केंद्र में सत्ताधारी मोदी सरकार के कार्यकाल के 3 वर्ष पूरे हो चुके हैं। अब हर तरफ बस इसी बात की चर्चा है कि क्या 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने रहेंगे या विपक्ष उनका विकल्प तलाशने में सफल रहेगी? हालांकि भाजपा की लोकप्रियता और तैयारी को देखकर ऐसा नहीं लगता कि कोई भी दल आगामी चुनावों में उसके सामने खड़ा भी हो पायेगा। 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से मोदी-शाह की जोड़ी ने रंग जमा दिया है और एक के बाद एक करिश्मे करती नजर आ रही है। आज लगभग पूरा देश भगवामय हो गया है लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा का प्रभुत्व और बढ़ने की उम्मीद है।
विपक्षी दल ‘मोदी लहर’ और भाजपा के ‘विजय रथ’ को थामने के लिए लगातार प्रयासरत हैं पर एक के बाद एक उनकी हर कोशिश नाकाम साबित हो रही है। हाल ही में जेडीयू के बागी नेता और राज्यसभा सांसद शरद यादव ने सभी विपक्षी नेताओं की बैठक बुलाई थी जिसे उन्होंने सांझी विरासत सम्मलेन का नाम दिया था। इस बहुचर्चित बैठक पर सबकी नजरें टिकी थी और माना जा रहा था कि इस बैठक में केंद्रीय महागठबंधन की नींव पड़ सकती है। पर यह बैठक आरएसएस और भाजपा के विरुद्ध बयानबाजी करके समाप्त हो गई और विपक्षी एकजुटता की असलियत फिर सबके सामने आ गई। विपक्ष का ‘मिशन-2019’ अब ख्वाब जैसा लगने लगा है।
अगर पिछले 3 वर्षों में भाजपा के प्रदर्शन पर गौर करें तो उसकी जीत का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। अमित शाह के भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद भाजपा का प्रदर्शन लगातार सुधरा है। अमित शाह ने जहाँ भी हाथ डाला है वह जगह भाजपा के लिए सोना साबित हुई है। यूँ ही उन्हें मौजूदा भारतीय राजनीति का चाणक्य नहीं कहा जाता। उनकी संगठन कुशलता, टिकट वितरण के गणित और जोड़-तोड़ की राजनीति की दाद अब पूरा देश देता है। ऐसे में भाजपा के लिए 2019 में 350+ सीटों पर जीत दर्ज करना मुश्किल नजर नहीं आ रहा है। विपक्षी दल चाहे जितना नकार लें पर देश की जनता में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता आज भी बरकरार है। ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण बिंदु जो अमित शाह के मिशन 350+ में सहायक सिद्ध हो सकते हैं, निम्नलिखित है –
दलित और पिछड़ा दांव
यह अमित शाह का ब्रह्मास्त्र है। पिछले लोकसभा चुनावों में इसकी बानगी देखने को मिली थी जब अमित शाह ने गुजरात से जाकर साल भर के भीतर उत्तर प्रदेश की 73 लोकसभा सीटों पर भाजपा की विजय पताका फहराई। इसका ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव रहे जहाँ केशव प्रसाद मौर्य को भाजपा प्रदेश प्रभारी नियुक्त कर इन्होंने दशकों से भाजपा से दूर हो रहे ओबीसी वोटबैंक को साधा। सवर्ण पहले से ही भाजपा के पक्ष में थे नतीजन भारी बहुमत से प्रदेश में भाजपा सरकार बनी। राष्ट्रपति पड़ के लिए रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी ने देश के राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया। दबे-कुचले वर्ग और दलित राजनीति की दुहाई देने वाली पार्टियां हाशिए पर आ गईं और भाजपा के प्रति दलितों में मजबूत सन्देश गया।
रामनाथ कोविंद उत्तर प्रदेश के कानपूर से आते हैं और हिन्दीभाषी राज्यों में दलितों का बड़ा जनाधार है। ऐसे में इस जनाधार के बड़े हिस्से का अब भाजपा की तरफ झुकाव होगा जो उसकी स्थिति और मजबूत करेगा। बिहार में मचे सियासी भूचाल को भी अमित शाह का ही दांव माना जा रहा है। नीतीश कुमार को भाजपा के साथ लाकर अमित शाह ने अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंदी को अपने साथ कर लिया साथ ही ओबीसी वर्ग के सबसे बड़े नेता को भी भाजपा में मिला लिया। इस तरह उन्होंने एक तीर से दो निशाने लगाए और 2019 की राह और आसान कर दी। पिछड़े वर्ग का नेतृत्व करने वाला देश का सबसे बड़ा नेता अब भाजपा के साथ है और विपक्ष के पास अब नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई चेहरा नहीं बचा है।
मिशन साउथ
भाजपा ने जब वेंकैया नायडू को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया था तभी से इस बात की चर्चा होनी शुरू हो गई थी भाजपा अब दक्षिण की तरफ नजरें कर रहा है। वेंकैया नायडू मौजूदा समय में दक्षिण में भाजपा के सबसे बड़े हैं और उन्हें देश के सर्वोच्च पदों में से एक पद पर पदासीन कर भाजपा ने दक्षिण के वोटरों को मजबूत सन्देश दिया है। कर्नाटक में भाजपा विपक्ष में है और आंध्र प्रदेश में भाजपा-टीडीपी गठबंधन की सरकार है। केरल में भाजपा ने खाता खोल लिया है और और उसके प्रदर्शन के और सुधरने की उम्मीद है। तमिलनाडु में मची राजनीतिक उठापटक का फायदा भाजपा को मिला है और बहुत जल्द सत्ताधारी दल एआईएडीएमके से भाजपा का गठबंधन होने वाला है।
तेलंगाना के सत्ताधारी दल वाईएसआर कांग्रेस ने उपराष्ट्रपति चुनावों में वेंकैया नायडू की उम्मीदवारी का समर्थन किया था और 2019 तक वह भी भाजपा के साथ आ सकता है। जमीनी स्तर पर पार्टी के वरिष्ठ नेता दक्षिण के राज्यों में भाजपा को मजबूती देने में लगे हुए हैं और इसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। भाजपा अपने कार्यसमिति की बैठक आंध्र प्रदेश में आयोजित करने पर विचार कर रही है। ऐसे में मौजूदा हालात दक्षिण में भाजपा के लिए अच्छा संकेत हैं और 2019 चुनावों में यह शाह के मिशन 350+ में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
करीबी हार वाली सीटें
2014 में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा को 75 सीटों पर बहुत मामूली अंतर से हार मिली थी। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की सीटें शामिल थी। इस सभी राज्यों में कर्नाटक और पंजाब को छोड़कर शेष जगहों पर भाजपा सत्ता में हैं। अगर बिहार को हटा दें तो हर जगह भाजपा पूर्ण बहुमत से सरकार में है। कर्नाटक में अप्रैल,2018 में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में भाजपा के लिए इन करीबी हार वाली सीटों को जीतना मुश्किल नहीं होगा। इन सीटों पर पहले से ही पार्टी ने प्रभारियों की नियुक्ति कर रखी है। अमित शाह का लक्ष्य होगा कि इन राज्यों में भाजपा क्लीन स्वीप करे।
सांसदों पर लगाम
सदन में सांसदों की अनुपस्थिति को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। हाल ही में हुई संसदीय दल की बैठक में उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कह दिया था कि आपकी जो मर्जी हो वो कीजिए मई 2019 में देखूंगा। इससे स्पष्ट है कि २०१९ में सदन में अनुपस्थिति की वजह से सांसदों का टिकट काट सकता है और उनकी जगह नए चेहरों को पार्टी मैदान में उतार सकती है। अमित शाह ने सभी वरिष्ठ मंत्रियों और सांसदों से रिपोर्ट कार्ड भी माँगा है। कामकाज से संतुष्ट ना होने पर भी उनका टिकट काटा जा सकता है। सन्देश स्पष्ट है कि भाजपा आत्ममुग्धता में आकर किसी भी तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं करने वाली।
‘जिम्मेदार’ मंत्री
अमित शाह ने कैबिनेट में शामिल हर मंत्री को 5-5 संसदीय क्षेत्रों की जिम्मेदारी सौंपी है। उन क्षेत्रों से भाजपा प्रत्याशियों के जीत-हार से ही मंत्री का भविष्य तय होगा। स्पष्ट है कि मंत्रियों को बड़ा दायित्व सौंपने से पहले भाजपा यह देखना चाहती है कि वास्तव में मंत्री कितने जिम्मेदार हैं। सभी मंत्री अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए अपने-अपने संसदीय क्षेत्रों में कड़ी मेहनत कर रहे हैं। वे जमीनी स्तर पर जाकर लोगों को सरकार की योजनाओं और उनके लाभ से अवगत करा रहे हैं। इस तरह अमित शाह ने मंत्रियों को सीधे जनता के बीच भेजकर केंद्र की योजनाओं को जनता तक पहुँचाने का कारगर कदम उठाया है।