भारत ने सात रोहिंग्या शरणार्थियों को 2 अक्टूबर को वापस म्यांमार के रखाइन प्रान्त में भेज दिया था।
चार दिनों की यात्रा तय करने के बाद आखिरकार शरणार्थी वापस अपने देश पहुँच गए हैं। शरणार्थियों ने बताया कि उन्हें वहां तक कार में लाया गया। साथ मे उनके परिवार भी है। यूएनएचसीआर ने भी इस बात की पुष्टि की है कि शरणार्थी अपने घर सही सलामत पहुँच चुके हैं।
शरणार्थियों ने बताया कि वे सरकार की गाड़ी में अपने घरों तक पहुँचे। उनके साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया जा रहा है। शरणार्थी मोहम्मद यूनुस ने बताया कि गांव मण्डलय पहुँचने के बाद उनके कुछ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवाये गए।
शरणार्थी ने बताया कि उन्हें 7 अक्टूबर को नेशनल वेरिफिकेशन कार्ड दिए गए हैं हालांकि वो नागरिकता कार्ड नहीं है। एनवीसी नागरिकता कार्ड नहीं है लेकिन 1982 नागरिकता एक्ट के तहत इससे नागरिकता कार्ड के लिए आवेदन किया जा सकता है।
शरणार्थी ने बताया कि उन्होंने साल 2012 में रखाइन प्रान्त छोड़ दिया था। इस कुछ समय पूर्व रोहिंग्या मुस्लिम और रखाइन बौद्ध के बीच हिंसक झड़प जो गयी थी।
शरणार्थी मौलवी नासिर ने बताया कि साल 2012 से पूर्व हम लोग बस्ती नही छोड़ना चाहते थे लेकिन यहां कुछ हिंसक झड़प हुई। रोहिंग्या मुस्लिमों ने स्वतंत्रता अभियान चलाया।
इसके बाद सरकार ने सख्त नियम बना दिये हम लोगों को गाँव छोड़ने की इजाजत नही थी या यूं कहें हम नज़रबंद थे। ये एक खुली कैद की माफिक थी। हमे एक बस्ती से दूसरी बस्ती तक जाने के लिए नदी से होकर जाने की ही आज्ञा था। हम बौद्ध लोगों के गांव से होकर नहीं गुज़र सकते थे।
शरणार्थी नासिर ने बताया कि मुस्लिम बस्तियों में कुछ ही नौकरियां उपलब्ध है। सभी बस्तियां छोड़ना चाहते हैं। यहां कुछ नहीं है। अधिकतर मुस्लिम अवैध मार्ग से होते हुए मलेशिया में जाकर बस गए। दलाल हमें लेकर जाते थे बदले में हमसे पैसे लेते थे। वे मुफ्त में कुछ नहीं करते थे।
हाल ही में गृह मंत्रालय ने यूएनएचआरसी के विरोध के बावजूद साथ रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेज दिया था। भारत चाहता है जल्दी ही शरणार्थियों की वापसी हो जिनके लिए लगातार म्यांमार सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है।