टी के 20 विधायक शामिल हुए और 7 विधायक नदारद दिखे। ये सातों विधायक पार्टी के लालू यादव के साथ खड़े रहने के खिलाफ थे। महागठबंधन के बिखराव के बाद इन्होंने कहा भी था कि पार्टी को नीतीश कुमार का साथ देना चाहिए था।
बैठक के बाद से ही इस बात की चर्चा होने लगी थी कि ये विधायक कांग्रेस का दामन छोड़ सकते हैं। जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने इस बात की पुष्टि भी की थी कि 7 कांग्रेसी विधायक लगातार हमारे सम्पर्क में हैं। हालाँकि बिहार कांग्रेस ने ऐसी किसी भी सम्भावना से इंकार किया था। कहा तो यह भी जा रहा है कि यह सभी विधायक आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन से भी खुश नहीं है। कांग्रेस विधायकों की यह फूट ऐसे समय में सामने आ रही है जब जेडीयू के बागी नेता शरद यादव और आरजेडी के ‘युवराज’ और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव नीतीश कुमार के खिलाफ बिहार में विपक्ष के समर्थन में माहौल बनाने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे वक़्त में कांग्रेस में बगावत विपक्ष को कमजोर करेगी और नीतीश कुमार बिहार में और मजबूत होकर उभरेंगे।
बिहार को लेकर स्पष्ट नहीं है केंद्रीय नेतृत्व का रुख
कभी बिहार की राजनीति पर एकक्षत्र राज करने वाली कांग्रेस पिछले दो दशकों से राज्य में हाशिए पर जा चुकी थी। 2015 के विधानसभा चुनावों के दौरान हुए महागठबंधन ने बिहार कांग्रेस को संजीवनी देने का काम किया था। कांग्रेस ने 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 27 सीटें जीतने में सफल रही थी। पिछले 20 वर्षों में बिहार विधानसभा चुनावों में यह कांग्रेस का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस के महागठबंधन ने मोदी लहर को रोक कर बिहार में महागठबंधन की सरकार बनाई थी। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के सुपुत्र और राज्य के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के भ्रष्टाचार के आरोपों में फँसने के बाद नीतीश कुमार ने महागठबंधन से दामन छुड़ा भाजपा का हाथ थाम लिया था।
कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व इस मसले पर नीतीश कुमार को मनाने में नाकाम रहा था। हाल ही में पटना में आयोजित आरजेडी की रैली में कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के दोनों शीर्ष नेताओं में से कोई भी शामिल नहीं हुआ। सोनिया गाँधी ने जहाँ अपने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया वहीं राहुल गाँधी अपनी विदेश यात्रा पर नॉर्वे गए हुए हैं। हालांकि सोनिया गाँधी का रिकार्डेड भाषण और राहुल गाँधी का लिखित सन्देश रैली में चलाये गए पर गाँधी परिवार के किसी एक सदस्य की उपस्थिति बिहार कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम करती। कांग्रेस इस समय अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रही है और ऐसे हालातों में बिहार की बगावत उसे सियासी पटल पर और कमजोर करेगी।
टिकट बँटवारे में भी था नीतीश का हस्तक्षेप
2015 के बिहार विधानसभा चुनावों पर पूरे देश की नजरें टिकी हुई थी। नीतीश कुमार के नेतृत्व में जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस ने मोदी लहर को रोकने के लिए भाजपा के खिलाफ महागठबंधन किया था। इस महागठबंधन ने संयुक्त रूप से बिहार की 243 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से 101 सीटों पर जेडीयू, 101 सीटों पर आरजेडी और 41 सीटों पर कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार खड़े किये थे। टिकट बँटवारे के वक़्त नीतीश कुमार ने ना सिर्फ जेडीयू उम्मीदवारों के चुनाव में दखल दिया था बल्कि उन्होंने कांग्रेस के टिकट बँटवारों में भी हस्तक्षेप किया था। उन्होंने अपने दर्जनभर चहेतों को कांग्रेस में टिकट दिलवाया था और उनमें से कई जीतने में कामयाब भी रहे थे।
शायद यह नीतीश कुमार के हस्तक्षेप का ही परिणाम हैं कि आज कांग्रेस के कई विधायक पार्टी छोड़ सरकार के साथ आना चाहते हैं। इस टूट से भाजपा और जेडीयू दोनों को ही फायदा मिलना तय है। कांग्रेस के सवर्ण विधायक भाजपा के साथ आना चाहते हैं वहीं अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग के विधायक जेडीयू के खेमे में जाना चाहते हैं। दोनों ही स्थितियां मौजूदा बिहार सरकार के लिए फायदेमंद होंगी और उसे बगावत की राह पर नजर आ रही जेडीयू से कुछ विधायकों के खिसकने का मलाल नहीं होगा। अभी तक 7 विधायकों के ही टूटने की खबर आ रही थी पर अब खबर आ रही है कि तकरीबन 15-18 विधायक कांग्रेस का साथ छोड़ सकते हैं। इनमे से 10 विधायकों के जेडीयू में शामिल होने की संभावना है।
नीतीश के खिलाफ जा चुके हैं पुराने साथी
जब से नीतीश कुमार ने महागठबंधन का दामन छोड़ भाजपा का हाथ थामा है, बिहार की राजनीति रोज नए-नए रंग बदल रही है। महागठबंधन के टूटने के बाद बिहार में मचा सियासी घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। एक ओर जहाँ आरजेडी और कांग्रेस लगातार नीतीश कुमार पर धोखा देने का आरोप लगा रही हैं वहीं दूसरी ओर सभी पार्टियां अंतर्कलह से परेशान हैं। भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद नीतीश कुमार की जेडीयू में भी बगावत के स्वर उठने लगे थे और वरिष्ठ पार्टी नेता शरद यादव, राज्यसभा सांसद अली अनवर और बिरेन्द्र कुमार ने खुले तौर पर नीतीश कुमार के इस कदम का विरोध किया था। सियासत के कुरुक्षेत्र में नीतीश कुमार के सारथी रहे शरद यादव ने भी उनका साथ छोड़ दिया है और इस वजह से जेडीयू के कुछ विधायक नीतीश के खिलाफ जा सकते हैं।
स्थिरता तलाश रही है नीतीश सरकार
नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू-भाजपा गठबंधन सरकार ने बिहार विधानसभा में अपना बहुमत तो साबित कर दिया पर जेडीयू के वरिष्ठ नेता शरद यादव और कई अन्य पार्टी नेताओं की बगावत ने नीतीश कुमार के माथे पर शिकन ला दी है। मुमकिन है जेडीयू के कुछ विधायक शरद यादव के साथ हो लें। साथ ही बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी इस समय भाजपा से नाराज चल रहे हैं और वह अपने फायदे के लिए किसी भी ओर जा सकते हैं। ऐसे में बिहार विधानसभा में बहुमत बनाये रखने में नीतीश सरकार को मुश्किलें पेश आ सकती हैं। इन सब संभावनाओं को ध्यान में रखकर नीतीश कुमार हर कदम फूँक-फूँक कर रख रहे हैं।
आगामी कुछ दिनों के भीतर बिहार में जबरदस्त राजनीतिक उथल-पुथल देखने को मिल सकती है। इस उथल-पुथल का सबसे बड़ा नुकसान बिहार कांग्रेस को होगा। बिहार कांग्रेस के 7 विधायकों के नीतीश कुमार की जेडीयू में शामिल होने की सम्भावना हैं। इस विषय में सारी बात तय हो चुकी है। इन विधायकों को लालू यादव का साथ रास नहीं आ रहा है फिर चाहे वो विचारधारा के मतभेद हो या क्षेत्र में वोटों का हिसाब। कांग्रेस विधायकों की यह जबरदस्त टूट बिहार में महागठबंधन की संजीवनी पाए कांग्रेस को और हाशिए पर ले जाएगी और नीतीश कुमार के खिलाफ विपक्षी महागठबंधन और कमजोर होगा।